जन्मदिन विशेष: जब स्वामी विवेकानंद को बंदरों ने सिखाया जीवन का सबक, दिलचस्प है किस्सा – News4Social

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जन्मदिन विशेष: जब स्वामी विवेकानंद को बंदरों ने सिखाया जीवन का सबक, दिलचस्प है किस्सा – News4Social

जन्मदिन विशेष: जब स्वामी विवेकानंद को बंदरों ने सिखाया जीवन का सबक, दिलचस्प है किस्सा – News4Social

Image Source : INDIA TV
स्वामी विवेकानंद की जयंती

नई दिल्ली: भारतीय युवा वर्ग के हीरो स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है। उन्हें आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद का जनक माना जाता है। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था लेकिन 1893 में खेतड़ी स्टेट के महाराजा अजीत सिंह के अनुरोध पर उन्होंने अपना नाम ‘विवेकानंद’ रख लिया था। उनके जन्मदिन के मौके पर हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस भी मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में ऐतिहासिक भाषण दिया था। इस भाषण ने पश्चिमी दुनिया को हिंदू दर्शन (नव-हिंदू धर्म) से परिचित कराया था। उन्होंने अपनी किताबों में सांसारिक सुख और आसक्ति से मोक्ष प्राप्त करने के चार मार्ग बताए हैं, जोकि राजयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग हैं।

बंदरों ने दी जीवन की सीख

इस कहानी का जिक्र खुद स्वामी विवेकानंद ने किया था। स्वामी विवेकानंद ने बताया था कि एक बार जब वह वाराणसी में थे तो उन्हें बहुत सारे बंदरों ने घेर लिया। इन बंदरों के डर से स्वामी विवेकानंद भागने लगे लेकिन बंदर भी कम धूर्त नहीं थे। ये बंदर भी स्वामी विवेकानंद का पीछा करने लगे।

ऐसे में एक अजनबी शख्स विवेकानंद को मिला और उसने कहा कि इन बंदरों का सामना करो। इसके बाद विवेकानंद पीछे मुड़े और बंदरों का सामना करने लगे। आखिर में बंदर पीछे हटने लगे और भाग खड़े हुए। इस घटना ने विवेकानंद को बड़ी सीख दी। जिसके बाद विवेकानंद ने कहा कि जीवन में जो भी भयानक हो, उसका सामना करना चाहिए। बंदरों की तरह जीवन की कठिनाइयां तब वापस आती हैं, जब हम उनके सामने भागना शुरू कर देते हैं। अगर हमें कभी स्वतंत्रता प्राप्त करनी है तो वह प्रकृति पर विजय प्राप्त करके ही होगी, भागने से नहीं। कायरों को कभी जीत नहीं मिलती। हमें डर, परेशानियों और अज्ञानता से लड़ना होगा।

गुरू की पत्नी से भी सीखा सबक

एक किस्सा ये भी है कि विवेकानंद को शिकागो जाना था। ऐसे में वह अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस की पत्नी शारदामणि मुखोपाध्याय से विदेश जाने की इजाजत मांगने पहुंचे। इस दौरान शारदामणि रसोई में कुछ काम कर रही थीं। जब विवेकानंद ने उनसे इजाजत मांगी तो शारदामणि ने विवेकानंद से पास में रखे चाकू को उठाकर देने को कहा। 

विवेकानंद ने चाकू को नोक की तरफ से उठाया और चाकू का हैंडल शारदामणि की तरफ कर दिया। इस पर शारदामणि खुश हो गईं और विवेकानंद को शिकागो जाने की इजाजत देते हुए कहा कि अब मैं समझ चुकी हूं कि तुम मन, वचन और कर्म से किसी का बुरा नहीं करोगे क्योंकि चाकू देते समय भी तुमने उसका पैना हिस्सा अपने हाथ से पकड़ा और उसका हैंडल मुझे दिया, जिससे मुझे नुकसान ना पहुंचे।

 

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