निरंजनी अखाड़े में IT एक्सपर्ट और डॉक्टर नागा साधु: रात में महिलाओं की एंट्री बैन, 1 करोड़ में बना महामंडलेश्वर का पंडाल

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निरंजनी अखाड़े में IT एक्सपर्ट और डॉक्टर नागा साधु:  रात में महिलाओं की एंट्री बैन, 1 करोड़ में बना महामंडलेश्वर का पंडाल

निरंजनी अखाड़े में IT एक्सपर्ट और डॉक्टर नागा साधु: रात में महिलाओं की एंट्री बैन, 1 करोड़ में बना महामंडलेश्वर का पंडाल

इस बार महाकुंभ में सबसे ज्यादा चर्चा निरंजनी अखाड़े की है। वजह भी है, कुंभ शुरू होने से पहले ही यहां एपल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल अपने 40 लोगों के स्टाफ के साथ आ गई थीं। इस अखाड़े में हर रोज सेलिब्रिटी, मंत्री, नेता से लेकर अफसर

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कुंभ क्षेत्र में इस अखाड़े के महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी के पंडाल की खूब चर्चा है। हो भी क्यों न, ये पंडाल 1 करोड़ रुपए में बना है। इस अखाड़े की भव्यता देखने मैं भी पहुंच गई।

दैनिक NEWS4SOCIALकी अखाड़ों की कहानी सीरीज की चौथी किस्त में पढ़िए पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी की पूरी कहानी…

कुंभ क्षेत्र का सेक्टर-20, काली मार्ग। यहां 1121 साल पुराने अखाड़े का शिविर लगा है। इस अखाड़े की स्थापना ईस्वी सन् 904 में की गई थी। यहां के संत कोई दान नहीं लेते, बल्कि दान देने के लिए जाने जाते हैं। देशभर में अखाड़े की 2 हजार करोड़ की संपत्ति है।

शैव परंपरा के इस अखाड़े में 10 हजार से ज्यादा नागा संन्यासी हैं। अखाड़े के शिविर में जाने से पहले अखाड़े के महामंडलेश्वर के पंडाल में चलते हैं।

निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी का पंडाल।

अखाड़े के व्यवस्थापक और महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी का पंडाल देखकर कह सकते हैं कि अखाड़े के पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं है। बद्रीनाथ की थीम पर एक करोड़ में बने इस पंडाल को देखकर ऐसा लगता है मानों बद्रीनाथ ही पहुंच गए हैं।

पंडाल के बाहर से ही इसकी भव्यता साफ नजर आती है। बड़े-बड़े अक्षरों में कैलाशानंद गिरी का नाम लिखा हुआ है। इसी पर शंकर-पार्वती समेत कई भगवान का चित्र उकेरा हुआ है। गेट के ऊपर धर्म ध्वजा लहरा रही है। गेट से अंदर घुसते ही मेरी नजर चमचमाते झूमर पर पड़ी।

निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर के पंडाल में लगा झूमर।

यहां से निकलते ही एक बड़ा सा मैदान है। बीचों-बीच शंकर भगवान की बड़ी सी मूर्ति है। साफ-सफाई इतनी ज्यादा मानों फाइव स्टार होटल हो। एक कोने में करोड़ों की कीमत वाली गाड़ियां खड़ी हैं।

यहां से अंदर जाने के लिए रंग-बिरंगा एक और गेट है। दोनों तरफ शेर का चित्र उकेरा हुआ है और दोनों तरफ हाथी भी बने हैं। इस गेट से अंदर पूरी तरह से हाईटेक और कॉर्पोरेट जैसे इंतजाम हैं। हालांकि इस पंडाल में अखाड़े के साधु-संत कम ही नजर आते हैं। सभी साधु अखाड़े के शिविर में ही रहते हैं, जब कोई काम पड़ता है तभी महामंडलेश्वर के पंडाल में आते हैं।

