दीपावली में घरों को रोशन करने के लिए दिये बनाने में जुटे कुंभकार

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दीपावली में घरों को रोशन करने के लिए दिये बनाने में जुटे कुंभकार

दीपावली में घरों को रोशन करने के लिए दिये बनाने में जुटे कुंभकार


बाजार में रेडिमेड दिये आ जाने से पारंपरिक कुंभकारों के व्यवसाय पर हो रहा असर बनाने में जुटे कुंभकार।

गढ़पुरा, निज संवाददाता। मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा भारत में सबसे पुरानी शिल्प कला में से एक…

दीपावली में घरों को रोशन करने के लिए दिये बनाने में जुटे कुंभकार

Newswrapहिन्दुस्तान टीम,बेगुसरायWed, 08 Nov 2023 08:00 PM

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गढ़पुरा, निज संवाददाता। मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा भारत में सबसे पुरानी शिल्प कला में से एक है। इस बदलते दौर में मानव की हाथ की जगह मशीन ने ले लिया है और इलेक्ट्रॉनिक चीजों का क्रेज बढ़ गया है, लेकिन इस पौराणिक कला को को जीवित रखते हुए आज भी क्षेत्र में कई कुंभकार अपनी पुश्तैनी काम से जुड़े हुए हैं। मेहनत के अनुसार कमाई नहीं होने के बावजूद पारिवारिक काम को जारी रखते हुए। कई कुंभकार मिट्टी के बर्तन तैयार कर रहे हैं। फिलहाल दीपावली पर्व को लेकर गांव से लेकर शहर तक को रौशन करने के लिए कुम्हारों के चाक घूमने लगे हैं। उन्हें उम्मीद है कि दीपावली में दिए की बिक्री और कर दूसरों के घरों को रौशन करने के साथ अपने घर में भी खुशियां आएगी। प्रखंड के कुम्हारसों गांव में कुम्हार एवं उनके परिवार दिये तैयार करने के काम में जोर-जोर से लगे हुए है। सभी आकर के छोटे, मध्य और बड़े दिये तैयार किया जा रहे हैं। एक से लेकर 10 रुपये तक के दीये की बिक्री होती है। वही ऑर्डर के अनुसार आकर्षक दिये भी बनाए जा रहे हैं। छठ पर्व पर इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के बर्तनों को भी तैयार किया जा रहा है। कुम्हारों का कहना है कि दीपावली में दिये, बर्तन और खिलौनों से पूरे वर्ष का खर्चा चलाना पड़ता है। हालांकि इसके अलावा भी कुछ पर्व में मिट्टी के बर्तन और गर्मियों में घड़े और सुराही बिक्री होती है। अजीविका को चलाने के लिए काफी नहीं है। कुम्हारसों के अरविंद पंडित ने बताया कि हमारा पूरा परिवार पीढ़ियों से यह काम कर रहा है, हालांकि इसमें इतनी कमाई अब नहीं होती है कि परिवार की सारी ज़रूरतों को पूरा किया जा सके। 10 साल पहले हर गांव में दीपावली में मिट्टी के दीपक का इस्तेमाल होता था। अब बाजारों में रेडिमेड दिये आ जाने से यह पारंपरिक धंधा अब प्रतिस्पर्धात्मक हो गई है। बाजार में जो दिए मिल रहे हैं वह दो से 10 रुपये में बेहद आकर्षक और लुभावना होने से ग्राहक विशेष कर उसी दिये को खरीदते हैं। फिलहाल लोग आगामी धनतेरस और दीपावली को लेकर पूरी तैयारी में जुटे हुए हैं। वहीं बाजारों में दीप, कलश आदि की बिक्री शुरू हो चुकी है।

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