थॉमस एल. फ्रीडमैन का कॉलम: जैसा अमेरिका ट्रम्प बना रहे हैं, वह दुनिया के लिए ठीक नहीं h3>
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थॉमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में स्तंभकार
यदि आप यूक्रेन, टैरिफ, माइक्रोचिप्स या अन्य मुद्दों पर ट्रम्प की टेढ़ी-मेढ़ी रणनीतियों से भ्रमित हैं, तो यह आपकी गलती नहीं है। यह ट्रम्प की गलती है! आपकी नजरों के सामने एक ऐसे प्रेसिडेंट हैं, जो आपराधिक मुकदमे से बचने और उन लोगों से बदला लेने के लिए चुनाव लड़े, जिन पर उन्होंने 2020 के चुनावों में धांधली करने का झूठा आरोप लगाया था।
उनके पास 21वीं सदी के अमेरिका के लिए कोई विज़न नहीं था। चुनाव जीतने के साथ ही उनकी पुरानी खब्तें लौट आई हैं। अपनी टीम में उन्होंने ऐसे लोगों को भर लिया, जो एक ही मानदंड को पूरा करते थे : संविधान, विदेश नीति के पारंपरिक मूल्यों या अर्थशास्त्र के बुनियादी सिद्धांतों के बजाय हमेशा केवल ट्रम्प के प्रति वफादारी!
और इसका नतीजा वही है, जो आप आज देख रहे हैं : बढ़ते-घटते टैरिफ, यूक्रेन पर डावांडोल रवैया, सरकारी विभागों और घरेलू-विदेशी कार्यक्रमों में लगातार बढ़ती कटौतियां, कैबिनेट सचिवों और कर्मचारियों द्वारा लागू किए गए परस्पर विरोधी आदेश, जो इस डर से एकजुट हैं कि अगर वे ट्रम्प के सोशल मीडिया फीड पर सामने आई नीति से विचलित होते हैं तो मस्क या ट्रम्प उनके बारे में ट्वीट कर देंगे! ये सब चार सालों तक नहीं चलेगा, दोस्तो।
अनिश्चय की इस स्थिति के चलते हमारे बाजारों, उद्यमियों, मैन्युफैक्चरर्स, निवेशकों और सहयोगियों में घबराहट फैल जाएगी और हम बाकी दुनिया को भी सांसत में डाल देंगे। देश चलाने का यह कोई तरीका नहीं है कि आए यूक्रेन को धमकाएं, रूस को धमकाएं, फिर रूस को दी गई धमकी वापस ले लें, मेक्सिको और कनाडा पर भारी टैरिफ लगाने की धमकी दें और उन्हें स्थगित कर दें, चीन पर फिर से टैरिफ दोगुना कर दें और यूरोप और कनाडा पर और भी अधिक टैरिफ लगाने की धमकी देने लगें।
हमारे पुराने सहयोगी देशों के शीर्ष अधिकारियों ने निजी तौर पर मुझसे कहा कि उन्हें डर है हम न केवल अस्थिर हो रहे हैं, बल्कि वास्तव में उनके दुश्मन बन रहे हैं। एकमात्र व्यक्ति जिनके साथ ट्रम्प नरमी से पेश आते हैं- वो पुतिन हैं। इससे अमेरिका के पारंपरिक मित्र सदमे में हैं।
ट्रम्प का सबसे बड़ा झूठ यह है कि वे कहते हैं उन्हें एक बर्बाद अर्थव्यवस्था विरासत में मिली है और इसीलिए उन्हें ये सब करना पड़ रहा है। यह पूरी तरह से बेबुनियाद है। बाइडेन ने चाहे जितनी गलतियां की हों, लेकिन उनके कार्यकाल के अंत तक अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी स्थिति में आ गई थी और सही दिशा में आगे बढ़ रही थी। ऐसे में अमेरिका को वैश्विक टैरिफ शॉक थैरेपी की आवश्यकता नहीं थी।
