जो आजादी के लिए जेल गया, उसे आतंकी बताकर मारा: पत्नी बोलीं- डेडबॉडी तक नहीं मिली, पंजाब पुलिस के 58 फेक एनकाउंटर्स

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जो आजादी के लिए जेल गया, उसे आतंकी बताकर मारा:  पत्नी बोलीं- डेडबॉडी तक नहीं मिली, पंजाब पुलिस के 58 फेक एनकाउंटर्स

जो आजादी के लिए जेल गया, उसे आतंकी बताकर मारा: पत्नी बोलीं- डेडबॉडी तक नहीं मिली, पंजाब पुलिस के 58 फेक एनकाउंटर्स

तारीख: 31 अक्टूबर, 1992 जगह: अमृतसर से 7 किमी दूर घनूपुर गांव शाम का वक्त था। गांव के सरकारी स्कूल में वाइस प्रिंसिपल सुखदेव सिंह पत्नी सुखवंत कौर के साथ चाय पी रहे थे। फ्रीडम फाइटर रहे उनके ससुर सुलक्खन सिंह भी घर आए हुए थे। तभी पुलिस की टीम वहां पह

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सुखदेव और सुलक्खन के बारे में न कोई पुख्ता खबर मिली और न उनकी डेडबॉडी मिली। आरोप लगा कि पुलिस ने गनपॉइंट पर फैमिली से साइन कराया और हार्ट अटैक का डेथ सर्टिफिकेट थमा दिया। 1995 में CBI ने अलग-अलग फेक एनकाउंटर के करीब 70 केस दर्ज किए थे, ये उन्हीं में से एक था। इनमें से 59 केस में कोर्ट ने पुलिस को दोषी माना। अब सिर्फ 11 केस पेंडिंग हैं।

2018 तक सुखदेव और सुलक्खन केस पर स्टे रहा। स्टे हटने के बाद ट्रायल शुरू हुआ और करीब 32 साल बाद पंजाब के मोहाली CBI कोर्ट ने पुलिस अधिकारी रहे सुरिंदर पाल को दोषी माना। 10 साल की सजा सुनाई गई। इसमें दूसरे आरोपी ASI अवतार सिंह की पहले ही मौत हो चुकी थी।

पंजाब फेक एनकाउंटर के पार्ट-3 में कहानी आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सुलक्खन सिंह और उनके दामाद सुखदेव सिंह की। हमने एनकाउंटर के घटनाक्रम और इनकी जिंदगी को करीब से समझने के लिए सुखदेव सिंह की पत्नी सुखवंत कौर और इनके बेटे जसविंदर सिंह से बात की।

स्कूल से लौटकर साथ में आखिरी बार चाय पी, अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाए सुखदेव सिंह का परिवार पंजाब के अमृतसर से करीब 7 किमी दूर घनूपुर गांव में रहता था। सुखदेव सिंह सरकारी स्कूल में वाइस प्रिंसिपल थे। उनकी पत्नी सुखवंत कौर भी सरकारी स्कूल में टीचर रहीं। 2000 में रिटायर हुईं। अब इनका परिवार अमृतसर के न्यू कबीर पार्क एरिया में रहता है।

घर में दाखिल होते ही हॉल में सामने सुखदेव सिंह और सुलक्खन सिंह की फोटो दिखी। दूसरी ओर बुजुर्ग सुखवंत कौर हीटर जलाए सोफे पर बैठी थीं। वे बातचीत का सिलसिला अपनी पैदाइश के किस्से से शुरू करती हैं।

बताती हैं, ’मैं पाकिस्तान में पैदा हुई थी। तब तक बंटवारा नहीं हुआ था। पिता सुलक्खन सिंह आजादी की लड़ाई में जेल गए थे। उन्हें जेल में चिट्ठी भेजकर बताया गया कि बेटी हुई है। उन्होंने जेल से ही मेरा नाम सुखवंत कौर रख दिया। उन्होंने उसी चिट्ठी पर पीछे मेरा नाम लिखकर भेजा था’

