नवनीत गुर्जर का कॉलम: आखिर क्यों बाज नहीं आते ये बयानवीर? h3>
4 घंटे पहले
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नवनीत गुर्जर
हजारों कसमें खा-खाकर, कई लोगों की जान की बाजी लगाकर भी कभी न झुकने की रट लगाने वाले जेलेंस्की भी अब तो घुटनों पर आ गए हैं। लेकिन हमारे नेता जो बयानवीर बने घूमते रहते हैं, किसी मोड़ पर, किसी सीमा पर रुकना नहीं चाहते।
एक कांग्रेस प्रवक्ता ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा को सलाह दे डाली कि आप काफी वजनी हैं। थोड़ा वेट कम करिए। उनकी तुलना भी की पुराने कप्तानों से। एक दूसरे नेता ने कहा- औरंगजेब तो बड़े महान और दयालु थे। उन्होंने कई मंदिर बनवाए।
यह तब हो रहा है, जब एक शो पर हुई आहत कर देने वाली बातों का विवाद अभी थमा तक नहीं है। पहले आते हैं कांग्रेस प्रवक्ता के रोहित शर्मा पर दिए बयान पर।
आप राजनेता हो। राजनीति कीजिए। वहां जो खेल करना हो, करते रहिए।
खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन नहीं कर सकते, मत करिए। कम से कम उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश तो मत कीजिए। आपकी टिप्पणी के बाद ही रोहित इंडिया को हर मैच जिताते जा रहे हैं। अब आपकी क्या रही? खेल से लगाव है तो खेल देखिए। इस तरह की टिप्पणियां देश बर्दाश्त नहीं कर सकता।
…और जहां तक रोहित शर्मा का सवाल है, उनके पास तो वक्त ही नहीं है इस तरह की फिजूल बातें सुनने या पढ़ने का। भाजपा वालों ने इस टिप्पणी का सही जवाब दिया है कि जो कांग्रेस नब्बे चुनाव हार चुकी है, वो टीम को जिता रहे रोहित शर्मा पर टिप्पणी करने चली है। इन्हें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।
दूसरा मामला है महाराष्ट्र के एक नेता का। वे औरंगजेब की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे। विरोध हुआ तो बयान वापस ले लिया। लेकिन ऐसा बयान देना ही क्यों, जिसे वापस लेना पड़े? हालांकि कहा ये जा रहा है कि यह एक राजनीतिक हथकंडा था।
सत्तापक्ष विधानसभा में अपने एक नेता से जुड़े विवाद में विपक्ष के आगे फंसना नहीं चाहता था, इसलिए इस तरह का बयान दिलवाकर उस पर हंगामा करवा दिया और सदन की कार्यवाही स्थगित हो गई। विवाद टल गया।
हालांकि इसका कोई सबूत नहीं है लेकिन यह सच है तो सत्ता पक्ष के इस तरह के हथकंडे भी ठीक नहीं कहे जा सकते। आखिर आप इस तरह की बयानबाजी का खेल करवाकर क्या दिखाना चाहते हैं? क्या बचाना चाहते हैं?
