तीन हफ्ते में भारत ने पढ़ा दिया अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का मास्टर क्लास, रूस से रिश्ते पर ताना मारने वाले अब कर रहे सलाम h3>
नई दिल्ली: तीन हफ्ते में ऐसा क्या हो गया! पिछले महीने पश्चिमी देश रूस के साथ संबंधों को लेकर भारत की आलोचना कर रहे थे। यह अकेला दक्षिण एशियाई मुल्क है जिसने यूक्रेन पर हमला (Ukraine News) करने के लिए रूस की निंदा करने से इनकार कर दिया। भारत ने अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर रूसी तेल का आयात भी बंद नहीं किया। जबकि अमेरिका के नेतृत्व में दुनियाभर के कई देश रूस पर वित्तीय प्रतिबंध लगाते रहे। व्हाइट हाउस की नाराजगी भी सामने आई। राष्ट्रपति बाइडन ने कह दिया कि यूक्रेन संकट पर भारत की स्थिति कुछ हद तक डांवाडोल है। लेकिन अचानक पश्चिम के सुर बदल गए। अमेरिका कभी रूस से रिश्ते पर ताना मार रहा था लेकिन अब वे सलाम करते दिख रहे हैं। ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन दिल्ली आकर बोले कि पीएम मोदी ने यूक्रेन युद्ध के दौरान कई बार हस्तक्षेप किया और पुतिन के साथ बातचीत की।अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (डेप्युटी एनएसए) दलीप सिंह ने साफ कह दिया कि भारत का रूस से ऊर्जा खरीद करना अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं है। यह भारत का निजी फैसला है कि उसे रूस से तेल खरीदना है या नहीं। न सिर्फ अमेरिका, यूके और दूसरे देश भी भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
बाइडन ने इसी महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की तो हमारे लोगों के बीच गहरे संबंध और साझा मूल्यों की बात की गई। रूस को लेकर बने मतभेदों के बावजूद शुक्रवार को ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन दिल्ली के लिए उड़ चले और यहां उन्होंने मुस्कुराते हुए तस्वीरें खिंचवाई। पीएम के साथ बातचीत हुई, जेसीबी प्लांट में गए, राष्ट्रपति भवन में शानदार वेलकम हुआ।
हालांकि यूक्रेन पर भारत का रुख अब भी वही है। भारत अब भी सस्ता रूसी तेल खरीद रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 2021 में जितना तेल खरीदा था, उससे कहीं ज्यादा तेल 2022 के शुरुआती पहले महीने में खरीदा। वह किसी भी समस्या का शांतिपूर्ण ढंग से और बातचीत के जरिए समाधान निकालने की बात कही है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से रूस को सस्पेंड करने के लिए हुई वोटिंग से भारत अनुपस्थित रहा।
विश्लेषकों का कहना है कि भारत ने पश्चिमी देशों को अंतरराष्ट्रीय डिप्लोमेसी का मास्टरक्लास पढ़ाया है। दरअसल, चीन के बढ़ते उबार को काउंटर करने के लिए अमेरिका की कोशिशों में भारत का बड़ा रोल है। अमेरिका वैश्विक शांति के लिहाज से चीन को रूस से भी बड़ा खतरा मानता है। किंग्स कॉलेज लंदन में अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर हर्ष वी. पंत ने सीएनएन से कहा कि अमेरिका को एहसास हुआ है कि उसे भारत को नए पार्टनर के तौर पर लुभाने की जरूरत है।
दरअसल, नई दिल्ली और वॉशिंगटन दोनों चीन की बढ़ती सैन्य ताकत को देख असहज महसूस कर रहे हैं। चीन जमीन और समंदर में आक्रामक हरकतें करता है और दूसरी तरफ छोटे पड़ोसी देशों पर आर्थिक प्रभाव बढ़ा रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासनकाल में चीन की सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) ने दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना खड़ी कर ली है, जिसमें तकनीकी तौर पर एडवांस्ड स्टील्थ फाइटर जेट भी शामिल हैं। साथ ही परमाणु हथियारों का शस्त्रागार भी बढ़ रहा है।
