नीतीश कुमार का Bihar Exit Plan Decode! सुशील मोदी, गिरिराज सिंह, तारकिशोर प्रसाद और मंगल पाण्डेय का रोल समझिए h3>
पटना : नीतीश कमार का ‘Bihar Exit Plan’ पूरी तरह तैयार है। बीजेपी के ‘टॉप नेताओं’ को राज्य में लीडरशिप को लेकर असमंजस है। दरअसल ‘टॉप लीडरशिप’ ने अब तक अपना फैसला नहीं सुनाया है। वरना क्या मजाल की कोई सांस खींच दे। सारे प्रपोजल उसके पास पड़े हुए हैं। अलग-अलग तरह के फीडबैक जुटाए जा रहे हैं। राजनीति को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने जी-भरकर जी लिया। वो अपना सम्मानजनक एग्जिट चाह रहे हैं। उनकी चाहत है कि उन्होंने जो काम किया है, उसे उनका कोई ‘लॉयलिस्ट’ आगे बढ़ाए। चूंकि जेडीयू इतनी मजबूत नहीं है कि नीतीश कुमार ये दांव अपने पार्टी के नेताओं पर लगाएं। ऐसे में वो अपने ‘सपने’ को बीजेपी में ढूंढ रहे हैं। अपनी ख्वाहिश उन्होंने बीजेपी के ‘टॉप लीडरशिप’ को बता भी दिया है। मगर मामला डिसीजन लेवल पर पेंडिंग है।
‘लीडरशिप’ के पास प्रपोजल पेंडिंग
ऐसा कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार पटना से दिल्ली शिफ्ट तो होना चाहते हैं, मगर खाली हाथ रहना नहीं चाहते। वो दिल्ली में सम्मानजनक पोजिशन के साथ सियासी माहौल का लुत्फ उठाना चाहते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वो राज्सभा के जरिए उपराष्ट्रपति बनने की ख्वाहिश रखते हैं। ये बात उन्होंने बीजेपी के ‘बड़े नेताओं’ को बता दी है। इनकी बात को इन ‘बड़े नेताओं’ ने बड़े ही इत्मीनान से सुना भी है। आश्वासन तो नहीं मिला लेकिन प्रपोजल खारिज भी नहीं किया गया। बीजेपी चाहती है कि बिहार में उसके पार्टी का कोई मुख्यमंत्री हो। यूपी में ये सपना तो बहुत पहले पूरा हो चुका है मगर बिहार में लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद अधूरा है। बीजेपी भी पावर शिफ्टिंग तो चाहती है मगर नीतीश कुमार की शर्त भी बड़ी है। वो अपने कंडिशन पर सीएम की कुर्सी बीजेपी को सौंपना चाहते हैं। बात यहीं पर रूकी पड़ी है।
सुशील मोदी पर नीतीश कुमार दांव
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी के सुशील मोदी को काफी पसंद करते हैं। पेशेवर और नीजि दोनों ही तरीके से वो सुशील मोदी को लाइक करते हैं। ये बाद किसी से छिपी हुई नहीं है। 2020 में सीएम पद की कुर्सी संभालने के बाद नीतीश कुमार ने कहा भी था कि वो अपने कैबिनेट में सुशील मोदी को मिस कर रहे हैं। तब बीजेपी ने अपनी बी-टीम को आगे कर नीतीश कुमार के साथ सत्ता में भागीदार बनाने का फैसला लिया था। जिनके नाम की कहीं चर्चा नहीं थी वो डेप्युटी सीएम बनाए गए। चूंकि शासन-प्रशासन की बागडोर नीतीश के हाथों में है तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता की उनके अगल-बगल कौन बैठा है। मगर हर किसी का एक कंफर्ट लेवल तो होता ही है। ऐसे में नीतीश कुमार ने बीजेपी नेतृत्व को बता दिया है कि वो अपनी विरासत सुशील कुमार मोदी को सौंपना चाहते हैं। मगर बीजेपी स्टेट यूनिट के इंचार्जों को सुशील मोदी खटकते हैं। उनको लगता है कि अगर सुशील मोदी फिर से पावर में आ गए तो उनको दिक्कत होने लगेगी। फिर उनके लोगों का क्या होगा। वो नहीं चाहते कि ऐसा हो। मगर इससे कम पर नीतीश कुमार तैयार नहीं है।
बीजेपी में कौन बनेगा मुख्यमंत्री? रिसर्च जारी
बिहार में भारतीय जनता पार्टी से मुख्यमंत्री कौन बनेगा? अब तक इस पर रिसर्च किया जा रहा है। काबिलियत से ज्यादा इस बात पर चर्चा की जा रही है कि मुख्यमंत्री बननेवाला किस जाति से हो। बिहार बीजेपी के प्रभारी भूपेंद्र यादव हैं। बिना उनके स्टेट यूनिट में पत्ता भी नहीं खड़कता है। बिहार बीजेपी के यादव नेता अपनी पार्टी समझते हैं। चूंकि सुशील मोदी बनिया समाज से आते हैं तो उनको संजय जायसवाल से रिप्लेस कर दिया गया। ताकि कोई सवाल न उठे। अब अगर सुशील मोदी को सीएम की कुर्सी सौंप दी जाती है तो फिर पार्टी को नया अध्यक्ष ढूंढना होगा।
