नहीं चली कैलाश की कलाकारी…बेटे की विधानसभा में बुरे हाल | Kailash’s artwork did not work, son’s assembly was in bad condition | Patrika News h3>
एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति… अर्थात् एक मैं ही हूं, दूसरा सब मिथ्या है। न मेरे जैसा कभी कोई आया न आएगा… आम तौर पर ये गलतफहमी राजनेताओं को हो जाती है। उसे लगता है कि जो उसने किया, वही सही है लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। ऐसा ही कुछ तीन नंबर भाजपा में हो रहा है। विधायक आकाश विजयवर्गीय ने हट करके 10 वार्डों में पार्षदों के टिकट अपनी पसंद से दिए। उनका मानना था कि जो फैसला उन्होंने किया, वह सही है। जिनको उन्होंने टिकट दिया है, सिर्फ वही जीत सकते हैं।
इसके लिए क्षेत्र के सारे जातिगत बंधन तो ठीक कार्यकर्ताओं की निष्ठा और प्रतिष्ठा के सारे बंधन तोड़ डाले। टिकट वितरण के बाद से अंतर्कलह सामने आने लग गई थी। बची कसर खुद आकाश ने एक कार्यालय के उद्घाटन में पूरी कर दी। कहना था कि जब टिकट चाहिए थे तब बहुत सारे नेता आ रहे थे लेकिन अब लगता है सबकी डेथ हो गई। ये बात पूरी विधानसभा में फैली और दावेदारों को अंदर तक चुभ गई। फिर या था? कई नेताओं ने उसी दिन खुद को भाजपा का मृत सिपाही मान लिया था, जो गेती-फावड़े लेकर काम पर लग गया था।
अब वह कितना ‘गड्ढा’ कर पाया, ये तो 17 जुलाई को आनेवाला चुनाव परिणाम ही बताएगा लेकिन इसकी भनक विधायक के पिता राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को जरूर लग गई थी। उसके बाद से ही उनका पूरा ध्यान तीन नंबर विधानसभा पर लग गया, क्योंकि परिणाम से उनके बेटे के भविष्य का सीधा कनेशन जो ठहरा। कई जगह कलाकारी की लेकिन वह चलती नजर नहीं आई। देखा जाए तो भाजपा की एक और कांग्रेस की दो सीट को छोड़कर बाकी सारी 7 सीटों पर कड़ा मुकाबला है। अधिकतर जगहों पर भाजपा की सेहत ठीक नहीं है।
दांव पर लगी नाक
विधानसभा-3 के दो वार्डों में विजयवर्गीय पिता-पुत्र की नाक दांव पर लगी हुई है। यहां के वार्ड-63 में आकाश विजयवर्गीय ने अपनी पसंद से मृदुल अग्रवाल को टिकट दिलवा दिया, जबकि यहां से भारतीय जनता पार्टी के कई खांटी नेता काम पर लगे हुए थे, वे निराश हो गए। इधर, वार्ड-64 से कैलाश के वर्षों पुराने वफादार मनीष मामा चुनाव लड़ रहे हैं। मामा को यहां से प्रत्याशी बनाया जाना किसी भाजपाई के गले नहीं उतरा। भाजपा कार्यकर्ता तो ठीक जनता भी इसमें शामिल है। टिकट देने के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने 9 घंटे वार्ड में रोड शो किया था। उसके बावजूद भी जब जमीन खिसकी हुई थी तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सभा वार्ड के ही श्यामा प्रसाद शुक्ल नगर में रखी। नौलखा से तीन इमली के बीच रोड शो कराया। इसके बावजूद आखरी तक मनीष मामा के वार्ड में सुधार नहीं आया।
पूरे शहर का ठेका लिया
भाजपा ने जब पुष्यमित्र भार्गव का नाम महापौर प्रत्याशी के लिए घोषित किया तो कैलाश ने पार्टी लेवल पर बड़े-बड़े दावे किए। बोले- चिंता मत करो, मैं जितवा लाऊंगा। इसको लेकर कैलाश ने दीनदयाल भवन में डेरा डाल दिया था लेकिन तीन नंबर का मोह उनसे छूट नहीं पाया। दिखावे के लिए अन्य विधानसभाओं में रोड शो जरूर किए, लेकिन उनमें पूछपरख तक नहीं हुई।