1992 में पति और पिता को अगवा करने की घटना याद करते हुए सुखवंत कहती हैं, ‘31 अक्टूबर तारीख थी। उस दिन शनिवार था। मैं स्कूल से आ गई थी। पति सरदार सुखदेव सिंह भी स्कूल से लौटे ही थे। वे वाइस प्रिंसिपल थे। पिता सुलक्खन सिंह भी उस दिन घर आए हुए थे।‘

सुखदेव और सुलक्खन की मौत को फेक एनकाउंटर साबित करने में 32 साल लग गए। इस दौरान सुखवंत और उनके बेटे जसविंदर सिंह ये लड़ाई लड़ते रहे।

सुखवंत बताती हैं, ‘हम सब शाम की चाय साथ पीने बैठे ही थे कि पुलिस आ गई। मेरे पति ने दरवाजा खोला। हमने सोचा कि कोई केस तो नहीं है, फिर पुलिस क्यों आई है। उन्होंने बताया कि वो किसी मामले में पूछताछ करने आए हैं। फिर पति और पिता को साथ ले गए। पुलिसवालों में ASI अवतार सिंह और कुछ दूसरे पुलिसवाले थे।’

सुखवंत आगे बताती हैं, ‘मेरे ससुर उजागर सिंह रिटायर्ड पुलिस अधिकारी थे। अगले दिन 1 नवंबर को ससुर, मेरे दोनों भाई जगतार सिंह, बलकार सिंह और गांव के सरपंच शाहबेग सिंह सरहली थाने गए। वहां पिता और पति पुलिस कस्टडी में मिले। उन्हें कहा गया कि पूछताछ कर छोड़ देंगे। उस वक्त SHO रहे सुरिंदर पाल सिंह ने कहा था कि इनके लिए खाना भिजवा देना। हमने दोपहर में खाना पहुंचाया।’

‘मैंने उसी दिन (1 नवंबर) CM, DGP और राष्ट्रपति से लेकर सभी पुलिस अफसरों को टेलीग्राम भेज दिया था। उसमें लिखा था कि सरहली थाने की पुलिस ने मेरे पति सुखदेव सिंह और पिता सुलक्खन सिंह को अवैध हिरासत में ले रखा है। उसकी सर्टिफाइड कॉपी भी है। अगले दिन (2 नवंबर) भी थाने में ही खाना भेजा गया।’

‘गनपॉइंट पर साइन कराए, हार्टअटैक से मौत का फर्जी सर्टिफिकेट थमाया’ सुखवंत कौर के बेटे जसविंदर सिंह भी टीचर हैं। पिता और नाना को पुलिस ने घर से उठाया था, तब वे 17 साल के थे। जसविंदर बताते हैं, ‘हमारा घर बीच बाजार में है। उस दिन ASI अवतार सिंह हमारे घर आ रहा था, तब उसने पास के एक दुकानदार से पता पूछा था।‘

‘पुलिस की टीम सरहली थाने से आई थी। पापा और नाना के फेक एनकाउंटर की बात सामने आने लगी, तब कई महीनों बाद वही पुलिसवाले फिर हमारे घर आए। उन्होंने माता जी और मुझे गनपॉइंट पर लिया और मारने की धमकी दी।’

‘डेथ सर्टिफिकेट 8 जुलाई, 1993 को जारी हुआ था। उसमें मौत की वजह हार्ट अटैक बताई गई थी। CBI ने पूछताछ की, तब गांव के सरपंच और श्मशान घाट में काम करने वाले लोगों ने अपने बयान में उस दिन की घटना का जिक्र किया था।‘

‘इन लोगों ने कहा था कि 31 अक्टूबर 1992 को सुखदेव सिंह और सुलक्खन सिंह को पुलिस उठा ले गई थी। उसके बाद दोनों को कभी नहीं देखा गया। न उनकी डेडबॉडी आई और न ही उनका अंतिम संस्कार हुआ।‘

