जब हुई जांच तो शिकायत करने वाला ही निकला, जमीन का कब्जाधारी | National highway and city land occupied | Patrika News

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जब हुई जांच तो शिकायत करने वाला ही निकला, जमीन का कब्जाधारी | National highway and city land occupied | Patrika News

जब हुई जांच तो शिकायत करने वाला ही निकला, जमीन का कब्जाधारी | National highway and city land occupied | Patrika News

मामला राऊ सर्कल से कुछ दूर पिगड़्बर का है। जितेंद्र पिता राधेश्याम अग्रवाल की सर्वे नंबर 218/1, 219/2 और 220/1 की कुल मिलाकर 0.5490 हेक्टेयर जमीन है, जिस पर वे बाउंड्री वॉल बनाकर गेट लगाना चाहते थे। उस पर तत्कालीन पटवारी सचिन मीणा ने किसानों की आपत्ति पर काम रोक दिया। किसानों का कहना था कि बाउंड्री वॉल बन जाती है तो यहां बनने वाली सर्विस रोड का काम रुक जाएगा।
उस दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग वाले भी मौके पर पहुंचे थे, जिस पर काम रोकने को कहा था। राजमार्ग के साथ नहर की जमीन भी पर बाउंड्री वॉल बनाई जा रही थी। ये दोनों ही सरकारी विभाग हैं, जिनकी जमीन पर कब्जा हो रहा था। इस पर अग्रवाल ने मीणा की शिकायत कर दी, जिस पर उनका क्षेत्र बदलकर दूसरे पटवारी की नियुक्ति कर दी।
साथ में एसडीओ प्रतुल्ल सिन्हा के निर्देश पर जमीन के सीमांकन के लिए दल बना दिया गया। दल ने जमीन नापी तो चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई। मीणा की शिकायत करने वाले अग्रवाल ही राष्ट्रीय राजमार्ग और नहर की जमीन पर कब्जा करने वाले निकले। करीब 15 हजार वर्गफीट जमीन राष्ट्रीय राजमार्ग की और तीन हजार वर्ग फीट जमीन नहर की अपनी बाउंड्री वॉल में दबा ली थी।

यही वजह थी कि बार-बार काम रोका जा रहा था, लेकिन उस समय अफसरों को अग्रवाल की बात पर ज्यादा भरोसा था। दल ने सीमांकन करने के साथ में निशान भी लगा दिए कि कितनी जमीन पर कब्जा कर रखा है। बताते हैं कि दोनों ही विभाग जमीन का अधिग्रहण कर चुके हैं और उसका मुआवजा भी दे चुके हैं। इसके बावजूद अग्रवाल जमीन खुद की बता रहे थे। मजेदार बात ये है कि दोनों ही विभाग पूर्व में बाउंड्री वॉल बनाए जाने पर आपत्ति दर्ज करवा चुके थे।

किसान की जमीन पर भी अतिक्रमण
गौरतलब है कि सीमांकन करने पहुंचे दल ने अग्रवाल की सारी जमीन की नपती की, जिस पर खुलासा हुआ कि पीछे की तरफ किसान यशोदा बाई व कुलदीप वगैरह की जमीन पर भी कब्जा है। उसकी जमीन को भी अपनी बाउंड्री में शामिल कर लिया। इसको लेकर कुछ दिनों पहले किसान ने आपत्ति ली थी और शिकायत भी की थी, लेकिन अफसरों ने गरीब किसान की सुनवाई नहीं की। उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया। जबकि पीडि़त किसान की आपत्ति पहले से दर्ज है और वह सीमांकन कराना चाहता था।

उसकी जमीन का सीमांकन आज तक नहीं हुआ। बताते हैं कि अग्रवाल के कुछ बड़े अफसरों से संबंध हैं। हालांकि अब जब सीमांकन के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो गया है तो उन्हें मदद करने में परेशान भी आएगी। पीडि़त किसान अब मंत्री उषा ठाकुर के जरिए कलेक्टर मनीष ङ्क्षसह के पास भी जाने की तैयारी कर रहा है ताकि उसके साथ न्याय हो सके।



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