नालंदा के 750 सीएसपी संचालक 1011 गांवों का करेंगे सर्वे h3>
नालंदा के 750 सीएसपी संचालक 1011 गांवों का करेंगे सर्वे
ऐतिहासिक धरोहरों व प्रमुख व्यक्तियों के साथ ही स्थानीय पहचान को देंगे बढ़ावा
कल्चरल मैप ऑफ इंडिया पोर्टल पर करेंगे अपलोड
गांवों में छुपी संस्कृति को राष्ट्रीय पटल पर लाने का भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की पहल
नालंदा में 1060 राजस्व गांवों के अलावा हैं पांच नगरीय इकाइयां
फोटो:
अमावां किला: अस्थावां प्रखंड का अमावां महाराज का किला।
बिहारशरीफ, निज संवाददाता। संस्कृति से आम तौर पर लोग ऐतिहासिक विरासतों को ही समझते हैं। लेकिन, हमारी भाषा, पोषाक, गांवों में लगने वाले मेला, मंदिर की महत्ता, किसी बाग बगीचे का पुरातन इतिहास, वहां का पर्व, त्योहार, प्रसिद्ध व्यक्ति सभी संस्कृति के ही अंग हैं। इन बहुआयामी संदर्भों को खोजकर एक राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए सभी गांवों का सर्वे किया जाना है।
नालंदा के कण कण में इतिहास रचा बसा है। ‘मेरा गांव मेरी धरोहर के माध्यम से इन्हीं पहचानों व महत्वों की तलाश की जानी है। ताकि, नालंदा के एक हजार 11 गांवों की पहचान राष्ट्रीय पटल पर लायी जा सके। इसके लिए अगले सप्ताह से नालंदा के 750 कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) संचालकों को प्रशिक्षित किया जाएगा। नालंदा में कुल एक हजार 60 राजस्व गांव व पांच नगरी इकाई हैं। इनमें से 49 बेचिरागी गांव हैं। वहां इस तरह का सर्वे नहीं किया जाएगा।
यहां की कई धरोहरें आज भी अनछुई है। मघड़ा मंदिर, सिरनावां बिरनावां, अमावां महल, सरमेरा का बड़ी ठाकुरबाड़ी, एकंगरसराय का बड़ी मठ, बेश्वक, देशना का पुस्तकालय, बराह, चेरो, बसनियावां, डिहरी गढ़, इस्लामपुर बाजार का 52 कोठरी 53 द्वार, तेल्हाड़ा, कश्मिरीचक समेत दर्जनों गावों में अपनी विरासत की दास्तान आज भी अपनी कहानी कहती है। नालंदा के गांवों में छुपी धरोहरों की आज भी उपेक्षा हो रही है। हम अपने ही गौरवशाली इतिहास से अछुते हैं। अब इन अनछुई विरासतों को जानने व समझने का मौका मिलेगा।
संचालक खुद से बनाएंगे आईडी व पासवर्ड:
सीएसी के स्टेट प्रोजेक्ट मैनेजर आलोक कुमार ने बताया कि कल्चरमैप डॉट इन के माध्यम से संचालक खुद ही अपना आईडी व पासवर्ड बनाएंगे। इसमें लॉग इन करने के लिए उन्हें अपने सीएससी संचालन के लिए मिले यूजर आईडी व पासवर्ड का इस्तेमाल करना होगा। लॉगइन करने के बाद वे अपने क्षेत्र में पड़ने वाले राजस्व गांवों का चयन करेंगे। वे जो भी गांव चयन करेंगे। उनके नाम से सुरक्षित हो जाएगा।
सात दिनों में अपडेट नहीं करने पर खुद से हो जाएगा गांव बाहर:
श्री कुमार ने बताया कि अगर कोई संचालक दो या तीन या इससे अधिक राजस्व गांवों का चयन करते हैं। तो उन्हें सात दिनों के अंदर उन गांवों की विरासतों, संस्कृति व अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों को अपलोड करना होगा। सात दिनों में अगर कोई जानकारी नहीं अपलोड की जाएगी, तो आठवें दिन स्वत: वह राजस्व गांव उनके नाम से हट जाएगा। इसके बाद इसे दूसरे संचालक अपने नाम से सुरक्षित कर सकते हैं। यानि एक राजस्व गांव अगर कोई अपने नाम सुरक्षित कर लेता है, तो उसे कोई अन्य अपने नाम से नहीं कर सकता है।
