जनसंघ की आंधी में भी गाड़े रखा था झंडा, कहानी शेर-ए-दिल्ली कहे जाने वाले नेता की

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जनसंघ की आंधी में भी गाड़े रखा था झंडा, कहानी शेर-ए-दिल्ली कहे जाने वाले नेता की

जनसंघ की आंधी में भी गाड़े रखा था झंडा, कहानी शेर-ए-दिल्ली कहे जाने वाले नेता की


नई दिल्ली : दिल्ली की राजनीति उतनी ही पुरानी है जितनी आजादी के बाद राजधानी में केंद्र की राजनीति है। जब देश में पहली बार चुनाव हुए उसके बाद दिल्ली की भी अपनी विधानसभा बनी। जब भी हम दिल्ली की राजनीति की बात करते हैं तो देश की राजधानी होने की वजह से सारी सुर्खियां केंद्र की सरकार और प्रधानमंत्री के हिस्से ही आती है। इसके बावजूद कई ऐसे नेता हुए जिन्होंने ना सिर्फ दिल्ली की राजनीति की बल्कि अपनी एक अलग पहचान भी बनाई। राजनीति के धुरंधर नाम से शुरू हुई इस सीरिज में हम दिल्ली के राजनीति से जुड़े ऐसे ही नेताओं के राजनीतिक सफर, उपलब्धियों और उनकी जिंदगी के अनछुए पहलुओं के बारे में जानकारी देंगे।

शकूरपुर गांव के रहने वाले थे ब्रह्म प्रकाश
राजनीति के धुरंधर सीरिज में आज बात करेंगे चौधरी ब्रह्म प्रकाश की। ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के शकूरपुर गांव के रहने वाले थे। उनकी पढ़ाई लिखाई दिल्ली से ही हुई। जब वह युवा हुए तो देश में उस समय आजादी की जंग अपने उफान पर थी। महात्मा गांधी उस समय आम जनता के साथ मिलकर अंग्रेजों से देश को आजाद करने की लड़ाई लड़ रहे थे। उस समय ब्रह्म प्रकाश भी महात्मा गांधी के साथ उनके साथ इस जंग का हिस्सा बन गए। महात्मा गांधी के साथ आजादी की लड़ाई के क्रम में ब्रह्म प्रकाश कई बार जेल भी गए। ब्रह्म प्रकाश पंडित जवाहर लाल नेहरू और सीके नायर से काफी प्रभावित थे। बाद में ब्रह्म प्रकाश दिल्ली की सत्ता में शीर्ष पर पहुंचे। इसके बाद उन्होंने इन दोनों को अपना ‘राजनीतिक गुरू’ भी माना। हालांकि, बाद में दिल्ली में चौधरी ब्रह्म प्रकाश बिल्कुल गुमनाम जैसे ही हो गए।
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दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री
दिल्ली के मुख्यमंत्री की जब हम लोग बात करते हैं तो अधिकतर लोगों के जेहन में जो सबसे पहला नाम आता है वो नाम शायद मदन लाल खुराना का ही होता है। इसके बाद शीला दीक्षित और बाकी के नाम आते हैं। बहुत कम लोग ही होंगे जो यह जानते हों कि दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश थे। चौधरी ब्रह्म प्रकाश का परिवार मूल रूप से हरियाणा में रेवाड़ी के रहने वाला था। युवा अवस्था में ब्रह्म प्रकाश ने ना सिर्फ भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया बल्कि महज 34 साल की उम्र में कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं में शुमार हो गए। इतना ही नहीं जवाहर लाल नेहरू के प्रस्ताव पर उन्हें दिल्ली का पहले मुख्यमंत्री भी बनाया गया।

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इत्तेफाक से मिली थी सीएम की कुर्सी
महज 34 साल की उम्र में दिल्ली की सीएम की गद्दी पर बैठकर ब्रह्म प्रकाश ने इतिहास रच दिया था। ब्रह्म प्रकाश के दिल्ली के मुख्यमंत्री बनाने की कहानी भी काफी रोचक है। आजादी मिलने के बाद दिल्ली में जब पहली बार 1952 में चुनाव हुआ। उस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला। विधायकों ने उस समय के लोकप्रिय नेता देशबंधु गुप्ता को विधायक दल का नेता चुन लिया। गुप्ता के शपथ की तारीख भी तय हो गई थी। कहते हैं ना कि होनी को कुछ और ही मंजूर था। सीएम पद की शपथ लेने से पहले ही देशबंधु गुप्ता की एक हादसे में मौत हो गई। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू ने ब्रह्म प्रकाश का नाम सीएम पद के लिए आगे किया। फिर ब्रह्म प्रकाश को सर्वसम्मति से दिल्ली के सीएम पद का उम्मीदवार चुन लिया गया। बह्म प्रकाश 17 मार्च 1952 से 12 फरवरी 1955 से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर रहे।
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दिल्ली की राजनीति में था दबदबा
ब्रह्म प्रकाश का दिल्ली की राजनीति में जो दबदबा था उसका कोई सानी नहीं थी। दिल्ली के मुख्यमंत्री रहने के साथ ही ब्रह्म प्रकाश चार बार यहां से सांसद भी रहे। 1957 में ब्रह्म प्रकाश ने पहली बार सदर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। इसके बाद 1962 और 1977 में बाहरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से भी जीत हासिल की। उनके दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब दिल्ली की 7 सीटों में 6 जनसंघ के खाते में चली गईं। उस समय भी चौ. ब्रह्म प्रकाश ने अपनी बाहरी दिल्ली सीट जीती थी। उस समय उन्होंने जनसंघ के वरिष्ठ नेता मिहिर सिंह को चुनाव में मात दी थी। इमरजेंसी के बाद 1977 में कांग्रेस के बंटवारे से आहत होकर जनता पार्टी का दामन थाम लिया। जनता पार्टी के टिकट पर इन्होंने 1977 में फिर से बाहरी दिल्ली से चुनाव जीत लोकसभा पहुंचे। 1979 में जब जनता दल में दो फाड़ हुई तो उस समय ब्रह्म प्रकाश ने चौधरी चरण सिंह के धड़े का साथ दिया। इसके बाद वह कुछ समय के लिए केंद्र में मंत्री भी बने। केंद्रीय खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्री के रूप में इन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया। साल 1980 में ब्रह्म प्रकाश को कांग्रेस उम्मीदवार सज्जन कुमार के हाथों हार झेलनी पड़ी।

