देसी तरीके से जीआई पाइप के सहारे नापा जाता है कोलांस का बाढ़ लेवल | Indigenously measure flood level of the Kolans with help of GI pipe | Patrika News h3>
बारिश के दौरान इसकी ड्यूटी रहती है कि वह इस पाइप पर नजर बनाए रखे। नदी का पानी जैसे ही तीन फीट से उपर पहुंचता है, वह फोन करके भदभदा डैम पर सूचना देता है। तीन फीट प्रवाह रहने पर एक गेट खोलने की तैयार की जाती है। रविवार को नदी 16 फीट तक के उच्चतर स्तर पर पहुंच गई थी।
कोलांस नगर निगम की सीमा से बाहर है, ऐसे में उसके रखरखाव को लेकर निगम अपने स्तर पर कुछ नहीं करता। यहां जिला पंचायत गाद निकालने जैसे काम करता है, लेकिन नदी का जलस्तर और प्रवाह देखने, नापने या इसी तरह के तकनीकी मामलों पर वह कोई काम नहीं करता। कोलांस महज 40 किमी ही बहती हैै, इसलिए ङ्क्षसचाई विभाग या जल संसाधन विभाग भी उससे कोई लेनदेन नहीं रखता।
यानि बड़ा तालाब जैसे विश्वप्रसिद्ध वेटलैंड से जुड़े होने के बावजूद कोलांस उपेक्षित है।
70 बड़े नाले मिलते हैं: गौरतलब है कि कोलांस नदी में 70 बड़े नाले मिलते हैं। इन्हें बड़ा तालाब के 361 वर्गकिमी कैचमेंट क्षेत्र की नसें कहा जाता है। पूरे कैचमेंट क्षेत्र का समेटकर ये कोलांस के माध्यम से बड़ा तालाब में मिलाते हैं। भोज वेटलैंड परियोजना खत्म होने पर दावा किया गया था कि कैचमेंट समेत नदी और इसके नालों को जिला पंचायत से संबंधित एजेंसियां संभालेंगी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।
नगर निगम ने बाढ़ स्तर जांचने का सिस्टम बनाया हुआ है। कोलांस निगम सीमा से बाहर है, इसलिए बाकी मामलों में संबंधित एजेंसियां ही कामकाज देखती है।
– केवीएस चौधरी, निगमायुक्त इधर,एनजीटी के आदेश के बावजूद कार्रवाई नहीं
वहीं एक अन्य मामले में दूसरी ओर पर्यावरण में सुधार के लिए एनजीटी द्वारा आदेश दिए गए लेकिन उनका पालन करने की बजाय सरकारी विभाग एक-दूसरे के पाले में गेंद फेंक रहे हैं। विभागों के बीच केवल पत्राचार चलता रहता है लेकिन धरातल पर कोई कार्रवाई नहीं होती है।
यही कारण है कि एनजीटी के आदेश के बावजूद न तो केरवा-कलियासोत क्षेत्र से अवैध कब्जे हट पाए और न बड़ा तालाब के किनारे से। शासकीय विभागों द्वारा एनजीटी में पेश किए गए जवाबों में इसकी स्पष्ट बानगी देखने को मिल रही है। हर बार तय तारीखों पर घुमा-फिराकर जवाब दे दिए जाते हैं और तारीख आगे बढ़ती रहती है।
बड़ा तालाब के 227 कब्जों के मामले में दिया यह जवाब
बड़ा तालाब के भदभदा वाले छोर पर अवैध कब्जों की शिकायत संबंधी आर्या श्रीवास्तव की याचिका पर नगर निगम ने यहां 227 अवैध अतिक्रमण चिह्नित किए थे। एनजीटी ने इन्हें हटाने का आदेश दिया था। लेकिन अब निगम ने जवाब दिया है कि यहां के रहवासियों को हाउस फॉर ऑल योजना के तहत बने मकानों में विस्थापित करने की पूरी तैयारी है लेकिन रहवासियों ने यह कहते हुए मना कर दिया कि यह जमीन वक्फ बोर्ड की है। इसके बाद निगम ने वक्फ बोर्ड और टीटी नगर एसडीएम को जमीन के स्वामित्व संबंधी मामले का निराकरण करने के लिए लिखा है। लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं आया न कोई कार्रवाई हुई।
