जहां 7-आंदोलनकारी किसानों की मौत हुई थी वहां फिर तनाव: घड़साना में नहर बंद करने से फिर भड़क रहा गुस्सा, लोग बोले- फसलें खराब हो रहीं – Rajasthan News

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जहां 7-आंदोलनकारी किसानों की मौत हुई थी वहां फिर तनाव:  घड़साना में नहर बंद करने से फिर भड़क रहा गुस्सा, लोग बोले- फसलें खराब हो रहीं – Rajasthan News

जहां 7-आंदोलनकारी किसानों की मौत हुई थी वहां फिर तनाव: घड़साना में नहर बंद करने से फिर भड़क रहा गुस्सा, लोग बोले- फसलें खराब हो रहीं – Rajasthan News

श्रीगंगानगर जिले का घड़साना क्षेत्र। ये वही इलाका है, जहां वर्ष 2004 में किसानों का उग्र आंदोलन हुआ था। आर-पार की लड़ाई में पुलिस की गोलीबारी से 7 किसानों की जान चली गई थी।

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आज 21 साल बाद फिर यहां के किसान पानी की मांग को लेकर आक्रोशित हैं। 10 फरवरी से 7 दिन तक नेशनल हाईवे-911 जाम कर फिर बड़े आंदोलन की चेतावनी दी।

हालांकि 17 फरवरी को सरकार से जल्द समाधान का समझौता हुआ, लेकिन हकीकत यह है कि किसानों को मसला हल होने तक आधी से ज्यादा फसलें बर्बाद होने का डर सता रहा है।

दरअसल, इस बार सिंचाई के लिए नहर बंदी मार्च की बजाय जनवरी में कर दी गई। इससे खेतों में खड़ी गेहूं, सरसों, चना और ज्वार जैसी फसलें खराब हो रही हैं।

डेढ़ महीने से पानी के इंतजार में बैठे किसानों के हालात जानने NEWS4SOCIALघड़साना पहुंचा। किसानों से बात कर जमीनी हकीकत जानी। पढ़िए ये रिपोर्ट…

मांगों को लेकर सिंचाई विभाग के अधिकारियों से बातचीत करते किसान, 17 फरवरी को यह वार्ता हुई थी।

पहले किसानों का वो दर्द जो सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है…

दोपहर करीब साढ़े 12 बजे थे। घड़साना से निकलते ही मंडी रोड पर गांव 6 एमएलडी पर हम एक खेत में पहुंचे। वहां काम कर रहे किसान प्रभु से हम कुछ पूछते, इससे पहले ही वे बोल पड़े- क्या हमारी आवाज सच में सरकार तक पहुंचेगी?

मेरे 6 बीघा खेत हैं। अक्टूबर में जौ की फसल बोई थी। फरवरी पूरी होने वाली है, पिछले डेढ़ महीने से एक बार भी नहर का पानी नहीं लगा। इससे फसल आधी लम्बाई भी नहीं पकड़ पाई है। अगर 10-15 दिन में पानी नहीं मिला तो पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी। एक दाना नहीं बचेगा। अच्छी ब्रीड के बीज-खाद पर लाखों खर्च किए हैं। 3 महीने तक मेहनत की है। क्या इसका कोई मोल मिलेगा हमें?

यहां से पास ही के खेत में गेहूं काट रही महिला कमला से बात करनी चाही तो उनका गुस्सा शब्दों से बयां हो रहा था। बोलीं- बिना पानी के तेज धूप में फसल जल रही है। अभी तो खुद के खेत में मजदूरी कर रहे हैं, जल्द पानी नहीं मिला तो खड़ी फसल बर्बाद हो जाएगी। मनरेगा में काम करने की नौबत आ जाएगी। पति माल ढुलाई का काम नहीं कर रहे होते तो हम रोटी को तरस जाते। फसल तो जब होगी तो पहले कर्ज निपटेगा, उसके बाद कुछ हाथ आएगा।

5 एमएलडी के किसान असगर अली ने अपने खेत में सरसों की बुवाई की थी। उन्होंने बताया कि अक्टूबर के बाद फरवरी में फसलों को पानी की सख्त जरूरत है। सरसों की इसी उम्मीद से बुवाई की थी। लेकिन पानी नहीं मिलने से इसके दाने ही नहीं बन सके हैं। आधी फसल खराब हो चुकी है। अब भी अगर पानी मिल जाए तो आधी फसल बच सकती है।

