तबाही का मंजर याद कर दहल जाते हैं लोग, फिर भी नहीं ली त्रासदी से सीख | People get shocked remembering the scene of devastation | Patrika News

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तबाही का मंजर याद कर दहल जाते हैं लोग, फिर भी नहीं ली त्रासदी से सीख | People get shocked remembering the scene of devastation | Patrika News

तबाही का मंजर याद कर दहल जाते हैं लोग, फिर भी नहीं ली त्रासदी से सीख | People get shocked remembering the scene of devastation | Patrika News

– 05 हजार मकान हो गए थे क्षतिग्रस्त

– 2539 गांव हुए थे प्रभावित

– 34 हजार से ज्यादा परिवार जिले में हुए थे बेघर

– 3 लाख 23 हजार भवन भवन जिले में आंशिक रूप से हुए थे क्षतिग्रस्त

– 33 किमी जमीन से नीचे था भूकम्प का केंद्र

– 38 अति संवेदनशील शहरों में शामिल है जबलपुर

– 2,83,533 भवन दर्ज हैं नगर निगम सीमा में

– 25 प्रतिशत के लगभग भवन बिना कॉलम-बीम के हैं

जबलपुर। 22 मई, 1997 की अलसुबह सभी गहरी नींद के आगोश में थे, तभी तेज गडगड़़ाहट की आवाज, दहला देने वाला कम्पन और कुछ ही देर में सैकड़ों भवन मलबे में तब्दील हो गए। ज्यादातद लोग समझ ही नहीं पाए कि विनाशकारी भूकम्प ने तबाही मचा दी है। बड़ी संख्या में लोग मलबे में दब गए थे। हर तरफ चीख-पुकार मच गई थी। बड़ी संख्या में लोगों ने अपनों को खो दिया।

अतिसंवेदनशील शहरों में शामिल जबलपुर

25 साल बाद भी भूकम्प की तबाही का मंजर याद कर शहरवासी आज भी दहल जाते हैं। भूकम्प के लिहाज से जबलपुर देश के अति संवेदनशील शहरों में शामिल है। इसक बावजूद जिम्मेदारों ने त्रासदी से सीख नहीं ली। शहर में 25 प्रतिशत के लगभग भवनों के स्ट्रक्कचर आज भी कमजोर हैं। भवन निर्माण में भूकम्प रोधी तकनीक की अनदेखी की गई है। शहर की लगभग 250 अवैध कॉलोनियों में बड़ी संख्या में भवन बिना कॉलम बीम के निर्मित हैं। पुराने रिहायशी इलाकों गढ़ा, फुहारा, हनुमानताल, मिलौनीगंज, भानतलैया, घमापुर, फूटाताल समेत अन्य इलाकों में बड़ी संख्या में ऐसे पुराने बहुमंजिला भवन खतरनाक हो चुके हैं। बाजनामठ पहाड़ी, टनटनिया पहाड़ी, छुई खदान की ओर की पहाड़ी, शोभापुर पहाड़ी पर बड़ी संख्या में लोग मनमाने ढंग से भवनों का निर्माण कर रहे हैं। जानकारों के अनुसार भूकम्प के लिहाज से ये भवन बहुत ही खतरनाक हैं।

मेडिकल अस्पताल से बाहर आ गए थे मरीज

भूकम्प की आवाज और दहशत का आलम यह था कि मेडिकल अस्पताल में भर्ती मरीजों में से कोई ग्लूकोज की बॉटल निकालकर नीचे की ओर भागे। अस्थि वार्ड के मरीज लडखड़़ाते हुए बाहर आ गए थे।

.आज भी नहीं भूले भयावह मंजर

भोर के समय सभी गहरी नींद में थे, तभी गडगड़़ाहट की आवाज आई। ज्यादातर लोग नहीं समझ पाए कि भूकम्प आया है। फिर हर तरफ धूल का गुबार छा गया। कई मकान धराशायी हो गए। हर तरफ चीख-पुकार मच गई। हर तरफ मलबा नजर आ रहा था। कई लोग मलबो में दबे हुए थे। जो लोग सुरक्षित बचे, वे मलबा हटाने और अपनों को बचाने में जुट गए।

राहत-बचाव शिविर लगे

गांव के बुजुृर्गों ने बताया कि कोसमघाट भूकम्प को केंद्र होने और भयंकर तबाही की खबर मिलते ही गांव में राहत और बचाव शिविर लगाए गए। सेना का शिविर, सिख समाज का लंगर, भाजपा नेता प्रहलाद पटेल 150 कारसेवकों के साथ लोगों की मदद करने और बचाव कार्य में जुटे रहे।

हनुमान मंदिर में हुआ था भंडारा

योगेश ने बताया कोसमघाट में गौर नदी के तट पर बजरंगबली के मंदिर में 21 मई की रात गांव के सभी लोग जुटे थे। पूजन के बाद भंडारा हुआ। सभी ने प्रसाद ग्रहण किया। ग्रामीणों की मान्यता है कि हनुमानजी के प्रताप से ही गांव में विनाशकारी भूकम्प आने के बावजूद कोई जनहानि नहीं हुई थी।

सभी छोड़ देना चाहते थे गांव

भूकम्प की त्रासदी ने कोसमघाट के लोगों को इतना डरा दिया था कि सभी गांव छोड़ देना चाहते थे। प्रशासन भी ग्रामीणों के लिए अलग कॉलोनी बसाना चाहता था। लेकिन, कारसेवकों के सेवाभाव, गांव के लोगों का अपनी माटी के प्रति प्रेम ने उनकी सोच को बदल दिया। वे फिर से गांव को खुशहाल बनाने में जुट गए।

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बुढ़ापा आ गया, अब तक नहीं बना मकान

सीताराम बर्मन गौर नदी के किनारे एक कमरे का कच्चा मकान बनाकर रह रहे हैं। भूकम्प में उनका घर भी ढह गया था। उस समय वे युवा थे। घटना के 25 साल बाद भी उन्हें शासन की किसी योजना का लाभ नहीं मिला। 57 साल के हो गए, आज भी भूकम्प की त्रासदी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा है।

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50 के लगभग भवन भूकम्प रोधी

त्रासदी के बाद कोसमघाट में 50 लोगों ने मकान बनाए हैं। सभी मकान कॉलम, बीम के साथ भूकम्प रोधी तकनीक से निर्मित किए गए हैं। भूकम्प के बाद शासन की योजना के तहत हुडको ने सौ से ज्यादा भवन बनाए। सभी भवन कांक्रीट ब्लॉक व कांक्रीट क्षत पर आधारित हैं।



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