1. नित्यानंद राय
बिहार के पिछड़ी जातियों में यादवों की संख्या ज्यादा है तो केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के सीएम बनाने की चर्चा होने लगी। मगर पार्टी में दूसरा गुट इसके लिए तैयार नहीं है। उसका तर्क है कि बिहार का प्रभारी भी यादव है, राज्य का मुखिया भी यादव हो जाएगा। जबकि बिहार में यादवों का सबसे बड़े नेता लालू यादव हैं। ऐसे में कोई भी यादव भला भारतीय जनता पार्टी को वोट क्यों देगा? यादव समाज के किसी शख्स को सीएम बना देने से बीजेपी के अपने कोर वोटर (एंटी लालू वोट) नाराज हो जाएंगे।
2. तारकिशोर प्रसाद
ऐसे में विचार किया गया कि डेप्युटी सीएम तारकिशोर प्रसाद को ही प्रमोट कर सीएम बना दिया जाए। वो अति पिछड़ी जाति से आते हैं। उनके नाम पर तो कोई विवाद भी नहीं है। मगर उनके साथ दिक्कत है कि उनकी पूरे राज्य में पहचान नहीं है। उन्होंने अपने कोर वोटरों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिससे उन्हें याद किया जाए। बीजेपी के ज्यादातर विधायक उनके नाम पर सहमत नहीं है।
3. गिरिराज सिंह
फिर तय किया गया कि क्यों न किसी सवर्ण को ही सीम बना दिया जाए। इसमें भूमिहार जाति से गिरिराज सिंह के नाम पर पार्टी के भीतर चर्चा होने की बात कही गई। वो काफी मुखर रहते हैं। हिंदू-मुस्लिम के मामले पर कड़क बयान जारी करते हैं। पार्टी आइडियोलॉजी के हिसाब से भी ठीक रहेगा। मगर यहां पेंच घुसाया गया कि भूमिहार जाति से भी सवर्णों के कई दूसरी जातियों को दिक्कत है। संख्या बल के लिहाज से ये बहुत मजबूत नहीं है। दूसरी पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों की नाराजगी झेलने की बात बताई गई।
4. मंगल पाण्डेय
आखिर में विचार किया गया कि क्यों न किसी ब्राह्मण को सीएम की कुर्सी सौंप दी जाए और उसके आसपास यादव और दूसरी पिछड़ी जातियों को सरकार से लेकर संगठन तक में बिठा दिया जाए। यहां पर पार्टी नेताओं की नजर अश्विनी चौबे और मंगल पाण्डेय पर टीक गई। अश्विनी चौबे की नाम पर चर्चा उनकी उम्र के साथ ही खत्म हो गई। मगल पाण्डेय के नाम पर मंथन किया गया। इनके नाम पर गंभीरता से विचार हुआ। मंगल पाण्डेय बिहार बीजेपी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। लंबे समय से सरकार में मंत्री भी हैं। उम्र भी आड़े नहीं आ रही। ब्राह्मण के नाम पर बाकी दूसरी जातियों को बहुत आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए। मगर कोई फैसला नहीं लिया गया।
सुशील मोदी की मजबूत दावेदारी की वजह
बिहार में बीजेपी को ज्यादातर वोट, एंटी लालू मिलते हैं। न कि यादव वोट। लालू यादव और उनके परिवार के खिलाफ अगर किसी ने सबसे ज्यादा रिसर्च किया है तो वो हैं सुशील मोदी। ये वहीं शख्स हैं जिन्होंने अच्छी-खासी चल रही जेडीयू-आरजेडी की सरकार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर-करके गिरवा दिए थे। तब कहा गया था कि बिहार में बेरोजगार भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को सुशील मोदी ने रोजगार दिला दिया। इसके बाद सुशील मोदी जब डेप्युटी सीएम बनाए गए तो उन्होंने तेजस्वी से बंगला तक खाली करा दिया था। जो लोग लालू यादव के नाम से चिढ़ते हैं, वो सुशील मोदी को काफी पंसद करते हैं। इसमें सभी जातियों और सभी धर्मों के लोग शामिल हैं। पूरे राज्य में सुशील मोदी की अपनी पहचान है। सॉफ्ट स्पोकेन होने की वजह से उनकी पैठ तकरीबन सभी जगह है। सुशील मोदी के नाम पर पार्टी के विधायकों में बहुत आपत्ति नहीं है। मगर उनके साथ दिक्कत है कि इंचार्ज नहीं चाहते कि सुशील मोदी को सत्ता की बागडोर थमाई जाए। लेकिन जो उनके पक्ष है वो ये कि नीतीश कुमार किसी दूसरे को अपना सक्सेसर बनाने को तैयार नहीं है। आखिरी फैसला बीजेपी के ‘टॉप लीडरशिप’ को लेना है। कहा तो यहां तक जाता है कि अगर बीजेपी हाई कमान सुशील मोदी के नाम पर आज राजी हो जाए तो नीतीश कुमार कल से ही पावर ट्रांसफर का काम शुरू कर देंगे।
