दूसरों को रेटिंग देने वाला क्रेडिट सुइस खुद कैसे पहुंचा डूबने के कगार पर
क्या है क्रेडिट सुइस संकट?
क्रेडिट सुइस संकट की शुरुआत उस वक्त हुई, जब उसकी एनुवल रिपोर्ट सामने आई। इस वार्षिक रिपोर्ट में इंटरनल ऑडिट के आधार पर मटेरियल वीकनेसिस की पहचान की गई । इतना ही नहीं पिछले साल क्रेडिट सुइस को भारी नुकसान हुआ। क्रेडिट सुइस को साल 2022 में 7.3 अरब स्विस फ्रैंक का घाटा हुआ। इस रिपोर्ट के आने के बाद बैंक के जमाकर्ताओं ने पैसा निकालना शुरू कर दिया। इसमें आग की तरह घी डालने का काम किया बैंक के सबसे बड़े निवेशक ने। बुधवार को बैंक के सबसे बड़े निवेशक सऊदी नेशनल बैंक (Saudi National Bank) ने कहा कि वो अब बैंक में अतिरिक्त लिक्विडिटी नहीं देंगे। सऊदी बैंक ने क्रेडिट सुइस में और निवेश करने से इंकार कर दिया। आपको बता दें कि क्रेडिट सुइस में सऊदी बैंक का 9.9 फीसदी का शेयर है। इस खबर के आने के बाद क्रेडिट सुईस के शेयर धराधर गिरने लगे। एक झटके में इसके शेयर 25 फीसदी तक गिर गए।
बैंक पर लगे गंभीर आरोप
क्रेडिट सुइस पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं। साल 2008 की बात करें तो ब्राजील में क्रेडिट सुईस के बैंकर्स को गिरफ्तार किया था। बैंक के कर्मचारी पर मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी का आरोप लगा। आरोप लगा कि अधिकारियों ने क्रेडिट सुईस के 13 कर्मचारियों के साथ मिलकर साल 2006 में ऑपरेशन स्विटजरलैंड शुरू किया था। जिसके खुलासे के बाद बैंक के ऑफिस पर छापा मारा गया। इतना ही नहीं बैंक पर आरोप लगे कि उन्होंने अपराधियों, भ्रष्ट नेताओं और विवादित लोगों को सेफ हैवेन की सुविधा उपलब्ध करवाई। स्विजरलैंडर के स्विस बैंक की तरह इस बैंक पर भी कालेधन का आरोप लगा।
कितना बड़ा संकट ?
क्रेडिट सुइस का ये संकट कितना बड़ा है, इसका अंदाजा आप इसके बॉन्ड प्राइसेज को देखकर लगा सकते हैं कि मार्च में अब तक बैंक के बॉन्ड प्राइसेज में 38 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। क्रेडिट सुइस बैंक का साल 2027 में मच्योर होने वाले बेल-इन-बॉन्ड्स बुधवार को 1 डॉलर पर 55 सेंट्स की बोली लगी। इसी की बोली एक दिन पहले 72 सेंट्स थी। जबकि मार्च के शुरुआत में यह 90 सेंट्स पर था। ये गिरावट दिखाती है कि अगर बैंक दिवालिया होता है तो इन बॉन्ड्स की वैल्यू ना के बराबर होगी।
भारत के लिए कितना खतरनाक
भारत में इस बैंक का कुल एसेस्ट 20,700 करोड़ रुपये का है। भारत की बैंकिंग सिस्टम में क्रेडिट सुइस की ये हिस्सेदारी मात्र 0.1 फीसदी की है। अगर सिलिकॉन वैली बैंक की तरह क्रेडिट सुइस बैंक भी दिवालिया हो जाता है तो भारत को इससे सीधा फर्क नहीं पड़ेगा। क्रेडिट सुइस क्राइसिस का भारत में कोई डायरेक्टर असर नहीं दिख रहा है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि क्रेडिट सुइस भारत की बैकिंग सिस्टम में सिर्फ 0.1 फीसदी की हिस्सेदारी ही रखती है, जो बेहद मामूली है। जेफरीज ने अपनी स्टडी में कहा है कि क्रेडिट सुइस की डेरिवेटिव मार्केट में मौजूदगी है। आपको बता दें कि डेरिवेटिव मार्केट में विदेशी बैंक एक्टिव रहते हैं। डेरिवेटिव मार्केट में 96 फीसदी के लोन की टाइमलाइन 2 साल की है। मुंबई में क्रेडिट सुइस का सिर्फ एक ब्रांच है, जिसमें 70 फीसदी संपत्ति लघु अवधि यानी जी-सेक में है। बैंक का डिपॉजिट बेस 28 अरब रुपये से कम है। यानी भारत को बहुत ज्यादा खतरा नहीं है। अपनी स्टडी में जेफरीज के एक्सपर्ट्स प्रखर शर्मा और विनायक अग्रवाल ने कहा कि रिजर्व बैंर ऑफ इंडिया क्रेडिट सुइस से जुड़े लिक्विडिटी के इश्यू और काउंटरपार्टी रिस्क पर कड़ी नजर रखेगा। केंद्रीय बैंक को जरूरत लगेगी तो वो हस्तक्षेप भी करेगा।