बारिश के दौरान इसकी ड्यूटी रहती है कि वह इस पाइप पर नजर बनाए रखे। नदी का पानी जैसे ही तीन फीट से उपर पहुंचता है, वह फोन करके भदभदा डैम पर सूचना देता है। तीन फीट प्रवाह रहने पर एक गेट खोलने की तैयार की जाती है। रविवार को नदी 16 फीट तक के उच्चतर स्तर पर पहुंच गई थी।
कोलांस नगर निगम की सीमा से बाहर है, ऐसे में उसके रखरखाव को लेकर निगम अपने स्तर पर कुछ नहीं करता। यहां जिला पंचायत गाद निकालने जैसे काम करता है, लेकिन नदी का जलस्तर और प्रवाह देखने, नापने या इसी तरह के तकनीकी मामलों पर वह कोई काम नहीं करता। कोलांस महज 40 किमी ही बहती हैै, इसलिए ङ्क्षसचाई विभाग या जल संसाधन विभाग भी उससे कोई लेनदेन नहीं रखता।
यानि बड़ा तालाब जैसे विश्वप्रसिद्ध वेटलैंड से जुड़े होने के बावजूद कोलांस उपेक्षित है।
70 बड़े नाले मिलते हैं: गौरतलब है कि कोलांस नदी में 70 बड़े नाले मिलते हैं। इन्हें बड़ा तालाब के 361 वर्गकिमी कैचमेंट क्षेत्र की नसें कहा जाता है। पूरे कैचमेंट क्षेत्र का समेटकर ये कोलांस के माध्यम से बड़ा तालाब में मिलाते हैं। भोज वेटलैंड परियोजना खत्म होने पर दावा किया गया था कि कैचमेंट समेत नदी और इसके नालों को जिला पंचायत से संबंधित एजेंसियां संभालेंगी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।
नगर निगम ने बाढ़ स्तर जांचने का सिस्टम बनाया हुआ है। कोलांस निगम सीमा से बाहर है, इसलिए बाकी मामलों में संबंधित एजेंसियां ही कामकाज देखती है।
– केवीएस चौधरी, निगमायुक्त इधर,एनजीटी के आदेश के बावजूद कार्रवाई नहीं
वहीं एक अन्य मामले में दूसरी ओर पर्यावरण में सुधार के लिए एनजीटी द्वारा आदेश दिए गए लेकिन उनका पालन करने की बजाय सरकारी विभाग एक-दूसरे के पाले में गेंद फेंक रहे हैं। विभागों के बीच केवल पत्राचार चलता रहता है लेकिन धरातल पर कोई कार्रवाई नहीं होती है।
यही कारण है कि एनजीटी के आदेश के बावजूद न तो केरवा-कलियासोत क्षेत्र से अवैध कब्जे हट पाए और न बड़ा तालाब के किनारे से। शासकीय विभागों द्वारा एनजीटी में पेश किए गए जवाबों में इसकी स्पष्ट बानगी देखने को मिल रही है। हर बार तय तारीखों पर घुमा-फिराकर जवाब दे दिए जाते हैं और तारीख आगे बढ़ती रहती है।
बड़ा तालाब के 227 कब्जों के मामले में दिया यह जवाब
बड़ा तालाब के भदभदा वाले छोर पर अवैध कब्जों की शिकायत संबंधी आर्या श्रीवास्तव की याचिका पर नगर निगम ने यहां 227 अवैध अतिक्रमण चिह्नित किए थे। एनजीटी ने इन्हें हटाने का आदेश दिया था। लेकिन अब निगम ने जवाब दिया है कि यहां के रहवासियों को हाउस फॉर ऑल योजना के तहत बने मकानों में विस्थापित करने की पूरी तैयारी है लेकिन रहवासियों ने यह कहते हुए मना कर दिया कि यह जमीन वक्फ बोर्ड की है। इसके बाद निगम ने वक्फ बोर्ड और टीटी नगर एसडीएम को जमीन के स्वामित्व संबंधी मामले का निराकरण करने के लिए लिखा है। लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं आया न कोई कार्रवाई हुई।