नवनीत गुर्जर का कॉलम: कांग्रेस के मुद्दे पर सर्जिकल स्ट्राइक!

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नवनीत गुर्जर का कॉलम:  कांग्रेस के मुद्दे पर सर्जिकल स्ट्राइक!

नवनीत गुर्जर का कॉलम: कांग्रेस के मुद्दे पर सर्जिकल स्ट्राइक!

4 घंटे पहले

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नवनीत गुर्जर

मुद्दों को लेकर कांग्रेस का रवैया सामान्यतया लचीला ही रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में कई मुद्दे ऐसे आए, जिन्हें वह जनहित में जोर-शोर से उठा सकती थी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।

कुछ मुद्दों को उठाया भी तो वे ज्यादा चल नहीं पाए। हो सकता है उनके उठान में वो गंभीरता नहीं रही हो या उन्हें कांग्रेस की ओर से ज्यादा लंबे समय तक पकड़कर नहीं रखा गया हो! कारण जो भी रहे हों, लेकिन आक्रामक विपक्ष की भूमिका कांग्रेस के हाथ से फिसलती गई।

दरअसल, लम्बे समय तक शासन में रहने के कारण उसे विपक्षी तौर-तरीकों में ढलने में काफी समय लगा। शायद और भी समय लगे। क्योंकि अभी भी बहुत कुछ रचनात्मक या आक्रामक दिखाई नहीं देता। पिछले लोकसभा चुनाव और कुछ विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के हाथ एक ब्रह्मास्त्र लग गया था। जातीय जनगणना का।

राहुल गांधी जहां भी जाते, जातीय जनगणना का नारा जरूर बुलंद करते थे। चतुर राजनीतिज्ञ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी से अब ये मुद्दा भी छीन लिया है। अब तक जातीय जनगणना से संबंधित राहुल गांधी के बयानों के आगे केवल नकार का स्वर बुलंद करने वाली केंद्र सरकार ने खुद ही जातीय जनगणना कराने का फैसला कर लिया है।

राहुल गांधी जातीय जनगणना का फायदा बताते हुए कहते थे कि- जो जितनी संख्या में है, उसे उतना लाभ मिलेगा। केंद्र सरकार की घोषणा का जो तरीका है, उससे लगता है कि फोकस सिर्फ पिछड़ा वर्ग है, जो कि मौजूदा स्थिति में संख्या के मान से सर्वाधिक भी है और चुनावी राजनीति के हिसाब से बलशाली भी।

केंद्र ने कहा है कि सामान्य जनगणना के साथ ही जातीय जनगणना भी होगी, जो इसी साल सितम्बर में शुरू हो जाएगी। सरकार का कहना है कि इससे पिछड़ा वर्ग को नौकरी और अन्य सुविधाओं में बड़ा फायदा होने वाला है।

फोकस साफ है। वैसे हिंदुस्तान में जनगणना हर दस साल में होती रही है। पिछली बार 2011 में जनगणना हुई थी। अब तक तमाम योजनाएं 2011 की जनगणना के आधार और कुछ हद तक भविष्य के अनुमानों के हिसाब से बनती रही हैं।

जनगणना जो अब होने वाली है, वह 2021 में होनी थी, लेकिन कोविड के कारण इसे टालना पड़ा था। इस वजह से अगली जनगणना का समय भी अब बदल जाएगा। यानी सितम्बर 2025 में जनगणना शुरू होती है तो अगली जनगणना 2035 में होगी।

देश में सन् 1947 के बाद किसी भी तरह की जातीय जनगणना नहीं हो सकी है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने वर्ष 2010 में जरूर कहा था कि जातीय जनगणना के बारे में कैबिनेट में विचार होना चाहिए। इस विषय पर विचार करने के लिए मंत्रियों का एक समूह भी बनाया गया था। कहा जाता है कि तब अधिकांश राजनीतिक दल जातीय जनगणना के पक्ष में थे, लेकिन किन्हीं कारणों से वर्ष 2011 की जनगणना के दौरान यह संभव नहीं हो सका था।

भाजपा कहती है कि कांग्रेस ने ऐसा होने नहीं दिया जबकि कांग्रेस का कहना है कि हम तो जाने कब से इसकी मांग कर रहे हैं। भाजपा इस पर पलटवार करते हुए कहती है कि जातीय जनगणना का कांग्रेस ने केवल चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल किया है।

कुल मिलाकर अब केंद्र सरकार ने घोषणा कर ही दी है। इस बार की इस जनगणना को पूरा होने में लगभग दो साल लगने वाले हैं। इसके परिणाम आने तक वर्ष 2027 अपने उत्तरार्ध में होगा। छह-आठ महीने विभिन्न राजनीतिक दल जातियों के हिसाब से अपना गुणा-भाग लगाने में व्यस्त रहेंगे।

2028 का आधा साल बीत जाएगा। तभी 2029 के लोकसभा चुनावों की तैयारियां शुरू हो जाएंगी।

आगामी लोकसभा चुनाव ऐसे पहले चुनाव होंगे, जो जातिवार जनसंख्या सामने रखकर लड़े और जीते जाएंगे। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में तो इस घोषणा का असर देखा ही जाएगा, जो इसी साल नवम्बर में होने वाले हैं। कुल मिलाकर, जातीय जनगणना के कांग्रेस के मुद्दे पर भाजपा और उसके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक कर दी है!

कल तक जातीय जनगणना के कांग्रेस के मुद्दे को देश बांटने वाला बताने वाले भाजपा नेता ही आज केंद्र सरकार के निर्णय की प्रशंसा करते नहीं अघा रहे। हालांकि इस नई तरह की जनगणना को लेकर भी दावे-प्रतिदावे तो बहुत किए जाएंगे, लेकिन आखिरकार फायदे में तो राजनीतिक दल ही रहेंगे।

जिसके हाथ में मुद्दा होगा, जो कि अब भाजपा के हाथ में है, उसे ही फायदा होगा। जहां तक आम आदमी का सवाल है, वो तो जाने कब से मुंह पर ताला मारे बैठा है!

सुर बदलते देर नहीं लगी … जातीय जनगणना के कांग्रेस के मुद्दे पर भाजपा और उसके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक कर दी है! कल तक जातीय जनगणना के कांग्रेस के मुद्दे को देश बांटने वाला बताने वाले भाजपा नेता ही आज केंद्र सरकार के निर्णय की प्रशंसा करते नहीं अघा रहे।

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