लॉग इन करने से लेकर अपलोड करने तक की दी जाएगी जानकारी:
सीएससी संचालकों को एक सप्ताह तक चलने वाले इस प्रशिक्षण में उन्हें ऐतिहासिक स्थानों की पहचान के साथ ही अन्य विधाओं की जानकारी दी जाएगी। इसमें लॉग इन करने से लेकर उन गांवों के फोटो या संबंधित वीडियो को पोर्टल पर अपलोड करना भी सिखाया जाएगा। वे अपने अपने गांव व इलाके के गौरवशाली व ऐतिहासिक धरोहरों की खोज कर उसकी पूरी जानकारी देंगे। ताकि, उन धरोहरों के संरक्षण करने के साथ ही उसे राष्ट्रीय पटल पर पहचान दी जा सके। सीएससी की जिला प्रबंधक आरती रानी ने बताया कि नालंदा में आज भी बहुत सी ऐसी जगह है, जहां का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। अमावां का किला की बात करें या इस्लामपुर के 52 कोठरी 53 द्वार की सभी की अपनी अपनी एक पहचान रही है। इस तरह की विरासतें अपनी चमक खोती जा रही हैं। जबकि, यह हमारे इतिहास में एक स्वर्णिम उपलब्धि रही होगी।
एप पर दर्ज होगी जानकारी:
इस सर्वे के दौरान गांव की खास पहचान को दर्ज करना है। वहां की खास सांस्कृती, गांव के प्रसिद्ध स्थान, गांव से जुड़ी किंवदतियां, प्रसिद्ध व्यक्ति, विशेष पकवान, विशेष आभूषण, विशेष कपड़े यानि पहनावा समेत सारी जानकारियां दर्ज रहेंगी। संबंधित जानकारी, फोटो, वीडियो आदि एप पर दर्ज रहेंगी। लोग ‘मेरा गांव मेरी धरोहर एप के माध्यम से अपने गांव की सारी जानकारी ले सकेंगे। इसका लक्ष्य हर गांव का सर्वे कर वहां के स्थानीय धरोहरों को केंद्र सरकार तक पहुंचाना है। इसे भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय व सीएससी के संयुक्त प्रयास से धरातल पर उतारने की तैयारी है।
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नालंदा के 750 सीएसपी संचालक 1011 गांवों का करेंगे सर्वे
ऐतिहासिक धरोहरों व प्रमुख व्यक्तियों के साथ ही स्थानीय पहचान को देंगे बढ़ावा
कल्चरल मैप ऑफ इंडिया पोर्टल पर करेंगे अपलोड
गांवों में छुपी संस्कृति को राष्ट्रीय पटल पर लाने का भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की पहल
नालंदा में 1060 राजस्व गांवों के अलावा हैं पांच नगरीय इकाइयां
फोटो:
अमावां किला: अस्थावां प्रखंड का अमावां महाराज का किला।
बिहारशरीफ, निज संवाददाता। संस्कृति से आम तौर पर लोग ऐतिहासिक विरासतों को ही समझते हैं। लेकिन, हमारी भाषा, पोषाक, गांवों में लगने वाले मेला, मंदिर की महत्ता, किसी बाग बगीचे का पुरातन इतिहास, वहां का पर्व, त्योहार, प्रसिद्ध व्यक्ति सभी संस्कृति के ही अंग हैं। इन बहुआयामी संदर्भों को खोजकर एक राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए सभी गांवों का सर्वे किया जाना है।
नालंदा के कण कण में इतिहास रचा बसा है। ‘मेरा गांव मेरी धरोहर के माध्यम से इन्हीं पहचानों व महत्वों की तलाश की जानी है। ताकि, नालंदा के एक हजार 11 गांवों की पहचान राष्ट्रीय पटल पर लायी जा सके। इसके लिए अगले सप्ताह से नालंदा के 750 कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) संचालकों को प्रशिक्षित किया जाएगा। नालंदा में कुल एक हजार 60 राजस्व गांव व पांच नगरी इकाई हैं। इनमें से 49 बेचिरागी गांव हैं। वहां इस तरह का सर्वे नहीं किया जाएगा।