पंडाल के अंदर बनी शंकर भगवान की मूर्ति।

इसे देखने के बाद मैं अखाड़े के शिविर में पहुंच गई। मैरून और पीले रंग के बड़े से गेट के अंदर एक अलग ही दुनिया है। इसे श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा के साधु-संत और नागाओं का अलग संसार कह सकते हैं

गेट से अंदर जाते ही सबसे पहले चेहरा-मोहरा नाम की जगह है। इसे हम अखाड़े का ऑफिस भी कह सकते हैं। यहीं से पूरे अखाड़ा क्षेत्र का मैनेजमेंट चलता है। यहीं महामंडलेश्वर और अन्य संत आम लोगों और वीवीआईपी से मिलते हैं। इसी जगह पर हमेशा लोगों की भीड़ रहती है।

अखाड़े के गुरु भगवान कार्तिकेय हैं, जिन्हें ‘निरंजन’ नाम से पुकारा जाता है। इस वजह से अखाड़े का नाम भी निरंजनी पड़ा। हर दिन सुबह 4 बजे भगवान कार्तिकेय की 6 मुख वाली प्रतिमा का पूजन-आरती होती है। जिस वक्त मैं यहां पहुंची उस समय यहां विशेष रूप से महाकाल का पूजन हो रहा था। पूजन के लिए किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर मां पवित्रा आई हुई थीं।

निरंजनी अखाड़े में पूजा-पाठ करते संत

अखाड़े में जगह-जगह बहुत ही व्यवस्थित तरीके से तंबूनुमा कुटिया बनाई गई हैं। हर कुटिया के सामने भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा है। दरअसल, कार्तिकेय भगवान निरंजनी अखाड़े के इष्ट देव हैं। इनका ध्येय वाक्य है, ‘श्री गुरु कार्तिकेभ्यो: नम:।’ अखाड़े में धर्म ध्वजा लहरा रही है।

52 सीढ़ियां हैं जो 52 मढ़ियों का प्रतीक हैं। अखाड़ा साधुओं को शास्त्र और शस्त्र दोनों की शिक्षा देता है। परंपरागत रूप से, साधु पहले धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं। फिर कठिन तपस्या और योग की प्रक्रिया से गुजरते हैं।

शिविर में लहरा रही धर्म ध्वजा।

सात दिन तक निरंजनी अखाड़े में रहीं स्टीव जॉब्स की पत्नी 14 जनवरी को इस अखाड़े के शिविर में एपल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल पहुंचीं। करीब एक सप्ताह तक लॉरेन निरंजनी अखाड़े की छावनी में रहीं। यहां उन्होंने आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी से दीक्षा ली। स्वामी कैलाशानंद गिरी ने पॉवेल को कमला नाम और अपना गोत्र दिया। लॉरेन पॉवेल पति स्टीव जॉब्स की 50 साल पुरानी इच्छा पूरी करने आई थीं।

निरंजनी अखाड़े में एपल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल।

दरअसल, 19 फरवरी 1974 को स्टीव जॉब्स ने अपने 19वें जन्मदिन पर बचपन के दोस्त टिम ब्राउन को चिट्ठी लिखी थी। उस दौरान कैलिफोर्निया से करीब 12 हजार किलोमीटर दूर इलाहाबाद में कुंभ चल रहा था। चिट्ठी में जॉब्स ने कुंभ मेले में जाने की इच्छा जताई थी। उन्होंने चिट्ठी में लिखा था….

