नई शहर सरकार को तोड़ो, बनाओ, तोड़ो की संस्कृति छोड़ करना होगा विकास | Indore’s new city government will have to focus on development | Patrika News h3>
डिवाइडर नगर निगम शहर में हर साल स्वच्छता सर्वे के पहले डिवाइडर्स की रंगाई पुताई के नाम पर लगभग 1 करोड़ रुपए खर्चा करती है। इसमें डिवाइडर्स की टूट-फूट उन्हें दोबारा बनाने सहित डिवाइडर्स की रंगाई पुताई भी शामिल है। लेकिन, शहर में नया खेल शुरू हो गया है। जहां जरूरत नहीं, वहां भी ऊंचाई वाले डिवाइडर्स बनाए जा रहे हैं, जिसके कारण इनमें लगाए गए हजारों रुपए कीमत के पौधे जो पुराने डिवाइडर्स में लगे थे वह मिट्टी में दबकर ही खत्म हो जाते हैं, उस पर नए सीरे से फिर से पौधरोपण किया जाता है।
उदाहरण – वीआइपी रोड पर बन रहे नए डिवाइडर्स हैं, जिसमें पुराने पौधे खत्म ही कर दिए गए हैं। रसूख के बजाए जनता की सहुलियत डिवाइडर्स को बनाने में ट्रैफिक के दबाव से ज्यादा कई रसूखदारों की सहुलियत का ध्यान रखा जाता है। कई होटलों, पेट्रोल पंपों के आसपास डिवाइडर्स में कट लगा दिए जाते हैं, जिसके कारण कई बार सड़कों पर ही जाम की स्थिति बन जाती है।
उदाहरण : सयाजी चौराहे पर होटल के लिए सर्विस लाइन और मुख्य सड़क के डिवाइडर्स में तीन जगह पर कट लगा हुआ है, जिसके कारण चौराहे के आगे की ओर ही जाम लगने लग जाता है।
सड़कों की खुदाई शहर की 70 फीसदी कॉलोनियों और बस्तियों की सड़कें बीते एक साल में खोदी गई हैं। जबकि, यहां बमुश्किल दो या तीन साल पहले ही सड़क बनाई गई थी। यहां की सड़कें ड्रेनेज लाइन डालने, पानी की लाइन डालने के लिए खोदी गई थी। कई जगह तो इन्हें मिट्टी डालकर वैसे ही बंद कर दिया गया और उस पर पेंचवर्क भी नहीं किया गया। बरसात में ये सभी जगह जनता के लिए परेशानी का सबब बन रही हैं।
उदाहरण-़ 1: बर्फानीधाम पानी की टंकी के पीछे स्थित कृष्णबाग कॉलोनी में देखने को मिलता है। यहां लगभग तीन साल पहले निगम ने ड्रेनेज लाइन डाली थी। इसके लिए यहां पहले बनी सड़क को खोदा गया था। ड्रेनेज लाइन डालने के सालभर तक जमीन बैठने के नाम पर सड़क नहीं बनी थी। सड़क बनने के दो साल बाद एक बार फिर उसे दो महीने पहले खोद दिया गया। कारण बताया गया कि जो ड्रेनेज लाइन पहले डाली गई थी, वह छोटी थी, इसलिए बड़ी लाइन डाली जा रही है। खुदाई के बाद ये सड़क वैसे ही छोड़ दी गई। अब यहां रहने वालों को अपने घर तक पहुंचने में कीचड़ और गड्ढों से होकर गुजरना पड़ रहा है।
उदाहरण- 2: संस्कृत कॉलेज से मल्हाराश्रम तक की सड़क को बीते 12 सालों में तकरीबन 11 बार पानी की लाइन, गैस पाइप लाइन, ड्रेनेज लाइन, सीवरेज, ब्राडबैंड लाइन के नाम पर बार-बार खोद दी जाती है।
