छोटे-छोटे प्रयास बचा सकते हैं किसी की जान h3>
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस में बीमिम्स में हुआ सेमिनार बचपन से ही सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने पर हुई चर्चा फोटो : पावापुरी सेमिनार : पावापुरी मेडिकल कॉलेज में मंगलवार को आत्महत्या रोकथाम दिवस पर सेमिनार में शामिल प्राचार्य प्रो. डॉ. सर्बिल कुमारी व अन्य। पावापुरी, निज संवाददाता। पावापुरी मेडिकल कॉलेज में मंगलवार को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर सेमिनार का आयोजन किया गया। विद्वानों ने आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति पर चिंता जतायी और बचपन से ही सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने की वकालत की। लोगों से हर समय खुश रहने की अपील की। वक्ताओं ने कहा कि छोटे-छोटे प्रयास किसी की जान बचा सकते हैं। बीमिम्स की प्राचार्या डॉ. सर्बिल कुमारी ने कहा कि आज के परिवेश में आत्महत्या एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। इसे रोकने के लिए समाज और स्वास्थ्य संस्थानों को मिलकर काम करना होगा। हर साल दुनिया में लाखों लोग आत्महत्या कर लेते हैं। नई रिपोर्ट के अनुसार भारत में छात्र आत्महत्या का वार्षिक दर तेजी से बढ़ा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2024 के आंकड़ों के आधार पर कुल आत्महत्याओं की संख्या में जहां सालाना दो फीसदी की वृद्धि हुई है, वहीं छात्र आत्महत्या के मामलों में चार फीसदी से अधिक वृद्धि हुई है। अवसाद, आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण : डॉ. योगेश कृष्ण सहाय ने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने और आत्महत्या के मामलों की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाने पर जोर दिया। कहा कि आत्महत्या का विचार आना गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत है। इससे यह भी पता चलता है कि व्यक्ति लंबे समय से तनाव या अवसाद में जी रहा है। इसका अगर समय रहते निदान और उपचार हो गया होता, तो स्थिति को इस स्तर तक खराब होने से रोका जा सकता है। लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 10 सितंबर को यह दिवस मनाया जाता है। समाज और परिवार की अहम भूमिका : मनोचिकित्सक डॉ. अनंत कुमार वर्मा ने बताया कि आत्महत्या रोकथाम में समाज व परिवार की अहम भूमिका होती है। आसपास रहने वाले दोस्तों, रिश्तेदारों, साथ में काम करने वाले लोगों का मूड हो या व्यवहार, उनके द्वारा कही गई बातों में भी कुछ अलग सा बदलाव या निराशा महसूस कर रहे हैं, तो उसपर गंभीरता से ध्यान दें। उसे समझाएं। अगर कोई कारण हो, तो उससे बाहर निकलने में उसकी मदद करें। कई बार अकेलापन इस समस्या को और बढ़ा देता है। उस व्यक्ति से बात करना, उसके साथ रहना, परिवार के बीच में सम्मानपूर्वक सहयोग करने से उसके मन की स्थिति निश्चित तौर से बदल सकती है। छात्रों में बढ़ती संख्या बढ़ा रही चिंता : छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्या की दर चिंता बढ़ा रही है। साल 2022 में मृत छात्रों में 53 फीसदी पुरुष थे। 2021 और 2022 के बीच पुरुष छात्र आत्महत्या की दर में छह फीसदी की कमी आयी। जबकि, छात्राओं की आत्महत्या दर में सात फीसदी की वृद्धि हुई है। छात्रों पर पड़ रहा पढ़ाई का अनावश्यक दबाव, हमउम्र साथियों के साथ तुलना जैसी स्थितियां मानसिक तनाव बढ़ा रही है। प्राथमिक स्तर पर छात्रों में आत्महत्या के रोकथाम के लिए माता-पिता इस तरह का दबाव बच्चों पर नहीं दें। डॉ. श्रीमोहन मिश्रा ने कहा कि पारिवारिक कलह व आर्थिक तंगी भी आत्महत्या की एक वजह रही है। सेमिनार का उद्देश्य आत्महत्या की घटनाओं को कम करने के लिए लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना था। सेमिनार में डॉ. सीमा सिंह, डॉ. उषा कुमारी, डॉ. अरुण कुमार सिंह, डॉ. नागेंद्र कुमार सिन्हा, डॉ. इम्तियाज अहमद, डॉ. रश्मि कुमारी व अन्य ने अपने विचार व्यक्त किए।
