थॉमस एल. फ्रीडमैन का कॉलम: आखिर कैसी दुनिया बनाना चाहते हैं ट्रम्प और नेतन्याहू? h3>
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थॉमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में स्तंभकार
एक समय था जब अमेरिका के राष्ट्रपति और इजराइल के प्रधानमंत्री के बीच होने वाली मुलाकातें इजराइल और अमेरिकी यहूदियों दोनों के लिए गर्व की बात हुआ करती थी। लेकिन ओवल ऑफिस में ट्रम्प और नेतन्याहू की मुलाकात की तस्वीरें देखने पर जो भावनाएं मेरे अंदर उमड़ीं, वो कम से कम गर्व की तो नहीं थीं।
ये दो ऐसे नेता हैं, जो मनमानी करते हैं और अपने देश में कानून के राज को कमजोर करने के लिए काम कर रहे हैं। वे जातीय राष्ट्रवाद को तूल देते हैं। वे अपने विरोधियों को दुश्मन मानते हैं। और उन्होंने अपने मंत्रिमंडलों को ऐसे नाकारा लोगों से भर दिया है, जिन्हें देश के कानून के बजाय उनके प्रति वफादारी के लिए चुना गया है। वे यह मानते हैं कि उन्हें क्षेत्रीय विस्तार का दैवीय अधिकार प्राप्त है- फिर चाहे वह अमेरिका की खाड़ी से ग्रीनलैंड तक हो या वेस्ट बैंक से गाजा तक।
2008 में, फरीद जकारिया ने ‘द पोस्ट-अमेरिकन वर्ल्ड’ नामक एक दूरदर्शी पुस्तक प्रकाशित कराई थी। उन्होंने तर्क दिया था कि जहां अमेरिका दुनिया की प्रमुख शक्ति बना रहेगा, वहीं बाकी देशों के उदय- जैसे चीन और भारत के चलते शीत युद्ध के बाद वाली दुनिया में अमेरिका का प्रभुत्व कम होता जाएगा।
ट्रम्प और नेतन्याहू दोनों ही अपने-अपने देश में ‘पोस्ट-अमेरिका’ और ‘पोस्ट-इजराइल’ दुनिया बनाने में लगे हुए हैं। हालांकि, ‘पोस्ट-अमेरिका’ से मेरा आशय ऐसे अमेरिका से है, जो एक देश के रूप में अपनी मूल पहचान को त्याग रहा है। अमेरिका की मूल पहचान कानून के राज से संचालित होने वाले एक ऐसे देश की थी, जो वृहत्तर मनुष्यता की बेहतरी के लिए काम करता है।
वहीं ‘पोस्ट-इजराइल’ से भी मेरा मतलब ऐसे इजराइल से है, जो अपनी मूल पहचान को त्याग रहा है। इजराइल की मूल पहचान शत्रुओं के बीच गर्व से संचालित होने वाले ऐसे लोकतंत्र की थी, जो फिलिस्तीनियों के साथ स्थायी-शांति को प्राथमिकता देता है।
ट्रम्प और वैंस एक ऐसा अमेरिका बनाना चाहते हैं, जो यूरोपीय संघ जैसे लोकतांत्रिक, मुक्त बाजार, कानून के शासन वाले सहयोगियों के साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करता है। ट्रम्प ने हाल ही में कहा कि यूरोपीय संघ को अमेरिका को बरबाद करने के लिए बनाया गया था। इस बात को उन्होंने ओवल ऑफिस में नेतन्याहू के बगल में बैठकर फिर दोहराया।
इस बयान से झलकने वाली ऐतिहासिक अज्ञानता आपकी सांसें रोक देने वाली है। ट्रम्प और वैंस हमें एक ऐसे अमेरिका में ले जाना चाहते हैं, जो अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे यूक्रेन को सैन्य सहायता देने के बदले उनके खनिज अधिकारों की मांग करता है।
वे अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ाने की तो बात ही छोड़िए, उसे बनाए रखने में भी रुचि नहीं रखते। वे इस तथ्य से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं कि यदि हम अपनी सॉफ्ट पावर को खो देते हैं, तो हम अन्य देशों को अपने साथ जोड़ने की अपनी क्षमता भी खो देंगे।
अपने हितों और मूल्यों के प्रति अधिक ग्रहणशील विश्व का निर्माण करना ही वह ताकत थी, जो हमें रूस और चीन से ऊपर रखे हुए थी। स्टैनफर्ड के लोकतंत्र-विशेषज्ञ लैरी डायमंड ने मुझे बताया कि बिना सोचे-समझे अपने कई सहयोगियों को नीचा दिखाकर ट्रम्प न केवल अमेरिकी मूल्यों को नष्ट कर रहे हैं, बल्कि वे अमेरिका को ‘फिर से कमजोर’ भी बना रहे हैं।
