देश के लिए जान देने को तैयार युवाओं को मिले ज्यादा मदद, संसद की स्टैंडिंग कमेटी ने दी रक्षा मंत्रालय को सलाह h3>
नई दिल्ली : संसद की रक्षा मामलों की स्टैंडिंग कमेटी (Standing Committee) ने रक्षा मंत्रालय से कहा है कि ऐसे युवाओं को ज्यादा मदद दी जाए जो देश सेवा के लिए फौज में भर्ती होने आते हैं लेकिन मिलिट्री ट्रेनिंग के दौरान डिसएबल हो जाते हैं। कमेटी ने कहा कि इसे मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाए। साथ ही कहा कि अगर मिलिट्री ट्रेनिंग के दौरान अकेडमी में विकलांग होने के बाद बाहर हो जाने वाले कैडेट्स को पर्याप्त मदद नहीं दी जाएगी तो युवा फौज में जाने में हतोत्साहित होंगे।
देश की रक्षा के लिए जान देने का जज्बा लेकर युवा फौज में ऑफिसर बनने पहुंचते हैं। चार साल की कड़ी मेहनत के बाद वह अकेडमी से निकलकर भारतीय सेना, नेवी या एयरफोर्स का हिस्सा बनते हैं। लेकिन ट्रेनिंग के दौरान अगर उन्हें गंभीर चोट लगी और डिसएबल हो गए तो सेना उन्हें बाहर कर देती है। संसद की रक्षा मामलों की स्टैंडिंग कमिटी ने इस बारे में रक्षा मंत्रालय से पूछा।
जिसके जवाब में कमिटी को बताया गया कि पिछले कुछ सालों में करीब 11-12 कैंडेट्स हर साल ट्रेनिंग के दौरान एक्सिडेंट या दूसरी वजहों से डिसएबल हुए हैं और जिसकी वजह से वे अकेडमी से बाहर हो जाते हैं। उन्हें मदद के लिए अलग अलग अलाउंस के तौर पर हर महीने करीब 30 हजार रुपये (100 फीसदी विकलांगता होने की स्थिति में) दिया जाता है। साथ ही मौत की स्थिति में आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड उन्हें इंश्योरेंस कवरेज देता है। रक्षा मंत्रालय की तरफ से कमिटी को बताया गया कि इंश्योरेंस कवरेज बढ़ाने के प्रस्ताव की मंत्रालय जांच कर रहा है।
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स्टैंडिंग कमिटी ने कहा कि हमारा मानना है कि ऐसे कैंडेट्स को पर्याप्त आर्थिक मदद नहीं देने और उनके पुनर्वास का इंतजाम न करने से न सिर्फ युवा फौज जॉइन करने में हतोत्साहित होंगे बल्कि फौज में पहले से ही खाली पदों की संख्या और बढ़ेगी। कमिटी ने कहा कि इस मसले को मानवीय दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। कमिटी ने सुझाव दिया कि पूर्व सैनिकों के लिए बनी हेल्थ स्कीम ईसीएचएस और कैंटीन स्टोर डिपार्टमेंट (सीएसडी) की सुविधा ऐसे कैडेट्स को दी जा सकती है। साथ ही कमिटी ने सुझाव दिया कि ऐसे कैडेट्स को मिलने वाली आर्थिक मदद की राशि को वक्त वक्त पर रिव्यू किया जाए और इसमें बढ़ती महंगाई का पूरा ध्यान रखा जाए। डिसएबिलिटी (विकलांगता) कितनी है उसे ध्यान में रखकर सरकार उन्हें सिविल में क्या जॉब दे सकती है इसके लिए भी पूरी कोशिश की जानी चाहिए।
सूत्रों के मुताबिक ऐसे कैंडेट्स की मदद के लिए भारतीय सशस्त्र सेनाओं (आर्मी, नेवी और एयरफोर्स) ने काफी वक्त पहले एक प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेजा है। लेकिन यह प्रस्ताव अभी रक्षा मंत्रालय के एक्ससर्विसमैन वेलफेयर डिपार्टमेंट और फाइनेंस डिपार्टमेंट के पास अटका है। 2015 में रक्षा मंत्री ने इस मामले पर एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी तब भी कमिटी ने दिव्यांग कैडेट्स को डिसएबिलिटी पेंशन और आर्थिक मदद की सिफारिश की थी। लेकिन तब इसे स्वीकार नहीं किया गया।
