जूना अखाड़े के नागा करते हैं जननांग का भी श्रृंगार: 2 करोड़ में बना महामंडलेश्वर का पंडाल, 10 लाख नागा-साधु

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जूना अखाड़े के नागा करते हैं जननांग का भी श्रृंगार:  2 करोड़ में बना महामंडलेश्वर का पंडाल, 10 लाख नागा-साधु

जूना अखाड़े के नागा करते हैं जननांग का भी श्रृंगार: 2 करोड़ में बना महामंडलेश्वर का पंडाल, 10 लाख नागा-साधु

शैव संप्रदाय के 7 अखाड़ों में सबसे बड़ा है जूना अखाड़ा। इस अखाड़े में सबसे ज्यादा करीब 10 लाख नागा और साधु हैं। इस अखाड़े से हजारों की संख्या में विदेशी श्रद्धालु भी जुड़े हैं।

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यहां के नागा दूसरे अखाड़ों के नागाओं से बहुत अलग हैं। दूसरे अखाड़े के नागा जहां भस्म, कड़े, रुद्राक्ष और लंबी जटाओं के लिए जाने जाते हैं, वहीं जूना अखाड़े के कई नागा अपने जननांग का भी श्रृंगार करते हैं।

दैनिक NEWS4SOCIALकी अखाड़ों की कहानी सीरीज की सातवीं किस्त में पढ़िए श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े की पूरी कहानी…

कुंभ क्षेत्र काली सड़क सेक्टर 20 में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है। मैं देख रही हूं कि यहां लोग श्रद्धा से कम बल्कि अखाड़े के साधु देखने के लिए ज्यादा आ रहे हैं।

जूना अखाड़े के अंदर बैठे साधु, जिनका आशीर्वाद लेने वालों की भीड़ लगी हुई है।

अखाड़े के अंदर घुसते ही अजब-गजब नागा और साधु नजर आ रहे हैं। किसी नागा के तंबू के सामने एक बड़े से बर्तन में पानी भरा हुआ है, जिसमें पत्थर तैर रहा है। नागा बताते हैं कि ये पत्थर श्रीलंका से लाए थे। इनका इस्तेमाल त्रेतायुग में रामसेतु बनाने के लिए हुआ था।

नागा के तंबू के सामने रखे पानी भरे बर्तन में तैरता पत्थर।

इसके पास ही एक बाबा बैठे हुए हैं जिनका एक बाजू ऊपर है। उनके पास आशीर्वाद लेने वालों की भीड़ लगी हुई है। ये बाबा 12 साल से एक हाथ ऊपर उठाए हुए हैं। ये इनका हठयोग हैं। उनकी उंगलियों के नाखून कई इंच तक लंबे हो गए हैं। ये बाबा ज्यादा किसी से बात नहीं करते।

जूना अखाड़े के ये बाबा 12 साल से हाथ ऊपर उठाए हुए हैं।

यहां कई नागा ऐसे हैं जिन्होंने अपने जननांग में बड़ा सा ताला लटका रखा है तो किसी ने जननांग को चांदी से मढ़वा लिया है। एक तरह से इसे कवर भी कह सकते हैं। इस तरह का श्रृंगार करने वाले नागा बहुत गुस्सैल माने जाते हैं। वे किसी से बात भी नहीं करते।

जननांग में ताला लटकाए ये नागा ज्यादा बात नहीं करते हैं।

ऐसे यहां कई नागा हैं जिन्हें देखने वालों की भीड़ लगी हुई है जैसे कबूतर वाले बाबा, रुद्राक्ष वाले बाबा, टाइगर बाबा, छोटे नागा जैसे बाबा भी हजारों में हैं। नागा भी श्रद्धालुओं को बुला-बुला कर उनके सिर पर मोरपंख आशीर्वाद दे रहे हैं। माथे पर भभूत मल रहे हैं। कबूतर वाले बाबा को देखने के लिए भी श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। कबूतर हमेशा उनके सिर पर बैठा रहता है।

