नक्षत्रों में जैसे सूर्य का स्थान है वैसे ही राजाओं में जयचंद का स्थान है: आशुतोष राना | As Sun is in the constellations, Jaichand has same place among kings | Patrika News h3>
जयचंद को विभीषण की तरह गद्दार के तौर पर देखा जाता है। आप क्या सोचते हैं?
जयचंद के बारे में तो पृथ्वीराज रासो में भी लिखा हुआ है। पृथ्वीराज रासो में चंदबरदाई ये कहते हैं कि ब्रह्मांड में नक्षत्रों में जैसे सूर्य का स्थान है वैसे ही राजाओं में जयचंद का स्थान है। जयचंद उन राजाओं में से थे जिन्हें विद्या वाचस्पति की उपाधि प्राप्त थी। जयचंद ने राजसूय यज्ञ किया हुआ था। कन्नौज के किले में जाइए तो जयचंद की प्रशस्ति में, व्यक्तित्व, स्वभाव और सरलता के बारे में कई चीजें जानने को मिलती हैं और लगता है कि जैसा हम सोचते हैं, जयचंद तो वैसा है ही नहीं।
मोहम्मद गौरी की मृत्यु के पहले पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हो चुकी थी, बावजूद इसके फिल्म लगभग चंदबरदाई को कॉपी कर रही है? पूरे इतिहास को आप कैसे देखते हैं।
मुझे लगता है कि डॉक्टर चंद प्रकाश एक बड़े इतिहासविद हैं, बड़े स्कॉलर हैं। कई चीजें होती हैं जो जनश्रुतियों के माध्यम से हम-आप तक पहुंचती हैं और वो पंजीबद्ध हो जाती हैं और लिख ली जाती हैं। बहुत सारी चीजें जो होती हैं वो हमें साहित्यकारों के माध्यम से चाहे वो राजदरबार में हों या रणभूमि में हों उनकी दृष्टि से या उनके हवाले से मिलती हैं। वहीं चीजें कभी जनश्रुतियों में हो जाती हैं और वही चीजें कभी- कभी इतिहास के दस्तावेजों में स्थान प्राप्त कर लेती हैं।
राम के घर में आशुतोष आते हैं और रावण के किरदार से शुरुआत करते हैं अपनी कला का, आखिर ऐसा क्यों ?
हमारा जो गाडरवारा नगर है वो बड़ा ही सांस्कृतिक नगर है, बड़ा संपन्न और सक्रिय। जितनी परिष्कृत, शानदार और अद्भुत रामलीला वहां लिखी हुई है, वैसा संवाद वैसा प्रस्तुतीकरण मुझे आज तक देखने के लिए नहीं मिला। रावण का जो किरदार है वो इसलिए भी मुझे हमेशा से अच्छा लगता रहा है क्योंकि मुझे सपाट किरदार कभी भी प्रीतिकर नहीं लगे हैं।
आपकी किताब रामराज्य में क्या इसलिए रावण के प्रति भाव थोड़ा संयमित रहा?
नहीं…संयमित इसलिए नहीं रहा। मैं इस चीज का अखंड पक्षधर हूं कि परमात्मा के बारे में हम और आपसे ये कहा जाता है कि ईश्वर का सानिध्य अगर कुरूप व्यक्ति को भी मिल जाए तो वे रूपवान बना देते हैं। तो फिर मेरे लिए विचार का प्रश्न ये था कि परम ब्रह्म परमात्मा श्रीराम के संपर्क में आने वाला रावण, तो उसका रूपांतरण भी निश्चित रूप से हुआ होगा।
आज जो भौतिकवाद बढ़ा हुआ है.. बाजारवाद बढ़ा हुआ है ऐसे में रामराज्य की कल्पना को कैसे देखते हैं?
