दिनेश शर्मा से आखिर क्या खता हुई कि बीजेपी ने नहीं किया योगी कैबिनेट 2.0 में शामिल? h3>
Yogi Adityanath Shapath Grahan: योगी कैबिनेट 2.0 (Yogi Cabinet 2.0) में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। इसमें योगी सरकार के पहले कार्यकाल में डिप्टी सीएम रहे दिनेश शर्मा (Dinesh Sharma) की छुट्टी हो गई है। उनकी जगह ब्रजेश पाठक (Brijesh Pathak) ने ली है। वहीं, केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) ने अपनी जगह कायम रखी है। इस बड़े फेरबदल के बाद सवाल उठने लगे हैं कि आखिर दिनेश शर्मा से ऐसी क्या गलती हुई कि उनकी कुर्सी चली गई? वहीं, ब्रजेश पाठक ने ऐसा क्या कमाल किया कि बाजी मार ले गए?
सब कुछ परफॉर्मेंस और राजनीतिक गुणा गणित से जुड़ा है। इसके लिए पिछले चुनावों को याद करना होगा। तब 15 साल बाद यूपी में सत्ता में बीजेपी की वापसी हुई थी। योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाया गया था। हालांकि, जातिगत समीकरणों का संतुलन साधने के लिए उनके साथ दो डिप्टी सीएम को भी गद्दी पर बैठाया गया था। इनमें एक थे केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे थे दिनेश शर्मा। केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी का बड़ा ओबीसी चेहरा माने जाते हैं। वहीं, लखनऊ के मेयर रहे दिनेश शर्मा को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर 2017 में योगी सरकार में जगह मिली थी।
जहां तक ब्रजेश पाठक का सवाल है तो वह 2017 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी में शामिल हुए थे। इसके पहले वह बहुजन समाज पार्टी (BSP) में थे। योगी सरकार बनने के बाद पाठक के कंधों पर न्याय और कानून का विभाग सौंपा गया था। इस दौरान लगातार उनकी छवि ब्राह्मण नेता के तौर पर मजबूत होती गई। बीजेपी के आलाकमान को उनके काम करने का तरीका भी पसंद आया। योगी सरकार की सत्ता में वापसी होने पर उन्हें दिनेश शर्मा की जगह डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया।
दूसरी तरफ दिनेश शर्मा डिप्टी सीएम के तौर पर अपनी वैसी आक्रामक छवि नहीं बना पाए जिसकी उनसे अपेक्षा थी। चुनावी कैंपेन के दौरान योगी सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप लगे। विपक्ष ने उन पर तीखा हमला किया। यह अलग बात है कि दिनेश शर्मा इसका जवाब देने में नाकाम साबित हुए। बीजेपी को दिनेश शर्मा के बजाय ब्रजेश पाठक में वो खूबियां दिखाई दीं। वह ब्राह्मणों के मुद्दों पर ज्यादा आक्रामक रहे हैं।
पिछले पांच साल में ऐसे कई मौके आए जब दिनेश शर्मा सुस्त दिखाई दिए। वहीं, ब्रजेश पाठक के तेवर तीखे नजर आए। हाल में लखीमपुर खीरी की घटना को ही लेते हैं। इसमें गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी और उनके बेटे आशीष मिश्रा विपक्ष के निशाने पर थे। किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में यहां हुए बवाल में आठ लोगों की मौत हो गई थी। इनमें चार किसानों के साथ अन्य चार बीजेपी कार्यकर्ता थे। ये ब्राह्मण थे। माहौल देख तब सब ने चुप्पी साध रखी थी। हालांकि, ब्रजेश मिश्रा इन कार्यकर्ताओं के घर पहुंचे थे। उनके परिजनों को सांत्वना दी थी कि उन्हें न्याय मिलेगा।
सीएम योगी आदित्यनाथ पर तब भी हमले हुए थे जब माफिया विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ था। तब माहौल बनाने की कोशिश की गई थी कि योगी आदित्यनाथ ब्राह्मण विरोधी हैं। उस वक्त ब्रजेश पाठक योगी के समर्थन में खुलकर खड़े हुए थे।