जूना अखाड़े में नागा बाबाओं के पास दशनामी नाम की एक रहस्यमय झोली होती है।

अजब-गजब बाबाओं में महंत वशिष्ठ गिरी बाबा भी हैं जो रुद्राक्ष धारण किए हुए हैं। साल 2010 में जब उन्होंने दीक्षा ली थी तो प्रयागराज के मौजगिरी आश्रम आए थे। वह बताते हैं कि सभापति और मेरे दादा गुरु स्वामी प्रेम गिरी जी महाराज ने रुद्राक्ष की माला देकर कहा था कि चेला इसे धारण करना है। उनके कहने पर इसे धारण किया है। इसमें लगभग सवा लाख दाने हैं।

रुद्राक्ष बाबा बताते हैं कि असली नागा बाबाओं के पास दशनामी नाम की एक रहस्यमय झोली होती है। इसमें पुष्पांजलि, अखाड़े का इतिहास और शृंगार का सामान होता है। नागा के जीवन में भभूत का भी महत्व है। ये भोले नाथ का शृंगार और हमारे वस्त्र हैं, हम उन्हीं की तपस्या करते हैं।

जूना अखाड़े के महंत वशिष्ठ गिरी बाबा जिन्हें रुद्राक्ष बाबा कहते हैं।

कड़ाके की इस सर्दी में एक तंबू में करीब सात साल का बच्चा बिना कपड़ों के बैठा ठिठुर रहा है। पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले ही नागा बनने के संस्कारों की दीक्षा दी गई है। बच्चे को उसके गुरु ने नया नाम भी दिया है।

मैंने पूछा छोटे बाबा जी का नाम क्या है, छोटे बाबा बोले- शिवमपुरी। फिर पूछा ये नाम किसने दिया है? पास बैठे उसके गुरु बोले, ‘मैंने दिया है और आज ही इनका संस्कार भी हुआ है।’

अगला सवाल छोटे बाबा की जगह उनके गुरु से ही पूछ लिया कि शिवमपुरी आपके पास कब से हैं। बाबा ने कहा, ‘तीन-चार दिन पहले मेरे धूणे पर न जाने कौन छोड़ गया।’

जूना अखाड़े में अपने गुरु के साथ बैठे 7 साल के शिवमपुरी।

इस अखाड़े के अजब-गजब बाबाओं के अलावा आचार्य महामंडलेश्वर जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरी के पंडाल की भी खूब चर्चा है। इनका पंडाल सेक्टर 18 में अन्नपूर्णा मार्ग पर है। भगवा रंग के इस पंडाल में अंदर घुसते ही सामने आदि शंकराचार्य की मूर्ति बनी हुई है। जिसे देखकर लग रहा है कि तांबे की है।

आचार्य महामंडलेश्वर जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरी के पंडाल में लगी आदि शंकराचार्य की मूर्ति।

हाईटेक सुविधाओं वाले इस पंडाल में अस्पताल, कैंटीन और काफी बड़ा प्रवचन हॉल है। ये पंडाल लगभग 56 बीघे में बना है, जिसे बनाने में 2 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए हैं।

आचार्य महामंडलेश्वर जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरी का पंडाल किसी किले से कम नहीं है।

दूसरे अखाड़ों में कुछ साल पहले तक जहां दलित दीक्षा नहीं ले सकते थे, वहीं जूना अखाड़े में सैकड़ों की संख्या में दलित नागा और साधु दीक्षा ले चुके हैं। इतना ही नहीं, इस अखाड़े में दलित महामंडलेश्वर और जगतगुरु बन चुके हैं। एक जापानी महिला महामंडलेश्वर हैं, जिनका नाम योगमाता कीको आईकावा है।