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विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस में बीमिम्स में हुआ सेमिनार बचपन से ही सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने पर हुई चर्चा फोटो : पावापुरी सेमिनार : पावापुरी मेडिकल कॉलेज में मंगलवार को आत्महत्या रोकथाम दिवस पर सेमिनार में शामिल प्राचार्य प्रो. डॉ. सर्बिल कुमारी व अन्य। पावापुरी, निज संवाददाता। पावापुरी मेडिकल कॉलेज में मंगलवार को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर सेमिनार का आयोजन किया गया। विद्वानों ने आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति पर चिंता जतायी और बचपन से ही सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने की वकालत की। लोगों से हर समय खुश रहने की अपील की। वक्ताओं ने कहा कि छोटे-छोटे प्रयास किसी की जान बचा सकते हैं। बीमिम्स की प्राचार्या डॉ. सर्बिल कुमारी ने कहा कि आज के परिवेश में आत्महत्या एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। इसे रोकने के लिए समाज और स्वास्थ्य संस्थानों को मिलकर काम करना होगा। हर साल दुनिया में लाखों लोग आत्महत्या कर लेते हैं। नई रिपोर्ट के अनुसार भारत में छात्र आत्महत्या का वार्षिक दर तेजी से बढ़ा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2024 के आंकड़ों के आधार पर कुल आत्महत्याओं की संख्या में जहां सालाना दो फीसदी की वृद्धि हुई है, वहीं छात्र आत्महत्या के मामलों में चार फीसदी से अधिक वृद्धि हुई है। अवसाद, आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण : डॉ. योगेश कृष्ण सहाय ने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने और आत्महत्या के मामलों की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाने पर जोर दिया। कहा कि आत्महत्या का विचार आना गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत है। इससे यह भी पता चलता है कि व्यक्ति लंबे समय से तनाव या अवसाद में जी रहा है। इसका अगर समय रहते निदान और उपचार हो गया होता, तो स्थिति को इस स्तर तक खराब होने से रोका जा सकता है। लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 10 सितंबर को यह दिवस मनाया जाता है। समाज और परिवार की अहम भूमिका : मनोचिकित्सक डॉ. अनंत कुमार वर्मा ने बताया कि आत्महत्या रोकथाम में समाज व परिवार की अहम भूमिका होती है। आसपास रहने वाले दोस्तों, रिश्तेदारों, साथ में काम करने वाले लोगों का मूड हो या व्यवहार, उनके द्वारा कही गई बातों में भी कुछ अलग सा बदलाव या निराशा महसूस कर रहे हैं, तो उसपर गंभीरता से ध्यान दें। उसे समझाएं। अगर कोई कारण हो, तो उससे बाहर निकलने में उसकी मदद करें। कई बार अकेलापन इस समस्या को और बढ़ा देता है। उस व्यक्ति से बात करना, उसके साथ रहना, परिवार के बीच में सम्मानपूर्वक सहयोग करने से उसके मन की स्थिति निश्चित तौर से बदल सकती है। छात्रों में बढ़ती संख्या बढ़ा रही चिंता : छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्या की दर चिंता बढ़ा रही है। साल 2022 में मृत छात्रों में 53 फीसदी पुरुष थे। 2021 और 2022 के बीच पुरुष छात्र आत्महत्या की दर में छह फीसदी की कमी आयी। जबकि, छात्राओं की आत्महत्या दर में सात फीसदी की वृद्धि हुई है। छात्रों पर पड़ रहा पढ़ाई का अनावश्यक दबाव, हमउम्र साथियों के साथ तुलना जैसी स्थितियां मानसिक तनाव बढ़ा रही है। प्राथमिक स्तर पर छात्रों में आत्महत्या के रोकथाम के लिए माता-पिता इस तरह का दबाव बच्चों पर नहीं दें। डॉ. श्रीमोहन मिश्रा ने कहा कि पारिवारिक कलह व आर्थिक तंगी भी आत्महत्या की एक वजह रही है। सेमिनार का उद्देश्य आत्महत्या की घटनाओं को कम करने के लिए लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना था। सेमिनार में डॉ. सीमा सिंह, डॉ. उषा कुमारी, डॉ. अरुण कुमार सिंह, डॉ. नागेंद्र कुमार सिन्हा, डॉ. इम्तियाज अहमद, डॉ. रश्मि कुमारी व अन्य ने अपने विचार व्यक्त किए।