किसी और के 8 बीघा खेत में काश्तकारी करने वाले लोकाराम बताते हैं कि मेरी तो रोजी रोटी इसी से चलती है। खुद का खेत नहीं है, इसलिए 50-50 की बांट पर खेत लिया था। 4 बीघा पर सरसों की बुवाई की और 4 बीघा खेत तैयार किए थे। लेकिन पानी नहीं होने से आधी से ज्यादा जमीन खाली पड़ी है। सर्दी में तकलीफ उठाकर जिन पौधों को सींचा था उन्हें अब यूं मरते देख मन रोता है। यही काम आता है, नौकरी हमें देगा कौन? अगर यही हाल रहा तो कुछ सालों में यहां खेती नहीं, सिर्फ परदेस जाने की मजबूरी होगी।

सरसों का महज कुछ ही हिस्सा पक पाया है, उसमें भी किसान को पैदावार नहीं होने का डर सता रहा है।

किसान नेता सत्यप्रकाश सिहाग हालात दिखाते हुए बोले-

‘मैंने अपने 8 बीघा खेत में से 2 बीघा में सरसों की बिजाई की थी, जिसके लिए अक्टूबर में पानी मिल गया था, इसलिए फसल अच्छी हो गई। बाकी 6 बीघा खेत सरसों की बिजाई के लिए तैयार किया था। लेकिन डेढ़ महीने से पानी नहीं मिल पाने के कारण पूरा खेत खाली पड़ा है। मेरे दो लाख की फसल होनी थी जो अब 50 हजार तक सिमट गई। अब एक साल तक इस खाली पड़े खेत में बिजाई नहीं हो सकेगी।

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एक अन्य किसान नेता राजू जाट बोले-

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10 दिन के संघर्ष से अधिकारियों ने 1200 क्यूसेक पानी अनूपगढ़ शाखा में छोड़ा था तो ये चने की फसल बच सकी है। अभी 15 दिन में एक बार पानी और देना है, नहीं तो जो चना 4-5 क्विंटल हो सकता है, वह डेढ़ दो क्विंटल तक ही रह जाएगा। यह पानी भी 7 दिन एसडीएम कार्यालय का घेराव किया, 3 दिन नेशनल हाईवे-911 को जाम किया तब जाकर मिला। क्या किसान के हिस्से हर बार धरना और आंदोलन ही आएगा?

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मार्च में बंद करना था, जनवरी में ही शटडाउन

रायसिंहनगर भूमि विकास बैंक के चेयरमैन कालू थोरी बताते हैं कि फसल के सीजन के बावजूद 5 फरवरी को सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर प्रदीप रुस्तगी ने सरकार से सिंचाई बंद करने (क्लोजर) की मंजूरी मांगी, जिसे सरकार ने तुरंत स्वीकार कर लिया।

समस्या यह है कि खेतों में खड़ी फसलें अभी कच्ची है। इन्हें पकने में कम से कम एक महीना और चाहिए। इस दौरान किसानों को कम से कम दो बार सिंचाई की और जरूरत थी, लेकिन अचानक पानी रोक दिए जाने से लाखों किसानों की मेहनत पर पानी फिर गया।

थोरी ने बताया कि किसान बैंकों से कर्ज लेकर फसल उगाते हैं। लेकिन पकने से पहले ही पानी न मिलने से खेतों में खड़ी गेहूं, सरसों और जौ की फसलें तबाह होने की कगार पर हैं। गेहूं की बालियां देरी से आएंगी, चने और सरसों में फली बनने से पहले ही पानी कट गया और जौ अभी कच्ची अवस्था में हैं।

इस तरह, प्रति बीघा किसानों को औसतन 30 से 45 हजार रुपए का नुकसान होगा। अगर मरबे (25 बीघा) के हिसाब से आकलन करें, तो यह नुकसान लाखों में पहुंचेगा। यही वजह है कि किसान सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए हैं।

दिसंबर में लिया गलत फैसला, फरवरी में पड़ा भारी

कृषि उपज मंडी घड़साना के पूर्व चेयरमैन सत्य प्रकाश सिहाग ने बताया कि पूरे विवाद की जड़ दिसंबर में सरकार द्वारा लिया गया गलत फैसला है। उस समय राजस्थान सरकार ने पंजाब को सरहिंद फीडर की मरम्मत के लिए सहमति दे दी, जिससे इंदिरा गांधी नहर फीडर में पानी रोक दिया गया। अब इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है, खासकर रेतीले इलाकों के किसान पूरी तरह बर्बाद होने की कगार पर हैं। समस्या के स्थायी समाधान के लिए 27 फरवरी को रावला में किसान महापंचायत बुलाई है, जहां आंदोलन की अगली रूपरेखा तय की जाएगी।