‘मैं अब लॉस गैटोस और सांता क्रूज के बीच पहाड़ों में एक खेत में रह रहा हूं, मैं कुंभ मेले के लिए भारत जाना चाहता हूं, जो अप्रैल में शुरू होता है। मैं मार्च में किसी समय जाऊंगा, हालांकि अभी तक इसको लेकर निश्चित नहीं हूं।’

स्टीव जॉब्स ने ये चिट्ठी लिखी थी, जिसकी हाल ही में नीलामी हुई है।

स्टीव जॉब्स का 5 अक्टूबर 2011 को निधन हो गया। चिट्ठी लिखे जाने के ठीक 50 साल बाद उनकी पत्नी लॉरेन पॉवेल उनकी अधूरी इच्छा पूरी करने महाकुंभ में आईं।

स्टीव जॉब्स ने अपने हाथ से पहली बार चिट्ठी लिखी थी। हाल ही में बॉनहम्स की ओर से पांच लाख 312 अमेरिकी डॉलर यानी लगभग 4.32 करोड़ रुपए में इसकी नीलामी की गई। बॉनहम्स अंतरराष्ट्रीय नीलामी घर है। ये ललित कला और प्राचीन वस्तुओं की दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी नीलामी करने वाली संस्थाओं में से एक है। इसका मुख्यालय लंदन में है।

पेशवाई में मुंह से आग उगलते, तांडव करते दिखे नागा 4 जनवरी को निरंजनी अखाड़े की पेशवाई निकली थी। बैंड-बाजे और डीजे की धुन में नागा संग कलाकारों ने भी गजब के करतब दिखाए। करीब एक हजार साधु-संत पूरे राजसी वैभव के साथ हाथी-घोड़े, ऊंट और रथ पर सवार होकर निकले। कोई मुंह से आग उगल रहा था, तो कोई डीजे की धुन पर तांडव करते दिखा।

पेशवाई डीजे की धुन पर नाचते साधु।

संत अल्लापुर के बाघंबरी मठ से करीब 10 किमी की दूरी तय कर पेशवाई मेला क्षेत्र में पहुंची थी। पेशवाई के दौरान ड्रोन से यात्रा पर नजर रखी जा रही थी। उस दौरान कलाकारों ने ऐसे-ऐसे करतब दिखाए कि देखने वाले हैरान रह गए।

पेशवाई के दौरान करतब दिखाते हुए निरंजनी अखाड़े के साधु।

निरंजनी अखाड़े के 70% साधुओं के पास मास्टर्स की डिग्री अखाड़े के कई संत प्रोफेसर, डॉक्टर, लॉ, पीएचडी, एमबीए और संस्कृत के विद्वान हैं। कुछ संतों ने IIT से पढ़ाई की है। अखाड़ा इलाहाबाद और हरिद्वार में पांच स्कूल-कॉलेज संचालित कर रहा है। हरिद्वार में एक संस्कृत कॉलेज भी है। इनका मैनेजमेंट संत संभालते हैं।

सरकारी नौकरी में थे अखाड़े के सचिव अखाड़े के सचिव रामरत्नगिरी है। एमटेक करने के बाद उन्होंने दिल्ली में सरकारी नौकरी की। वे बताते हैं कि हमारे यहां जो संत और नागा हैं उनमें 70 फीसदी से ज्यादा लोग पढ़े-लिखे हैं। यह कोई नई बात नहीं है। हमारे यहां शुरू से ही यह परंपरा रही है। सन् 1962 में एक जज विद्यानंद वीआरएस लेकर संन्यासी बन गए थे। वे अखाड़े के सचिव भी रहे।

अखाड़े के सचिव रामरत्न गिरी दिल्ली में सरकारी नौकरी करते थे।

रामरत्नगिरी कहते हैं, हमारे हरिद्वार में आचार्य तक यानी 16वीं तक संस्कृत महाविद्यालय है। बीए, एमए, एमकॉम, एमबीए, बीकॉम के लिए तीन कॉलेज हैं। बीबीए, बीई, बीबीएस, पॉलिटेक्निक, एमटेक, बीटेक के तीन कॉलेज हैं। संत बनने के बाद जैसी जिसकी इच्छा होती है, उसे उस कॉलेज में पढ़ाई के लिए भेज दिया जाता है।

