दिल्ली आध्यात्मिक विश्वविद्यालय केस: हाई कोर्ट में केजरीवाल सरकार का जवाब, कोर्ट निर्देश दे तो विवादित आश्रम को कब्जे में लेने को तैयार

123
दिल्ली आध्यात्मिक विश्वविद्यालय केस: हाई कोर्ट में केजरीवाल सरकार का जवाब, कोर्ट निर्देश दे तो विवादित आश्रम को कब्जे में लेने को तैयार

दिल्ली आध्यात्मिक विश्वविद्यालय केस: हाई कोर्ट में केजरीवाल सरकार का जवाब, कोर्ट निर्देश दे तो विवादित आश्रम को कब्जे में लेने को तैयार

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने रोहिणी स्थित विवादित आश्रम को टेकओवर करने के बारे में अपनी राय सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट के सामने रखी। संबंधित विभाग ने कहा कि वह आध्यात्मिक विश्वविद्यालय को अपने कब्जे में लेने के लिए तैयार है, अगर इसके लिए कोर्ट उसे निर्देश देता है तो। इस आश्रम पर महिलाओं और नाबालिगों के साथ ‘अमानवीय बर्ताव’ और उन्हें ‘पशु की तरह’ रखे जाने का आरोप है।

दिल्ली सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि संबंधित संस्थान को कब्जे में लेने का फैसला वह खुद नहीं ले सकता, क्योंकि ऐसा करने की उसके पास शक्ति नहीं है। उन्होंने कोर्ट से कहा कि बेहतर होगा अगर हाई कोर्ट जिला स्तर पर जिम्मेदार अधिकारियों की एक मॉनिटरिंग कमिटी बनाने का निर्देश दे, जो हर महीने वहां जाकर संस्थान के अंदर वास्तविक स्थिति को जांच-परख सके। इस पर एक्टिंग चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस नवीन चावला की बेंच ने सरकारी वकील से कहा, ‘जब आप यह कहते हैं कि वहां रहने वालों में नियमित जागरुकता लाने की जरूरत है, तब आपको सामाजिक कार्यकर्ता, काउंसलर, मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल, डॉक्टर- सभी की जरूरत पड़ेगी।’ जवाब में सरकारी वकील ने कहा कि काउंसलिंग सेशन महज एक सुझाव है, जिसके लिए एक पूरा तंत्र विकसित किया जा सकता है। मकसद है वहां रहने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना। खासतौर, पर वहां रहने वाली महिलाओं और बच्चों की।

सरकारी वकील के मुताबिक, दूसरी सबसे ज्यादा जरूरी चीज है कि डॉक्टरों की एक टीम को संस्थान के अंदर जाने का अधिकार मिले, जिसमें मेल के साथ लेडी डॉक्टर हों, जो जान सकें कि संस्थान के अंदर क्या हो रहा है। इस सुझाव पर बेंच ने भी अपनी सहमति जताई और कहा कि इससे उन लोगों की मानसिक स्थिति का पता लगाया जा सकता है। सरकारी वकील ने कहा कि पुलिस के लिए इस तरह के धार्मिक संस्थानों के अंदर जाना मुश्किल है क्योंकि इससे कई तरह के सामाजिक, भावनात्मक मुद्दे खड़े हो सकते हैं। बेंच ने कहा कि टीम को पुलिस के सपोर्ट की जरूरत होगी। वकील ने जवाब दिया कि वह टीम में हिस्सा बन सकती है, लेकिन अकेले ऐसा नहीं कर सकती।

हाई कोर्ट का कहना था कि संस्थान को भी नोडल ऑफिसर या ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति करनी चाहिए जो जिम्मेदारी ले सके। ऐसा न हो कि कोई कहे कि आप ऐसा कर रहे हैं और इसके लिए किसी की जिम्मेदारी तय न की जा सके। विवादित संस्थान का दौरा करने वाली टीम में शामिल वकील नंदिता राव ने दूसरी चीजें कोर्ट के सामने रखीं। उन्होंने कहा कि ऐसे धार्मिक संस्थान सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत रजिस्टर होते हैं। इसीलिए उन्हें अपने खातों का ब्यौरा पेश करने के लिए कहा जाना चाहिए और उनकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। राव ने बताया कि यहां 120 लोग एक साथ रहते हैं। यहां कुछ वृद्ध औरतें हैं, जो आध्यात्मिक गुरु की भूमिका में हैं, पर उनका कोई डेजिग्नेशन नहीं है। जब हमने उनसे पूछा कि अपना खर्च कहां से निकालती हैं, तो उन्होंने जवाब दिया कि यहां हर लड़की के नाम से एक खाता है।

राव ने कहा, ‘मुझे लगता है कि जिन भी पैरंट्स ने अपनी बच्चियों को यहां छोड़ा है, वे इस खाते में पैसे भेजते हैं और संस्थान को जो दान-दक्षिणा में पैसे मिलते हैं वे इन लड़कियों के खाते में डायवर्ट कर दिए जाते होंगे, जहां से ये लोग पैसा निकालकर साग-सब्जी आदि खरीदते होंगे। इस संस्थान में पद अनुक्रम है, लेकिन जबावदेही नहीं है।’

दिल्ली की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News

Source link