नालंदा लोकसभा : शुरू के 5 चुनावों में कांग्रेस जीती, तो 1996 के बाद प्रत्याशी नहीं या जमानत जब्त

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नालंदा लोकसभा : शुरू के 5 चुनावों में कांग्रेस जीती, तो 1996 के बाद प्रत्याशी नहीं या जमानत जब्त

नालंदा लोकसभा : शुरू के 5 चुनावों में कांग्रेस जीती, तो 1996 के बाद प्रत्याशी नहीं या जमानत जब्त

सत्ता संग्राम :
नालंदा लोकसभा : शुरू के 5 चुनावों में कांग्रेस जीती, तो 1996 के बाद प्रत्याशी नहीं या जमानत जब्त

पहली बार 1977 में भारतीय लोकदल के वीरेन्द्र प्रसाद ने कांग्रेस को दी थी शिकस्त

1980 के बाद वामदल का बना गढ़ पर 1989 में रामस्वरूप प्रसाद ने फिर से कांग्रेस को दिलायी थी जीत

1996 से अब तक तीन-तीन बार जॉर्ज और कौशलेन्द्र, तो 2004 में नीतीश ने नालंदा सीट पर जमाया था कब्जा

फोटो :

कैलाशपति सिन्हा।

सिद्धेश्वर प्रसाद।

रामस्वरूप प्रसाद।

बिहारशरीफ, कार्यालय संववादाता/आशुतोष कुमार आर्य।

नालंदा लोकसभा क्षेत्र से शुरू के पांच चुनावों में कांग्रेस जीती, तो वर्ष 1996 के बाद पार्टी ने प्रत्याशी नहीं दिया या दिये तो उनकी जमानत जब्त हो गयी। अलबत्ता, इस बीच वर्ष 1989 में रामस्वरूप प्रसाद कांग्रेस के ऐसे प्रत्याशी मिले, जिन्होंने फिर से जीत हासिल की। हालांकि, बाद में उन्होंने भी दूसरे दलों के दामन थाम लिये थे।

1951-51, 1957, 1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस प्रत्याशियों की जीत के कारण क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ माना जाने लगा। लेकिन, पहली बार वर्ष 1977 में भारतीय लोकदल के उम्मीदवार वीरेन्द्र प्रसाद ने कांग्रेस को शिकस्त दी। इस चुनाव में कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। विजय कुमार यादव दूसरा स्थान लाकर जिले की राजनीतिक छवि बदलने का प्रयास किया। इसके बाद लगातार वामदल प्रत्याशी विजय कुमार यादव की जीत ने क्षेत्र को वामदल का गढ़ बना दिया। वर्ष 1980, 1984 और 1991 में इनकी जीत हुई। इसी बीच 1989 में रामस्वरूप प्रसाद कांग्रेस को फिर से जिंदा कर उसके खेवनहार बने थे।

जिले की राजनीति में नीतीश का पदार्पण :

विधानसभा क्षेत्र हरनौत से नीतीश कुमार का वर्ष 1977 में राजनीतिक क्षेत्र में पदार्पण हुआ। भले ही हरनौत क्षेत्र बाढ़ लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था, लेकिन उनकी ‘धमक पूरे जिले में थी। उन्होंने अपनी जाति की उपजातियों को एकसूत्र में पिरोने का भरसक प्रयास किया। इसमें उन्हें सफलता भी मिली। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की ‘उपज नीतीश कुमार ने कांग्रेस को हराने के लिए सीपीआई प्रत्याशी की अंदरूनी मदद की। ऐसे में सीपीआई के प्रत्याशी को दूसरी बार में सफलता मिली।

नया समीकरण :

जिले की राजनीति अब नई दिशा की ओर मुड़ गयी थी। वर्ष 1996 से अब तक तीन बार जॉर्ज फर्नांडीस, तो तीन बार कौशलेन्द्र कुमार सांसद बने। बीच में वर्ष 2004 में नीतीश कुमार ने नालंदा सीट पर कब्जा किया था। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने या तो उम्मीदवार दिया ही नहीं अथवा दिया भी तो वे जमानत बचाने में सफल नहीं हुए। वर्ष 1996, 1998, और 1999 में लगातार जॉर्ज फर्नांडीस की जीत हुई। इस दौरान 1996 में कांग्रेस के प्रत्याशी चौथे स्थान पर रहे। जबकि, 1998, 1999 और 2004 में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं दिया। वर्ष 2009 से 2019 तक जदयू के कौशलेन्द्र कुमार ने जीत हासिल की। तब, वर्ष 2009 में कांग्रेस पांचवें तो 2014 में तीसरे नंबर पर रही। इसके प्रत्याशी की जमानत भी नहीं बची। जबकि, 2019 में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं दिया।

अब तक कांग्रेस के 3 सांसद:

नालंदा लोकसभा क्षेत्र से अबतक कांग्रेस की छह बार जीत हुई। इस दौरान तीन लोगों को कांग्रेस से सांसद बनने का मौका मिला। पहले दो चुनावों में कांग्रेस के दिग्गज कहे जाने वाले कैलाशपति सिन्हा सांसद बने। इसके बाद तीन बार शिक्षाविद सिद्धेश्वर प्रसाद को लोगों ने मौका दिया। जबकि, 1989 में रामस्वरूप प्रसाद एमपी चुने गये।

राजीव-सोनिया गांधी को हिंदी पढ़ाते थे सिद्धेश्वर प्रसाद :

नालंदा लोकसभा क्षेत्र से तीन बार सांसद रहे सिद्धेश्वर प्रसाद त्रिपुरा के राज्यपाल भी बनाये गये थे। वे मंत्री भी बने थे। राजनीति में आने से पहले वे नालंदा कॉलेज में प्राध्यापक थे। वे इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री रहे और उनके कहने पर उन्होंने राजीव गांधी व सोनिया गांधी को हिंदी पढ़ायी थी।

नालंदा लोकसभा क्षेत्र व कांग्रेस प्रत्याशी :

वर्ष : प्रत्याशी : चुनाव में स्थान

1951-52 : कैलाशपति सिन्हा : जीते

1957 : कैलाशपति सिन्हा : जीते

1962 : सिद्धेश्वर प्रसाद : जीते

1967 : सिद्धेश्वर प्रसाद : जीते

1971 : सिद्धेश्वर प्रसाद : जीते

1977 : सिद्धेश्वर प्रसाद : तीसरा

1980 : सिद्धेश्वर प्रसाद : सेकेंड

1984 : पंकज कुमार सिन्हा : सेकेंड

1989 : रामस्वरूप प्रसाद : जीते

1991 : रामस्वरूप प्रसाद : सेकेंड

1996 : सतीश कुमार : चौथा

2009 : रामस्वरूप प्रसाद : पांचवां

2014 : आशीष रंजन सिन्हा : तीसरा

(1998, 1999, 2004 व 2019 में प्रत्याशी नहीं)

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