थैलेसीमिया से बचने के लिए जागरूकता जरूरी : डॉ. पियाली | Special On 8th May International Thalassemia Day | Patrika News

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थैलेसीमिया से बचने के लिए जागरूकता जरूरी : डॉ. पियाली | Special On 8th May International Thalassemia Day | Patrika News

थैलेसीमिया से बचने के लिए जागरूकता जरूरी : डॉ. पियाली | Special On 8th May International Thalassemia Day | Patrika News

एसजीपीजीआई की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पियाली भट्टाचार्य का कहना है कि दुनिया के विकासशील देशों में थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता और विशिष्ट ज्ञान की आज भी कमी है, जो कि ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि इन देशों में थैलेसीमिया के कुल रोगियों में से 80 फीसद से अधिक रोगी जन्म लेते हैं और रहते भी हैं । यह न केवल स्वास्थ्य परिणामों पर एक बड़ा प्रभाव डालते हैं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए बड़े पैमाने पर रोगियों और समुदाय को जागरूक करने और संसाधन पहुंचाने की जरूरत है, ताकि समुदाय बीमारी से बचाव के तरीके अपना सके और थैलेसीमिया रोगियों के प्रति उनके दृष्टिकोण में बदलाव हो। इसके साथ ही वह स्वास्थ्य प्रबंधन कर सकें।

डा. पियाली के अनुसार भारत में हर वर्ष 10 से 15 हजार थैलेसीमिक बच्चे जन्म लेते हैं। थैलेसीमिया रक्त में होने वाला एक विकार है, जिसमें शरीर में खून की कमी हो जाती है। यह त्रुटिपूर्ण हीमोग्लोबिन के कारण होता है । इस रोग की पहचान बच्चे में जन्म के चार या छह महीने में हो पाती है । यदि जन्म के पांच माह के बाद अभिभावकों को ऐसा महसूस हो कि बच्चे के जीभ और नाखून पीले हो रहे हों, विकास रुक गया हो, वजन न बढ़े, चेहरा सूखा हो, जबड़े या गाल असामान्य हों, सांस लेने में दिक्कत हो और पीलिया का भ्रम हो तो प्रशिक्षित डाक्टर से जांच जरूर कराएं । यदि जांच के बाद बच्चे में थैलेसीमिया की पुष्टि होती है तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट के द्वारा बच्चे की जान बचाई जा सकती है।

सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की आयु लगभग 120 दिनों की होती है लेकिन इस बीमारी में इनकी आयु घटकर 20 दिन ही रह जाती है। डॉ. पियाली ने बताया कि थैलेसीमिया मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं – मेजर, माइनर और इंटरमीडिएट थैलेसीमिया । पीड़ित बच्चे के माता और पिता दोनों के ही जींस में थैलेसीमिया है तो मेजर, यदि माता-पिता दोनों में से किसी एक के जींस में थैलेसीमिया है तो माइनर थैलीसिमिया होता है। इसके अलावा इंटरमीडिएट थैलीसिमिया भी होता है जिसमें मेजर व माइनर थैलीसीमिया दोनों के ही लक्षण दिखते हैं । माइनर थैलेसीमिया पीड़ित व्यक्ति एक सामान्य जीवन जीते हैं। थैलीसिमिया की कम गंभीर अवस्था (थैलेसीमिया माइनर) में पौष्टिक भोजन और विटामिन, बीमारी को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं परंतु गंभीर अवस्था (थैलेसीमिया मेजर) में खून चढ़ाना जरूरी हो जाता है ।

इस बीमारी से बचने के लिए सबसे बेहतर उपाय है कि शादी से पहले लड़के और लड़की के खून की जांच करानी चाहिये । जिस तरह से शादी से पहले लड़के और लड़की कुंडली मिलाना अनिवार्य होता है उसी तरह दोनों की खून की जांच अनिवार्य कर देनी चाहिए। खून की जांच करवाकर रोग की पहचान करना, नजदीकी रिश्तेदारी में विवाह करने से बचना और गर्भधारण से चार महीने के अन्दर भ्रूण की जाँच करवाना । वर्तमान कोविड संक्रमण का दौर है ऐसे में थैलेसीमिया ग्रसित रोगियों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है।

ऐसे रोगियों की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है और साथ ही में उनका लिवर और हार्ट भी बहुत कमजोर होता है। ऐसे में उन्हें अन्य किसी भी प्रकार का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए रोगियों को कोविड प्रोटोकॉल का पालन जरूर करना चाहिए और उन्हें जहां तक संभव हो घर पर ही रहना चाहिए। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत जन्म से लेकर 19 वर्ष तक के बच्चों में इस रोग की पहचान और इलाज निशुल्क किया जाता है। किशोर, किशोरियों, गर्भधारण करने से पूर्व पति और पत्नी के खून की जांच और गर्भवती की जांच स्वास्थ्य केंद्रों पर निशुल्क की जाती है ।|



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