डॉ. नरेश त्रेहान का कॉलम: फेफड़ों की समस्या दिल का रोग भी साबित हो सकती है

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डॉ. नरेश त्रेहान का कॉलम:  फेफड़ों की समस्या दिल का रोग भी साबित हो सकती है

डॉ. नरेश त्रेहान का कॉलम: फेफड़ों की समस्या दिल का रोग भी साबित हो सकती है

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6 घंटे पहले

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डॉ. नरेश त्रेहान सीएमडी, मेदांता हॉस्पिटल्स

आपके सीने में बसे दो पड़ोसियों- फेफड़े और दिल का काम के मामले में बड़ा करीबी रिश्ता है। दोनों साथ मिलकर पूरे शरीर में खून और ऑक्सीजन भेजते हैं, वह भी जिंदगीभर। इन सिस्टम की एक-दूसरे पर इस निर्भरता का यह भी मतलब है कि जब एक सिस्टम में समस्या होगी, तो दूसरा भी फेल हो सकता है।

शोध बताते हैं कि सांस की अलग-अलग बीमारियों की वजह से दिल के अलग-अलग रोगों की आशंका रहती है। जैसे अस्थमा से कोरोनरी आर्टरी की बीमारी (प्लाक बनना) का जोखिम 50% बढ़ जाता है, लंग फाइब्रोसिस का 60%, जबकि सीओपीडी का जोखिम 70% बढ़ जाता है।

वहीं हार्ट फेल होने का जोखिम दोगुना हो जाता है। अस्थमा के लगभग 80% मामलों का अब भी निदान नहीं हो पाता। वायु प्रदूषण ने जोखिम को और बढ़ा दिया है, जिससे कोरोनरी आर्टरी डिजीज और हार्ट फेल का खतरा बढ़ता है। साथ ही, यह डायबिटीज और हाई बीपी के लिए भी जिम्मेदार है।

बढ़ते वायु प्रदूषण के बीच, अब भारत में फेफड़ों और हृदय रोगों के संबंध को समझना बहुत जरूरी हो गया है। सर्दी के मौसम में एक्यूआई अक्सर 400 पार हो जाता है और गर्मी में भी शायद ही कभी हानिकारक स्तर से नीचे जाता है। इससे हम बहुत सारे विषैले पदार्थों के संपर्क में आ रहे हैं। पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों के रोज संपर्क से फेफड़ों में क्रोनिक इंफ्लेमेशन (सूजन) हो सकती है।

दरअसल, वायु प्रदूषण बीमारी को तेजी से बढ़ाने वाले फैक्टर के तौर पर काम करता है, जिससे श्वसन संबंधी शुरुआती बीमारियों का जोखिम पैदा होता है और हृदय रोग की जटिलताएं होती हैं। यह ज्यादा चिंताजनक है, क्योंकि जीवनशैली से जुड़े जोखिम के विपरीत, वायु प्रदूषण के जोखिम से पूरी तरह से बचना असंभव है।

भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन यहां श्वसन संबंधी बीमारियों का वैश्विक बोझ 32 प्रतिशत है। हमारे यहां सीओपीडी के सबसे ज्यादा मामले (5.5 करोड़ से अधिक) हैं, जो दुनिया में होने वाली मौतों की दूसरी सबसे बड़ी वजह है। दुनिया में अस्थमा से होने वाली मौतों में से 43 प्रतिशत भारत में होती हैं। श्वसन संबंधी बीमारियों का कम ही निदान होता है।

हृदय रोग के बढ़ते जोखिम के बावजूद, इसकी संभावना कम है कि फेफड़ों के रोगों से पीड़ित मरीजों को उनके हृदय रोग के लिए इलाज (एंजियोप्लास्टी, पेसमेकर या बाईपास सर्जरी) मिले। हृदय रोग और फेफड़ों के रोगों के कुछ लक्षण समान हैं। साथ ही, फेफड़ों की बीमारियों वाले मरीजों में हृदय संबंधी उपचार में जटिलता की दर ज्यादा होती है।

मध्यम उम्र से लेकर बुढ़ापे तक, श्वसन संबंधी समस्या के कारण हृदय रोग की आशंका ज्यादा होती है। हालांकि, श्वसन संबंधी बीमारी वाले लोगों में हृदय संबंधी समस्याएं अक्सर अनदेखी कर दी जाती हैं क्योंकि एक समान लक्षण (सांस की तकलीफ) से प्राथमिक कारण पता लगाना मुश्किल हो जाता है।

यह ध्यान रखना जरूरी है कि वायु प्रदूषण के लगातार संपर्क में रहने से हृदय संबंधी रोगों के शुरुआती लक्षण छिप सकते हैं। हो सकता है कि आप किसी लक्षण को, खराब वायु गुणवत्ता के कारण होने वाली प्रतिक्रिया समझकर नजरअंदाज कर दें।

जैसे सीने में लगातार तकलीफ या सांस लेने में कठिनाई, हृदय की समस्या के संकेत हो सकते हैं। लक्षणों के लिए एक डायरी रखें जिसमें यह दर्ज करें कि क्या कम एक्यूआई स्तर वाले दिनों या फिल्टर की गई हवा वाले इनडोर वातावरण में भी आपको सांस लेने में कठिनाई बनी रहती है। इससे यह पता करने में मदद मिलेगी कि समस्या प्रदूषण के कारण है या फिर यह कोई हृदय संबंधी समस्या है।

सीने में तकलीफ, मेहनत करने पर सीने में जकड़न जो आराम करने पर कम हो जाती है, पैरों में सूजन, घबराहट, ठंडा पसीना, चक्कर आना, सांस लेने में तकलीफ- जो एलर्जी या मेहनत करने से संबंधित नहीं है- अगर ये लक्षण हों तो हृदय रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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