60% फसलें बर्बाद, 25% किसान कर चुके पलायन

सिहाग के मुताबिक, सरकार की एक गलती ने गेहूं, चना, सरसों और जौ की 60% फसलें बर्बाद कर दी हैं। स्थिति इतनी गंभीर है कि जिस किसान को 100 क्विंटल सरसों पैदा करनी थी, अब उसे सिर्फ 40 क्विंटल ही मिलेगी।

बीते तीन दशकों में इस क्षेत्र के किसान सिंचाई के पानी की किल्लत के कारण करोड़ों का नुकसान झेल चुके हैं। पिछले 20-25 सालों में सिंचाई के गलत वितरण के चलते हर किसान औसतन 20 से 50 लाख रुपए तक गंवा चुका है।

किसान नेता आपस में वार्ता कर मांगें पूरी नहीं होने पर फिर से आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने में जुटे हैं।

अब हालात यह हैं कि कर्ज में डूबे किसान परंपरागत खेती से दूरी बना रहे हैं। 25% किसान पलायन कर चुके हैं, कई बड़े शहरों में चले गए तो कई छोटे-मोटे कारोबार में लग गए। नई पीढ़ी खेती की तरफ देखना भी नहीं चाहती।

कभी भारत की दूसरी सबसे बड़ी कपास मंडी था घड़साना-खाजूवाला

रिटायर्ड शिक्षक और किसान कृष्णलाल विश्नोई बताते हैं कि 70 के दशक तक यह इलाका उन्नत किस्म की कपास के लिए पूरे भारत में महाराष्ट्र के बाद दूसरी सबसे बड़ी मंडी हुआ करता था। कपास की इतनी अधिक आवक होती थी कि फसल एक-एक महीने तक तुलने का इंतजार करती थी। सूरतगढ़, रूपगढ़, खाजूवाला, घड़साना समेत अन्य इलाकों में 100 से ज्यादा कपास की मिल थीं।

जब तक यहां सिंचाई के लिए भरपूर पानी उपलब्ध था, तब तक गन्ना, उन्नत किस्म का बासमती चावल और बेहतरीन क्वालिटी की कपास की पैदावार होती थी। लेकिन 90 के दशक के आते-आते पानी की समस्या इतनी विकराल हो गई कि किसानों ने ये फसलें उगाना ही बंद कर दिया।

बड़े राजनीतिक चेहरे की कमी भी एक वजह

विश्नोई बताते हैं कि 2004 का किसान आंदोलन उन्होंने करीब से देखा था। 2004 के किसान आंदोलन और वर्तमान स्थिति की तुलना करें तो तब भी फसल का खराबा 60 फीसदी ही था। तब सरकार ने सिंचाई के लिए पानी देने से मना कर दिया था। लेकिन आन्दोलन के चलते सरकार को झुकना पड़ा था। किसानों को 8 बार पानी दिया गया।

लेकिन इस इलाके की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि यहां से कभी कोई प्रभावशाली राजनीतिक चेहरा नहीं उभरा। 2004 के किसान आंदोलन के दौरान श्रीगंगानगर जिले से 9 विधायक थे, लेकिन किसी ने किसानों का साथ नहीं दिया।

दूसरी तरफ, बीकानेर, नागौर, जोधपुर, जैसलमेर और बाड़मेर जैसे जिलों के सभी विधायक तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मिले और साफ कहा कि अगर किसानों का पानी रोका गया, तो वे अपने इस्तीफे देने को तैयार हैं।

पहले बुवाई में पानी नहीं मिला, अब पानी के इंतजार में दम तोड़ रही फसलें

किसान अक्टूबर में सरसों की बुवाई करते हैं। तब ज्यादा पानी चाहिए होता है। किसानों की मांग थी कि 8 दिन पानी चले 8 दिन बंद रहे। लेकिन अक्टूबर में ऐसा नहीं हुआ। इसलिए सरसों की केवल 33% रकबे में ही बुवाई हो सकी।