इस अनिश्चितता के मूल में यह है कि जिस दुनिया को आप 80 सालों से जानते थे, उसकी सबसे बड़ी महाशक्ति आज खुद नहीं जानती कि वह क्या कर रही है और क्यों कर रही है। दुनिया ने 1945 के बाद से आर्थिक विकास और शांतिकाल का एक असाधारण दौर देखा है।
बेशक, इसमें कई परेशान करने वाले साल और पिछड़े हुए देश भी रहे थे। लेकिन विश्व-इतिहास के व्यापक दायरे में ये 80 साल बहुत-से लोगों के लिए, बहुत-सी जगहों पर उल्लेखनीय रूप से शांतिपूर्ण और समृद्ध रहे हैं। और दुनिया इन सालों में जिस तरह से थी, उसका नंबर 1 कारण अमेरिका की नीतियां थीं।
20 जनवरी, 1961 को जॉन एफ. कैनेडी ने अपने उद्घाटन भाषण में अमेरिकी-भावना की इन शब्दों में व्याख्या की थी : ‘हर देश यह जान ले कि चाहे वह हमारा भला चाहे या बुरा, हम उसकी स्वतंत्रता और सफलता को सुनिश्चित करने के लिए कोई भी कीमत चुकाएंगे, कोई भी बोझ उठाएंगे, किसी भी कठिनाई का सामना करेंगे, किसी भी मित्र का समर्थन करेंगे और किसी भी शत्रु का विरोध करेंगे। दुनिया के मेरे साथी नागरिको, यह मत पूछिए कि अमेरिका आपके लिए क्या करेगा, बल्कि यह पूछिए कि हम मिलकर मनुष्य की स्वतंत्रता के लिए क्या कर सकते हैं।’
ट्रम्प और वांस ने केनेडी के इन शब्दों को पूरी तरह से उलटकर रख दिया है और अब वे दुनिया के साथी नागरिकों से कह रहे हैं कि यह मत पूछिए अमेरिका आपके लिए क्या करेगा, बल्कि यह पूछिए कि आप अपने को रूस और चीन से बचाने के लिए अमेरिका को कितना भुगतान कर सकते हैं!
जब अमेरिका जैसा देश- जो 1945 से ही दुनिया में स्थिरीकरण की भूमिका निभाता आ रहा है और नाटो, डब्ल्यूएचओ, विश्व बैंक और डब्ल्यूटीओ जैसी संस्थाओं के माध्यम से काम करता आ रहा है, अचानक अपनी इस भूमिका से विमुख होकर इसी व्यवस्था पर प्रहार करने लग जाता है तो यह अच्छी खबर नहीं हो सकती।
ट्रम्प की विदेश नीति तोड़फोड़ और लूट पर आधारित है। वे ग्रीनलैंड, पनामा, कनाडा और गाजा को अपनी जेब में भरकर अपनी आरामकुर्सी में बैठ जाना चाहते हैं। हमारे सहयोगियों ने पहले कभी ऐसा अमेरिका नहीं देखा था।
(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)
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थॉमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में स्तंभकार
यदि आप यूक्रेन, टैरिफ, माइक्रोचिप्स या अन्य मुद्दों पर ट्रम्प की टेढ़ी-मेढ़ी रणनीतियों से भ्रमित हैं, तो यह आपकी गलती नहीं है। यह ट्रम्प की गलती है! आपकी नजरों के सामने एक ऐसे प्रेसिडेंट हैं, जो आपराधिक मुकदमे से बचने और उन लोगों से बदला लेने के लिए चुनाव लड़े, जिन पर उन्होंने 2020 के चुनावों में धांधली करने का झूठा आरोप लगाया था।
उनके पास 21वीं सदी के अमेरिका के लिए कोई विज़न नहीं था। चुनाव जीतने के साथ ही उनकी पुरानी खब्तें लौट आई हैं। अपनी टीम में उन्होंने ऐसे लोगों को भर लिया, जो एक ही मानदंड को पूरा करते थे : संविधान, विदेश नीति के पारंपरिक मूल्यों या अर्थशास्त्र के बुनियादी सिद्धांतों के बजाय हमेशा केवल ट्रम्प के प्रति वफादारी!
