जीत की भूख ने गरीबी को पछाड़ा, 22 साल के युवा का कारनामा, दो साल में जीतीं 45 मैराथन | feat of 22 year old youth won 45 marathons in two years | Patrika News h3>
गरीबों की मदद
सतना के बिरसिंहपुर में रहने वाले निवासी चक्रेश कुमार यादव 15 नेशनल, 13 राज्य स्तरीय और 17 जिला स्तरीय मैराथन जीत चुका है। उसका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर का धावक बनना है। इसके लिए वह रोज सुबह-शाम 40 किलोमीटर दौड़ता है। चक्रेश ने बताया कि, अबतक उसने अलग-अलग मैराथन में 4 लाख रुपए जीते हैं। जीतने पर मिलने वाली राशि का 20 फीसदी हिस्सा वो गरीबों पर खर्च करता है।
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यहां से शुरु हुआ दावक बनने का सफर
चक्रेश चार भाई और एक बहन हैं। वह सबसे छोटा है। बड़े भाई-बहन की शादी हो गई। माता-पिता का जिम्मा उसी पर है। चक्रेश ने बताया, परिवार रोटी तक को मोहताज था। मैं काम ढूंढ़ रहा था। एक दिन पास के मैदान में गया तो वहां दौड़ हो रही थी। मैंने दौड़ में हिस्सा लिया और जीत गया। विजेता बनने पर चक्रेश को एक हजार का पुरस्कार मिला। इसी से दाल, चावल, सब्जी-आटा खरीदा और घर ले गया। इसके बाद तो मानो चक्रेश के लिए दौड़ ही आय का जरिया बन गई।
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जूते भी रखता है संभालकर
खास बात यह है कि चक्रेश ने जो जूते पहनकर पहली मैराथन जीती थी, उन्हें आज भी संभालकर रखा है। यही नहीं अब तक मैराथन में जितने भी जूते खराब हुए हैं, वे सभी घर में व्यवस्थित रखे हैं। हर साल वह दिवाली पर जूतों की साफ-सफाई भी करता है।
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यहां से शुरु हुआ दावक बनने का सफर
चक्रेश चार भाई और एक बहन हैं। वह सबसे छोटा है। बड़े भाई-बहन की शादी हो गई। माता-पिता का जिम्मा उसी पर है। चक्रेश ने बताया, परिवार रोटी तक को मोहताज था। मैं काम ढूंढ़ रहा था। एक दिन पास के मैदान में गया तो वहां दौड़ हो रही थी। मैंने दौड़ में हिस्सा लिया और जीत गया। विजेता बनने पर चक्रेश को एक हजार का पुरस्कार मिला। इसी से दाल, चावल, सब्जी-आटा खरीदा और घर ले गया। इसके बाद तो मानो चक्रेश के लिए दौड़ ही आय का जरिया बन गई।
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जूते भी रखता है संभालकर
खास बात यह है कि चक्रेश ने जो जूते पहनकर पहली मैराथन जीती थी, उन्हें आज भी संभालकर रखा है। यही नहीं अब तक मैराथन में जितने भी जूते खराब हुए हैं, वे सभी घर में व्यवस्थित रखे हैं। हर साल वह दिवाली पर जूतों की साफ-सफाई भी करता है।
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