नफरत का वायरस फैलाया जा रहा… सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बीच सोनिया गांधी का सरकार पर हमला h3>
नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने एक अंग्रेजी अखबार में लेख लिखकर केंद्र की मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला है। इंडियन एक्सप्रेस में लिखे लेख में सोनिया ने ‘नफरत के वायरस’ की बात कही है। वह लिखती हैं कि यह नफरत और विभाजन का वायरस है जो अविश्वास को बढ़ाता है, बहस को दबाता है और एक देश और लोगों के रूप में हमें नुकसान पहुंचा रहा है। उन्होंने लिखा कि हमारे बीच यही वायरस फैलाया जा रहा है। उन्होंने सवाल किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे लोगों को कड़ी हिदायत क्यों नहीं देते कि ऐसी बातों न की जाएं जिससे समाज में विभाजन हो। सोनिया गांधी का यह लेख ऐसे समय में आया है जब देश में कई जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा भड़की और माहौल खराब हुआ। कर्नाटक का हिजाब विवाद के बाद करौली-अलवर हिंसा, खरगोन, झारखंड और पश्चिम बंगाल समेत रामनवमी पर पथराव-हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं।
सोनिया गांधी के लेख का अंश
सत्तारूढ़ पार्टी साफ तौर पर चाहती है कि भारत के लोग ऐसा मान लें कि स्थायी तौर पर ध्रुवीकरण की स्थिति उनके हित में है। वह चाहे पहनावा हो, खानपान, धार्मिक आस्था, त्योहार या भाषा, भारतीयों को भारतीयों के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश हो रही है और असमाजिक तत्वों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। पूर्वाग्रह, दुश्मनी और प्रतिशोध को बढ़ावा देने के लिए प्राचीन और समकालीन दोनों इतिहास की लगातार व्याख्या करने की कोशिश की जा रही है। यह विडंबना है कि देश के लिए उज्ज्वल, बेहतर भविष्य बनाने और रचनात्मक कार्यों में युवा प्रतिभा का इस्तेमाल करने के लिए संसाधनों का उपयोग करने की बजाय काल्पनिक अतीत के संदर्भ में वर्तमान को नया रूप देने के लिए समय और संपत्ति का इस्तेमाल किया जा रहा है।
भारत की विविधता को लेकर प्रधानमंत्री बहुत चर्चा करते हैं लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि इस सत्तारूढ़ व्यवस्था में, जिन विविधताओं ने सदियों से हमारे समाज को परिभाषित और समृद्ध किया है, उसमें बदलाव कर हमें बांटने की कोशिशें हो रही हैं।
कट्टरता, नफरत और विभाजन….
हर कोई स्वीकार करता है कि समृद्धि के लिए हमें उच्च आर्थिक विकास को बनाए रखना होगा, जिससे धनराशि का इस्तेमाल लोगों के जीवन स्तर को बढ़ाने और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए जरूरी रेवेन्यू उपलब्ध हो सके और हमारे युवाओं के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर मिल सकें। लेकिन सामाजिक उदारवाद का माहौल बिगड़ रहा है और कट्टरता, नफरत और विभाजन का प्रसार आर्थिक विकास की नींव को हिला देता है। यह आश्चर्यजनक बात नहीं है कि कुछ बोल्ड कॉरपोरेट एक्जीक्यूटिव कर्नाटक में जो हो रहा है, उसके खिलाफ बोल रहे हैं। इन मुखर आवाजों के खिलाफ सोशल मीडिया में भी प्रतिक्रिया मिली, जिसका पहले से अंदेशा था। लेकिन व्यापक रूप से उन चिंताओं को साझा किया गया और वह बहुत वास्तविक है। यह अब किसी से छिपा नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में हमारे कारोबारी खुद को अनिवासी भारतीय (NRI) घोषित कर रहे हैं।