नवंबर में जो पानी मिला उससे मजबूरी में गेहूं बोना पड़ा। लेकिन सिंचाई के लिए पानी कम मिलने से गेहूं की फसल भी पूरी चौपट हो गई। अब केवल 33% प्रोडक्शन की उम्मीद है।

इंदिरा गांधी नहर की पूरी क्षमता 18000 क्यूसेक पानी की है। लेकिन इसमें कभी पूरी क्षमता से पानी नहीं छोड़ा गया। पहले इसमें 15000 क्यूसेक तक पानी चलता था। लेकिन पंजाब एरिया में नहर के जर्जर होने से पानी की क्षमता 11000 क्यूसेक तक ही रखा जाता है।

सरहिंद फीडर की मरम्मत बीते 5-6 सालों से हो रही है। हर साल लगभग 20 किलोमीटर एरिया की मरम्मत की जाती है। इसके लिए नहर की बंदी कर पानी रोक दिया जाता है। इस साल यह मरम्मत कार्य अपने अंतिम चरण (आखिरी 15 किमी) में है। यह 10 फीसदी काम भी मार्च तक पूरा हो जायेगा।

घड़साना क्षेत्र को आमतौर पर 15 मार्च तक सिंचाई का पानी मिलता है। लेकिन इस बार 25 जनवरी तक ही मिला।

पंजाब और राजस्थान के बीच पानी का बंटवारा

इंदिरा गांधी नहर को पोंग डैम (कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश) से पानी मिलता है। इससे राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में सिंचाई होती है। हर साल डैम में 20 मई से 20 सितंबर तक जितना पानी स्टोर होता है, उसका हिस्सा है। इसमें राजस्थान का हिस्सा 51 फीसदी है।

किसानों के साथ वार्ता में जो सहमति बनी उसका पत्र।

किसानों से वार्ता हो चुकी, सरकार की तरफ से मांग रखेंगे

एडिशनल सेक्रेटरी (वाटर रिसोर्स, जयपुर) वरिष्ठ चीफ इंजीनियर अमरजीत सिंह ने बताया कि इस मामले में किसानों से चर्चा की गई है। सरकार की तरफ से जो भी किसानों के हित में होगा वो प्रयास किया जाएगा। अभी फरवरी के लास्ट वीक में भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) की बैठक होगी।

पानी को लेकर ये बड़ी मीटिंग होती है जिसमें उपलब्धता अनुसार पानी का हिस्सा तय होता है। उसमें सरकार की तरफ से पानी की मांग रखी जाएगी। अभी पीने के पानी को लेकर भी किल्लत होने लगी है, उसकी पूर्ति भी जरूरी है। मीटिंग में जो निर्णय होगा कि कितना पानी मिलेगा और उसका क्या उपयोग होगा, उसी हिसाब से आगे प्रक्रिया की जाएगी।

17 फरवरी को आंदोलन कर रहे किसानों की सरकार के साथ सहमति बनी थी।

घड़साना किसान आंदोलन में 7 किसानों की हुई थी मौत

श्रीगंगानगर जिले के घड़साना और उसके आसपास के इलाकों में किसानों ने अक्टूबर 2004 में बड़े पैमाने पर आंदोलन छेड़ा था। यह आंदोलन मुख्य रूप से इंदिरा गांधी नहर से सिंचाई के लिए समुचित पानी की आपूर्ति की मांग को लेकर शुरू हुआ था। किसानों ने सरकार से बार-बार मांग की थी कि उन्हें उनके हिस्से का पानी मिले, लेकिन जब उनकी मांगों को अनसुना किया गया, तो उन्होंने विरोध प्रदर्शन तेज कर दिया। हजारों किसान सड़कों पर उतरे। खासकर घड़साना, अनूपगढ़ और रावला में हजारों किसान सड़कों पर उतरे।

तब के स्थानीय अखबारों में लगी घड़साना किसान आंदोलन से जुड़ी सुर्खियां।

42 दिन तक चले आंदोलन में जब प्रशासन से जब कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला, तो आंदोलन उग्र हो गया। पुलिस और किसानों के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें कई किसानों को गंभीर चोटें आईं और 7 की पुलिस गोलीबारी में मृत्यु भी हुई। प्रशासन ने कर्फ्यू लगाया और स्थिति को काबू में करने के लिए पुलिस के अलावा सेना तक बुलानी पड़ी थी। बढ़ते जन दबाव के चलते सरकार को झुकना पड़ा था।

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