ये हैं वार्डों के हाल वार्ड-55
भाजपा ने पंखुड़ी जैन तलरेजा को टिकट दिया तो कांग्रेस ने राधिका जैन को मैदान में उतारा। कांग्रेस से ही बागी क्षमा मुकेश जैन मैदान में हैं। यहां पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
वार्ड-56
ये एकमात्र वार्ड है, जहां पर भाजपा के गजानंद गावड़े की स्पष्ट जीत नजर आ रही है। कांग्रेस से यहां पर अभिषेक जाधव चुनाव लड़ रहे हैं। वार्ड-57
यहां से भाजपा ने सुरेश टाकलकर को टिकट दिया तो बागी होकर दिवाकर घायल ने मैदान पकड़ लिया। कांग्रेस से यहां दीपिका जैन चुनाव लड़ रही हैं। आखरी तक टाकलकर के साथ में भाजपा के कार्यकर्ता
नहीं थे।
वार्ड-58
ये वार्ड मुस्लिम बहुल है। यहां कांग्रेस से अनवर कादरी चुनाव लड़ रहे हैं, जो पूर्व में भी पार्षद रह चुके हैं। भाजपा ने सन्नी राजू चौहान को टिकट दिया। पार्टी की स्थिति यहां कमजोर है।
वार्ड-59
विधायक आकाश विजयवर्गीय ने यहां प्रयोग कर डाला। खटीक समाज का बड़ा वोट बैंक है लेकिन उससे टिकट नहीं देकर रूपाली पेंढारकर को मैदान में उतारा। खटीक समाज में खासी नाराजगी है तो मुस्लिम वोट बैंक भी खासा है। इसका फायदा आशा वीरू झांझोट को मिल रहा है।
वार्ड-60
ये वार्ड भी मुस्लिम बहुल है, जहां से भाजपा ने रंजना पिंपले को टिकट दिया तो कांग्रेस से पूर्व पार्षद अंसाफ अंसारी की पत्नी सुनेहरा अंसारी लड़ रही है। यहां पर मुन्ना अंसारी के परिवार से भी निर्दलीय लड़ रही हैं। यहां भाजपा की हालत खस्ता है।
वार्ड-61
जबरन कॉलोनी वाले जीते-जिताए इस वार्ड को आकाश विजयवर्गीय ने प्रयोग के चक्कर में उलझा दिया। यहां से भावना चौधरी को टिकट दिया है, जबकि वार्ड में सोनकर समाज का बड़ा वोट बैंक है। ऐसे में कांग्रेस
ने दांव खेलते हुए उसी समाज की एकता वर्मा को खड़ा कर दिया। चुनाव में आखरी तक संतुलन नहीं बन पाया।
वार्ड-62
यहां से भाजपा ने पूर्व पार्षद दिनेश पांडे की पत्नी रूपा को मैदान में उतारा तो कांग्रेस ने श्वेता शर्मा को टिकट दिया। दोनों ही ब्राह्मण चेहरा हैं, जिसकी वजह से मुकाबला कांटे का माना जा रहा है। वैसे देखा जाए तो ये वार्ड भाजपा का रहा है।
वार्ड-63
भाजपा की सबसे ज्यादा फजीहत किसी वार्ड में हुई तो वो यही है। आकाश विजयवर्गीय ने अड़कर यहां से मृदृल अग्रवाल को टिकट दिलवाया, जो एकदम नया चेहरा हैं। कांग्रेस ने यहां से शैलेश गर्ग को खड़ा किया, जो अग्रवाल पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। गर्ग ने आखरी तक शंकरगंज को साधने की कोशिश की। वे उसमें सफल हुए तो अग्रवाल को पसीने छूट जाएंगे।
वार्ड -64
सबसे रोचक मुकाबला यहां हो रहा है, जहां पर कैलाश व आकाश विजयवर्गीय की नाक दांव पर लगी हुई है। भाजपा प्रत्याशी व कैलाश समर्थक मनीष मामा आखरी तक चुनाव खड़ा नहीं कर पाए। कैलाश को खुद
नौ घंटे रोड शो करना पड़ गया तो आखरी दिन मुख्यमंत्री की सभा और रोड शो भी वहीं कराए गए।
विधानसभा के नौ वार्डों को लावारिस छोड़ दिया गया। यहां पर पंचकोणीय मुकाबला है। भाजपा के बागी किशोर मीणा और रोशन सोनकर भी मैदान में हैं तो आम आदमी पार्टी के सतीश अग्रवाल भी खासा दम भर रहे हैं।
एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति… अर्थात् एक मैं ही हूं, दूसरा सब मिथ्या है। न मेरे जैसा कभी कोई आया न आएगा… आम तौर पर ये गलतफहमी राजनेताओं को हो जाती है। उसे लगता है कि जो उसने किया, वही सही है लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। ऐसा ही कुछ तीन नंबर भाजपा में हो रहा है। विधायक आकाश विजयवर्गीय ने हट करके 10 वार्डों में पार्षदों के टिकट अपनी पसंद से दिए। उनका मानना था कि जो फैसला उन्होंने किया, वह सही है। जिनको उन्होंने टिकट दिया है, सिर्फ वही जीत सकते हैं।
इसके लिए क्षेत्र के सारे जातिगत बंधन तो ठीक कार्यकर्ताओं की निष्ठा और प्रतिष्ठा के सारे बंधन तोड़ डाले। टिकट वितरण के बाद से अंतर्कलह सामने आने लग गई थी। बची कसर खुद आकाश ने एक कार्यालय के उद्घाटन में पूरी कर दी। कहना था कि जब टिकट चाहिए थे तब बहुत सारे नेता आ रहे थे लेकिन अब लगता है सबकी डेथ हो गई। ये बात पूरी विधानसभा में फैली और दावेदारों को अंदर तक चुभ गई। फिर या था? कई नेताओं ने उसी दिन खुद को भाजपा का मृत सिपाही मान लिया था, जो गेती-फावड़े लेकर काम पर लग गया था।
अब वह कितना ‘गड्ढा’ कर पाया, ये तो 17 जुलाई को आनेवाला चुनाव परिणाम ही बताएगा लेकिन इसकी भनक विधायक के पिता राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को जरूर लग गई थी। उसके बाद से ही उनका पूरा ध्यान तीन नंबर विधानसभा पर लग गया, क्योंकि परिणाम से उनके बेटे के भविष्य का सीधा कनेशन जो ठहरा। कई जगह कलाकारी की लेकिन वह चलती नजर नहीं आई। देखा जाए तो भाजपा की एक और कांग्रेस की दो सीट को छोड़कर बाकी सारी 7 सीटों पर कड़ा मुकाबला है। अधिकतर जगहों पर भाजपा की सेहत ठीक नहीं है।
दांव पर लगी नाक
विधानसभा-3 के दो वार्डों में विजयवर्गीय पिता-पुत्र की नाक दांव पर लगी हुई है। यहां के वार्ड-63 में आकाश विजयवर्गीय ने अपनी पसंद से मृदुल अग्रवाल को टिकट दिलवा दिया, जबकि यहां से भारतीय जनता पार्टी के कई खांटी नेता काम पर लगे हुए थे, वे निराश हो गए। इधर, वार्ड-64 से कैलाश के वर्षों पुराने वफादार मनीष मामा चुनाव लड़ रहे हैं। मामा को यहां से प्रत्याशी बनाया जाना किसी भाजपाई के गले नहीं उतरा। भाजपा कार्यकर्ता तो ठीक जनता भी इसमें शामिल है। टिकट देने के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने 9 घंटे वार्ड में रोड शो किया था। उसके बावजूद भी जब जमीन खिसकी हुई थी तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सभा वार्ड के ही श्यामा प्रसाद शुक्ल नगर में रखी। नौलखा से तीन इमली के बीच रोड शो कराया। इसके बावजूद आखरी तक मनीष मामा के वार्ड में सुधार नहीं आया।
पूरे शहर का ठेका लिया
भाजपा ने जब पुष्यमित्र भार्गव का नाम महापौर प्रत्याशी के लिए घोषित किया तो कैलाश ने पार्टी लेवल पर बड़े-बड़े दावे किए। बोले- चिंता मत करो, मैं जितवा लाऊंगा। इसको लेकर कैलाश ने दीनदयाल भवन में डेरा डाल दिया था लेकिन तीन नंबर का मोह उनसे छूट नहीं पाया। दिखावे के लिए अन्य विधानसभाओं में रोड शो जरूर किए, लेकिन उनमें पूछपरख तक नहीं हुई।