चौराहों की रोटरी शहर में कई जगह निगम ने कुछ साल पहले ही रोटरी बनाई थी, इनके कारण यातायात को सुगम होने की बात कही गई थी, लेकिन अब इन रोटरियों के कारण ही यातायात में परेशानी आ रही है। इसके चलते निगम अब इन्हें या तो तोड़ रहा है या नए सीरे से बना रहा है। लेकिन, इसमें ये नहीं देखा जा रहा है कि सड़क से गुजरने वाले ट्रैफिक को गुजरने में आसानी होगी या नहीं। बाद में इन्हीं रोटरियों को छोटी-बड़ी करने के नाम पर पैसा खर्चा किया जाता है।
प्लानिंग सेल टूटा, शुरू हुआ खेल नगर निगम में पहले प्लानिंग सेल था, जिसके मुखिया सिटी इंजीनियर हुआ करते थे। निगम के सीनियर इंजीनियर इसकी कमान संभालते थे। वे ही सभी विकास कार्यों की फाइलों को स्वीकृती भी देते थे। उस समय किसी भी तरह के निर्माण के दौरान वहां कि सभी जरूरतों को पूरा कर लिया गया है या नहीं, इसका भी ध्यान रखा जाता था। साथ ही ये भी देखा जाता था कि जो निर्माण किया गया है या जिसको तोड़ा जाना है, उसे कब बनाया गया था।
एक्सपर्ट कमेंट किसी भी स्थाई निर्माण को करते समय उससे जुड़ी या उसमें दबने वाली सभी जरूरतों की पहले से प्लानिंग की जानी चाहिए। यदि कोई सड़क बनाई जा रही है तो उसके नीचे से गुजरने वाली किसी भी काम को प्लानिंग के साथ करना होगा। साथ ही सड़क पर कहां पैदल लोगों के लिए कट होंगे, कहां गाडि़यों के निकलने की व्यवस्था है, इसकी भी पूरी प्लानिंग की जानी चाहिए। ये सब काम एक ही जगह से होना चाहिए, ताकि सारी व्यवस्थाएं हो सकें।
– अतुल सेठ, सिविल इंजीनियर
डिवाइडर नगर निगम शहर में हर साल स्वच्छता सर्वे के पहले डिवाइडर्स की रंगाई पुताई के नाम पर लगभग 1 करोड़ रुपए खर्चा करती है। इसमें डिवाइडर्स की टूट-फूट उन्हें दोबारा बनाने सहित डिवाइडर्स की रंगाई पुताई भी शामिल है। लेकिन, शहर में नया खेल शुरू हो गया है। जहां जरूरत नहीं, वहां भी ऊंचाई वाले डिवाइडर्स बनाए जा रहे हैं, जिसके कारण इनमें लगाए गए हजारों रुपए कीमत के पौधे जो पुराने डिवाइडर्स में लगे थे वह मिट्टी में दबकर ही खत्म हो जाते हैं, उस पर नए सीरे से फिर से पौधरोपण किया जाता है।
उदाहरण – वीआइपी रोड पर बन रहे नए डिवाइडर्स हैं, जिसमें पुराने पौधे खत्म ही कर दिए गए हैं। रसूख के बजाए जनता की सहुलियत डिवाइडर्स को बनाने में ट्रैफिक के दबाव से ज्यादा कई रसूखदारों की सहुलियत का ध्यान रखा जाता है। कई होटलों, पेट्रोल पंपों के आसपास डिवाइडर्स में कट लगा दिए जाते हैं, जिसके कारण कई बार सड़कों पर ही जाम की स्थिति बन जाती है।
उदाहरण : सयाजी चौराहे पर होटल के लिए सर्विस लाइन और मुख्य सड़क के डिवाइडर्स में तीन जगह पर कट लगा हुआ है, जिसके कारण चौराहे के आगे की ओर ही जाम लगने लग जाता है।
