जन्माष्टमी पर गोविंद देव जी दर्शन करने आए विदेशी पर्यटकों को भाया गुलाबी नगरी, बोले-‘सुकून मंदिर में ही मिलता है’ | Foreign Tourists Visit Govind Dev Ji on Krishna Janmashtami 2023 And Like Pink City | News 4 Social h3>
जन्माष्टमी के अवसर पर देश-विदेश से लोग शहर के आराध्य माने जाने वाले गोविंद देव जी के दर्शन के लिए आते हैं। इस जन्माष्टमी खास बात यह रही कि बड़ों के साथ युवा भक्तों की संख्या भी काफी रही। कुछ तो ऐसे युवा भी थे जो दूसरे शहरों से केवल गोविंद देव के दर्शन के लिए जयपुर आये थे।
जयपुर। जन्माष्टमी के अवसर पर देश-विदेश से लोग शहर के आराध्य माने जाने वाले गोविंद देव जी के दर्शन के लिए आते हैं। इस जन्माष्टमी खास बात यह रही कि बड़ों के साथ युवा भक्तों की संख्या भी काफी रही। कुछ तो ऐसे युवा भी थे जो दूसरे शहरों से केवल गोविंद देव के दर्शन के लिए जयपुर आये थे। युवाओं का मानना है कि स्थायी सुख मंदिर आकर ही मिलता है। उन्होंने यह भी बताया कि भक्ति -भाव से जुड़ना बेहद जरुरी है, ताकि मन को शांति मिल सके। तनाव कम हो और नकारत्मकता से दूरी बनी रहे। पत्रिका टीम ने कुछ युवा और विदेशी पर्यटकों से बातचीत कर जाना कि उनकी अध्यात्म के बारे में क्या सोच है।
दूसरों के सामने तकलीफ रखने से बेहतर है भगवान के सामने रखो
कंवर नगर निवासी दिव्या बेरवानी को पहले पूजा पाठ का इतना शौक नहीं था, लेकिन जब उन्होंने नियमित मंदिर आना शुरू किया तो अध्यात्म की तरफ झुकाव बढ़ा। उनका मानना है कि मंदिर में बजने वाली धुन से कष्ट और दुख कम होते हैं। नकारात्मकता की जगह सकारात्मकता का भाव उत्पन्न होता है। वे यह भी मानती हैं कि दूसरों के सामने तकलीफ रखते हैं तो मजाक बनाते हैं, लेकिन भगवान हमेशा रास्ता दिखाता है। इसलिए अपने दुख भगवान के सामने रखें।
अजमेर से जयपुर आए जन्माष्टमी देखने, कोरोना के बाद अध्यात्म से जुड़ाव बढ़ा
राहुल सांखला ने बताया कि वे खासतौर पर जन्माष्टमी के लिए अजमेर से आए हैं। कोरोना के बाद से उनका अध्यात्म से जुड़ाव बढ़ा। भक्ति के साथ उन्होंने ध्यान करना भी शुरू किया। उनका मानना है कि भक्ति और ध्यान की मदद से अब उनका क्रोध पहले से काफी कम हो गया है। काम पर वे ज्यादा बेहतर तरीके से ध्यान केंद्रित कर पाते हैं। अपनी व्यस्त जीवन चर्या में से वे मंदिर आने के लिए जरूर समय निकालते हैं।
जयपुर के युवा बोले नौकरी के पीछे भागते -भागते थक गए, सुकून आखिर खुद के काम से ही मिला
पार्टी से ज्यादा अध्यात्म को देती हैं प्राथमिकता
अजमेर से आई सपना परिहार ने बताया कि उन्हें सुकून मंदिर आकर ही मिलता है। जहां युवा स्ट्रेस, तनाव दूर करने के लिए पार्टी और क्लब का सहारा लेते हैं, वहीं सपना मंदिर आना पसंद करती हैं। उनका यही मानना है कि आज की पीढ़ी मंदिर से जुड़ेगी, भक्ति -भाव में विलीन होगी तो ही हमारी अगली पीढ़ी तक अध्यात्म का संदेश दे पाएंगे। इसलिए हमे रोज थोड़ा समय भक्ति -भाव के लिए निकालना ही चाहिए।
धर्म और आध्यात्म से हर समस्या का समाधान
राजापार्क निवासी पंकज खंडेलवाल ने बताया कि खासकर पुराने मंदिर में जाने से को अलग शांति मिलती है। आप परमात्मा से जुड़ जाते हैं तो जीवन में सब कुछ अच्छा होता है। वे रोज एक घंटा अध्यात्म और मेडिटेशन को दे रहे हैं। कोरोना के बाद से मन अशांत था, वह भी ठीक हो गया। घंटी की आवाज, यज्ञ करना सबसे फायदेमंद है।
यह भी पढ़ें :
यह बोले विदेशी पर्यटक
कृष्ण की झांकी हम पहली बार देख रहे हैं। मैंने कृष्ण के बारे में बहुत पढ़ा है, गीता मुझे बहुत पसंद है। इस बार मैं सिर्फ जन्माष्टमी का त्यौहार देखने भारत आई हूं। यहां आकर खुद को आध्यात्मिक महसूस कर रही हूं। यहां सब लोग अपने छोटे से लेकर बड़े त्यौहारों को एक साथ अपनी परम्परा और संस्कृति के साथ मनाते हैं। यह एक मनमोहक दृश्य है।
एरीना, जर्मन
अब तक मैंने गोविंद देवजी को सिर्फ यूटूयूब पर ही वीडियो देखे थे। लेकिन वास्तविकता में यह मंदिर सकारात्मकता के भाव के साथ बहुत खुबसूरत है। मैं भारत पहली बार आया हूं। जन्माष्टमी पर मैंने यहां लोगों की श्रद्धा को देखकर खुद को आध्यात्म से जुड़ा हुआ महसूस कर रहा हूं।
एलेक्स, इग्लैंड