नरेंद्र मोदी के सामने प्रधानमंत्री का चेहरा कौन? जवाब से क्यों बच रहे हैं I.N.D.I.A. के नेता, मुंबई मीटिंग से पहले जानिए रणनीति

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नरेंद्र मोदी के सामने प्रधानमंत्री का चेहरा कौन? जवाब से क्यों बच रहे हैं I.N.D.I.A. के नेता, मुंबई मीटिंग से पहले जानिए रणनीति

नरेंद्र मोदी के सामने प्रधानमंत्री का चेहरा कौन? जवाब से क्यों बच रहे हैं I.N.D.I.A. के नेता, मुंबई मीटिंग से पहले जानिए रणनीति

नई दिल्ली : 2024 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ I.N.D.I.A. की तरफ से प्रधानमंत्री का चेहरा कौन होगा? इस सवाल के जवाब देने में I.N.D.I.A. के नेता कतरा रहे हैं। पद पर दावेदारी का अंदाज अलग है। राहुल गांधी, नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे के लिए उनकी पार्टियों के नेता बयानों से फील्डिंग सजा रहे हैं। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने बड़े विपक्षी दल होने के कारण कांग्रेस को स्वाभाविक नेतृत्व का दावा कर राहुल की तारीफदारी कर दी। जेडी यू के नेता के सी त्यागी समेत नीतीश के मंत्री उन्हें पीएम मटैरियल बता चुके हैं। अखिलेश यादव, स्टॉलिन, हेमंत सोरेन जैसे नेताओं ने डिप्लोमैटिकल बयानबाजी से नेतृत्व के मसले को उलझा दिया है। बिहार में नीतीश कुमार के सहयोगी आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने बयान दिया कि प्रधानमंत्री पद का फैसला चुनाव के बाद नए चुने गए I.N.D.I.A.के सांसद करेंगे। नेतृत्व के कन्फ्यूजन से इंडिया चुनाव से पहले ही परसेप्शन की लड़ाई में पिछड़ गई है।

पीएम चेहरा बने तो रैलियों में मोदी के निशाने पर होंगे
यह तय है कि लोकसभा चुनाव 2024 बीजेपी नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ ही चुनाव में जाएगी। चुनावी रैलियों में I.N.D.I.A. के निशाने पर पीएम मोदी होंगे। चुनाव हैं तो बीजेपी भी विपक्षी दलों के पीएम चेहरे पर हमले करेगी। नरेंद्र मोदी 2014 और 2019 में बीजेपी ने विपक्ष के खिलाफ अग्रेसिव कैंपेन कर चुके हैं। दोनों चुनावों में राहुल गांधी बीजेपी के हमले का निशाना बने। इन दोनों चुनावों में बीजेपी के अलावा किसी पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के लिए किसी नेता का नाम आगे नहीं किया। इसका फायदा बीजेपी ले गई। लोगों ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर वोट किया। टीम इंडिया अभी तक संयोजक पद के लिए एकमत नहीं है तो प्रधानमंत्री के लिए नेता कैसे चुनेगी? नरेंद्र मोदी के खिलाफ दावेदारी करने वाले नेता को आइडिया और विजन के तराजू पर तौला जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। फिर 2024 में विपक्ष की लड़ाई मोदी वर्सेज नेता हो जाएगी और I.N.D.I.A. ही गायब हो जाएगा। I.N.D.I.A. की मुंबई मीटिंग में 28 दलों के 62 नेताओं के सामने नेतृत्व चुनने की चुनौती बरकरार रहेगी। यदि चुनाव से पहले पीएम चेहरा नहीं ढूंढ पाए तो नरेंद्र मोदी को विनिंग पॉइंट मिल जाएगा।

पीएम कैंडिडेट होने के कारण विपक्ष के निशाने पर लालकृष्ण आडवाणी दस साल तक बने रहे

I.N.D.I.A. को याद है ‘पीएम इन वेटिंग’ वाली खिल्ली

90 के दशक में बीजेपी हर चुनाव अभियान में पीएम पद के कैंडिडेट के साथ चुनाव में उतरती रही है। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी से इसकी शुरुआत हुई। अटल के चेहरे पर बीजेपी गठबंधन ने 1998 और 1999 में सरकार बनाई। 2004 और 2009 में लालकृष्ण आडवाणी पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार बने। इन दोनों चुनावों में बीजेपी गठबंधन एनडीए हार गया और विपक्ष ने लालकृष्ण आडवाणी की ‘पीएम इन वेटिंग’ कहकर लंबे समय तक खिल्ली उड़ाई। 2014 में नरेंद्र मोदी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद ही विपक्ष के सुर बदले थे। I.N.D.I.A. के नेता इस खतरे को भांप चुके हैं कि चुनाव के बाद पीएम चेहरे को लंबे समय तक ‘पीएम इन वेटिंग’ वाले तंज से जूझना होगा। मुंबई में विपक्षी गठबंधन इंडिया (I.N.D.I.A.) की बैठक में प्रधानमंत्री के चेहरे की घोषणा नहीं होगी।

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एच डी देवगौड़ा की सरकार चुनाव परिणाम आने के बाद बनी थी, मगर चल नहीं सकी। कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया था।

मजबूरी से बने गठबंधन की सरकार बनी मगर चली नहीं
अभी बीजेपी के खिलाफ जिस तरह विपक्ष लामबंद हुआ है, ऐसा प्रयोग पहले कांग्रेस के खिलाफ 1989 और 1996 में हो चुका है। तब खंडित जनादेश और चुनाव के बाद बने गठबंधन के बाद विपक्ष ने सरकार बनाई थी। 1989 में वीपी सिंह की जनमोर्चा सरकार बीजेपी के बाहरी समर्थन से बनी थी। तब कांग्रेस के बागी हुए वीपी सिंह ने बोफोर्स घोटाले को मुद्दा बनाया था। उनकी सरकार भी एक साल के करीब ही चली। फिर चंद्रशेखर ने जनता दल तोड़कर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। 1996 से 1998 के बीच संयुक्त मोर्चा की दोनों सरकार कांग्रेस के बाहरी समर्थन से बनी, मगर चल नहीं पाई थी। 2004 से 2014 तक चली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकारों ने अपना कार्यकाल पूरा किया, क्योंकि इस अलायंस ने कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकार किया था। 1998 से 2004 तक अटल बिहारी वायपेयी की सरकार को गठबंधन का भरोसा हासिल था। बीजेपी ने गठबंधन की स्वाभाविक नेतृत्व किया था। I.N.D.I.A. को भी चुनाव में उतरने से पहले नेता और नेतृत्व तय करना होगा। नहीं किया तो इंडिया के कन्फ्यूजन का फायदा बीजेपी को मिलेगा और मोदी को विनिंग पॉइंट चुनाव से पहले ले उड़ेंगे।

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