ज्यां द्रेज का कॉलम: एक बेहतर समाज वह होता है जिसमें विषमताएं न हों

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ज्यां द्रेज का कॉलम:  एक बेहतर समाज वह होता है जिसमें विषमताएं न हों

ज्यां द्रेज का कॉलम: एक बेहतर समाज वह होता है जिसमें विषमताएं न हों

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  • Jean Dreze’s Column A Better Society Is One In Which There Are No Inequalities

8 घंटे पहले

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ज्यां द्रेज प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री व समाजशास्त्री

पूंजीवाद गांव के पुराने जमींदार की तरह है : अधिकांश लोग उसे नापसंद करते हैं, लेकिन कोई नहीं जानता उससे छुटकारा कैसे पाया जाए। कुछ लोगों को लगता है उसके बिना जीना संभव नहीं है, दूसरों का तो यह भी कहना है कि हमें काम देने के लिए उनका आभारी होना चाहिए। बहुत कम लोग जमींदार के बिना जीवन की कल्पना कर पाते हैं।

पूंजीवादी व्यवस्था में, कुछ ही लोग उत्पादन के साधनों के मालिक होते हैं और उनका इस्तेमाल मुनाफा कमाने के लिए करते हैं। बाकी लोग ज्यादातर उनके लिए मजदूरी का काम करते हैं। इस व्यवस्था पर कम से कम तीन आपत्तियां हैं।

पहला, पूंजीवाद आर्थिक असमानताएं पैदा करता है। कुछ ही लोगों को शक्तिशाली बनाता है और लोकतंत्र को कमजोर करता है। अमेरिका को देखिए, वहां आजकल अति-अमीर अरबपतियों का एक छोटा-सा गिरोह ही देश चला रहा है। भारत के भी उसी रास्ते पर जाने का खतरा है।

दूसरा, पूंजीवाद हर चीज से मुनाफा निकालने की कोशिश करता है। जल, जंगल, जमीन, खनिज, पशु, ज्ञान, डेटा, गीत, कविताएं, शादी, तारे, महासागर, यहां तक ​​कि मनुष्य- सब कुछ मुद्रीकरण के लिए चारा है। इस अतृप्त लालच का सबसे बड़ा शिकार पर्यावरण है। पूंजीवाद सचमुच पृथ्वी को नष्ट कर रहा है।

तीसरा, पूंजीवाद श्रम का शोषण जारी रखता है। मजदूरी एक प्रकार की गुलामी है। मजदूर और गुलाम दोनों ही अपनी आज़ादी बेचते हैं। अंतर यह है कि गुलाम इसे थोक में बेचता है, जबकि मजदूर टुकड़ों में। तो, विकल्प क्या है? पारंपरिक उत्तर यह है कि सरकार उत्पादन के साधनों का कब्जा करे और अर्थव्यवस्था चलाए।

हालांकि, यह संतोषजनक विकल्प नहीं लगता। यह मजदूरों को पूंजीपति के गुलामों से सरकार के गुलामों में बदल देता है। यह सुधार तो हो सकता है, लेकिन स्वतंत्रता नहीं है। इसके अलावा, यह विकल्प सरकार को बहुत अधिक शक्ति देता है। इस शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है।

एक अन्य विकल्प यह है कि मजदूर स्वयं आर्थिक साधनों के मालिक रहें और उद्यमों का प्रबंधन करें। मैं आपकी हंसी सुन सकता हूं, लेकिन यह कोई मजाक नहीं है। अर्थशास्त्र का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि मजदूरों को बॉस की जरूरत नहीं होती। वे निर्वाचित प्रबंधकों की मदद से खुद उद्यम चला सकते हैं।

कई अनुभव इस सरल बिंदु को प्रदर्शित करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण स्पेन में मोंड्रेगन प्रयोग है। मोंड्रेगन सहकारी समितियों का संघ है, जिसमें 80,000 से अधिक मजदूर कार्यरत हैं। सहकारी समितियां साइकिल, फ्रिज, दवाइयां, मशीनें और कई अन्य वस्तुएं बनाती हैं। संघ में सुपरमार्केट की एक शृंखला, एक सहकारी बैंक और एक विश्वविद्यालय भी शामिल है। ये संघ 68 वर्षों से अस्तित्व में है और उद्यम बहुत अच्छे-से चल रहे हैं। मजदूर ही उनके मालिक हैं।

दुनिया भर में इस तरह के कई अन्य लोकतांत्रिक उद्यम हैं। भारत में भी, केरल में मोंड्रेगन जैसा उरालुंगल सहकारी समिति नामक उद्यम है, जिसमें हजारों मजदूर लोकतंत्रिक रूप से काम करते हैं।अमूल, इंडियन कॉफी हाउस और लिज्जत पापड़ जैसी अन्य सहकारी समितियां भी हैं। लेकिन इस तरह के उद्यम तभी फलेंगे-फूलेंगे जब उन्हें सहयोगपूर्ण वातावरण मिलेगा।

जब मजदूर अपने उद्यम का प्रबंधन स्वयं करते हैं, तो कई चीजें बदलती हैं। इससे स्वतंत्रता पैदा होती है। कार्य-वातावरण सुधरता है। विषमता कम होती है। अरबपति गायब हो जाते हैं। भ्रष्टाचार मुश्किल हो जाता है। स्थानीय पर्यावरण के प्रति सम्मान होता है, क्योंकि यह मजदूरों का पर्यावरण है। लोकतंत्र की संस्कृति विकसित होती है, जिससे समाज को ही लाभ होता है।

जैसे जमींदार अपनी जमीन नहीं छोड़ते, वैसे ही पूंजीपति भी बिना किसी प्रतिरोध के मजदूरों को उद्यम नहीं सौंपेंगे। लेकिन जब हम एक बेहतर समाज बनाने के लिए काम करते हैं, तो यह जानना महत्वपूर्ण है कि हमारे लक्ष्य क्या हैं।

भारत में उरालुंगल नामक सहकारी समिति है, जिसमें हजारों मजदूर काम करते हैं। अमूल, आईसीएच, लिज्जत पापड़ जैसी अन्य सहकारी समितियां हैं। इस तरह के उद्यम तभी फलेंगे-फूलेंगे, जब उन्हें सहयोगपूर्ण वातावरण मिले। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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