सड़कों की खुदाई शहर की 70 फीसदी कॉलोनियों और बस्तियों की सड़कें बीते एक साल में खोदी गई हैं। जबकि, यहां बमुश्किल दो या तीन साल पहले ही सड़क बनाई गई थी। यहां की सड़कें ड्रेनेज लाइन डालने, पानी की लाइन डालने के लिए खोदी गई थी। कई जगह तो इन्हें मिट्टी डालकर वैसे ही बंद कर दिया गया और उस पर पेंचवर्क भी नहीं किया गया। बरसात में ये सभी जगह जनता के लिए परेशानी का सबब बन रही हैं।
उदाहरण-़ 1: बर्फानीधाम पानी की टंकी के पीछे स्थित कृष्णबाग कॉलोनी में देखने को मिलता है। यहां लगभग तीन साल पहले निगम ने ड्रेनेज लाइन डाली थी। इसके लिए यहां पहले बनी सड़क को खोदा गया था। ड्रेनेज लाइन डालने के सालभर तक जमीन बैठने के नाम पर सड़क नहीं बनी थी। सड़क बनने के दो साल बाद एक बार फिर उसे दो महीने पहले खोद दिया गया। कारण बताया गया कि जो ड्रेनेज लाइन पहले डाली गई थी, वह छोटी थी, इसलिए बड़ी लाइन डाली जा रही है। खुदाई के बाद ये सड़क वैसे ही छोड़ दी गई। अब यहां रहने वालों को अपने घर तक पहुंचने में कीचड़ और गड्ढों से होकर गुजरना पड़ रहा है।
उदाहरण- 2: संस्कृत कॉलेज से मल्हाराश्रम तक की सड़क को बीते 12 सालों में तकरीबन 11 बार पानी की लाइन, गैस पाइप लाइन, ड्रेनेज लाइन, सीवरेज, ब्राडबैंड लाइन के नाम पर बार-बार खोद दी जाती है।
चौराहों की रोटरी शहर में कई जगह निगम ने कुछ साल पहले ही रोटरी बनाई थी, इनके कारण यातायात को सुगम होने की बात कही गई थी, लेकिन अब इन रोटरियों के कारण ही यातायात में परेशानी आ रही है। इसके चलते निगम अब इन्हें या तो तोड़ रहा है या नए सीरे से बना रहा है। लेकिन, इसमें ये नहीं देखा जा रहा है कि सड़क से गुजरने वाले ट्रैफिक को गुजरने में आसानी होगी या नहीं। बाद में इन्हीं रोटरियों को छोटी-बड़ी करने के नाम पर पैसा खर्चा किया जाता है।
प्लानिंग सेल टूटा, शुरू हुआ खेल नगर निगम में पहले प्लानिंग सेल था, जिसके मुखिया सिटी इंजीनियर हुआ करते थे। निगम के सीनियर इंजीनियर इसकी कमान संभालते थे। वे ही सभी विकास कार्यों की फाइलों को स्वीकृती भी देते थे। उस समय किसी भी तरह के निर्माण के दौरान वहां कि सभी जरूरतों को पूरा कर लिया गया है या नहीं, इसका भी ध्यान रखा जाता था। साथ ही ये भी देखा जाता था कि जो निर्माण किया गया है या जिसको तोड़ा जाना है, उसे कब बनाया गया था।
एक्सपर्ट कमेंट किसी भी स्थाई निर्माण को करते समय उससे जुड़ी या उसमें दबने वाली सभी जरूरतों की पहले से प्लानिंग की जानी चाहिए। यदि कोई सड़क बनाई जा रही है तो उसके नीचे से गुजरने वाली किसी भी काम को प्लानिंग के साथ करना होगा। साथ ही सड़क पर कहां पैदल लोगों के लिए कट होंगे, कहां गाडि़यों के निकलने की व्यवस्था है, इसकी भी पूरी प्लानिंग की जानी चाहिए। ये सब काम एक ही जगह से होना चाहिए, ताकि सारी व्यवस्थाएं हो सकें।
– अतुल सेठ, सिविल इंजीनियर