नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार को मिला नीचे से छठा स्थान, जानिए किस इंडेक्स में पिछड़ी नीतीश सरकार h3>
पटना :नीति आयोग (Niti Aayog) की स्टेट एनर्जी क्लाइमेट इंडेक्स (State Energy Climate Index) में बिहार की परफॉर्मेंस खराब रही है। सूबे को इंडेक्स में नीचे से 6वां स्थान हासिल हुआ है। एनर्जी इफिसिएंसी और जलवायु में बदलाव के अलग-अलग आयामों में प्रदर्शन को लेकर नीति आयोग ने पहली बार स्टेट एनर्जी क्लाइमेट इंडेक्स (SECI) जारी किया। इसमें बिहार का कुल स्कोर 38.3 रहा, जो 40.6 के राष्ट्रीय स्कोर से 2.3 अंक कम है।
इन 6 मानकों पर प्रदर्शन से तय हुई रैंकिंग
इंडेक्स में शामिल 20 अन्य राज्यों में बिहार छह मानकों पर ओवरऑल प्रदर्शन के आधार पर 15वें स्थान पर है। ये 6 मानक हैं- बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम), ऊर्जा की पहुंच, सामर्थ्य और विश्वसनीयता, स्वच्छ ऊर्जा पहल, ऊर्जा इफिसिएंसी, पर्यावरणीय स्थिरता और नई पहल। 2019-2020 के आंकड़ों पर आधारित इन मापदंडों में 27 इंडिकेटर्स भी शामिल थे।
जानिए कहां पिछड़ा बिहार
डिस्कॉम के प्रदर्शन में, राज्य ने 61.3 स्कोर के साथ अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि इसने ऊर्जा की पहुंच, सामर्थ्य और विश्वसनीयता (एएआरई) में 45 अंक हासिल किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, बिहार, झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और असम में AARE की बात करें तो लंबे समय तक बिजली कटौती रहती है। बिहार ने क्लीन एनर्जी इनीशिएटिव में केवल 4.9, ऊर्जा दक्षता में 22.8, पर्यावरणीय स्थिरता में 33.7 और नई पहल में 7.6 अंक हासिल किए हैं।
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रिपोर्ट पर क्या बोले अधिकारी
रिपोर्ट के अनुसार, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और ओडिशा के प्रदर्शन में क्लीन एनर्जी इनीशिएटिव, एनर्जी इफिसिएंसी, पर्यावरणीय स्थिरता और नई पहल में सुधार की अधिक गुंजाइश है। इसमें बिहार को सबसे कम स्कोर (9.8) मिला है जिसमें खाना पकाने के ईंधन की आपूर्ति शामिल है। क्लीन एनर्जी इनीशिएटिव में राज्य के खराब प्रदर्शन के बारे में पूछे जाने पर परिवहन सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि पटना को छोड़कर बिहार में सीएनजी नेटवर्क कम है। रोहतास, गया और बेगूसराय आंशिक रूप से सीएनजी नेटवर्क है। स्वच्छ ईंधन की बहुत मांग है और हमने संबंधित फर्म से बिहार में पाइपलाइन बिछाने और सीएनजी स्टेशन स्थापित करने का अनुरोध किया है। एक साल में स्थिति में सुधार होगा। सीएनजी की कम उपलब्धता के कारण राज्य का स्कोर कम था।
परिवहन अधिकारियों के अनुसार, बिहार में लगभग 20,000 बसें सीएनजी से संचालित होती हैं। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष अशोक घोष ने कहा कि उज्ज्वला योजना के बावजूद, लोग खाना पकाने के लिए बायोमास का इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि बाजार में कम कीमत पर ये आसानी से उपलब्ध हैं। चूंकि एलपीजी सिलेंडर महंगा है, लोगों को इसका खर्च उठाना मुश्किल लगता है। इसलिए, वे बायोमास का इस्तेमाल करते हैं।
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इंडेक्स में शामिल 20 अन्य राज्यों में बिहार छह मानकों पर ओवरऑल प्रदर्शन के आधार पर 15वें स्थान पर है। ये 6 मानक हैं- बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम), ऊर्जा की पहुंच, सामर्थ्य और विश्वसनीयता, स्वच्छ ऊर्जा पहल, ऊर्जा इफिसिएंसी, पर्यावरणीय स्थिरता और नई पहल। 2019-2020 के आंकड़ों पर आधारित इन मापदंडों में 27 इंडिकेटर्स भी शामिल थे।
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डिस्कॉम के प्रदर्शन में, राज्य ने 61.3 स्कोर के साथ अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि इसने ऊर्जा की पहुंच, सामर्थ्य और विश्वसनीयता (एएआरई) में 45 अंक हासिल किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, बिहार, झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और असम में AARE की बात करें तो लंबे समय तक बिजली कटौती रहती है। बिहार ने क्लीन एनर्जी इनीशिएटिव में केवल 4.9, ऊर्जा दक्षता में 22.8, पर्यावरणीय स्थिरता में 33.7 और नई पहल में 7.6 अंक हासिल किए हैं।
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रिपोर्ट के अनुसार, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और ओडिशा के प्रदर्शन में क्लीन एनर्जी इनीशिएटिव, एनर्जी इफिसिएंसी, पर्यावरणीय स्थिरता और नई पहल में सुधार की अधिक गुंजाइश है। इसमें बिहार को सबसे कम स्कोर (9.8) मिला है जिसमें खाना पकाने के ईंधन की आपूर्ति शामिल है। क्लीन एनर्जी इनीशिएटिव में राज्य के खराब प्रदर्शन के बारे में पूछे जाने पर परिवहन सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि पटना को छोड़कर बिहार में सीएनजी नेटवर्क कम है। रोहतास, गया और बेगूसराय आंशिक रूप से सीएनजी नेटवर्क है। स्वच्छ ईंधन की बहुत मांग है और हमने संबंधित फर्म से बिहार में पाइपलाइन बिछाने और सीएनजी स्टेशन स्थापित करने का अनुरोध किया है। एक साल में स्थिति में सुधार होगा। सीएनजी की कम उपलब्धता के कारण राज्य का स्कोर कम था।
परिवहन अधिकारियों के अनुसार, बिहार में लगभग 20,000 बसें सीएनजी से संचालित होती हैं। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष अशोक घोष ने कहा कि उज्ज्वला योजना के बावजूद, लोग खाना पकाने के लिए बायोमास का इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि बाजार में कम कीमत पर ये आसानी से उपलब्ध हैं। चूंकि एलपीजी सिलेंडर महंगा है, लोगों को इसका खर्च उठाना मुश्किल लगता है। इसलिए, वे बायोमास का इस्तेमाल करते हैं।