नशा मुक्ति अभियान के ऐलान पर उमा भारती की खुशी, इसका राज राज्यसभा सीट के लिए मिला आश्वासन तो नहीं! h3>
भोपालः मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) ने राज्य में नशा मुक्ति अभियान (Nasha Mukti Abhiyan in MP) शुरू करने की घोषणा की है। शराबबंदी की मांग पर अड़ीं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती (Uma Bharti) ने शिवराज के इस फैसले पर खुशी जताई है। कुछ घंटे पहले ही मुख्यमंत्री पर अनबोला करने का आरोप लगाने वाली उमा की इस खुशी से लोग आश्चर्यचकित हैं। आश्चर्य इसलिए क्योंकि शिवराज ने उनकी कोई मांग नहीं मानी है। अपनी सरकार की शराब नीति में किसी बदलाव का संकेत भी नहीं किया है। इसके बावजूद उमा ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी है, उसे जुलाई महीने में प्रदेश के कोटे की तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।
उमा भारती लंबे समय से प्रदेश में शराबबंदी की मांग करती रही हैं। वे इसके लिए अभियान शुरू करने की चेतावनी भी कई बार दे चुकी हैं। एक बार तो उन्होंने यह तक कह दिया था कि वे लाठी के दम पर शराबबंदी का अभियान चलाएंगी। उमा के इन बगावती तेवरों को शांत करने के लिए कई बार बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को बीच-बचाव के लिए आना पड़ा है।
अनबोले के बाद बोले शिवराज
उमा के बयानों पर सीधे प्रतिक्रिया देने से बचते रहे शिवराज के लिए सोमवार को मुश्किलें बढ़ गईं जब उमा ने सीधे उन्हें ही लपेटे में ले लिया। उमा ने ट्वीट कर कहा कि शिवराज पिछले दो साल से शराबबंदी को लेकर उनसे शराबबंदी पर चर्चा करते रहे हैं, लेकिन अब उन्होंने अनबोला कर दिया है। इसके कुछ घंटे बाद ही शिवराज ने कह दिया कि उनकी सरकार प्रदेश में नशा मुक्ति अभियान शुरू करेगी।
ऐलान में नया कुछ नहीं
शिवराज के ऐलान में कुछ भी नया नहीं है। शराबबंदी के बारे में पूछे जाने पर वे पहले भी कह चुके हैं कि नशे की समस्या तभी खत्म होगी जबकि लोगों को नशा मुक्ति के लिए जागरूक किया जाए। शिवराज ने सोमवार को न तो अहातों में शराब परोसने पर रोक लगाने की बात कही है, न ही घर-घर शराब पहुंचाने की व्यवस्था बंद करने की। मुख्यमंत्री ने यह भी नहीं कहा कि जिन स्थानों पर शराब के ठेकों से स्थानीय लोगों को आपत्ति है, उन्हें बंद किया जाएगा। उमा भारती की यही मांगें हैं।
उमा की खुशी के मतलब निकाले जा रहे
उमा की कोई मांग पूरी नहीं हुई, फिर भी उन्होंने शिवराज के फैसले पर ने केवल खुशी जताई, बल्कि इसमें भागीदारी देने की भी बात कही। उनकी इस खुशी के राजनीतिक मतलब निकाले जा रहे हैं। दरअसल, पार्टी में अलग-थलग पड़ी उमा भारती एमपी की राजनीति में दोबारा सक्रिय होने की कोशिशों में लगी हैं। जब भी राज्य में कोई चुनाव हों या राजनीतिक गतिविधियां तेज होती हैं, तो उमा भी सक्रिय हो जाती हैं। वे शराबबंदी जैसे मुद्दों पर बयानबाजी कर शिवराज से ज्यादा पार्टी नेतृत्व से अपना असंतोष जताने की कोशिश करती हैं। उनके हालिया बयानों को भी इसीलिए जुलाई में होने वाले राज्यसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।
तीन में से दो सीटें बीजेपी की