‘पापा को टॉर्चर करके मारा, चश्मदीद नाना को जिंदा नहर में फेंका’ जसविंदर आगे बताते हैं, ‘घटना के कुछ साल बाद ASI अवतार सिंह और चंचल सिंह नाम का पुलिसवाला मेरे घर आए थे। दोनों ने हमसे समझौता करने के लिए कहा था। दोनों ने बताया था- ‘पापा (सुखदेव सिंह) से पूछताछ चल रही थी, उसी दौरान उनकी मौत हो गई थी।’

‘पुलिस वाले जब उनकी डेडबॉडी को नहर में फेंकने जा रहे थे, तब मेरे नाना जी (बापू जी) जिंदा थे। पुलिस वालों ने उन्हें भी पापा की डेडबॉडी के साथ जिंदा बांध दिया। फिर उन दोनों को हरिके कैनाल में फेंक दिया था।’

सुखदेव के बेटे जसविंदर के मुताबिक, पुलिस ने बताया था कि सुखदेव की डेडबॉडी उन्होंने हरिके कैनाल में फेंकी थी। साथ ही सुलक्खन को जिंदा ही डेडबॉडी के साथ बांधकर कैनाल में फेंक दिया था।

जसविंदर आगे बताते हैं, ’हमने पापा और नाना को इंसाफ दिलाने के लिए 32 साल कानूनी लड़ाई लड़ी। मेरी जिंदगी के सबसे कीमती 32 साल इसी में गुजरे हैं। मेरी मां को कोर्ट के एक हजार से ज्यादा बार चक्कर लगाने पड़े। हमें आस थी कि कभी तो फैसला आएगा।’

31 अक्टूबर, 1992 को सुखदेव सिंह की आखिरी अटेंडेंस लगी 1992 में सुखदेव सिंह जिस स्कूल में वाइस प्रिंसिपल थे, रविंदर सिंह उसमें प्रिंसिपल थे। जांच के दौरान CBI ने रविंदर सिंह का भी बयान लिया था। उस बयान का जिक्र CBI की चार्जशीट में है।

रविंदर ने अपने बयान में कहा था- ‘मैं प्रिंसिपल के साथ इकोनॉमिक्स का लेक्चरर भी था। उस वक्त रजिस्टर पर टीचर्स की अटेंडेंस होती थी। मैंने जनवरी 1992 से दिसंबर 1992 तक के रजिस्टर रिकॉर्ड भी चेक किए। उसमें 31 अक्टूबर 1992 को आखिरी बार सुखदेव सिंह ने हाजिरी लगाई थी। उसके बाद वो कभी स्कूल नहीं आए।‘

बचाव पक्ष के वकील क्या बोले… सुखवंत कौर के टेलीग्राम में सुरिंदर पाल का नाम नहीं, पुलिस फंसा रही कोर्ट में बचाव पक्ष की ओर से एडवोकेट के.एस. नागरा ने पैरवी की थी। उन्होंने कोर्ट में बताया था- ‘आरोपी तत्कालीन SHO सुरिंदर पाल सिंह का पहली बार किसी FIR में नाम आया है। इससे पहले शिकायतकर्ता सुखवंत कौर की किसी याचिका में उनका नाम नहीं था।’ वे कहते हैं…

सुखवंत कौर ने 1 नवंबर 1992 को टेलीग्राम किया था। उसमें सुरिंदर पाल के नाम का जिक्र नहीं था। सुरिंदर पाल निर्दोष हैं। उन्हें झूठे केस में फंसाया गया है।

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डिफेंस ने ये भी दलील दी थी कि सुखवंत कौर ने ही पति सुखदेव के डेथ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया था। इसमें 8 जुलाई, 1993 को हार्ट अटैक से मौत होने का जिक्र था। उसी आधार पर अमृतसर के जन्म-मृत्यु रजिस्ट्रार दफ्तर में डेथ सर्टिफिकेट बनवाया था। इसे कई सरकारी ऑफिसों में इस्तेमाल किया गया। इसलिए पुलिस पर लगे आरोप गलत हैं।’