जूना अखाड़े में कौन प्रवेश ले सकता है? इस सवाल के जवाब में अखाड़े के जगतगुरु स्वामी महेंद्र गिरी बताते हैं कि इस अखाड़े में कोई भी प्रवेश ले सकता है। जगतगुरु स्वामी महेंद्र गिरी अखाड़े के पहले दलित संत और सबसे कम उम्र के जगतगुरु हैं। उनकी जिम्मेदारी है कि ज्यादा से ज्यादा दलितों को अखाड़े से जोड़ें।

महेंद्र गिरी आने वाली शिवरात्रि में जूनागढ़ में 330 दलितों को दीक्षा देने वाले हैं। महेंद्र गिरी बताते हैं कि जूना अखाड़े से जुड़ने के लिए धर्म, कर्म और ध्यान देखा जाता है। महात्माओं की कार्य पद्धति, समाज के साथ व्यवहार, ज्ञान सब देखा जाता है। उसके बाद उन्हें अलग-अलग पदों से नवाजा जाता है।

जगतगुरु स्वामी महेंद्र गिरी बताते हैं कि उनके साथ लगभग 350 दलित संत जुड़े हुए हैं।

महेंद्र गिरी बताते हैं कहते हैं मैंने कई हजार शिष्य बनाए हैं। मेरे काम और निष्ठा को देखते हुए मुझे जगतगुरु बनाया गया है। मेरे साथ जुड़े दलित संत गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में धर्म का प्रचार कर रहे हैं।

जूना अखाड़े में क्या-क्या प्रतिबंधित है? इस पर महेंद्रगिरी कहते हैं कि अखाड़े में आने के बाद मोह, लोभ, काम और क्रोध त्यागना होता है। जिन्हें हम छोड़कर आए हैं, उनमें वापस नहीं जाना है। अखाड़े की परंपरा अपनानी पड़ती है। खान-पान कैसा हो, चरित्र कैसा हो ये अखाड़े में तय है। इन सब बातों के खिलाफ कोई नहीं जा सकता। धर्म के विरुद्ध असुर प्रवृत्ति वाले को अखाड़े से निकाल दिया जाता है।

अगर कोई ऐसा करता है तो उसके लिए बाकायदा एक खारिज कमेटी बनी हुई है। जिसके 5 से 10 सदस्य हैं। जांच होने और सही पाने पर उसका भैख यानी गेरुआ उससे छीन लिया जाता है। ठीक उसी तरह जैसे सेना में अनुशासन तोड़ने पर एक सैनिक का कोर्ट मार्शल होता है।

महेंद्र गिरी कहते हैं- जूना अखाड़ा वर्ण व्यवस्था पर काम कर रहा है, दूसरी ओर उसे इसका विरोध भी सहन करना पड़ रहा है। सनातन में वर्ण व्यवस्था पर गुजरात में शोर मचा रहता है, लेकिन गुजरात से बाहर नहीं।

महेंद्र गिरी कहते हैं हमारे अखाड़े के हरि गिरी जी महाराज बड़े संत हैं। अखाड़े में महिलाओं और दलितों को आगे लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। यहां तक कि वह किन्नरों को भी सनातन की मुख्यधारा में ले आए। आज स्वामी हरि गिरी जी ने दलितों को कई मठों का महंत, पीठाधीश, पुजारी, महामंडलेश्वर और जगतगुरु तक बना दिया है।

सिंहासन पर बैठे महेंद्र गिरी का आशीर्वाद लेने वालों की भीड़ लगी हुई है।

महेंद्र गिरी कहते हैं अखाड़े में करीब दस लाख नागा और साधु-संत हैं। देशभर में कम से कम 50 हजार मठ-मंदिर हैं। दो गांव के बीच एक मढ़ी होती है। वहां पूछो तो उस मढ़ी के संत जूना अखाड़े के मिलेंगे। यही नहीं मठों और पीठ के संत भी जूना अखाड़े से जुड़े हैं। यह एक बहुत बड़ी व्यापक व्यवस्था है। बहुत बड़ी कड़ी है जो चारों मठों और 52 पीठों से जुड़ती है।