सूत्रों के मुताबिक जो प्रस्ताव अटका है उसमें कहा गया है कि आर्मी के पेंशन रेगुलेशन में कैडेट्स को भी शामिल किया जाए। साथ ही डिसएबिलिटी पेंशन और फैमिली पेंशन रेगुलेशन में भी बदलाव किया जाए। प्रस्ताव में कहा गया है कि उन्हें लेफ्टिनेंट की सैलरी के हिसाब से पेंशन दी जा सकती है। अभी भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट की सैलरी 56510 रुपए है। पेंशन इसकी आधी होती है। कैंडेड्स सेना में लेफ्टिनेंट के तौर पर ही कमिशन होते हैं।
देश की रक्षा के लिए जान देने का जज्बा लेकर युवा फौज में ऑफिसर बनने पहुंचते हैं। चार साल की कड़ी मेहनत के बाद वह अकेडमी से निकलकर भारतीय सेना, नेवी या एयरफोर्स का हिस्सा बनते हैं। लेकिन ट्रेनिंग के दौरान अगर उन्हें गंभीर चोट लगी और डिसएबल हो गए तो सेना उन्हें बाहर कर देती है। संसद की रक्षा मामलों की स्टैंडिंग कमिटी ने इस बारे में रक्षा मंत्रालय से पूछा।
जिसके जवाब में कमिटी को बताया गया कि पिछले कुछ सालों में करीब 11-12 कैंडेट्स हर साल ट्रेनिंग के दौरान एक्सिडेंट या दूसरी वजहों से डिसएबल हुए हैं और जिसकी वजह से वे अकेडमी से बाहर हो जाते हैं। उन्हें मदद के लिए अलग अलग अलाउंस के तौर पर हर महीने करीब 30 हजार रुपये (100 फीसदी विकलांगता होने की स्थिति में) दिया जाता है। साथ ही मौत की स्थिति में आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड उन्हें इंश्योरेंस कवरेज देता है। रक्षा मंत्रालय की तरफ से कमिटी को बताया गया कि इंश्योरेंस कवरेज बढ़ाने के प्रस्ताव की मंत्रालय जांच कर रहा है।
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स्टैंडिंग कमिटी ने कहा कि हमारा मानना है कि ऐसे कैंडेट्स को पर्याप्त आर्थिक मदद नहीं देने और उनके पुनर्वास का इंतजाम न करने से न सिर्फ युवा फौज जॉइन करने में हतोत्साहित होंगे बल्कि फौज में पहले से ही खाली पदों की संख्या और बढ़ेगी। कमिटी ने कहा कि इस मसले को मानवीय दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। कमिटी ने सुझाव दिया कि पूर्व सैनिकों के लिए बनी हेल्थ स्कीम ईसीएचएस और कैंटीन स्टोर डिपार्टमेंट (सीएसडी) की सुविधा ऐसे कैडेट्स को दी जा सकती है। साथ ही कमिटी ने सुझाव दिया कि ऐसे कैडेट्स को मिलने वाली आर्थिक मदद की राशि को वक्त वक्त पर रिव्यू किया जाए और इसमें बढ़ती महंगाई का पूरा ध्यान रखा जाए। डिसएबिलिटी (विकलांगता) कितनी है उसे ध्यान में रखकर सरकार उन्हें सिविल में क्या जॉब दे सकती है इसके लिए भी पूरी कोशिश की जानी चाहिए।
सूत्रों के मुताबिक ऐसे कैंडेट्स की मदद के लिए भारतीय सशस्त्र सेनाओं (आर्मी, नेवी और एयरफोर्स) ने काफी वक्त पहले एक प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेजा है। लेकिन यह प्रस्ताव अभी रक्षा मंत्रालय के एक्ससर्विसमैन वेलफेयर डिपार्टमेंट और फाइनेंस डिपार्टमेंट के पास अटका है। 2015 में रक्षा मंत्री ने इस मामले पर एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी तब भी कमिटी ने दिव्यांग कैडेट्स को डिसएबिलिटी पेंशन और आर्थिक मदद की सिफारिश की थी। लेकिन तब इसे स्वीकार नहीं किया गया।
सूत्रों के मुताबिक जो प्रस्ताव अटका है उसमें कहा गया है कि आर्मी के पेंशन रेगुलेशन में कैडेट्स को भी शामिल किया जाए। साथ ही डिसएबिलिटी पेंशन और फैमिली पेंशन रेगुलेशन में भी बदलाव किया जाए। प्रस्ताव में कहा गया है कि उन्हें लेफ्टिनेंट की सैलरी के हिसाब से पेंशन दी जा सकती है। अभी भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट की सैलरी 56510 रुपए है। पेंशन इसकी आधी होती है। कैंडेड्स सेना में लेफ्टिनेंट के तौर पर ही कमिशन होते हैं।