फिर ऐसे में आपको कांग्रेस या अन्य किसी राजनीतिक दल के बयानों पर टिप्पणी करने का भी हक कैसे दिया जा सकता है? दरअसल, राजनीतिक लोग जब इस तरह की पैंतरेबाजी करते हैं तो उन्हें दूसरे पक्षों के वैसे ही हमलों के लिए तैयार भी रहना चाहिए। आप नेता हैं। हमारे ही वोटों से बने हो।
आप हमारी, आम लोगों की भलाई के बारे में सोचें न सोचें, कोई फर्क नहीं पड़ता। हम जी लेंगे। आपकी मदद या किसी तरह की सहायता के बिना। क्योंकि पेड़ तो वो भी पल जाता है, जिसका कोई बीज नहीं होता। चाहे मिट्टी उसे अजनबी समझ ले! चाहे हवा पीठ फेर ले। हम तो फिर भी मनुष्य हैं। हाड़-मांस के बने हैं।
हमें आपकी क्या गरज? एक आसमां तो है ही हमारे पास जो हमेशा तरस खाता है हम पर। आप समझते होंगे खुद को आसमां, लेकिन हो नहीं। हमें वैसे आपसे कोई लगाव भी नहीं है। बहुत से काम हैं हमारे पास।
बंजर जमीन पर कभी घास उगाना है। कभी उसी जमीन पर फसलें लहलहानी हैं। बहुत से दरख्त लगाने हैं। डालियों पर फूल महकाने हैं। पहाड़ों को करीने से लगाना है। उन पर कुछ चांद, कुछ सूरज लटकाने हैं। और तो और…
सितारों को ज्यादा रोशनी देनी है। हवाओं को भरपूर गति देनी है। यहां-वहां फुदकते पत्थरों को पंख देना है। हर लब पर मुस्कराहट लानी है। और भी कई काम हैं हमारे पास! इन सब से फुरसत मिले तो आपके बारे में सोचें।
इसी तरह आपके पास भी कई काम होंगे। करोड़ों की कोठी बनवानी होगी। बेहिसाब पैसा इकट्ठा करना होगा। हम जानते हैं आपके ये काम जब तक पूरे नहीं होंगे, तब तक आप कैसे सोच सकते हैं हमारे बारे में? इसलिए माफ कीजिए, न हमारे होनहार खिलाड़ियों पर कोई टिप्पणी कीजिए।
और न ही इतिहास के किसी उजले या अंधेरे पक्ष को छेड़िए। हमारी भावनाएं बहुत नाजुक हैं। कम से कम उनसे मत खेलिए!
ऐसा बयान ही क्यों देना, जिसे वापस लेना पड़े? महाराष्ट्र के एक नेता औरंगजेब की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे। विरोध हुआ तो बयान वापस ले लिया। लेकिन ऐसा बयान देना ही क्यों, जिसे वापस लेना पड़े? इस तरह की बयानबाजी का खेल करवाकर आप क्या दिखाना चाहते हैं?
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नवनीत गुर्जर
हजारों कसमें खा-खाकर, कई लोगों की जान की बाजी लगाकर भी कभी न झुकने की रट लगाने वाले जेलेंस्की भी अब तो घुटनों पर आ गए हैं। लेकिन हमारे नेता जो बयानवीर बने घूमते रहते हैं, किसी मोड़ पर, किसी सीमा पर रुकना नहीं चाहते।
एक कांग्रेस प्रवक्ता ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा को सलाह दे डाली कि आप काफी वजनी हैं। थोड़ा वेट कम करिए। उनकी तुलना भी की पुराने कप्तानों से। एक दूसरे नेता ने कहा- औरंगजेब तो बड़े महान और दयालु थे। उन्होंने कई मंदिर बनवाए।
यह तब हो रहा है, जब एक शो पर हुई आहत कर देने वाली बातों का विवाद अभी थमा तक नहीं है। पहले आते हैं कांग्रेस प्रवक्ता के रोहित शर्मा पर दिए बयान पर।
आप राजनेता हो। राजनीति कीजिए। वहां जो खेल करना हो, करते रहिए।
खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन नहीं कर सकते, मत करिए। कम से कम उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश तो मत कीजिए। आपकी टिप्पणी के बाद ही रोहित इंडिया को हर मैच जिताते जा रहे हैं। अब आपकी क्या रही? खेल से लगाव है तो खेल देखिए। इस तरह की टिप्पणियां देश बर्दाश्त नहीं कर सकता।
…और जहां तक रोहित शर्मा का सवाल है, उनके पास तो वक्त ही नहीं है इस तरह की फिजूल बातें सुनने या पढ़ने का। भाजपा वालों ने इस टिप्पणी का सही जवाब दिया है कि जो कांग्रेस नब्बे चुनाव हार चुकी है, वो टीम को जिता रहे रोहित शर्मा पर टिप्पणी करने चली है। इन्हें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।
दूसरा मामला है महाराष्ट्र के एक नेता का। वे औरंगजेब की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे। विरोध हुआ तो बयान वापस ले लिया। लेकिन ऐसा बयान देना ही क्यों, जिसे वापस लेना पड़े? हालांकि कहा ये जा रहा है कि यह एक राजनीतिक हथकंडा था।
सत्तापक्ष विधानसभा में अपने एक नेता से जुड़े विवाद में विपक्ष के आगे फंसना नहीं चाहता था, इसलिए इस तरह का बयान दिलवाकर उस पर हंगामा करवा दिया और सदन की कार्यवाही स्थगित हो गई। विवाद टल गया।
हालांकि इसका कोई सबूत नहीं है लेकिन यह सच है तो सत्ता पक्ष के इस तरह के हथकंडे भी ठीक नहीं कहे जा सकते। आखिर आप इस तरह की बयानबाजी का खेल करवाकर क्या दिखाना चाहते हैं? क्या बचाना चाहते हैं?