वॉशिंगटन के प्लान के तहत भारत के साथ जापान और ऑस्ट्रेलिया को शामिल कर क्वाड तैयार किया गया। पंत कहते हैं कि चीन को काउंटर करने के मकसद से ही क्वाड में आज भारत की अहम मौजूदगी है। चीन को लेकर भारत की अपनी चिंताएं हैं। दोनों देशों हिमालयी क्षेत्र में बेहद तनाव भरे माहौल में आमने सामने हैं। दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प में कई सैनिकों की जान चली गई। दिलचस्प यह है कि अमेरिका से रिश्ते बढ़ने के बावजूद भारत को रूस के हथियारों पर काफी भरोसा है।
अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा है कि अमेरिका भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए हमेशा उसके साथ खड़ा रहेगा। भारत और अमेरिका के बीच 2+2 मंत्रीस्तरीय बातचीत हुई और लॉयड ऑस्टिन ने चीन के खतरे का स्पष्ट तौर पर जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भारत की उत्तरी सीमा पर चीन का खतरा है। अगर इस इलाके में चीन किसी प्रकार की उग्र रणनीति अपनाता है तो अमेरिका भारत के साथ खड़ा होगा। भारत और अमेरिका की सेनाएं आगे और सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुई हैं। ऑस्टिन के बयान से साफ हो गया कि यूक्रेन पर भले ही मतभेद पैदा हो गए हों लेकिन भारत और अमेरिका एक दूसरे की पोजीशन को बेहतर तरीके से समझते हैं।
ऐसे में यह आसानी से समझा जा सकता है कि अमेरिका भारत को लेकर खामोश है लेकिन रूस के हमले पर चीन की चुप्पी की आलोचना लगातार की जा रही है। यूक्रेन युद्ध पर वैसे भारत और चीन की पोजीशन एक जैसी है। दोनों खुद को न्यूट्रल रख रहे हैं। दोनों ने शांति की बात कही है लेकिन रूसी अटैक की निंदा करने से मना कर दिया। दोनों देशों के रूस के साथ रणनीतिक संबंध हैं और उसे कमजोर नहीं करना चाहते।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने फरवरी में घोषणा की थी कि उनके संबंधों की कोई सीमा नहीं है। CNN की मानें तो भारत को 50 फीसदी से ज्यादा सैन्य उपकरण रूस से ही प्राप्त होते हैं। भारत में Takshashila Institution में चीन स्टडीज के फैलो मनोज केवलरमानी कहते हैं कि ये समानताएं सतही हैं और अंतर काफी ज्यादा हैं। चीन ने पश्चिमी प्रतिबंधों की आलोचना की है और संघर्ष के लिए अमेरिका और NATO को बार-बार जिम्मेदार ठहराया है। उसकी भाषा रूस के करीब है, चीन की सरकारी मीडिया ने भी रूस के तर्क को ही बढ़ाया है।
दूसरी तरफ भारत ने नाटो की आलोचना नहीं की है। मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से बातचीत की जबकि चीन के नेताओं ने ऐसा नहीं किया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत ने बूचा किलिंग को बेहद खौफनाक बताते हुए निंदा की और स्वतंत्र जांच की मांग की। चीनी राजदूत आरोप लगाने से बचे और सभी पक्षों से निराधार आरोपों से बचने की सलाह दी।
बाइडन ने इसी महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की तो हमारे लोगों के बीच गहरे संबंध और साझा मूल्यों की बात की गई। रूस को लेकर बने मतभेदों के बावजूद शुक्रवार को ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन दिल्ली के लिए उड़ चले और यहां उन्होंने मुस्कुराते हुए तस्वीरें खिंचवाई। पीएम के साथ बातचीत हुई, जेसीबी प्लांट में गए, राष्ट्रपति भवन में शानदार वेलकम हुआ।
हालांकि यूक्रेन पर भारत का रुख अब भी वही है। भारत अब भी सस्ता रूसी तेल खरीद रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 2021 में जितना तेल खरीदा था, उससे कहीं ज्यादा तेल 2022 के शुरुआती पहले महीने में खरीदा। वह किसी भी समस्या का शांतिपूर्ण ढंग से और बातचीत के जरिए समाधान निकालने की बात कही है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से रूस को सस्पेंड करने के लिए हुई वोटिंग से भारत अनुपस्थित रहा।
