जातिगत गणना पर नीतीश सरकार की अपील मंजूर, पटना हाईकोर्ट में 9 मई को होगी सुनवाई

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जातिगत गणना पर नीतीश सरकार की अपील मंजूर, पटना हाईकोर्ट में 9 मई को होगी सुनवाई

जातिगत गणना पर नीतीश सरकार की अपील मंजूर, पटना हाईकोर्ट में 9 मई को होगी सुनवाई

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नीतीश सरकार ने पटना हाईकोर्ट से जाति आधारित गणना पर जल्द सुनवाई की गुहार लगाई है। राज्य सरकार की इस अपील पर हाईकोर्ट में 9 मई को सुनवाई होगी। शुक्रवार को राज्य सरकार की ओर से इस मामले पर जल्द सुनवाई करने के लिए हाईकोर्ट में एक इंट्रोलोकेट्री एप्लीकेशन (आईए) दाखिल की गई और दोपहर बाद महाधिवक्ता पीके शाही ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के विनोद चन्द्रन और न्यायमूर्ति राजीव रॉय की खंडपीठ से जल्द सुनवाई करने की गुहार लगाई। महाधिवक्ता का कहना है कि कोर्ट ने इस केस में अंतरिम आदेश जारी किया है और अंतिम सुनवाई करने के लिए अगली तारीख 3 जुलाई तय की है। लेकिन, न्याय हित में इस मामले पर जल्द सुनवाई की जानी चाहिए। कोर्ट ने उनके अनुरोध को मंजूर करते हुए सरकार की ओर से जल्द सुनवाई करने के लिए दायर आईए पर 9 मई को सुनवाई करने का आदेश दिया।

गौरतलब है कि पटना हाईकोर्ट ने जाति आधारित गणना पर गुरुवार को रोक लगा दी थी। कोर्ट ने राज्य सरकार को जाति आधारित सर्वे तुरंत बंद करने का आदेश दिया था। साथ ही यह सुनिश्चित करने को भी कहा कि एकत्र किए गए डाटा सुरक्षित रखें और किसी भी हाल में अंतिम आदेश पारित होने तक किसी के साथ इसे साझा नहीं करें। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के विनोद चन्द्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने एक साथ पांच याचिका पर सुनवाई कर 31 पन्ने का अपना अंतरिम आदेश दिया था।

कोर्ट ने इन सभी मामलों पर आगे की सुनवाई के लिए 3 जुलाई की तारीख तय की है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जाति आधारित गणना पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट में मंगलवार से सुनवाई शुरू हुई थी। सबसे पहले आवदकों की ओर से वकीलों ने अपनी दलील पेश की थी। वहीं जाति आधारित गणना को जारी करने के पक्ष में राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने पक्ष रखा। दो दिनों तक चली लंबी बहस के बाद हाईकोर्ट ने अपना अंतिरम आदेश सुरिक्षत रख लिया था। बताते चलें कि जातीय गणना दो चरणों में प्रस्तावित है। पहला चरण 21 जनवरी को पूरा हो चुका है। दूसरा चरण 15 मई को पूरा होने वाला था।

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने आवेदकों की ओर से उठाए गए सभी सवालों का जवाब दिया था। उन्होंने कहा था कि प्रथम दृष्टया यह कोई मामला बनता ही नहीं है। उनकी दलील थी कि राज्य सरकार गहन विचार के बाद जाति सर्वेक्षण करा रही है। उन्होंने गोपनीयता भंग होने के याचिकाकर्ताओं के आरोप पर कहा था कि जाति का खुलासा करना गोपनीयता का उल्लंघन नहीं है। उन्होंने कोर्ट को बताया था कि अभी तक 80 प्रतिशत काम पूरा हो गया है। इसके लिए आकस्मिक निधि से एक पैसा भी नहीं निकाला गया है। सरकार ने बजाप्ता बजटीय प्रावधान किया है।

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हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के पहले दो दिनों तक हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा था कि सिर्फ केंद्र सरकार को जनगणना करने का अधिकार है। राज्य सरकार जातिगत सर्वेक्षण की आड़ में जातिगत गणना नहीं करा सकती। आवेदकों की ओर से अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव तथा धनंजय कुमार तिवारी ने कोर्ट को बताया था कि यह गणना आम लोगों की गोपनीयता का उल्लंघन करता है। आकस्मिकता निधि से 500 करोड़ रुपये खर्च करने के राज्य सरकार के फैसले पर भी सवाल उठाये गए थे। ट्रांसजेंडरों का मामला भी उठा था। वकील ने कहा था कि ट्रांसजेंडरों की व्यक्तिगत पहचान है।

 

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