फिर ऐसे में आपको कांग्रेस या अन्य किसी राजनीतिक दल के बयानों पर टिप्पणी करने का भी हक कैसे दिया जा सकता है? दरअसल, राजनीतिक लोग जब इस तरह की पैंतरेबाजी करते हैं तो उन्हें दूसरे पक्षों के वैसे ही हमलों के लिए तैयार भी रहना चाहिए। आप नेता हैं। हमारे ही वोटों से बने हो।
आप हमारी, आम लोगों की भलाई के बारे में सोचें न सोचें, कोई फर्क नहीं पड़ता। हम जी लेंगे। आपकी मदद या किसी तरह की सहायता के बिना। क्योंकि पेड़ तो वो भी पल जाता है, जिसका कोई बीज नहीं होता। चाहे मिट्टी उसे अजनबी समझ ले! चाहे हवा पीठ फेर ले। हम तो फिर भी मनुष्य हैं। हाड़-मांस के बने हैं।
हमें आपकी क्या गरज? एक आसमां तो है ही हमारे पास जो हमेशा तरस खाता है हम पर। आप समझते होंगे खुद को आसमां, लेकिन हो नहीं। हमें वैसे आपसे कोई लगाव भी नहीं है। बहुत से काम हैं हमारे पास।
बंजर जमीन पर कभी घास उगाना है। कभी उसी जमीन पर फसलें लहलहानी हैं। बहुत से दरख्त लगाने हैं। डालियों पर फूल महकाने हैं। पहाड़ों को करीने से लगाना है। उन पर कुछ चांद, कुछ सूरज लटकाने हैं। और तो और…
सितारों को ज्यादा रोशनी देनी है। हवाओं को भरपूर गति देनी है। यहां-वहां फुदकते पत्थरों को पंख देना है। हर लब पर मुस्कराहट लानी है। और भी कई काम हैं हमारे पास! इन सब से फुरसत मिले तो आपके बारे में सोचें।
इसी तरह आपके पास भी कई काम होंगे। करोड़ों की कोठी बनवानी होगी। बेहिसाब पैसा इकट्ठा करना होगा। हम जानते हैं आपके ये काम जब तक पूरे नहीं होंगे, तब तक आप कैसे सोच सकते हैं हमारे बारे में? इसलिए माफ कीजिए, न हमारे होनहार खिलाड़ियों पर कोई टिप्पणी कीजिए।
और न ही इतिहास के किसी उजले या अंधेरे पक्ष को छेड़िए। हमारी भावनाएं बहुत नाजुक हैं। कम से कम उनसे मत खेलिए!
ऐसा बयान ही क्यों देना, जिसे वापस लेना पड़े? महाराष्ट्र के एक नेता औरंगजेब की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे। विरोध हुआ तो बयान वापस ले लिया। लेकिन ऐसा बयान देना ही क्यों, जिसे वापस लेना पड़े? इस तरह की बयानबाजी का खेल करवाकर आप क्या दिखाना चाहते हैं?
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