टेंट से भव्य मंदिर तक की यात्रा में साथ रहे: आचार्य सत्येंद्र दास अपने धन से रामलला की सेवा कर खुश होते थे – Ayodhya News h3>
रामलला के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास (फाईल फोटो)
आचार्य सत्येंद्र सत्येंद्र अपने जीवन के 30 साल से भी ज्यादा समय रामलला की सेवा और श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए समर्पित किया। एक महात्मा,परम भक्त रामभक्त होने के साथ ही वे बहुत सरल, सहज और सौम्य, मिलनसार थे। प्रत्येक व्यक्ति को सुलभता
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रामलला के दरबार में मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास (फाईल फोटो)
बसंत पचमी को ब्रेन हेमरेज हुआ तो माघ पूर्णिमा को रामलला ने उन्हें अपने चरणों में बुला लिया।यह उनकी विशिष्ट धार्मिकता का स्वयं सिद्ध प्रमाण है।
मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास से आशीर्वाद लेते रामलला के पुजारी संतोष तिवारी आज बेहद पीड़ा के दौर से गुजर रहे हैं।
रामलला के पुजारी संतोष तिवारी के अनुसार आज माघ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन हमारे परम पूज्य पिता तुल्य श्री राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य श्री सत्येंद्र दास जी महाराज का साकेतवास हो गया। हृदय बहुत द्रवित है। इन्होंने ही हमें 1987 में अयोध्या जी लाया। शिक्षा, दीक्षा दिलाया( इन्हीं के श्रेय से श्री अयोध्या धाम मेरी कर्मभूमि बनी। 1 मार्च 1992 में अपने ही साथ श्री राम जन्मभूमि में श्री रामलला की सेवा में सहायक पुजारी के रूप में लगाए अभिभावक के रूप में हमेशा हमें दिशा निर्देश देते रहे, प्रभु श्री रामलला से मेरी यही प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति मिले भगवान अपने चरण में स्थान दें।
रामलला की सेवा के साथ आचार्य सत्येंद्र दास सामाजिक समरसता के पक्षधर थे।उन्होंने बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी और उनके पुत्र इकबाल अंसारी को अपने आश्रम पर बुलाकर होली खेल खुश होते थे।तो हाशिम अंसारी के अस्वस्थ होने पर उनको देखने उनके घर भी गए।गाय की सेवा हो या बंदरों को रोज चना खिलाना वे यह सब कर बेहद खुश होते थे।बच्चों से मिलना और उनकी शिक्षा में सहयोग करना उनको आनंदित करता था।
रामलला के प्रति समर्पण बेहद सराहनीय
आचार्य सत्येंद्र दास के पड़ोसी होने के साथ जगदगुरू रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने उन्हें बचपन से बेहद करीब से देखा।उन्होंने कहा कि पुजारी जी का जाना एक युग का जाना है। जिन्होंने अपनी संपूर्ण आस्था के साथ टेंट से लेकर के दिव्य मंदिर तक की यात्रा को तय किया। विपरीत परिस्थितियों में भी भगवान के भोग राग और सेवा के प्रति जो उनका लगाव था वह अत्यंत सराहनीय रहेगा।
उन्होंने जिस प्रकार से कर्फ्यू से लेकर के और समस्त पीड़ाओं को उठाकर अपने मुश्किल से कमाए हुए धन का भी प्रयोग करके भगवान के भोग राज सेवा को कभी बंद नहीं होने दिया। इतने लंबे संघर्षों में भगवान के प्रति जो उनका लगन था वह सदैव हम लोगों को प्रेरणा देता रहेगा। उनका जाना समाज के लिए अत्यंत पीड़ा दायक है। भगवान श्री राम से प्रार्थना है भगवान श्री राम लाल दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें।
रामलला और उनके सेवा को लेकर बेबाक टिप्पणी करते थे
श्रीरामवल्लभाकुंज के प्रमुख स्वामी राजकुमार दास कहते हैं कि आचार्य सत्येंद्र दास बेहद सहज और सरल होकर भी रामलला और उनके सेवा को लेकर बेबाक टिप्पणी करते थे।यह उनकी परम रामभक्ति का परिचायक था। उन्होंने हर परिस्थितियों में रामलला की बेहतर से से बेहतर सेवा की।उनका यह योगदान करोड़ों रामभक्त परिवार हमेशा याद रखेगा।यह संयोग कहें या राम की कृपा की माघ पूर्णिमा के पवित्र दिन उन्होंने परलोक के लिए प्रस्थान किया।
किसी विरोध अथवा अपनी मुश्किलों का ध्यान रखें बिना विभाग राय व्यक्त करते रहे
अयोध्या के वरिष्ठ पत्रकार के साथ एक महंत के रूप में आचार्य सत्येंद्र दास के पड़ोसी रघुबर शरण कहते हैं कि किसी मंदिर का पुजारी होना व्यवस्थागत प्रश्न है और इसी व्यवस्था के तहत आचार्य सत्येंद्र दास राम लाल के मुख्य अर्चक थे। किंतु असली बात यह थी कि वह सच्चे अर्चक और उपासक की भांति रामलाल से आत्मिक स्तर पर जुड़े थे।
रामलाल के मुख्य अर्चक का दायित्व मिलने के बाद भी वह प्रबंधन के स्तर पर जितना इस दायित्व का निर्माण करते थे उससे भी अधिक वह आत्मिक स्तर पर रेंडल से संबंधों का निर्माण करते रहे। इसी के चलते प्रारंभिक दौर से ही विश्व हिंदू परिषद और भाजपा की सत्ता सियासत से सहमत होने के बावजूद वह रामलला को ध्यान में रखकर किसी विरोध अथवा अपनी मुश्किलों का ध्यान रखें बिना विभाग राय व्यक्त किया करते थे।
ठेठ अयोध्या की राम भक्ति के एक अध्याय का अवसान
जो उन्हें विरासत में मिला था वह हनुमानगढ़ी से जुड़े महंत अभिराम दास का शिष्य होना । हनुमानगढ़ी के संतों का विभाग स्वभाव और रामलला की मूर्ति स्थापित करने वाले यशस्वी गुरु की छाप उन पर था जिंदगी बनी रही। उनका ना रहना एक अर्चक का अवसान ही नहीं है एक नैसर्गिक और ठेठ अयोध्या की राम भक्ति के एक अध्याय का अवसान है