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शेर-ए-दिल्ली नाम से थे मशहूर
चौधरी ब्रह्म प्रकाश बेहद ही सादा जीवन जीते थे। सादगी का आलम ये था कि सीएम बनने के बाद और पद से हटने के बाद भी सरकारी बस में ही सफर करते थे। उनकी सादगी की तारीफ उनके साथ के राजनेता भी करते थे। उनकी सादगी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि सीएम रहने के बावजूद दिल्ली में उन्होंने अपना घर तक नहीं बनाया। उनसे जब इस बाबत लोग पूछते तो ब्रह्म प्रकाश कहते थे कि पूरी दिल्ली ही मेरा घर है। लोगों के बीच रहकर उनकी समस्याओं को बड़े ही इत्मिनान से सुनते थे। चलते-फिरते ही वे लोगों से इस तरह घुलमिल जाते थे कि लगता ही नहीं था कि वे एक आम आदमी से बिल्कुल भी अलग है। वे ना सिर्फ लोगों की समस्याएं सुनते बल्कि उसके समाधान का भी पूरा प्रयास करते। लोगों से उनके जुड़ाव की वजह से ही उनको शेर-ए-दिल्ली के नाम से भी जाना जाता था।
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बेजोड़ थी संगठन और प्रशासनिक कुशलता
चौधरी ब्रह्म प्रकाश अपनी संगठन और प्रशासनिक कुशलता के लिए भी जाने जाते थे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रह्म प्रकाश ने अंडरग्राउंड रहते हुए कई महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया। अपने तेजतर्रार रवैये और सूझबूझ की वजह से वह पार्टी के टॉप लीडरशिप के नजरों में आ गए। इतना ही नहीं ब्रह्म प्रकाश किसी भी मुद्दे पर अपनी बात पार्टी हाइकमान के सामने रखने से भी गुरेज नहीं करते थे। अपने गुणों की वजह से वह जवाहर लाल नेहरू के बेहद करीबी लोगों में शामिल हो गए थे। साल 2001 में डाक विभाग ने चौ. ब्रह्म प्रकाश पर एक डाक टिकट भी जारी किया। दिल्ली में नजफगढ़ के खेड़ा डाबर में चौ. ब्रह्म प्रकाश के नाम पर एक इंजीनियरिंग कॉलेज है। इसके अलावा चौ. ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान भी है। यह एशिया का सबसे बड़ा ऑटोनोमस आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल है। दिल्ली विधानसभा में भी चौ. ब्रह्म प्रकाश की प्रतिमा लगी है।

सहकारिता आंदोलन के पितामह
चौधरी ब्रह्म प्रकाश समाज में वंचित, शोषित और गरीब वर्ग से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए हमेशा आगे रहते थे। उन्हें इस बात का शुरुआत में ही अहसास हो गया था कि सहकारिता की ताकत से ही इन लोगों की मुश्किलें खत्म हो सकती हैं। 1945 की शुरुआत में इन्होंने ग्रामीण और कृषि सहकारिता को एकजुट करना शुरू किया। उन्हें सहकारिता आंदोलन का पितामह भी कहा जाता है। चौ. ब्रह्म प्रकाश ने नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) डॉ. वर्गीज कुरियन के साथ मिलकर सहकारी कंपनियों को बढ़ावा देने का विचार रखा। इसका उद्देश्य सहकारी संस्थाओं को सरकार के चंगुल से मुक्त करना था। सरकार का रजिस्ट्रार ऑफ कॉर्पोरेटिव सोसायटी के जरिये इन पर नियंत्रण होता था। उन्होंने 40 साल तक सहकारिता के विकास के लिए काम किया। इस दौरान उन्होंने दिल्ली किसान बहुउद्देशीय सहकारी समिति, दिल्ली केंद्रीय सहकारी उपभोक्ता स्टोर, दिल्ली राज्य सहकारी इंस्टीट्यूट का गठन किया। पंचायती राज संस्था का समर्थन करने वाले लोगों में शामिल थे। उन्होंने वंचित तबकों की कल्याण के लिए साल 1977 में उन्होंने नेशनल यूनियन ऑफ बैकवर्ड क्लास, शेड्यूल कास्ट, शेड्यूल ट्राइब्स एंड माइनॉरिटी गठित की। 1956 के बाद साल 1993 में जब फिर से दिल्ली में विधानसभा बहाल हुई और उसके चुनाव हुए उसी साल चौ. ब्रह्म प्रकाश का निधन हो गया।

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