यहां की कई धरोहरें आज भी अनछुई है। मघड़ा मंदिर, सिरनावां बिरनावां, अमावां महल, सरमेरा का बड़ी ठाकुरबाड़ी, एकंगरसराय का बड़ी मठ, बेश्वक, देशना का पुस्तकालय, बराह, चेरो, बसनियावां, डिहरी गढ़, इस्लामपुर बाजार का 52 कोठरी 53 द्वार, तेल्हाड़ा, कश्मिरीचक समेत दर्जनों गावों में अपनी विरासत की दास्तान आज भी अपनी कहानी कहती है। नालंदा के गांवों में छुपी धरोहरों की आज भी उपेक्षा हो रही है। हम अपने ही गौरवशाली इतिहास से अछुते हैं। अब इन अनछुई विरासतों को जानने व समझने का मौका मिलेगा।
संचालक खुद से बनाएंगे आईडी व पासवर्ड:
सीएसी के स्टेट प्रोजेक्ट मैनेजर आलोक कुमार ने बताया कि कल्चरमैप डॉट इन के माध्यम से संचालक खुद ही अपना आईडी व पासवर्ड बनाएंगे। इसमें लॉग इन करने के लिए उन्हें अपने सीएससी संचालन के लिए मिले यूजर आईडी व पासवर्ड का इस्तेमाल करना होगा। लॉगइन करने के बाद वे अपने क्षेत्र में पड़ने वाले राजस्व गांवों का चयन करेंगे। वे जो भी गांव चयन करेंगे। उनके नाम से सुरक्षित हो जाएगा।
सात दिनों में अपडेट नहीं करने पर खुद से हो जाएगा गांव बाहर:
श्री कुमार ने बताया कि अगर कोई संचालक दो या तीन या इससे अधिक राजस्व गांवों का चयन करते हैं। तो उन्हें सात दिनों के अंदर उन गांवों की विरासतों, संस्कृति व अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों को अपलोड करना होगा। सात दिनों में अगर कोई जानकारी नहीं अपलोड की जाएगी, तो आठवें दिन स्वत: वह राजस्व गांव उनके नाम से हट जाएगा। इसके बाद इसे दूसरे संचालक अपने नाम से सुरक्षित कर सकते हैं। यानि एक राजस्व गांव अगर कोई अपने नाम सुरक्षित कर लेता है, तो उसे कोई अन्य अपने नाम से नहीं कर सकता है।
लॉग इन करने से लेकर अपलोड करने तक की दी जाएगी जानकारी:
सीएससी संचालकों को एक सप्ताह तक चलने वाले इस प्रशिक्षण में उन्हें ऐतिहासिक स्थानों की पहचान के साथ ही अन्य विधाओं की जानकारी दी जाएगी। इसमें लॉग इन करने से लेकर उन गांवों के फोटो या संबंधित वीडियो को पोर्टल पर अपलोड करना भी सिखाया जाएगा। वे अपने अपने गांव व इलाके के गौरवशाली व ऐतिहासिक धरोहरों की खोज कर उसकी पूरी जानकारी देंगे। ताकि, उन धरोहरों के संरक्षण करने के साथ ही उसे राष्ट्रीय पटल पर पहचान दी जा सके। सीएससी की जिला प्रबंधक आरती रानी ने बताया कि नालंदा में आज भी बहुत सी ऐसी जगह है, जहां का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। अमावां का किला की बात करें या इस्लामपुर के 52 कोठरी 53 द्वार की सभी की अपनी अपनी एक पहचान रही है। इस तरह की विरासतें अपनी चमक खोती जा रही हैं। जबकि, यह हमारे इतिहास में एक स्वर्णिम उपलब्धि रही होगी।
एप पर दर्ज होगी जानकारी:
इस सर्वे के दौरान गांव की खास पहचान को दर्ज करना है। वहां की खास सांस्कृती, गांव के प्रसिद्ध स्थान, गांव से जुड़ी किंवदतियां, प्रसिद्ध व्यक्ति, विशेष पकवान, विशेष आभूषण, विशेष कपड़े यानि पहनावा समेत सारी जानकारियां दर्ज रहेंगी। संबंधित जानकारी, फोटो, वीडियो आदि एप पर दर्ज रहेंगी। लोग ‘मेरा गांव मेरी धरोहर एप के माध्यम से अपने गांव की सारी जानकारी ले सकेंगे। इसका लक्ष्य हर गांव का सर्वे कर वहां के स्थानीय धरोहरों को केंद्र सरकार तक पहुंचाना है। इसे भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय व सीएससी के संयुक्त प्रयास से धरातल पर उतारने की तैयारी है।