हम परमात्मा श्रीराम को तो मानते हैं पर राम की नहीं मानते। हम श्रीकृष्ण को तो मानते हैं पर श्रीकृष्ण की नहीं मानते। हम पिता को तो मानते हैं लेकिन पिता की नहीं मानते हैं और रामराज्य की जो परिकल्पना है, वह ‘को’ नहीं, ‘की’ की बात करती है।
आप दार्शनिक और धार्मिक व्यक्तित्व,फिल्मों में जैसे किरदार निभाते हैं वे बिल्कुल अलग। कैसे बैलेंस करते हैं?
एक बहुत अच्छा शेर है.. हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी.. जिसको भी देखिए कई बार देखिए। मुझे लगता है कि अभिनय बाहर जगत की यात्रा नहीं, अंतर जगत की यात्रा है। सारी की सारी संभावनाएं, सारे के सारे किरदार आपके अंदर बीज रूप में मौजूद होते हैं।
बच्चे मुंबई में पैदा हुए… उन्हें कैसे गाडरवारा से जोड़कर रखेंगे?
आशुतोष राना का जन्म गाडरवारा में हुआ है तो उसकी जड़ें गाडरवारा में हैं… उसके बच्चों का जन्म हुआ मुंबई में तो उसके बच्चों की जड़ें गाडरवारा में नहीं बल्कि मुंबई में ही हैं तो आशुतोष ये अन्यथा प्रयास क्यों करें कि तुम मेरी जड़ों से जुड़ो। मैं और रेणुका बच्चों की जरुरतें पूरी करने के लिए मौजूद हैं लेकिन हम उनकी ख्वाहिशें पूरी नहीं करते। जरूरतें भिखारी की भी पूरी हो जाती है, ख्वाहिशें बादशाह की भी पूरी नहीं होती हैं।
राजनीति में आने के बारे में क्या कहेंगे?
भविष्य की योजनाएं नहीं बनाता, कल क्या होगा…मुझे भी नहीं मालूम। वैसे भी हम सभी राजनीति में हैं। लोकतंत्र की सबसे अच्छी बात ये होती है कि आपके और हमारे हाथ में मत अधिकार होता है। मत का मतलब होता है एक तो वोट और एक होता है ओपिनियन।
जयचंद को विभीषण की तरह गद्दार के तौर पर देखा जाता है। आप क्या सोचते हैं?
जयचंद के बारे में तो पृथ्वीराज रासो में भी लिखा हुआ है। पृथ्वीराज रासो में चंदबरदाई ये कहते हैं कि ब्रह्मांड में नक्षत्रों में जैसे सूर्य का स्थान है वैसे ही राजाओं में जयचंद का स्थान है। जयचंद उन राजाओं में से थे जिन्हें विद्या वाचस्पति की उपाधि प्राप्त थी। जयचंद ने राजसूय यज्ञ किया हुआ था। कन्नौज के किले में जाइए तो जयचंद की प्रशस्ति में, व्यक्तित्व, स्वभाव और सरलता के बारे में कई चीजें जानने को मिलती हैं और लगता है कि जैसा हम सोचते हैं, जयचंद तो वैसा है ही नहीं।
मोहम्मद गौरी की मृत्यु के पहले पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हो चुकी थी, बावजूद इसके फिल्म लगभग चंदबरदाई को कॉपी कर रही है? पूरे इतिहास को आप कैसे देखते हैं।
मुझे लगता है कि डॉक्टर चंद प्रकाश एक बड़े इतिहासविद हैं, बड़े स्कॉलर हैं। कई चीजें होती हैं जो जनश्रुतियों के माध्यम से हम-आप तक पहुंचती हैं और वो पंजीबद्ध हो जाती हैं और लिख ली जाती हैं। बहुत सारी चीजें जो होती हैं वो हमें साहित्यकारों के माध्यम से चाहे वो राजदरबार में हों या रणभूमि में हों उनकी दृष्टि से या उनके हवाले से मिलती हैं। वहीं चीजें कभी जनश्रुतियों में हो जाती हैं और वही चीजें कभी- कभी इतिहास के दस्तावेजों में स्थान प्राप्त कर लेती हैं।
राम के घर में आशुतोष आते हैं और रावण के किरदार से शुरुआत करते हैं अपनी कला का, आखिर ऐसा क्यों ?