महेंद्र गिरी कहते हैं कि जहां तक खर्च की बात है तो पूरा खर्च और कमाई का लेखा-जोखा होता है। वृद्ध संतों का इलाज करवाया जाता है। जो संत जप, तप और कथा करते हैं वह अपनी कमाई का एक हिस्सा अखाड़े को देते हैं।

महामंडलेश्वर जय अम्मानंद गिरी का गुजरात के गिर जंगल में धारी के पास आश्रम है। वह बताती हैं कि पहले सनातन के ऊंचे पदों पर महिलाएं विराजमान नहीं होती थी। उन्होंने सभी अखाड़ों से बैठक कर प्रस्ताव पारित करवाया कि अखाड़ों में महिलाओं को भी उच्च पद दिया जाए। अब 100 से ज्यादा महिला महामंडलेश्वर और जगतगुरु भी हैं। मैं महिलाओं को सनातन के साथ जोड़ना चाहती हूं। महिलाओं को पता ही नहीं है कि सनातन क्या है, संन्यास क्या है, संन्यास को लेकर कई गलत-फहमी है।

महामंडलेश्वर जय अम्मानंद गिरी कहती हैं कि मेरी जिम्मेदारी समाज की दबी-कुचली महिलाओं को सनातन के साथ जोड़ने की है।

लेखक धनंजय चोपड़ा अपनी किताब भारत में कुंभ में लिखते हैं कि जूना अखाड़ा 1156 ई. में स्थापित किया गया। इसे पहले भैरव अखाड़ा कहते थे। इतिहासकारों का मानना है कि मतभेदों के चलते भैरव अखाड़ा टूट गया था। बाद में जब इसे दोबारा बनाया गया तो इसका नाम जूना अखाड़ा रखा गया। यह नाम इसकी प्राचीनता के आधार पर इसे दिया गया था।

जूना का अर्थ है प्राचीन। इसकी स्थापना मोखाम गिरी, सुंदर गिरी, मौनी, दलपति गिरी नागा, लक्ष्मण गिरी प्रतापी, रघुनाथपुरी कोतवाल, देव भारती भंडारी, शंकरपुरी अवधूत, देवनन पुरी, बैकुंठ पुरी आदि महंतों ने की थी। इस अखाड़े के इष्ट देव भगवान दत्तात्रेय हैं।

यह एक ऐसा अखाड़ा है जिससे हजारों विदेशी भक्त जुड़े हुए हैं। पहले शाही स्नान की रात लगभग एक बजे की बात है। एक फ्रांसीसी नागरिक ने मुझसे पूछा कि जूना अखाड़ा कहां है। मैंने कहा कि मेरे साथ आ जाएं। जब हम वहां पहुंचे तो बड़ी तादाद में वहां विदेशी गेरुआ या सादे कपड़ों में जूना अखाड़े के बाहर बैठे थे। इससे पहले कुंभ में विदेशियों की इतनी बड़ी तादाद नहीं देखी थी।

पहले शाही स्नान के दिन सुबह होने से कई घंटे पहले संत अपने-अपने दल-बल के साथ चले आ रहे थे। इनमें कई विदेशी भी थे। अंग्रेज संत और शिष्य सब इस रात गेरुआ झंडा लिए दिखाई दिए थे। अखाड़ा टूरिज्म वॉक के नाम पर वह जूना अखाड़ा ही आए हुए थे।

जैसे-जैसे नागा बाबा आ रहे थे वैसे-वैसे वह अपनी धर्म-ध्वजा के पास बने इष्टदेव के मंदिर में ओमकार उठा रहे थे। ओमकार एक प्रकार की क्रिया है जिसके द्वारा नागा अपने इष्ट देव भगवान दत्तात्रेय और गुरु को प्रणाम करते हैं। ओमकार के बाद नागा वहां रखी गेंदे की फूल की माला लेते जा रहे थे। किसी ने बाजू पर तो किसी ने कमर पर ये माला बांध ली।