और इसका नतीजा वही है, जो आप आज देख रहे हैं : बढ़ते-घटते टैरिफ, यूक्रेन पर डावांडोल रवैया, सरकारी विभागों और घरेलू-विदेशी कार्यक्रमों में लगातार बढ़ती कटौतियां, कैबिनेट सचिवों और कर्मचारियों द्वारा लागू किए गए परस्पर विरोधी आदेश, जो इस डर से एकजुट हैं कि अगर वे ट्रम्प के सोशल मीडिया फीड पर सामने आई नीति से विचलित होते हैं तो मस्क या ट्रम्प उनके बारे में ट्वीट कर देंगे! ये सब चार सालों तक नहीं चलेगा, दोस्तो।
अनिश्चय की इस स्थिति के चलते हमारे बाजारों, उद्यमियों, मैन्युफैक्चरर्स, निवेशकों और सहयोगियों में घबराहट फैल जाएगी और हम बाकी दुनिया को भी सांसत में डाल देंगे। देश चलाने का यह कोई तरीका नहीं है कि आए यूक्रेन को धमकाएं, रूस को धमकाएं, फिर रूस को दी गई धमकी वापस ले लें, मेक्सिको और कनाडा पर भारी टैरिफ लगाने की धमकी दें और उन्हें स्थगित कर दें, चीन पर फिर से टैरिफ दोगुना कर दें और यूरोप और कनाडा पर और भी अधिक टैरिफ लगाने की धमकी देने लगें।
हमारे पुराने सहयोगी देशों के शीर्ष अधिकारियों ने निजी तौर पर मुझसे कहा कि उन्हें डर है हम न केवल अस्थिर हो रहे हैं, बल्कि वास्तव में उनके दुश्मन बन रहे हैं। एकमात्र व्यक्ति जिनके साथ ट्रम्प नरमी से पेश आते हैं- वो पुतिन हैं। इससे अमेरिका के पारंपरिक मित्र सदमे में हैं।
ट्रम्प का सबसे बड़ा झूठ यह है कि वे कहते हैं उन्हें एक बर्बाद अर्थव्यवस्था विरासत में मिली है और इसीलिए उन्हें ये सब करना पड़ रहा है। यह पूरी तरह से बेबुनियाद है। बाइडेन ने चाहे जितनी गलतियां की हों, लेकिन उनके कार्यकाल के अंत तक अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी स्थिति में आ गई थी और सही दिशा में आगे बढ़ रही थी। ऐसे में अमेरिका को वैश्विक टैरिफ शॉक थैरेपी की आवश्यकता नहीं थी।
इस अनिश्चितता के मूल में यह है कि जिस दुनिया को आप 80 सालों से जानते थे, उसकी सबसे बड़ी महाशक्ति आज खुद नहीं जानती कि वह क्या कर रही है और क्यों कर रही है। दुनिया ने 1945 के बाद से आर्थिक विकास और शांतिकाल का एक असाधारण दौर देखा है।
बेशक, इसमें कई परेशान करने वाले साल और पिछड़े हुए देश भी रहे थे। लेकिन विश्व-इतिहास के व्यापक दायरे में ये 80 साल बहुत-से लोगों के लिए, बहुत-सी जगहों पर उल्लेखनीय रूप से शांतिपूर्ण और समृद्ध रहे हैं। और दुनिया इन सालों में जिस तरह से थी, उसका नंबर 1 कारण अमेरिका की नीतियां थीं।
20 जनवरी, 1961 को जॉन एफ. कैनेडी ने अपने उद्घाटन भाषण में अमेरिकी-भावना की इन शब्दों में व्याख्या की थी : ‘हर देश यह जान ले कि चाहे वह हमारा भला चाहे या बुरा, हम उसकी स्वतंत्रता और सफलता को सुनिश्चित करने के लिए कोई भी कीमत चुकाएंगे, कोई भी बोझ उठाएंगे, किसी भी कठिनाई का सामना करेंगे, किसी भी मित्र का समर्थन करेंगे और किसी भी शत्रु का विरोध करेंगे। दुनिया के मेरे साथी नागरिको, यह मत पूछिए कि अमेरिका आपके लिए क्या करेगा, बल्कि यह पूछिए कि हम मिलकर मनुष्य की स्वतंत्रता के लिए क्या कर सकते हैं।’
ट्रम्प और वांस ने केनेडी के इन शब्दों को पूरी तरह से उलटकर रख दिया है और अब वे दुनिया के साथी नागरिकों से कह रहे हैं कि यह मत पूछिए अमेरिका आपके लिए क्या करेगा, बल्कि यह पूछिए कि आप अपने को रूस और चीन से बचाने के लिए अमेरिका को कितना भुगतान कर सकते हैं!
जब अमेरिका जैसा देश- जो 1945 से ही दुनिया में स्थिरीकरण की भूमिका निभाता आ रहा है और नाटो, डब्ल्यूएचओ, विश्व बैंक और डब्ल्यूटीओ जैसी संस्थाओं के माध्यम से काम करता आ रहा है, अचानक अपनी इस भूमिका से विमुख होकर इसी व्यवस्था पर प्रहार करने लग जाता है तो यह अच्छी खबर नहीं हो सकती।
ट्रम्प की विदेश नीति तोड़फोड़ और लूट पर आधारित है। वे ग्रीनलैंड, पनामा, कनाडा और गाजा को अपनी जेब में भरकर अपनी आरामकुर्सी में बैठ जाना चाहते हैं। हमारे सहयोगियों ने पहले कभी ऐसा अमेरिका नहीं देखा था।
(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)
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