सुखवंत कौर ने 1 नवंबर 1992 को पति सुखदेव और पिता सुलक्खन को अरेस्ट करने की जानकारी CM, DGP और राष्ट्रपति से लेकर बड़े पुलिस अफसरों को टेलीग्राम के जरिए दी थी।

सुखदेव और सुलक्खन के वकील की बात… कोर्ट में आरोपी नहीं बता पाए कैसे हुई सुखदेव और सुलक्खन की मौत सुखदेव सिंह और सुलक्खन सिंह के गायब होने और लाश न मिलने पर एडवोकेट सरबजीत सिंह कहते हैं, ‘इस केस में अब कोर्ट का फैसला आ चुका है। कोर्ट में सुनवाई के दौरान भी आरोपी नहीं बता सके कि दोनों कैसे लापता हुए और उनकी मौत कैसे हुई। वे बस यही कहते रहे कि दोनों को थाने नहीं लाया गया।‘

‘हालांकि गवाहों के बयान और सुखवंत कौर के 1 नवंबर 1992 को भेजे गए टेलीग्राम से ये साबित हो गया कि दोनों पुलिस कस्टडी में थे।‘

कानूनी लड़ाई के बारे में सरबजीत कहते हैं, ‘सुखदेव का परिवार केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी गया। वहां से उन्हें हाईकोर्ट भेज दिया गया। उसी वक्त 1995 में लावारिस लाशों वाला केस भी चल रहा था। उस केस में CBI जांच के आदेश हुए थे। इनका केस भी CBI को दे दिया गया।’

‘साल 2000 में CBI अधिकारी ने पटियाला CBI कोर्ट में इस केस में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी थी, लेकिन जज ने इसे रिजेक्ट कर दिया था। उन्होंने फिर से जांच करने के आदेश दिए थे।’

‘इसके बाद CBI के दूसरे अधिकारी ने जांच शुरू की। उन्होंने 2009 में इस केस में चार्जशीट दाखिल की। तत्कालीन SHO सुरिंदर पाल सिंह और अवतार सिंह समेत अन्य के खिलाफ आरोप तय किए।

हालांकि कोर्ट में स्टे लगने की वजह से 2017 तक केस में सुनवाई नहीं हुई। स्टे हटने के बाद 2018 में फिर से केस की सुनवाई शुरू हुई और आरोपियों को सजा सुनाई गई।’

32 साल बाद 18 दिसंबर 2024 को दोषी करार, 23 दिसंबर को सजा इस केस में मोहाली CBI स्पेशल जज मनजोत कौर ने फैसला सुनाया था। कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष ने ये साबित कर दिया कि सुखदेव सिंह और सुलक्खन सिंह को अगवा किया गया था। SHO सुरिंदर पाल सिंह के कहने पर ही ASI अवतार सिंह और उनकी टीम ने 31 अक्टूबर 1992 को दोनों को अगवा किया। 3 नवंबर तक दोनों को सरहली थाने में अवैध हिरासत में रखा गया।

ये भी साबित होता है कि घटना के बाद 1 नवंबर 1992 को सुखवंत कौर ने दोनों की अवैध हिरासत को लेकर टेलीग्राम भी भेजा था। इन सबूतों से बिना किसी शंका के ये साबित होता है कि पुलिस टीम ने इन दोनों का अपहरण किया। अब दोनों की मौत कैसे हुई। इस बारे में सिर्फ दोनों दोषी पुलिसकर्मी ही बता सकते हैं।

इस केस में हत्या के लिए अपहरण करने, बंधक बनाने और साजिश रचने की धाराओं में दोनों पुलिसकर्मियों को 18 दिसंबर 2024 को दोषी करार दिया गया। 23 दिसंबर 2024 को सजा सुनाई गई।

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