जलाशयों की राजधानी | capital of reservoirs | Patrika News h3>
भोपाल. राजनीतिक, प्रशासनिक राजधानी ही नहीं जलाशयों की राजधानी भी है। यहां कलियासोत, केरवा जैसे बड़े डैम ही नहीं। 21 माइनर तालाब भी हैं, जिनकी मॉनीटरिंग सिंचाई विभाग करता है। इनकी बदौलत ही शहर से सटे क्षेत्रों में वॉटर लेवल और हरियाली बरकरार है। आस-पास का वॉटर लेवल भी बढ़ा हुआ है। बैरसिया, नजीराबाद, फंदा ब्लॉक में फैले 58 फीसदी जंगल इन्हीं तालाबों की बदौलत आज हरे भरे हैं। भोपाल की आवो हवा का संतुलन भी बनाए हुए हैं। पंचायतों में इन्हीं तालाबों की बदौलत काफी लोग अपना जीवन यापन भी कर रहे हैं। वहीं शहरी क्षेत्र में 14-15 छोटे बड़े तालाब हैं। इनमें से सात बड़े तालाब हैं। इनकी जिम्मेदारी नगर निगम के पास है। आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्ष 1929 के नक्शे के आधार पर भोपाल जिले के 132 तालाबों की जानकारी दी गई है। इनमें से काफी अब डेड हो चुके हैं। वर्तमान में सिंचाई विभाग और नगर निगम को मिलाकर करीब 35 से 36 वॉटर बॉडी हैं, जिनमें भोपाल की जरूरत का काफी पानी है। हालांकि कोलार डैम से भी भोपाल को पानी सप्लाई होता है, लेकिन वह सीहोर में है।
सिंचाई विभाग के तालाब और डैम
कलियासोत डैम, केरवा डैम, घोड़ा पछाड़ डैम, हथाईखेड़ा डैम, चंदेरी तालाब, कालापीपल तालाब, मैनापुरा तालाब, मनीखेड़ी डैम, बरखेड़ा बरामद तालाब, बिहारी तालाब, सगौनी कला तालाब, जूनापानी तालाब, कल्याणपुरा तालाब, बग्सी तालाब, सुखालिया तलाब, गरेटिया तालाब, कोरोंडिया तालाब, सैमरी कला डैम, लॉगापुरा तालाब, कदमपुरा तालाब, ईटखेड़ी तालाब, नर्मदापुरा तालाब।
इन तालाबों में कई माह की जरूरत का पानी स्टोरी
बरसातों में सिंचाई विभाग शहर के प्रमुख डैम के साथ इन माइनर डैम और तालाबों की मॉनीटरिंग करता है। क्योंकि इनकी भी कई माह की जरूरत का पानी आम दिनों में रहता है। बारिश में अगर ये तालाब या डैम छलकते हैं तो आस-पास रहने वालों को स्कूलों में शिफ्ट किया जाता है।
शहरी क्षेत्र के जलाशय
बड़ा तालाब- शहर की शान और पहचान बड़ा तालाब पर आज अवैध कब्जों की मार है। वर्ष 2019 में जिला प्रशासन, नगर निगम की टीम ने इसमें 361 अवैध कब्जे चिन्हित किए थे। इसमें से मात्र 16 ही हटे, बाकी आज भी ऐसे ही हैं। ये कब्जे ज्यादातर कैचमेंट में हो रहे हैं। अवैध कब्जों से कहीं न कहीं कैचमेंट प्रभावित हो रहा है।
छोटा तालाब – दौ सौ साल पुराना छोटा तालाब आज सीवेज टैंक से कम नहीं है। भोज वेटलैंड प्रोजेक्ट के तहत करीब 58 करोड़ रुपए पहले खर्च हो चुके हैं। लेकिन तालाब की हालत सुधर नहीं रही। यहां मछलियों को पकड़ने के लिए प्रतिबंधित जहरीले गोले भी डाले जाते हैं। जिससे पानी और ज्यादा प्रदूषित होता है।
मोतिया तालाब – मोतिया तालाब में बाबेअली, ईदगाह हिल्स और बेनजीर पैलेस के साथ ही आसपास के क्षेत्र का गंदा पानी मिलता है। इसमें ऑक्सीजन की कमी भी हो जाती है।
सिद्दीक हसन तालाब : इसमें इस क्षेत्र के दो दर्जन से ज्यादा अस्पतालों का सीवेज मिलता है। वहीं आस-पास की काफी आबादी का गंदा पानी भी इसी में जाता है।
शहर में ये तालाब और: तीन सीढ़ी तालाब, शाहपुरा, पांच नंबर, गुरुबक्श की तलैया, नवाब सिद्दीकी हसन तालाब, लेंडिया तालाब, मुंशी हुसैन खां तालाब, सारंगपानी तालाब, लहारपुर जलाशय, चार इमली तालाब, अच्छे मियां की तलैया
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तालाब क्षेत्रफल अतिक्रमण
नवाब सिद्दीकी हसन तालाब-एक हेक्टेयर-98 प्रतिशत
लेंडिया तालाब-1.05 हेक्टेयर-82 प्रतिशत
हथाईखेड़ा तालाब-113 हेक्टेयर-23 प्रतिशत
बड़ा तालाब-19 प्रतिशत
छोटा तालाब-13 प्रतिशत
मुंशी हुसैन खां ताला- 07 प्रतिशत
मोतिया तालाब- 02 प्रतिशत
वर्जन
सिंचाई विभाग के पास दो बड़े डैम और 21 माइनर तालाब और डैम हैं। जिनकी मॉनीटरिंग विभाग के पास ही है। इनकी बदौलत आस-पास की जमीनों का वॉटर लेवल बना रहता है।
नितिन कुहिकर, ईई, जल संसाधन विभाग