झांसी की शगुफ्ता ने हिजाब में छिपकर सीखा कथक: बोलीं-धर्म और शौक दोनों साथ लेकर चली, पहले होता था विरोध अब मिलता है स्पोर्ट – Jhansi News h3>
अपनी कत्थक क्लास में बच्चियों को डांस सिखातीं शगुफ्ता
झांसी में मुस्लिम समाज की बेटी शगुफ्ता ने कथक नृत्य में मुकाम हासिल किया है। शगुफ्ता को दिल्ली में कथक डांस टीचर के रूप में डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। मुस्लिम बाहुल इलाके की होने के चलते माता पिता और समाज ने शगुफ्ता के नृत्य करने
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शगुफ्ता ने देश विदेश में लगभग 250 से अधिक अवॉर्ड हासिल कर, जहां परिवार को झुकने पर मजबूर किया तो वहीं, रूढ़िवादी परंपराओं पर चलकर तानाकशी करने वाले लोगों को करारा जवाब भी दिया। शगुफ्ता श्रीलंका, थाईलैंड और देश के अलग अलग राज्यों में परफॉर्म कर विजेता रही हैं। शगुफ्ता अभी एक डांस क्लास चला रही हैं, उनके पास बड़ी तादाद में बच्चे डांस सीखने आते हैं। जिसमें ज्यादातर अधिकारियों और सेना के अफसरों के बच्चे शामिल हैं।
झांसी रानी लक्ष्मीबाई के किले की तलहटी में बसे मुख्य शहर के दरीगरान की रहने वालीं शगुफ्ता खान की उम्र अभी 28 साल है। उनके पिता अशफाक एक छोटी सी परचून की दुकान चलाते हैं। उनकी मां जरीना घरेलू महिला हैं। वह जब 7 साल की थी तब से कथक सीखना शुरू किया। कथक डांस उन्होंने सबसे पहले झांसी फिर इंदौर और ग्वालियर में सीखती रहीं। वह 14 साल से कथक नृत्य को अपना जुनून मानते हुए सफलता की और बढ़ रही हैं। शगुफ्ता खान ने बताया कि उन्होंने 2011 से कथक डांस शौकिया तौर पर सीखना शुरू किया था। लेकिन कुछ समय बाद उनके माता पिता की इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने जमाने की दुहाई देते हुए कथक डांस के लिए मना कर दिया।
लेकिन तब तक उनका शौक जुनून में बदल चुका था। वह परिवार को बिना बताए कथक डांस सीखती रहीं। जब उनको किसी कंपटीशन में जाना पड़ता तो घर में विवाद शुरू हो जाता। लेकिन वह किसी तरह कंपीटीशन के मंच तक पहुंच ही जाती थी और सफलता भी मिलती थी। शगुफ्ता ने बताया कि उन्होंने यदि उन्हें आगे बढ़ना है तो माता पिता की रजामंदी होना जरूरी है। जिसके लिए उन्हों अपनी अम्मी और अब्बू से वादा किया पर्दे और मुस्लिम रीतिरिवाज के साथ रहेंगी। परिवार में जिस तरह रहन सहन उससे अलग हटकर कभी कोई काम नहीं करेंगी। बेटी द्वारा दिलाए विश्वास और कथक डांस में तब तक मिली सफलता को देखते हुए परिवार ने सहयोग करना शुरू कर दिया। शगुफ्ता ने बताया कि वह जब घर से किसी काम या फिर क्लास, कंपीटीशन के लिए निकलती है तो सिर पर उनके हिजाब और नकाब रहता है। कार्यक्रम होने के बाद वह वापस अपने उसी लिवास में आ जाती हैं। उन्होंने बताया कि वह पांचों वक्त की नमाज और कुरआन रोजाना पढ़ती हैं। इसके साथ वह अपने रीति रिवाज को भी फॉलो करती हैं। उनकी अब इस सफलता को देखते हुए उनके माता पिता उनके हर कदम पर उनका साथ देने लगे हैं।
शगुफ्ता ने बताया कि अभी तक उन्होंने अभी तक 250 से अधिक अवॉर्ड अपने नाम किए है। जो कि उन्हें झांसी के अलावा जयपुर, मुंबई और भारत के अन्य शहरों अवॉर्ड पाकर विजेता रही हैं। विदेश की अगर हम बात करें तो शगुफ्ता खान श्रीलंका, थाईलैंड में भी कथक डांस से भारत का नाम रौशन कर चुकी हैं। हाल ही में दिल्ली में बॉलीवुड एक्टर रितु शिवपुरी ने डॉक्टर की मानद उपाधि उन्हें दी है। जिसकी चर्चा झांसी के अलावा पूरे बुंदेलखंड में हो रही है। शगुफ्ता ने बताया कि अभी वह शगुफ्ता डांस क्लासिस के नाम से अकादमी चला रही है। जिसमें उनके पास एक बड़ी तादाद में छोटे बच्चों से लेकर महिलाएं तक सीखने आती है। जो बच्चे कथक में डिग्री कर रहे वह तो सभी उनके ही पास आते है। सीखने वालों में अधिकारी और सेना के अधिकारियों और व्यापारियों तक के बच्चे आया करते हैं। इसके अलावा वह ऑनलाइन क्लास लेती है। जिसमें भारत के अलावा विदेश के स्टूडेंट भी है। उन्होंने कहा कि शुरुआत में कुछ परिवार की तरफ से विरोध हुए लेकिन तरक्की मिलने पर परिवार और समाज भी अब उनकी इस सफलता की उड़ान में सहयोग करता है। उन्होंने बताया कि वह भविष्य में कथक डांस का नाम पूरे विश्व में करना चाहती है। उनका सपना है ही अपने द्वारा चलाए जा रहे कथा डांस स्कूल आगे चलकर एक बड़ी एकेडमी में बदले।