नेतन्याहू ने भी इसी तरह के पोस्ट-इजराइल को बनाने में कड़ी मेहनत की है। ट्रम्प ने अपने एफबीआई निदेशक को बाहर कर दिया; नेतन्याहू भी रोनेन बार के साथ ऐसा ही करने वाले हैं। वे इजराइल की एफबीआई कहलाने वाली शिन बेट के प्रमुख हैं और नेतन्याहू के कुछ शीर्ष सहयोगियों के कतर सरकार से कथित संबंधों को लेकर जांच कर रहे हैं।
नेतन्याहू खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में मुकदमे का सामना कर रहे हैं। इजराइली विपक्ष और बंधकों के कुछ रिश्तेदारों द्वारा उन पर यहूदी वर्चस्ववादियों को खुश करने के लिए गाजा युद्ध को लंबा खींचने का आरोप लगाया गया है। इसके चलते वे सत्ता में बने रहकर जेल से बाहर रह सकते हैं।
नेतन्याहू इजराइल के स्वतंत्र और साहसी अटॉर्नी जनरल को हटाने की भी कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वे स्पष्ट रूप से मानते हैं कि वे उनके प्रति निष्ठावान नहीं हैं। नेतन्याहू 2022 से ही सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को कम करने के मिशन पर भी लगे हुए हैं।
वेस्ट बैंक और गाजा पर कब्जा करने और अधिक से अधिक फिलिस्तीनियों को बेदखल करने का उनका मकसद केवल तभी पूरा हो सकता है, जब प्रधानमंत्री और उनके यहूदी वर्चस्ववादी गठबंधन को नियंत्रित करने की अदालत की शक्ति को तोड़ दिया जाए। आखिर कैसी दुनिया बनाना चाहते हैं ट्रम्प और नेतन्याहू?
ये दो ऐसे नेता हैं, जो अपने देश में कानून के राज को कमजोर करने के लिए काम कर रहे हैं। वे जातीय राष्ट्रवाद को तूल देते हैं। वे अपने विरोधियों को दुश्मन मानते हैं। और उन्होंने अपने मंत्रिमंडलों को नाकारा लोगों से भर दिया है।
(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)
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एक समय था जब अमेरिका के राष्ट्रपति और इजराइल के प्रधानमंत्री के बीच होने वाली मुलाकातें इजराइल और अमेरिकी यहूदियों दोनों के लिए गर्व की बात हुआ करती थी। लेकिन ओवल ऑफिस में ट्रम्प और नेतन्याहू की मुलाकात की तस्वीरें देखने पर जो भावनाएं मेरे अंदर उमड़ीं, वो कम से कम गर्व की तो नहीं थीं।
ये दो ऐसे नेता हैं, जो मनमानी करते हैं और अपने देश में कानून के राज को कमजोर करने के लिए काम कर रहे हैं। वे जातीय राष्ट्रवाद को तूल देते हैं। वे अपने विरोधियों को दुश्मन मानते हैं। और उन्होंने अपने मंत्रिमंडलों को ऐसे नाकारा लोगों से भर दिया है, जिन्हें देश के कानून के बजाय उनके प्रति वफादारी के लिए चुना गया है। वे यह मानते हैं कि उन्हें क्षेत्रीय विस्तार का दैवीय अधिकार प्राप्त है- फिर चाहे वह अमेरिका की खाड़ी से ग्रीनलैंड तक हो या वेस्ट बैंक से गाजा तक।
2008 में, फरीद जकारिया ने ‘द पोस्ट-अमेरिकन वर्ल्ड’ नामक एक दूरदर्शी पुस्तक प्रकाशित कराई थी। उन्होंने तर्क दिया था कि जहां अमेरिका दुनिया की प्रमुख शक्ति बना रहेगा, वहीं बाकी देशों के उदय- जैसे चीन और भारत के चलते शीत युद्ध के बाद वाली दुनिया में अमेरिका का प्रभुत्व कम होता जाएगा।
ट्रम्प और नेतन्याहू दोनों ही अपने-अपने देश में ‘पोस्ट-अमेरिका’ और ‘पोस्ट-इजराइल’ दुनिया बनाने में लगे हुए हैं। हालांकि, ‘पोस्ट-अमेरिका’ से मेरा आशय ऐसे अमेरिका से है, जो एक देश के रूप में अपनी मूल पहचान को त्याग रहा है। अमेरिका की मूल पहचान कानून के राज से संचालित होने वाले एक ऐसे देश की थी, जो वृहत्तर मनुष्यता की बेहतरी के लिए काम करता है।