नफरत का बढ़ता शोर, आक्रामकता के लिए खुलेआम भड़काना और यहां तक कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध हमारे समाज की मिलीजुली, उदार परंपराओं से कोसों दूर हैं। मिलकर त्योहार मनाना, विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच अच्छे पड़ोसी की तरह संबंध, कला, सिनेमा और रोजमर्रा की जिंदगी में आस्था और विश्वास का व्यापक मेलजोल, इसके हजारों उदाहरण हैं जो सदियों से हमारे समाज की गौरवपूर्ण और स्थायी विशेषताएं हैं। संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए भारतीय समाज और राष्ट्रीयता की मजबूत नींव को कमजोर किया जा रहा है।
यह सरकार का पाखंड है…
भारत को स्थायी रूप से उन्माद की स्थिति में रखने की इस विभाजनकारी साजिश में और भी कुछ घातक है। सत्ता में बैठे लोगों की विचारधारा पर असहमति और विरोध की आवाज को कुचलने की कोशिश की जाती है। राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाया जाता है और उनके खिलाफ पूरी सरकारी मशीनरी की ताकत झोंक दी जाती है। ऐक्टिविस्टों को धमकाया जाता है और खामोश करने की मांग की जाती है। सोशल मीडिया का, विशेष रूप से प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिसमें केवल झूठ और नफरत होता है। डर, धोखा और धमकी, तथाकथित ‘अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार’ की रणनीति के स्तंभ बन गए हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने 1949 में संविधान सभा द्वारा हमारे संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने की प्रथा शुरू की है लेकिन यह सरकार हर संस्था को व्यवस्थित तरीके से प्रभावहीन करते हुए संविधान का पालन करती है। यह स्पष्ट रूप से पाखंड है।
हेट स्पीच के खिलाफ बोलने से पीएम को कौन रोकता है?
हेट स्पीच के खिलाफ स्पष्ट रूप से बोलने से प्रधानमंत्री को कौन रोकता है। बार-बार ऐसा करने वाले खुलेआम घूमते हैं और उनके भड़काऊ भाषा के इस्तेमाल पर कोई रोक नहीं है। वास्तव में, वे विभिन्न स्तरों पर एक तरह के आधिकारिक संरक्षण का आनंद ले रहे हैं।
आज हमारे देश में नफरत, कट्टरता, असहिष्णुता और झूठ बढ़ रहा है। अगर हम इसे अभी नहीं रोकते हैं तो यह हमारे समाज को ऐसा नुकसान पहुंचाएगा जिसकी भरपाई आसान नहीं होगी। हम इसे जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते और न ही देना चाहिए। झूठे राष्ट्रवाद की वेदी पर शांति और बहुलतावाद की बलि दी जा रही है और हम एक समाज के रूप में चुपचाप खड़े होकर देखते नहीं रह सकते। आइए हम नफरत की सुनामी पर काबू पाएं।
सोनिया गांधी के लेख का अंश
सत्तारूढ़ पार्टी साफ तौर पर चाहती है कि भारत के लोग ऐसा मान लें कि स्थायी तौर पर ध्रुवीकरण की स्थिति उनके हित में है। वह चाहे पहनावा हो, खानपान, धार्मिक आस्था, त्योहार या भाषा, भारतीयों को भारतीयों के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश हो रही है और असमाजिक तत्वों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। पूर्वाग्रह, दुश्मनी और प्रतिशोध को बढ़ावा देने के लिए प्राचीन और समकालीन दोनों इतिहास की लगातार व्याख्या करने की कोशिश की जा रही है। यह विडंबना है कि देश के लिए उज्ज्वल, बेहतर भविष्य बनाने और रचनात्मक कार्यों में युवा प्रतिभा का इस्तेमाल करने के लिए संसाधनों का उपयोग करने की बजाय काल्पनिक अतीत के संदर्भ में वर्तमान को नया रूप देने के लिए समय और संपत्ति का इस्तेमाल किया जा रहा है।
भारत की विविधता को लेकर प्रधानमंत्री बहुत चर्चा करते हैं लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि इस सत्तारूढ़ व्यवस्था में, जिन विविधताओं ने सदियों से हमारे समाज को परिभाषित और समृद्ध किया है, उसमें बदलाव कर हमें बांटने की कोशिशें हो रही हैं।
कट्टरता, नफरत और विभाजन….