रोज 10 हजार से ज्यादा लोगों का भंडारा कुंभ में निरंजनी अखाड़े में वीवीआईपी का सबसे ज्यादा आना-जाना है। रोज 10 हजार से ज्यादा लोगों का भंडारा होता है। यहां की पूरी व्यवस्थाएं संत ही संभालते हैं। सभी हर समय एक्टिव रहते हैं। महंत रवींद्र पुरी इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि पहले परंपरा थी कि चौथी अवस्था यानी वृद्धावस्था में ही संन्यास लिया जाता था। उस वक्त जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने देखा कि जितने संन्यासी हैं सभी वृद्ध हैं। ये कोई काम नहीं कर सकते।

महंत रवींद्र पुरी कहते हैं कि निरंजनी अखाड़े में जो संत है वे बाल अवस्था से ही यहां हैं।

संन्यासियों की ऐसी हालत देख आदि शंकराचार्य ने कहा था कि जब इंद्रियां किसी काम की नहीं बचे तो संन्यास का कोई मतलब नहीं। संन्यास के लिए ऊर्जावान होना जरूरी है। हमारी कोशिश रहती है कि हमारे आश्रम और स्कूलों में बच्चे पढ़ाई करने आएं। बच्चों को शिक्षा और दीक्षा दोनों एक साथ दी जाती है। उन्हें अखाड़े के लिए तैयार किया जाता है। छोटी उम्र में अखाड़े से जोड़ने की वजह है कि वह हमेशा अखाड़े के लिए वफादार साबित होते हैं।

अखाड़े के अपने स्कूल कॉलेज रवींद्र पुरी बताते हैं कि हमारे अपने कॉलेज और स्कूल हैं, जहां सनातन विद्या से लेकर आधुनिक उच्च शिक्षा तक दी जाती है। बच्चे की इच्छा होने पर ही उसे संन्यासी बनाया जाता है। कोई बच्चा अगर पढ़ने के बाद घर जाना चाहता है तो जा सकता है। जो बच्चा संन्यासी बनने की इच्छा रखता है उसकी भी एक अलग परीक्षा होती है।

उसे ब्रह्मचर्य का सफेद कपड़ा देंगे, भगवा भी देंगे, लेकिन दीक्षा नहीं देंगे। जब तक हमें भरोसा न हो जाए कि यह हमारा है, संस्था का है, हमारा और गुरु महाराज का वफादार शिष्य बनने लायक है या नहीं?

महंत रवींद्र पुरी के मुताबिक अखाड़े में स्थायी के साथ अस्थायी संन्यास की दीक्षा दी जाती है। अस्थायी संन्यास दीक्षा उन लोगों को दी जाती है जो गृहस्थ होते हैं। ऐसे लोगों को दीक्षा देने से पहले उनकी आधी चोटी काटी जाती है। कई महीनों तक उनकी गतिविधियों पर नजर रख ये देखा जाता है कि उनके अंदर एक संन्यासी की तरह जीवन जीने के गुण आ गए हैं या नहीं।

अगर किसी का मन न लगे तो उसे पूर्ण रूप से संन्यास दीक्षा देने से पहले ही वापस घर भेज देते हैं। जिनके अंदर साधु-संन्यासी की तरह जीवन जीने के लक्षण आ जाते हैं और जब वह अखाड़े के सारे नियम-कायदों का संयमित रूप से अखाड़े में रहकर पालन करने लगते हैं तो उनको कुंभ मेले के दौरान पूर्ण संन्यास की दीक्षा दी जाती है।

निरंजनी अखाड़े में पूजा की तैयारी करते संत।

सभी संतों के गुरु कार्तिकेय भगवान रवींद्र पुरी के अनुसार अखाड़े में हजारों संत, महंत, महामंडलेश्वर और मंडलेश्वर हैं। सभी के गुरु सिर्फ कार्तिकेय भगवान हैं जिन्हें हम निरंजन के नाम से पुकारते हैं। भगवान कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति भी हैं। यही कारण है कि इस अखाड़े का नाम भी निरंजनी है। सभी को उनके नाम से ही दीक्षा दी जाती है।