बिहार की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News
ऐसा कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार पटना से दिल्ली शिफ्ट तो होना चाहते हैं, मगर खाली हाथ रहना नहीं चाहते। वो दिल्ली में सम्मानजनक पोजिशन के साथ सियासी माहौल का लुत्फ उठाना चाहते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वो राज्सभा के जरिए उपराष्ट्रपति बनने की ख्वाहिश रखते हैं। ये बात उन्होंने बीजेपी के ‘बड़े नेताओं’ को बता दी है। इनकी बात को इन ‘बड़े नेताओं’ ने बड़े ही इत्मीनान से सुना भी है। आश्वासन तो नहीं मिला लेकिन प्रपोजल खारिज भी नहीं किया गया। बीजेपी चाहती है कि बिहार में उसके पार्टी का कोई मुख्यमंत्री हो। यूपी में ये सपना तो बहुत पहले पूरा हो चुका है मगर बिहार में लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद अधूरा है। बीजेपी भी पावर शिफ्टिंग तो चाहती है मगर नीतीश कुमार की शर्त भी बड़ी है। वो अपने कंडिशन पर सीएम की कुर्सी बीजेपी को सौंपना चाहते हैं। बात यहीं पर रूकी पड़ी है।
सुशील मोदी पर नीतीश कुमार दांव
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी के सुशील मोदी को काफी पसंद करते हैं। पेशेवर और नीजि दोनों ही तरीके से वो सुशील मोदी को लाइक करते हैं। ये बाद किसी से छिपी हुई नहीं है। 2020 में सीएम पद की कुर्सी संभालने के बाद नीतीश कुमार ने कहा भी था कि वो अपने कैबिनेट में सुशील मोदी को मिस कर रहे हैं। तब बीजेपी ने अपनी बी-टीम को आगे कर नीतीश कुमार के साथ सत्ता में भागीदार बनाने का फैसला लिया था। जिनके नाम की कहीं चर्चा नहीं थी वो डेप्युटी सीएम बनाए गए। चूंकि शासन-प्रशासन की बागडोर नीतीश के हाथों में है तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता की उनके अगल-बगल कौन बैठा है। मगर हर किसी का एक कंफर्ट लेवल तो होता ही है। ऐसे में नीतीश कुमार ने बीजेपी नेतृत्व को बता दिया है कि वो अपनी विरासत सुशील कुमार मोदी को सौंपना चाहते हैं। मगर बीजेपी स्टेट यूनिट के इंचार्जों को सुशील मोदी खटकते हैं। उनको लगता है कि अगर सुशील मोदी फिर से पावर में आ गए तो उनको दिक्कत होने लगेगी। फिर उनके लोगों का क्या होगा। वो नहीं चाहते कि ऐसा हो। मगर इससे कम पर नीतीश कुमार तैयार नहीं है।
बीजेपी में कौन बनेगा मुख्यमंत्री? रिसर्च जारी
बिहार में भारतीय जनता पार्टी से मुख्यमंत्री कौन बनेगा? अब तक इस पर रिसर्च किया जा रहा है। काबिलियत से ज्यादा इस बात पर चर्चा की जा रही है कि मुख्यमंत्री बननेवाला किस जाति से हो। बिहार बीजेपी के प्रभारी भूपेंद्र यादव हैं। बिना उनके स्टेट यूनिट में पत्ता भी नहीं खड़कता है। बिहार बीजेपी के यादव नेता अपनी पार्टी समझते हैं। चूंकि सुशील मोदी बनिया समाज से आते हैं तो उनको संजय जायसवाल से रिप्लेस कर दिया गया। ताकि कोई सवाल न उठे। अब अगर सुशील मोदी को सीएम की कुर्सी सौंप दी जाती है तो फिर पार्टी को नया अध्यक्ष ढूंढना होगा।
1. नित्यानंद राय
