जीतनराम मांझी पर मान नहीं रहा नीतीश का मन, विपक्षी एकता मीटिंग का न्योता HAM को क्यों नहीं?

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जीतनराम मांझी पर मान नहीं रहा नीतीश का मन, विपक्षी एकता मीटिंग का न्योता HAM को क्यों नहीं?

जीतनराम मांझी पर मान नहीं रहा नीतीश का मन, विपक्षी एकता मीटिंग का न्योता HAM को क्यों नहीं?

43 साल के राजनीतिक करियर में 35 साल के अंदर पांच राजनीतिक पार्टियां, सात मुख्यमंत्रियों की सरकार में कैबिनेट मंत्री और एक बार 9 महीने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके जीतनराम मांझी का प्रोफाइल वैसे तो भारी-भरकम है लेकिन उनकी उछल-कूद ऐसी है कि लोगों का उन पर भरोसा कम है। 23 जून को देश भर के भाजपा विरोधी दलों की नीतीश कुमार की मेजबानी में पटना में पहली मीटिंग हो रही है लेकिन नीतीश ने फिलहाल महागठबंधन सरकार का हिस्सा मांझी की पार्टी हम को न्योता नहीं दिया है।

फिलहाल तो मांझी भी महागठबंधन के साथ हैं और उस हिसाब से बीजेपी विरोधी हुए लेकिन शायद नीतीश को उनके आगे भी बीजेपी विरोधी बने रहने का भरोसा नहीं हो रहा है। इसलिए विपक्ष की साझा रणनीति बनाने की इस अहम मीटिंग का बुलावा मांझी को नहीं गया है। इस मीटिंग में विपक्षी दलों के नेता देश भर की कम से कम 450 लोकसभा सीटों पर विपक्ष की तरफ से एक साझा कैंडिडेट देने पर चर्चा करेंगे।

निर्णय पटना में होगा इसकी गुंजाइश बहुत कम है क्योंकि मीटिंग के लिए आ रहे कुछ दलों से कुछ राज्यों में कांग्रेस का संघर्ष चल रहा है। लेकिन इस मीटिंग से विपक्षी एकता की औपचारिक नींव रखी जाएगी और इस साल के अंत तक बातचीत के जरिए आपसी संघर्ष के मसलों को सुलझाने का रोडमैप बनाया जाएगा।

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जीतनराम मांझी हम बनाने से पहले जेडीयू में ही थे और नीतीश ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू की हार के बाद जब पार्टी के पराजय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सीएम पद छोड़ा था तो मांझी को ही सीएम बनाया था। उसके बाद जीतनराम मांझी कुर्सी से ऐसा चिपके कि उनको उतारने के लिए नीतीश को बहुत कुछ झेलना पड़ा।

फिर 2015 में अपनी पार्टी बनाने वाले मांझी बीजेपी के साथ विधानसभा चुनाव लड़े। 21 सीट लड़े और जीती बस खुद की एक सीट। 2019 के लोकसभा चुनाव में मांझी लालू यादव के महागठबंधन के साथ हो गए और 3 सीट लड़कर हम तीनों पर हार गई।

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मांझी 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पास चले गए। बीजेपी ने हम को 7 सीट दी और उसके कुछ कैंडिडेट अपने सिंबल पर लड़ाए। हम चार सीट जीत गई। नीतीश ने 2022 में एनडीए छोड़ा तो मांझी उनके साथ ही महागठबंधन में आ गए। मांझी अपनी मेल-मुलाकात और बयानबाजी से नीतीश, लालू और बीजेपी को लगातार कन्फ्यूज करते रहते हैं।

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कभी वो अमित शाह से मिल आते हैं तो कभी नीतीश के साथ आजीवन रहने की कसम खाकर महागठबंधन में ही पांच लोकसभा सीट मांगने लगते हैं। फिर धमकाने भी लगते हैं कि सम्मान भर लोकसभा सीट नहीं मिली तो वो जहां जाएंगे, वो जीत जाएगा। महागठबंधन छोड़कर कोई कहां जाएगा, ये तो सबको पता है। 

जेडीयू में आने से पहले मांझी कांग्रेस, जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल में लंबा समय बिता चुके हैं और इन तीन पार्टियों के 6 मुख्यमंत्रियों की सरकारों में मंत्री पद का मजा ले चुके हैं। बेलाग बोलना उनका शौक है जिसके कारण कई बार उनके बयान पर विवाद भी हो जाता है। 2015 में जेडीयू से निकलने के बाद उन्होंने जो पार्टी बनाई अब उसे अपने बेटे संतोष सुमन के हवाले कर चुके हैं।

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संतोष सुमन ही नीतीश सरकार में हम कोटे से अभी मंत्री भी हैं। संरक्षक के तौर पर जीतनराम मांझी बेटे की अध्यक्षता वाली पार्टी का मार्गदर्शन करते रहते हैं। खुलकर और खोलकर पांच सीट मांगने के बाद बुधवार को पार्टी के सारे विधायकों को लेकर मांझी नीतीश से मिलने गए। बाहर निकलकर बोले हम लोग नीतीश के साथ हैं। सीट की बात बैठकर होगी। लेकिन बात ये है कि 2024 के चुनाव में उनकी पार्टी हम किस रास्ते पर चलेगी, ये अभी ना नीतीश को पता है, ना बीजेपी को और क्या पता, खुद माझी को भी ना पता हो। 23 जून की मीटिंग में मांझी की उपेक्षा का और कोई कारण फिलहाल नजर नहीं आता। 

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