डॉ. अनिल जोशी का कॉलम: एनर्जी को दूसरे स्रोतों से पाने की हमारी कोशिशें बढ़ रही हैं

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डॉ. अनिल जोशी का कॉलम:  एनर्जी को दूसरे स्रोतों से पाने की हमारी कोशिशें बढ़ रही हैं

डॉ. अनिल जोशी का कॉलम: एनर्जी को दूसरे स्रोतों से पाने की हमारी कोशिशें बढ़ रही हैं

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  • Dr. Anil Joshi’s Column Our Efforts To Get Energy From Other Sources Are Increasing

5 घंटे पहले

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डॉ. अनिल जोशी पद्मश्री से सम्मानित पर्यावरणविद्

2009 से हम पृथ्वी-दिवस मनाते आ रहे हैं। इस वर्ष यह 22 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिवस को मनाने के पीछे यूएन का उद्देश्य यही था कि हर वर्ष हम पृथ्वी के प्रति अपने दायित्वों को समझें और किसी एक खास थीम पर चर्चा करें। 2025 की थीम “अवर प्लैनेट, अवर पॉवर’ है।

इसका अर्थ है कि ऊर्जा के संसाधनों पर हमारी बढ़ती निर्भरता का सीधा असर पर्यावरण और प्रकृति पर पड़ रहा है। इसलिए हमें वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों के बारे में सोचना होगा। यूएन दुनिया में इस विचार को बढ़ाना चाहता है। यह सर्वविदित है कि आज भी दुनिया की ऊर्जा की सबसे बड़ी निर्भरता कोयले पर है। ऐसा कोई देश नहीं है, जहां इसकी खपत कम हो रही हो।

यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बैठकों में यह अक्सर चर्चा का विषय बनता है, क्योंकि कोयले के उपयोग से वायुमंडल में कार्बन का स्तर बढ़ रहा है। ऐसी बैठकों में यह गंभीर मुद्दा रहता है कि हमें अन्य स्रोतों जैसे पवन, जल, सौर और नाभिकीय ऊर्जा पर अपनी निर्भरता बढ़ानी चाहिए। इससे कोयले पर निर्भरता कम कर सकते हैं।

प्राकृतिक गैस भी बड़े विकल्प के रूप में उभर रही है। आज इसका तीन प्रमुख क्षेत्रों में उपयोग हो रहा है- केमिकल फर्टिलाइजर, रसोई गैस और सीएनजी। अनुमान है 2030 तक इस पर निर्भरता 60% तक बढ़ जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों से कुछ हद तक मुक्त हो पाएंगे।

भारत में आज बिजली की कुल खपत लगभग 201.445 गीगावॉट है, जिसमें से लगभग 46% खपत वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से हो रही है। हम दुनिया में वैकल्पिक ऊर्जा के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उत्पादक और उपभोक्ता हैं। पहले दुनिया में हमारा स्थान 5वां था। आने वाले समय में यह उम्मीद है कि रिन्यूएबल एनर्जी पर हमारी निर्भरता हर वर्ष लगभग 5% की दर से बढ़ेगी और ऐसा ही बायो एनर्जी के क्षेत्र में होगा। उसमें हमारी निर्भरता 6.5% तक बढ़ सकती है।

भारत ने सौर ऊर्जा पर विशेष बल दिया है। राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने सौर ऊर्जा में बेहतर प्रदर्शन किया है और इससे ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद हुई है। वर्तमान में भारत की न्यूक्लियर पॉवर क्षमता 8.818 गीगावॉट है, हाइड्रो में 46.9, विंड में 48.5 और सोलर में 102.57 गीगावॉट है।

इन वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की भागीदारी के चलते हम कोयले पर अपनी निर्भरता घटा रहे हैं। पर यह पर्याप्त नहीं है। कुल मिलाकर देखा जाए तो हमने हर ऊर्जा स्रोत में अपनी खपत बढ़ाई है। कोयले की खपत 824 ट्रिलियन टन से बढ़कर 948 ट्रिलियन टन हो गई है। गैस की खपत 43 से 52, हाइड्रो की 123 से 162, न्यूक्लियर की 35 से 45 और सोलर की 37 से 60 तक बढ़ी है।

आज भी 60% ऊर्जा कोयले पर आधारित है और अनुमान है कि यह 72% तक पहुंच सकती है। भारत आज 5000 ट्रिलियन किलोवॉट एनर्जी सौर स्रोत से हर साल उत्पन्न कर सकता है, लेकिन इसका पूर्ण उपयोग नहीं हो पा रहा है। फिर भी भारत दुनिया में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में तीसरे स्थान पर है।

एआईए की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत को घरेलू उपभोक्ताओं के स्तर पर अधिक प्रयास करने होंगे। सरकार ने सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए योजनाओं और सब्सिडी की शुरुआत की है। सोलर और विंड एनर्जी के प्रयासों के अलावा 2047 तक 9% ऊर्जा एटॉमिक पावर से प्राप्त करने का लक्ष्य है और 2030 तक 5,00,000 मेगावॉट ऊर्जा वैकल्पिक स्रोतों से प्राप्त करने की योजना है।

ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स के अनुसार भारत ने अब तक 167.107 गीगावॉट ऊर्जा वैकल्पिक स्रोतों से प्राप्त की है। इसमें 102 गीगावॉट सोलर, 46 हाइड्रो, 48 विंड, 16.73 बायोपावर और 4.94 स्मॉल वॉटर सिस्टम से तथा 6.78 एटॉमिक एनर्जी से प्राप्त की गई है। भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को लेकर गंभीर है और उसके लक्ष्य स्पष्ट हैं।

  • हमें नहीं भूलना चाहिए कि ऊर्जा दोनों तरह के संकट उत्पन्न करती है- अगर न हो तो संकट है और अधिक हो तो पर्यावरण के लिए खतरा है। लेकिन यदि हम वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर कार्य करते रहें, तो बेहतर निर्णय लेने में सक्षम होंगे।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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