अखाड़े के हर संत के नाम के बाद गुरु की जगह निरंजन देव ही लिखा होता है। सरकारी दस्तावेजों में भी इस अखाड़े के संतों के नाम के आगे निरंजन देव ही लिखा रहता है। जिसके नाम के बाद गुरु के नाम की जगह निरंजन देव नहीं लिखा है वह इस अखाड़े के संत नहीं हो सकते। यहां जितने भी सन्यासी और पदाधिकारी है किसी का व्यक्तिगत कुछ भी नहीं हैं। अखाड़े में जो भी काम होता है वह समाज और जनहित के लिए करना होता है। जो भी पदाधिकारी घर से संबंध रखता है उसे अखाड़े से निष्कासित कर देते हैं।

महंत रवींद्र पुरी ने बताया कि प्रयागराज महाकुंभ में सबसे आगे पंचायती अखाड़ा श्री महानिर्वाणी, अटल अखाड़े के साथ सबसे आगे राजसी स्नान करने जाता है। उसके बाद पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी, आनंद अखाड़े के साथ शाही स्नान करने जाता है। इसी क्रम में जूना अखाड़ा आवाहन और अग्नि अखाड़े के साथ शाही राजसी स्नान करने जाता है। जिसके बाद उदासीन और वैष्णव अखाड़े स्नान करने जाते हैं।

निरंजनी अखाड़े में बहुत पढ़े-लिखे कठोर तप करने वाले संत और नागा हैं। इन्हीं में से एक हैं भूपिंदर गिरी महाराज। उन्होंने यज्ञ में पीएचडी की हैं। वे अखाड़े के ऋषिकेश आश्रम से यहां आए हैं। वे कहते हैं कि तपस्या का समय मध्यरात्रि तीन बजे से शुरू हो जाता है। इसे अमृतवेला भी कहते हैं। तपस्वी इस समय से रात 12 बजे तक तप करते हैं।

भूपिंदर गिरी कहते हैं कि सभी अखाड़े के नागाओं के श्रृंगार में अंतर होता है

भूपिंदर गिरी कहते हैं कि हर अखाड़े के नागा वैसे तो एक से दिखते हैं, लेकिन उनमें फर्क होता है। इसे आम लोग समझ ही नहीं सकते। सभी अखाड़ों के नागाओं के श्रृंगार में अंतर होता है।

निरंजनी अखाड़े के नागाओं की जटाओं का जूड़ा पीछे की तरफ होता है। आवाहन अखाड़े के नागाओं का जूड़ा लेफ्ट तो जूना अखाड़े के नागाओं का जूड़ा राइट में होता है। ऐसे ही दिगंबर का कपड़ा बांधने के अलग-अलग तरीके हैं।

गुजरात के मांडवी में हुई थी निरंजनी अखाड़े की स्थापना पत्रकार सिद्धार्थ शंकर गौतम अपनी किताब ‘सनातन संस्कृति का महापर्व सिंहस्थ’ में लिखते हैं, ‘निरंजनी अखाड़े की स्थापना वर्ष 904 में गुजरात के मांडवी में हुई थी। इसका इतिहास डूंगरपुर रियासत के राजगुरु मोहनानंद के समय से मिलता है।’ लेखक शालिग्राम श्रीवास्तव की किताब ‘प्रयाग प्रदीप’ के मुताबिक निरंजनी अखाड़े का स्थान दारागंज है। हरिद्वार, काशी, त्र्यंबक, ओंकारेश्वर, उज्जैन, उदयपुर और बग्लामुखी में इनके आश्रम हैं।

महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी और स्वभाव पुरी ने निरंजनी अखाड़े की नींव रखी थी। व्यवस्था चलाने के लिए हर छोटे अखाड़े को बड़े अखाड़े के साथ जोड़ा गया है। निरंजनी अखाड़े का गुरु भाई आनंद अखाड़ा है।