ये हैं वार्डों के हाल वार्ड-55
भाजपा ने पंखुड़ी जैन तलरेजा को टिकट दिया तो कांग्रेस ने राधिका जैन को मैदान में उतारा। कांग्रेस से ही बागी क्षमा मुकेश जैन मैदान में हैं। यहां पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
वार्ड-56
ये एकमात्र वार्ड है, जहां पर भाजपा के गजानंद गावड़े की स्पष्ट जीत नजर आ रही है। कांग्रेस से यहां पर अभिषेक जाधव चुनाव लड़ रहे हैं। वार्ड-57
यहां से भाजपा ने सुरेश टाकलकर को टिकट दिया तो बागी होकर दिवाकर घायल ने मैदान पकड़ लिया। कांग्रेस से यहां दीपिका जैन चुनाव लड़ रही हैं। आखरी तक टाकलकर के साथ में भाजपा के कार्यकर्ता
नहीं थे।
वार्ड-58
ये वार्ड मुस्लिम बहुल है। यहां कांग्रेस से अनवर कादरी चुनाव लड़ रहे हैं, जो पूर्व में भी पार्षद रह चुके हैं। भाजपा ने सन्नी राजू चौहान को टिकट दिया। पार्टी की स्थिति यहां कमजोर है।
वार्ड-59
विधायक आकाश विजयवर्गीय ने यहां प्रयोग कर डाला। खटीक समाज का बड़ा वोट बैंक है लेकिन उससे टिकट नहीं देकर रूपाली पेंढारकर को मैदान में उतारा। खटीक समाज में खासी नाराजगी है तो मुस्लिम वोट बैंक भी खासा है। इसका फायदा आशा वीरू झांझोट को मिल रहा है।
वार्ड-60
ये वार्ड भी मुस्लिम बहुल है, जहां से भाजपा ने रंजना पिंपले को टिकट दिया तो कांग्रेस से पूर्व पार्षद अंसाफ अंसारी की पत्नी सुनेहरा अंसारी लड़ रही है। यहां पर मुन्ना अंसारी के परिवार से भी निर्दलीय लड़ रही हैं। यहां भाजपा की हालत खस्ता है।
वार्ड-61
जबरन कॉलोनी वाले जीते-जिताए इस वार्ड को आकाश विजयवर्गीय ने प्रयोग के चक्कर में उलझा दिया। यहां से भावना चौधरी को टिकट दिया है, जबकि वार्ड में सोनकर समाज का बड़ा वोट बैंक है। ऐसे में कांग्रेस
ने दांव खेलते हुए उसी समाज की एकता वर्मा को खड़ा कर दिया। चुनाव में आखरी तक संतुलन नहीं बन पाया।
वार्ड-62
यहां से भाजपा ने पूर्व पार्षद दिनेश पांडे की पत्नी रूपा को मैदान में उतारा तो कांग्रेस ने श्वेता शर्मा को टिकट दिया। दोनों ही ब्राह्मण चेहरा हैं, जिसकी वजह से मुकाबला कांटे का माना जा रहा है। वैसे देखा जाए तो ये वार्ड भाजपा का रहा है।
वार्ड-63
भाजपा की सबसे ज्यादा फजीहत किसी वार्ड में हुई तो वो यही है। आकाश विजयवर्गीय ने अड़कर यहां से मृदृल अग्रवाल को टिकट दिलवाया, जो एकदम नया चेहरा हैं। कांग्रेस ने यहां से शैलेश गर्ग को खड़ा किया, जो अग्रवाल पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। गर्ग ने आखरी तक शंकरगंज को साधने की कोशिश की। वे उसमें सफल हुए तो अग्रवाल को पसीने छूट जाएंगे।
वार्ड -64
सबसे रोचक मुकाबला यहां हो रहा है, जहां पर कैलाश व आकाश विजयवर्गीय की नाक दांव पर लगी हुई है। भाजपा प्रत्याशी व कैलाश समर्थक मनीष मामा आखरी तक चुनाव खड़ा नहीं कर पाए। कैलाश को खुद
नौ घंटे रोड शो करना पड़ गया तो आखरी दिन मुख्यमंत्री की सभा और रोड शो भी वहीं कराए गए।
विधानसभा के नौ वार्डों को लावारिस छोड़ दिया गया। यहां पर पंचकोणीय मुकाबला है। भाजपा के बागी किशोर मीणा और रोशन सोनकर भी मैदान में हैं तो आम आदमी पार्टी के सतीश अग्रवाल भी खासा दम भर रहे हैं।