उत्तर प्रदेश में सात चरणों में 403 विधानसभा क्षेत्रों का चुनाव परिणाम 10 मार्च को घोषित हुआ था। इसमें भारतीय जनता पार्टी ने 255 और सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने 12 व निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) ने छह सीटों पर जीत हासिल की थी। पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद नई सरकार ने शुक्रवार शाम शपथ ग्रहण की। इसके 37 साल पहले 1985 में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दोबारा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। तब तिवारी ने लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। योगी आदित्यनाथ के खाते में 37 साल बाद यह रिकॉर्ड दर्ज हुआ है।
दिनेश शर्मा और ब्रजेश पाठक
अगला लेखBrajesh Pathak: यूपी सरकार में डेप्युटी सीएम बनाए गए ब्रजेश पाठक का हरदोई से है गहरा नाता, पिता हैं वकील
जहां तक ब्रजेश पाठक का सवाल है तो वह 2017 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी में शामिल हुए थे। इसके पहले वह बहुजन समाज पार्टी (BSP) में थे। योगी सरकार बनने के बाद पाठक के कंधों पर न्याय और कानून का विभाग सौंपा गया था। इस दौरान लगातार उनकी छवि ब्राह्मण नेता के तौर पर मजबूत होती गई। बीजेपी के आलाकमान को उनके काम करने का तरीका भी पसंद आया। योगी सरकार की सत्ता में वापसी होने पर उन्हें दिनेश शर्मा की जगह डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया।
दूसरी तरफ दिनेश शर्मा डिप्टी सीएम के तौर पर अपनी वैसी आक्रामक छवि नहीं बना पाए जिसकी उनसे अपेक्षा थी। चुनावी कैंपेन के दौरान योगी सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप लगे। विपक्ष ने उन पर तीखा हमला किया। यह अलग बात है कि दिनेश शर्मा इसका जवाब देने में नाकाम साबित हुए। बीजेपी को दिनेश शर्मा के बजाय ब्रजेश पाठक में वो खूबियां दिखाई दीं। वह ब्राह्मणों के मुद्दों पर ज्यादा आक्रामक रहे हैं।
पिछले पांच साल में ऐसे कई मौके आए जब दिनेश शर्मा सुस्त दिखाई दिए। वहीं, ब्रजेश पाठक के तेवर तीखे नजर आए। हाल में लखीमपुर खीरी की घटना को ही लेते हैं। इसमें गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी और उनके बेटे आशीष मिश्रा विपक्ष के निशाने पर थे। किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में यहां हुए बवाल में आठ लोगों की मौत हो गई थी। इनमें चार किसानों के साथ अन्य चार बीजेपी कार्यकर्ता थे। ये ब्राह्मण थे। माहौल देख तब सब ने चुप्पी साध रखी थी। हालांकि, ब्रजेश मिश्रा इन कार्यकर्ताओं के घर पहुंचे थे। उनके परिजनों को सांत्वना दी थी कि उन्हें न्याय मिलेगा।
सीएम योगी आदित्यनाथ पर तब भी हमले हुए थे जब माफिया विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ था। तब माहौल बनाने की कोशिश की गई थी कि योगी आदित्यनाथ ब्राह्मण विरोधी हैं। उस वक्त ब्रजेश पाठक योगी के समर्थन में खुलकर खड़े हुए थे।
उत्तर प्रदेश में सात चरणों में 403 विधानसभा क्षेत्रों का चुनाव परिणाम 10 मार्च को घोषित हुआ था। इसमें भारतीय जनता पार्टी ने 255 और सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने 12 व निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) ने छह सीटों पर जीत हासिल की थी। पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद नई सरकार ने शुक्रवार शाम शपथ ग्रहण की। इसके 37 साल पहले 1985 में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दोबारा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। तब तिवारी ने लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। योगी आदित्यनाथ के खाते में 37 साल बाद यह रिकॉर्ड दर्ज हुआ है।
दिनेश शर्मा और ब्रजेश पाठक