नंदितेश निलय का कॉलम: चैटजीपीटी ही सब सोच लेगा तो हमारे स्टूडेंट्स क्या करेंगे?

4
नंदितेश निलय का कॉलम:  चैटजीपीटी ही सब सोच लेगा तो हमारे स्टूडेंट्स क्या करेंगे?

नंदितेश निलय का कॉलम: चैटजीपीटी ही सब सोच लेगा तो हमारे स्टूडेंट्स क्या करेंगे?

  • Hindi News
  • Opinion
  • Nanditesh Nilay’s Column If ChatGPT Takes Care Of Everything, What Will Our Students Do?

1 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

नंदितेश निलय वक्ता, एथिक्स प्रशिक्षक एवं लेखक

मैं अपने लेख की शुरुआत उस चिंता से कर रहा हूं, जिसे आज यूनिवर्सिटी और कॉलेज में आम तौर पर महसूस किया जा सकता है। और शायद स्कूलों में भी। वह है, एआई और उसके द्वारा जनित कंटेंट की नैतिकता का प्रश्न और उसके साथ शिक्षण की चुनौतियां।

शिक्षक इस परेशानी से जूझ रहे हैं कि छात्र बहुत आसानी से अपने प्रोजेक्ट या कोई उत्तर एआई से मदद लेकर सबमिट कर सकते हैं। उसकी प्रामाणिकता की जांच और वह भी हर पड़ाव पर कैसे की जाए? उससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि छात्र अब सोचने की क्षमता से ही दूर होते जा रहे हैं।

अब कोई सोचना या थिंकिंग करना ही नहीं चाहता। इसकी जिम्मेदारी चैटजीपीटी को सौंप दी गई है। किसी भी शिक्षक के लिए यह संभव नहीं कि वह छात्रों द्वारा लिखित सामग्री की सत्यता की जांच करता रहे। आज हर कंटेंट संदेह के दायरे में है। यह कैसे पता चले कि छात्र कुछ सीख भी रहे हैं या नहीं? उनके इरादे में निष्पक्षता या पारदर्शिता कैसे लाई जाए?

एआई और नैतिकता के विषय पर हरारी भी अपनी चिंता व्यक्त करते हैं और एआई को एक ‘एलियन इंटेलिजेंस’ के रूप में देखते हैं। वे यह समझना चाहते हैं कि एलियन इंटेलिजेंस की भूमिका में एआई मानव बुद्धिमता की तो जगह नहीं ले रहा, लेकिन उसे एक नए तरीके से ढाल जरूर रहा है।

यह आने वाले समय में मनुष्य के सोचने की शक्ति पर ही ग्रहण लगा सकता है और उसकी रचनात्मकता पर भी। उनका मानना है कि साल 2035 तक एक सुपर इंटेलिजेंट एआई समाज के संप्रेषण की मौलिकता में भी परिवर्तन कर सकता है।

हमें नहीं भूलना चाहिए कि मानव सभ्यता की कहानी उस वानर के पेड़ से उतरने के बाद से शुरू होती है, जब वह चार पांव से दो पर आता है और पहली बार उसके दोनों हाथ मुक्त हो जाते हैं। वह जानता था कि सर्वाइव तभी कर सकता है, जब वह मस्तिष्क का इस्तेमाल कर सके। और उसने किया भी। लेकिन एआई ने मानो छात्रों के सोचने की शक्ति को ही क्षीण कर दिया है।

ऐसी परिस्थिति में प्राध्यापक क्या करे? वह छात्रों को कैसे प्रेरित करे? कैसे वह उनको वापस सोचने की दुनिया में लेकर आए? और निष्पक्षता का क्या? जब कुछ छात्रों के पास एआई का प्रीमियम सब्स्क्रिप्शन हो और कुछ के पास नहीं तो क्या होगा?

निम्न मध्यवर्ग के छात्र तो ऐसे ही कॉलेज की ग्रेडिंग से अछूते रह जाएंगे। और जिनके पास उस टेक्नोलॉजी का सब्स्क्रिप्शन होगा उसके पास कंटेंट भी होगा। क्या यह संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार सामाजिक विभेद को बढ़ाएगा नहीं?

कॉलेज के स्तर पर चैटजीपीटी या अन्य चैटबॉट को धड़ाधड़ प्रयोग में लाना खतरनाक होता जा रहा है। अगर प्रश्न पत्र का ड्राफ्ट बनाते समय कोई प्रोफेसर भी एआई की मदद ले रहा है और उसके पास एक स्टैंडर्ड एआई का उत्तर भी है तो मूल्यांकन के वक्त भी निष्पक्षता का प्रश्न खड़ा होगा।

डेटा की अपनी प्रकृति भी पूर्वाग्रहों को जन्म देती है और यह शिक्षक को उन पूर्वाग्रहों से बांधे रखेगी। ऐसे में जो छात्र एआई की मदद लेंगे, उनकी उत्तर-पुस्तिका की प्रामाणिकता की वह ‘थिन लाइन’ एक प्रोफेसर भला कैसे समझेगा? और जो निम्न मध्यवर्ग के छात्र बिना किसी चैटजीपीटी के उत्तर लिख रहे होंगे उनके प्रति न्याय के प्रश्न का भला क्या?

एक छात्र को यकीन होना चाहिए कि 90 मिनट की क्लास को एक शिक्षक किसी तकनीक की सहायता के बिना भी ले सकता है। क्या आज के माहौल में यह संभव है कि शिक्षक बिना किसी पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन के अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके? उस यकीन के साथ कि एक शिक्षक के पास ज्ञान का भंडार होता है और उसे अपने छात्रों को पढ़ाने के लिए तकनीकी निर्भरता की जरूरत नहीं है?

क्या एक शिक्षक अपने विचारों से लैस कक्षा में आना चाहता है? याद करें जब अल्बर्ट आइंस्टीन प्रिंसटन यूनिवर्सिटी पहुंचे तो उनसे पूछा गया कि उन्हें अपनी क्लास के लिए किन चीजों की आवश्यकता होगी। आइंस्टीन ने जवाब दिया, एक टेबल, पेंसिल, लिखने के लिए नोटपैड्स और एक डस्टबिन, जो उनके द्वारा रद्द किए गए कागजों को संभाल सके! (ये लेखक के अपने विचार हैं)

खबरें और भी हैं…

राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News