हमारा जो गाडरवारा नगर है वो बड़ा ही सांस्कृतिक नगर है, बड़ा संपन्न और सक्रिय। जितनी परिष्कृत, शानदार और अद्भुत रामलीला वहां लिखी हुई है, वैसा संवाद वैसा प्रस्तुतीकरण मुझे आज तक देखने के लिए नहीं मिला। रावण का जो किरदार है वो इसलिए भी मुझे हमेशा से अच्छा लगता रहा है क्योंकि मुझे सपाट किरदार कभी भी प्रीतिकर नहीं लगे हैं।
आपकी किताब रामराज्य में क्या इसलिए रावण के प्रति भाव थोड़ा संयमित रहा?
नहीं…संयमित इसलिए नहीं रहा। मैं इस चीज का अखंड पक्षधर हूं कि परमात्मा के बारे में हम और आपसे ये कहा जाता है कि ईश्वर का सानिध्य अगर कुरूप व्यक्ति को भी मिल जाए तो वे रूपवान बना देते हैं। तो फिर मेरे लिए विचार का प्रश्न ये था कि परम ब्रह्म परमात्मा श्रीराम के संपर्क में आने वाला रावण, तो उसका रूपांतरण भी निश्चित रूप से हुआ होगा।
आज जो भौतिकवाद बढ़ा हुआ है.. बाजारवाद बढ़ा हुआ है ऐसे में रामराज्य की कल्पना को कैसे देखते हैं?
हम परमात्मा श्रीराम को तो मानते हैं पर राम की नहीं मानते। हम श्रीकृष्ण को तो मानते हैं पर श्रीकृष्ण की नहीं मानते। हम पिता को तो मानते हैं लेकिन पिता की नहीं मानते हैं और रामराज्य की जो परिकल्पना है, वह ‘को’ नहीं, ‘की’ की बात करती है।
आप दार्शनिक और धार्मिक व्यक्तित्व,फिल्मों में जैसे किरदार निभाते हैं वे बिल्कुल अलग। कैसे बैलेंस करते हैं?
एक बहुत अच्छा शेर है.. हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी.. जिसको भी देखिए कई बार देखिए। मुझे लगता है कि अभिनय बाहर जगत की यात्रा नहीं, अंतर जगत की यात्रा है। सारी की सारी संभावनाएं, सारे के सारे किरदार आपके अंदर बीज रूप में मौजूद होते हैं।
बच्चे मुंबई में पैदा हुए… उन्हें कैसे गाडरवारा से जोड़कर रखेंगे?
आशुतोष राना का जन्म गाडरवारा में हुआ है तो उसकी जड़ें गाडरवारा में हैं… उसके बच्चों का जन्म हुआ मुंबई में तो उसके बच्चों की जड़ें गाडरवारा में नहीं बल्कि मुंबई में ही हैं तो आशुतोष ये अन्यथा प्रयास क्यों करें कि तुम मेरी जड़ों से जुड़ो। मैं और रेणुका बच्चों की जरुरतें पूरी करने के लिए मौजूद हैं लेकिन हम उनकी ख्वाहिशें पूरी नहीं करते। जरूरतें भिखारी की भी पूरी हो जाती है, ख्वाहिशें बादशाह की भी पूरी नहीं होती हैं।
राजनीति में आने के बारे में क्या कहेंगे?
भविष्य की योजनाएं नहीं बनाता, कल क्या होगा…मुझे भी नहीं मालूम। वैसे भी हम सभी राजनीति में हैं। लोकतंत्र की सबसे अच्छी बात ये होती है कि आपके और हमारे हाथ में मत अधिकार होता है। मत का मतलब होता है एक तो वोट और एक होता है ओपिनियन।