विश्लेषकों का कहना है कि भारत ने पश्चिमी देशों को अंतरराष्ट्रीय डिप्लोमेसी का मास्टरक्लास पढ़ाया है। दरअसल, चीन के बढ़ते उबार को काउंटर करने के लिए अमेरिका की कोशिशों में भारत का बड़ा रोल है। अमेरिका वैश्विक शांति के लिहाज से चीन को रूस से भी बड़ा खतरा मानता है। किंग्स कॉलेज लंदन में अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर हर्ष वी. पंत ने सीएनएन से कहा कि अमेरिका को एहसास हुआ है कि उसे भारत को नए पार्टनर के तौर पर लुभाने की जरूरत है।
दरअसल, नई दिल्ली और वॉशिंगटन दोनों चीन की बढ़ती सैन्य ताकत को देख असहज महसूस कर रहे हैं। चीन जमीन और समंदर में आक्रामक हरकतें करता है और दूसरी तरफ छोटे पड़ोसी देशों पर आर्थिक प्रभाव बढ़ा रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासनकाल में चीन की सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) ने दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना खड़ी कर ली है, जिसमें तकनीकी तौर पर एडवांस्ड स्टील्थ फाइटर जेट भी शामिल हैं। साथ ही परमाणु हथियारों का शस्त्रागार भी बढ़ रहा है।
वॉशिंगटन के प्लान के तहत भारत के साथ जापान और ऑस्ट्रेलिया को शामिल कर क्वाड तैयार किया गया। पंत कहते हैं कि चीन को काउंटर करने के मकसद से ही क्वाड में आज भारत की अहम मौजूदगी है। चीन को लेकर भारत की अपनी चिंताएं हैं। दोनों देशों हिमालयी क्षेत्र में बेहद तनाव भरे माहौल में आमने सामने हैं। दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प में कई सैनिकों की जान चली गई। दिलचस्प यह है कि अमेरिका से रिश्ते बढ़ने के बावजूद भारत को रूस के हथियारों पर काफी भरोसा है।
अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा है कि अमेरिका भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए हमेशा उसके साथ खड़ा रहेगा। भारत और अमेरिका के बीच 2+2 मंत्रीस्तरीय बातचीत हुई और लॉयड ऑस्टिन ने चीन के खतरे का स्पष्ट तौर पर जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भारत की उत्तरी सीमा पर चीन का खतरा है। अगर इस इलाके में चीन किसी प्रकार की उग्र रणनीति अपनाता है तो अमेरिका भारत के साथ खड़ा होगा। भारत और अमेरिका की सेनाएं आगे और सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुई हैं। ऑस्टिन के बयान से साफ हो गया कि यूक्रेन पर भले ही मतभेद पैदा हो गए हों लेकिन भारत और अमेरिका एक दूसरे की पोजीशन को बेहतर तरीके से समझते हैं।
ऐसे में यह आसानी से समझा जा सकता है कि अमेरिका भारत को लेकर खामोश है लेकिन रूस के हमले पर चीन की चुप्पी की आलोचना लगातार की जा रही है। यूक्रेन युद्ध पर वैसे भारत और चीन की पोजीशन एक जैसी है। दोनों खुद को न्यूट्रल रख रहे हैं। दोनों ने शांति की बात कही है लेकिन रूसी अटैक की निंदा करने से मना कर दिया। दोनों देशों के रूस के साथ रणनीतिक संबंध हैं और उसे कमजोर नहीं करना चाहते।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने फरवरी में घोषणा की थी कि उनके संबंधों की कोई सीमा नहीं है। CNN की मानें तो भारत को 50 फीसदी से ज्यादा सैन्य उपकरण रूस से ही प्राप्त होते हैं। भारत में Takshashila Institution में चीन स्टडीज के फैलो मनोज केवलरमानी कहते हैं कि ये समानताएं सतही हैं और अंतर काफी ज्यादा हैं। चीन ने पश्चिमी प्रतिबंधों की आलोचना की है और संघर्ष के लिए अमेरिका और NATO को बार-बार जिम्मेदार ठहराया है। उसकी भाषा रूस के करीब है, चीन की सरकारी मीडिया ने भी रूस के तर्क को ही बढ़ाया है।
दूसरी तरफ भारत ने नाटो की आलोचना नहीं की है। मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से बातचीत की जबकि चीन के नेताओं ने ऐसा नहीं किया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत ने बूचा किलिंग को बेहद खौफनाक बताते हुए निंदा की और स्वतंत्र जांच की मांग की। चीनी राजदूत आरोप लगाने से बचे और सभी पक्षों से निराधार आरोपों से बचने की सलाह दी।