हर कोई स्वीकार करता है कि समृद्धि के लिए हमें उच्च आर्थिक विकास को बनाए रखना होगा, जिससे धनराशि का इस्तेमाल लोगों के जीवन स्तर को बढ़ाने और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए जरूरी रेवेन्यू उपलब्ध हो सके और हमारे युवाओं के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर मिल सकें। लेकिन सामाजिक उदारवाद का माहौल बिगड़ रहा है और कट्टरता, नफरत और विभाजन का प्रसार आर्थिक विकास की नींव को हिला देता है। यह आश्चर्यजनक बात नहीं है कि कुछ बोल्ड कॉरपोरेट एक्जीक्यूटिव कर्नाटक में जो हो रहा है, उसके खिलाफ बोल रहे हैं। इन मुखर आवाजों के खिलाफ सोशल मीडिया में भी प्रतिक्रिया मिली, जिसका पहले से अंदेशा था। लेकिन व्यापक रूप से उन चिंताओं को साझा किया गया और वह बहुत वास्तविक है। यह अब किसी से छिपा नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में हमारे कारोबारी खुद को अनिवासी भारतीय (NRI) घोषित कर रहे हैं।
नफरत का बढ़ता शोर, आक्रामकता के लिए खुलेआम भड़काना और यहां तक कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध हमारे समाज की मिलीजुली, उदार परंपराओं से कोसों दूर हैं। मिलकर त्योहार मनाना, विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच अच्छे पड़ोसी की तरह संबंध, कला, सिनेमा और रोजमर्रा की जिंदगी में आस्था और विश्वास का व्यापक मेलजोल, इसके हजारों उदाहरण हैं जो सदियों से हमारे समाज की गौरवपूर्ण और स्थायी विशेषताएं हैं। संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए भारतीय समाज और राष्ट्रीयता की मजबूत नींव को कमजोर किया जा रहा है।
यह सरकार का पाखंड है…
भारत को स्थायी रूप से उन्माद की स्थिति में रखने की इस विभाजनकारी साजिश में और भी कुछ घातक है। सत्ता में बैठे लोगों की विचारधारा पर असहमति और विरोध की आवाज को कुचलने की कोशिश की जाती है। राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाया जाता है और उनके खिलाफ पूरी सरकारी मशीनरी की ताकत झोंक दी जाती है। ऐक्टिविस्टों को धमकाया जाता है और खामोश करने की मांग की जाती है। सोशल मीडिया का, विशेष रूप से प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिसमें केवल झूठ और नफरत होता है। डर, धोखा और धमकी, तथाकथित ‘अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार’ की रणनीति के स्तंभ बन गए हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने 1949 में संविधान सभा द्वारा हमारे संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने की प्रथा शुरू की है लेकिन यह सरकार हर संस्था को व्यवस्थित तरीके से प्रभावहीन करते हुए संविधान का पालन करती है। यह स्पष्ट रूप से पाखंड है।
हेट स्पीच के खिलाफ बोलने से पीएम को कौन रोकता है?
हेट स्पीच के खिलाफ स्पष्ट रूप से बोलने से प्रधानमंत्री को कौन रोकता है। बार-बार ऐसा करने वाले खुलेआम घूमते हैं और उनके भड़काऊ भाषा के इस्तेमाल पर कोई रोक नहीं है। वास्तव में, वे विभिन्न स्तरों पर एक तरह के आधिकारिक संरक्षण का आनंद ले रहे हैं।
आज हमारे देश में नफरत, कट्टरता, असहिष्णुता और झूठ बढ़ रहा है। अगर हम इसे अभी नहीं रोकते हैं तो यह हमारे समाज को ऐसा नुकसान पहुंचाएगा जिसकी भरपाई आसान नहीं होगी। हम इसे जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते और न ही देना चाहिए। झूठे राष्ट्रवाद की वेदी पर शांति और बहुलतावाद की बलि दी जा रही है और हम एक समाज के रूप में चुपचाप खड़े होकर देखते नहीं रह सकते। आइए हम नफरत की सुनामी पर काबू पाएं।