बिहार के पिछड़ी जातियों में यादवों की संख्या ज्यादा है तो केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के सीएम बनाने की चर्चा होने लगी। मगर पार्टी में दूसरा गुट इसके लिए तैयार नहीं है। उसका तर्क है कि बिहार का प्रभारी भी यादव है, राज्य का मुखिया भी यादव हो जाएगा। जबकि बिहार में यादवों का सबसे बड़े नेता लालू यादव हैं। ऐसे में कोई भी यादव भला भारतीय जनता पार्टी को वोट क्यों देगा? यादव समाज के किसी शख्स को सीएम बना देने से बीजेपी के अपने कोर वोटर (एंटी लालू वोट) नाराज हो जाएंगे।
2. तारकिशोर प्रसाद
ऐसे में विचार किया गया कि डेप्युटी सीएम तारकिशोर प्रसाद को ही प्रमोट कर सीएम बना दिया जाए। वो अति पिछड़ी जाति से आते हैं। उनके नाम पर तो कोई विवाद भी नहीं है। मगर उनके साथ दिक्कत है कि उनकी पूरे राज्य में पहचान नहीं है। उन्होंने अपने कोर वोटरों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिससे उन्हें याद किया जाए। बीजेपी के ज्यादातर विधायक उनके नाम पर सहमत नहीं है।
3. गिरिराज सिंह
फिर तय किया गया कि क्यों न किसी सवर्ण को ही सीम बना दिया जाए। इसमें भूमिहार जाति से गिरिराज सिंह के नाम पर पार्टी के भीतर चर्चा होने की बात कही गई। वो काफी मुखर रहते हैं। हिंदू-मुस्लिम के मामले पर कड़क बयान जारी करते हैं। पार्टी आइडियोलॉजी के हिसाब से भी ठीक रहेगा। मगर यहां पेंच घुसाया गया कि भूमिहार जाति से भी सवर्णों के कई दूसरी जातियों को दिक्कत है। संख्या बल के लिहाज से ये बहुत मजबूत नहीं है। दूसरी पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों की नाराजगी झेलने की बात बताई गई।
4. मंगल पाण्डेय
आखिर में विचार किया गया कि क्यों न किसी ब्राह्मण को सीएम की कुर्सी सौंप दी जाए और उसके आसपास यादव और दूसरी पिछड़ी जातियों को सरकार से लेकर संगठन तक में बिठा दिया जाए। यहां पर पार्टी नेताओं की नजर अश्विनी चौबे और मंगल पाण्डेय पर टीक गई। अश्विनी चौबे की नाम पर चर्चा उनकी उम्र के साथ ही खत्म हो गई। मगल पाण्डेय के नाम पर मंथन किया गया। इनके नाम पर गंभीरता से विचार हुआ। मंगल पाण्डेय बिहार बीजेपी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। लंबे समय से सरकार में मंत्री भी हैं। उम्र भी आड़े नहीं आ रही। ब्राह्मण के नाम पर बाकी दूसरी जातियों को बहुत आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए। मगर कोई फैसला नहीं लिया गया।
सुशील मोदी की मजबूत दावेदारी की वजह
बिहार में बीजेपी को ज्यादातर वोट, एंटी लालू मिलते हैं। न कि यादव वोट। लालू यादव और उनके परिवार के खिलाफ अगर किसी ने सबसे ज्यादा रिसर्च किया है तो वो हैं सुशील मोदी। ये वहीं शख्स हैं जिन्होंने अच्छी-खासी चल रही जेडीयू-आरजेडी की सरकार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर-करके गिरवा दिए थे। तब कहा गया था कि बिहार में बेरोजगार भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को सुशील मोदी ने रोजगार दिला दिया। इसके बाद सुशील मोदी जब डेप्युटी सीएम बनाए गए तो उन्होंने तेजस्वी से बंगला तक खाली करा दिया था। जो लोग लालू यादव के नाम से चिढ़ते हैं, वो सुशील मोदी को काफी पंसद करते हैं। इसमें सभी जातियों और सभी धर्मों के लोग शामिल हैं। पूरे राज्य में सुशील मोदी की अपनी पहचान है। सॉफ्ट स्पोकेन होने की वजह से उनकी पैठ तकरीबन सभी जगह है। सुशील मोदी के नाम पर पार्टी के विधायकों में बहुत आपत्ति नहीं है। मगर उनके साथ दिक्कत है कि इंचार्ज नहीं चाहते कि सुशील मोदी को सत्ता की बागडोर थमाई जाए। लेकिन जो उनके पक्ष है वो ये कि नीतीश कुमार किसी दूसरे को अपना सक्सेसर बनाने को तैयार नहीं है। आखिरी फैसला बीजेपी के ‘टॉप लीडरशिप’ को लेना है। कहा तो यहां तक जाता है कि अगर बीजेपी हाई कमान सुशील मोदी के नाम पर आज राजी हो जाए तो नीतीश कुमार कल से ही पावर ट्रांसफर का काम शुरू कर देंगे।