एमपी की तीन सीटों के लिए होने वाले चुनाव में बीजेपी को दो सीटें मिलनी करीब-करीब तय हैं। उमा भारती के अलावा कैलाश विजयवर्गीय, लाल सिंह आर्य और कई अन्य वरिष्ठ नेता इसके लिए उम्मीदवार हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि शिवराज के साथ उमा की बढ़ती तल्खी को देखते हुए बीजेपी नेतृत्व उन्हें राज्यसभा भेजने का फैसला कर सकता है। इसका फायदा यह है कि उमा अपने बयानों से पार्टी नेतृत्व को मुश्किल में डालने से बाज आ सकती हैं। शिवराज के लिए भी यह फायदे का सौदा हो सकता है क्योंकि दिल्ली में रहकर मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने की उनकी लालसा शायद कम हो जाए।
दूसरे दावेदारों का क्या होगा
बीजेपी नेतृत्व के लिए हालांकि यह फैसला लेना आसान नहीं होगा। इससे टिकट के दावेदार दूसरे नेताओं के असंतुष्ट होने का गंभीर खतरा है। बीजेपी के मौजूदा नेतृत्व की कार्यशैली से भी यह मेल नहीं खाता। उमा को राज्यसभा का टिकट देने का स्पष्ट मतलब है कि बीजेपी नेतृत्व उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स के आगे झुक गया। पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी इस तरह के नेताओं को ज्यादा तवज्जो नहीं देती, लेकिन एमपी में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। उमा इन चुनावों में भी पार्टी के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकती हैं। इस संभावना को खत्म करने और उन्हें एमपी से बाहर रखने के लिए यह रणनीति हो सकती है।
कब तक चुप रहेंगी उमा
उमा ने शिवराज के ऐलान पर भले खुशी जताई हो, लेकिन इसे उनकी जीत मानना सही नहीं है। मुख्यमंत्री ने शराबबंदी की घोषणा नहीं की है, जिसकी उमा भारती मांग कर रही हैं। शिवराज ने वही किया है, जो वे पहले से कहते आ रहे हैं। एक दिन पहले भी उन्होंने कहा था कि लोग खुद नशा छोड़ दें, तभी शराबबंदी संभव है। सरकार अपने दम पर इसे लागू नहीं कर सकती। उमा भारती प्रदेश सरकार के लिए मुसीबतें न खड़ी करें, इसके लिए उन्हें नशा मुक्ति अभियान का लॉलीपॉप पकड़ाया गया है। उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं मिला तो उनके स्वभाव को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि वे कब तक चुप बैठेंगी।
अगला लेखउमा भारती के ‘अनबोले’ में उलझे शिवराज ने किया नशा मुक्ति अभियान शुरू करने का ऐलान, शराबबंदी की चर्चा नहीं
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उमा भारती लंबे समय से प्रदेश में शराबबंदी की मांग करती रही हैं। वे इसके लिए अभियान शुरू करने की चेतावनी भी कई बार दे चुकी हैं। एक बार तो उन्होंने यह तक कह दिया था कि वे लाठी के दम पर शराबबंदी का अभियान चलाएंगी। उमा के इन बगावती तेवरों को शांत करने के लिए कई बार बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को बीच-बचाव के लिए आना पड़ा है।
अनबोले के बाद बोले शिवराज
उमा के बयानों पर सीधे प्रतिक्रिया देने से बचते रहे शिवराज के लिए सोमवार को मुश्किलें बढ़ गईं जब उमा ने सीधे उन्हें ही लपेटे में ले लिया। उमा ने ट्वीट कर कहा कि शिवराज पिछले दो साल से शराबबंदी को लेकर उनसे शराबबंदी पर चर्चा करते रहे हैं, लेकिन अब उन्होंने अनबोला कर दिया है। इसके कुछ घंटे बाद ही शिवराज ने कह दिया कि उनकी सरकार प्रदेश में नशा मुक्ति अभियान शुरू करेगी।
ऐलान में नया कुछ नहीं