वहीं ‘पोस्ट-इजराइल’ से भी मेरा मतलब ऐसे इजराइल से है, जो अपनी मूल पहचान को त्याग रहा है। इजराइल की मूल पहचान शत्रुओं के बीच गर्व से संचालित होने वाले ऐसे लोकतंत्र की थी, जो फिलिस्तीनियों के साथ स्थायी-शांति को प्राथमिकता देता है।
ट्रम्प और वैंस एक ऐसा अमेरिका बनाना चाहते हैं, जो यूरोपीय संघ जैसे लोकतांत्रिक, मुक्त बाजार, कानून के शासन वाले सहयोगियों के साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करता है। ट्रम्प ने हाल ही में कहा कि यूरोपीय संघ को अमेरिका को बरबाद करने के लिए बनाया गया था। इस बात को उन्होंने ओवल ऑफिस में नेतन्याहू के बगल में बैठकर फिर दोहराया।
इस बयान से झलकने वाली ऐतिहासिक अज्ञानता आपकी सांसें रोक देने वाली है। ट्रम्प और वैंस हमें एक ऐसे अमेरिका में ले जाना चाहते हैं, जो अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे यूक्रेन को सैन्य सहायता देने के बदले उनके खनिज अधिकारों की मांग करता है।
वे अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ाने की तो बात ही छोड़िए, उसे बनाए रखने में भी रुचि नहीं रखते। वे इस तथ्य से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं कि यदि हम अपनी सॉफ्ट पावर को खो देते हैं, तो हम अन्य देशों को अपने साथ जोड़ने की अपनी क्षमता भी खो देंगे।
अपने हितों और मूल्यों के प्रति अधिक ग्रहणशील विश्व का निर्माण करना ही वह ताकत थी, जो हमें रूस और चीन से ऊपर रखे हुए थी। स्टैनफर्ड के लोकतंत्र-विशेषज्ञ लैरी डायमंड ने मुझे बताया कि बिना सोचे-समझे अपने कई सहयोगियों को नीचा दिखाकर ट्रम्प न केवल अमेरिकी मूल्यों को नष्ट कर रहे हैं, बल्कि वे अमेरिका को ‘फिर से कमजोर’ भी बना रहे हैं।
नेतन्याहू ने भी इसी तरह के पोस्ट-इजराइल को बनाने में कड़ी मेहनत की है। ट्रम्प ने अपने एफबीआई निदेशक को बाहर कर दिया; नेतन्याहू भी रोनेन बार के साथ ऐसा ही करने वाले हैं। वे इजराइल की एफबीआई कहलाने वाली शिन बेट के प्रमुख हैं और नेतन्याहू के कुछ शीर्ष सहयोगियों के कतर सरकार से कथित संबंधों को लेकर जांच कर रहे हैं।
नेतन्याहू खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में मुकदमे का सामना कर रहे हैं। इजराइली विपक्ष और बंधकों के कुछ रिश्तेदारों द्वारा उन पर यहूदी वर्चस्ववादियों को खुश करने के लिए गाजा युद्ध को लंबा खींचने का आरोप लगाया गया है। इसके चलते वे सत्ता में बने रहकर जेल से बाहर रह सकते हैं।
नेतन्याहू इजराइल के स्वतंत्र और साहसी अटॉर्नी जनरल को हटाने की भी कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वे स्पष्ट रूप से मानते हैं कि वे उनके प्रति निष्ठावान नहीं हैं। नेतन्याहू 2022 से ही सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को कम करने के मिशन पर भी लगे हुए हैं।
वेस्ट बैंक और गाजा पर कब्जा करने और अधिक से अधिक फिलिस्तीनियों को बेदखल करने का उनका मकसद केवल तभी पूरा हो सकता है, जब प्रधानमंत्री और उनके यहूदी वर्चस्ववादी गठबंधन को नियंत्रित करने की अदालत की शक्ति को तोड़ दिया जाए। आखिर कैसी दुनिया बनाना चाहते हैं ट्रम्प और नेतन्याहू?
ये दो ऐसे नेता हैं, जो अपने देश में कानून के राज को कमजोर करने के लिए काम कर रहे हैं। वे जातीय राष्ट्रवाद को तूल देते हैं। वे अपने विरोधियों को दुश्मन मानते हैं। और उन्होंने अपने मंत्रिमंडलों को नाकारा लोगों से भर दिया है।
(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)
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