शिवराज के ऐलान में कुछ भी नया नहीं है। शराबबंदी के बारे में पूछे जाने पर वे पहले भी कह चुके हैं कि नशे की समस्या तभी खत्म होगी जबकि लोगों को नशा मुक्ति के लिए जागरूक किया जाए। शिवराज ने सोमवार को न तो अहातों में शराब परोसने पर रोक लगाने की बात कही है, न ही घर-घर शराब पहुंचाने की व्यवस्था बंद करने की। मुख्यमंत्री ने यह भी नहीं कहा कि जिन स्थानों पर शराब के ठेकों से स्थानीय लोगों को आपत्ति है, उन्हें बंद किया जाएगा। उमा भारती की यही मांगें हैं।
उमा की खुशी के मतलब निकाले जा रहे
उमा की कोई मांग पूरी नहीं हुई, फिर भी उन्होंने शिवराज के फैसले पर ने केवल खुशी जताई, बल्कि इसमें भागीदारी देने की भी बात कही। उनकी इस खुशी के राजनीतिक मतलब निकाले जा रहे हैं। दरअसल, पार्टी में अलग-थलग पड़ी उमा भारती एमपी की राजनीति में दोबारा सक्रिय होने की कोशिशों में लगी हैं। जब भी राज्य में कोई चुनाव हों या राजनीतिक गतिविधियां तेज होती हैं, तो उमा भी सक्रिय हो जाती हैं। वे शराबबंदी जैसे मुद्दों पर बयानबाजी कर शिवराज से ज्यादा पार्टी नेतृत्व से अपना असंतोष जताने की कोशिश करती हैं। उनके हालिया बयानों को भी इसीलिए जुलाई में होने वाले राज्यसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।
तीन में से दो सीटें बीजेपी की
एमपी की तीन सीटों के लिए होने वाले चुनाव में बीजेपी को दो सीटें मिलनी करीब-करीब तय हैं। उमा भारती के अलावा कैलाश विजयवर्गीय, लाल सिंह आर्य और कई अन्य वरिष्ठ नेता इसके लिए उम्मीदवार हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि शिवराज के साथ उमा की बढ़ती तल्खी को देखते हुए बीजेपी नेतृत्व उन्हें राज्यसभा भेजने का फैसला कर सकता है। इसका फायदा यह है कि उमा अपने बयानों से पार्टी नेतृत्व को मुश्किल में डालने से बाज आ सकती हैं। शिवराज के लिए भी यह फायदे का सौदा हो सकता है क्योंकि दिल्ली में रहकर मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने की उनकी लालसा शायद कम हो जाए।
दूसरे दावेदारों का क्या होगा
बीजेपी नेतृत्व के लिए हालांकि यह फैसला लेना आसान नहीं होगा। इससे टिकट के दावेदार दूसरे नेताओं के असंतुष्ट होने का गंभीर खतरा है। बीजेपी के मौजूदा नेतृत्व की कार्यशैली से भी यह मेल नहीं खाता। उमा को राज्यसभा का टिकट देने का स्पष्ट मतलब है कि बीजेपी नेतृत्व उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स के आगे झुक गया। पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी इस तरह के नेताओं को ज्यादा तवज्जो नहीं देती, लेकिन एमपी में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। उमा इन चुनावों में भी पार्टी के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकती हैं। इस संभावना को खत्म करने और उन्हें एमपी से बाहर रखने के लिए यह रणनीति हो सकती है।
कब तक चुप रहेंगी उमा
उमा ने शिवराज के ऐलान पर भले खुशी जताई हो, लेकिन इसे उनकी जीत मानना सही नहीं है। मुख्यमंत्री ने शराबबंदी की घोषणा नहीं की है, जिसकी उमा भारती मांग कर रही हैं। शिवराज ने वही किया है, जो वे पहले से कहते आ रहे हैं। एक दिन पहले भी उन्होंने कहा था कि लोग खुद नशा छोड़ दें, तभी शराबबंदी संभव है। सरकार अपने दम पर इसे लागू नहीं कर सकती। उमा भारती प्रदेश सरकार के लिए मुसीबतें न खड़ी करें, इसके लिए उन्हें नशा मुक्ति अभियान का लॉलीपॉप पकड़ाया गया है। उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं मिला तो उनके स्वभाव को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि वे कब तक चुप बैठेंगी।