छह महीने, चार मौत! विनोद खन्ना की जिंदगी की वो कहानी जिसमें महेश भट्ट भी हैं और ओशो का आश्रम भी h3>
बॉलीवुड के सबसे हैंडसम मैन में गिने जानेवाले विनोद खन्ना ने अपने करियर की शुरुआत विलन से की थी। विनोद खन्ना ने सुनील दत्त की फिल्म ‘मन का मीत’ (1968) से बॉलीवुड में एंट्री मारी थी उनके रोल की जमकर तारीफ भी हुई थी। फिल्म ‘मेरा गांव मेरा देश’ में डकैत की भूमिका से भी उन्होंने दर्शकों का खूब दिल जीता। बाद में वह लीड हीरो के रोल में नजर आने लगे और फिर ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘द बर्निंग ट्रेन’ जैसी कई शानदार फिल्में कर डाली। विनोद खन्ना का करियर एक तरफ पीक पर था और उनके सामने फिल्मों के ऑफर्स की लाइनें लगी रहती थीं। इसी बीच उनके संन्यास लेने की खबरों ने इंडस्ट्री और उनके फैन्स के बीच खूब भूचाल भी मचाया था।
विनोद खन्ना के संन्यासी बनने की खबर ने हलचल मचा दी
आज ही के दिन 6 अक्टूबर 1946 को जन्म लेनेवाले Vinod Khanna 70 के दशक में फिल्मी दुनिया पर राज कर रहे थे। Vinod Khanna के स्टारडम का किस्सा जोरों पर था कि अचानक 80 के दशक में उनके संन्यासी बनने की खबर ने हलचल मचा दी। किसी को यह पूरी कहानी पब्लिसिटी स्टंट लगने लगी तो किसी को लग रहा था कि उनकी दिमागी हालत सही नहीं। बात भी ऐसी ही थी क्योंकि बॉलीवुड में इससे पहले इतना बड़ा स्टार अपने करियर की इस ऊंचाइयों तक पहुंच कर कभी इस तरह वापस नहीं लौटा था।
महेश भट्ट ने दिखाया था ओशो का रास्ता
विनोद खन्ना के बेटे अक्षय खन्ना ने पापा की पूरी कहानी खुद सुनाई थी। बताया जाता है कि 80 के दशक में विनोद खन्ना की मां का निधन हुआ था, जिसके बाद वह एकदम टूट गए थे। कहते हैं कि आलिया भट्ट के पापा महेश भट्ट ने उन्हें ओशो रजनीश के बारे में बताया था। एक इंटरव्यू में महेश भट्ट ने कहा था, ‘कई लोग नहीं जानते कि मैं ही विनोद खन्ना को ओशो के आश्रम में ले गया था।’
उस वक्त अक्षय खन्ना केवल 5 साल के थे
अक्षय कुमार ने पापा के बारे में कहा था कि विनोद खन्ना ओशो से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने परिवार को तो छोड़ा ही, बल्कि संन्यास तक ले लिया था। यह एक लाइफ चेंजिंग फैसला था। उस वक्त अक्षय केवल 5 साल के थे, जब पापा घर छोड़कर आध्यात्म की दुनिया में जा बसे। 1980 के दशक के शुरुआत में विनोद खन्ना ने ऐलान कर दिया था कि वह फिल्मी दुनिया की चकाचौंध छोड़कर आध्यात्मिक गुरू ओशो रजनीश के बताए रास्ते पर चलेंगे।
कहते हैं इस कहानी से प्रेरित हो गए विनोद खन्ना
लोग इस बात से हैरान थे और जानना चाहते थे कि आखिर उन्होंन ओशो की शरण में जाने का फैसला क्यों लिया। बताया जाता है कि ओशो की एक कहानी सुनकर वह उनसे काफी प्रभावित हुए थो और फिर आध्यात्म की तरफ मुड़ गए। बताई जाती है कि वो कहानी कुछ ऐसी थी जो एक झेन गुरु की थी जिसमें, ‘एक चोर भागता हुआ निकल जाता है। वहां एक झेन गुरु ध्यान लगाकर बैठे हैं और पुलिस आकर उन्हें ही चोर समझकर पकड़ ले जाती है। गुरू को जेल में बंद कर दिया जाता है, लेकिन गुरू यह नहीं बताते कि मैंने चोरी नहीं की। अब जेल में भी गुरु ध्यान में लीन रहते हैं और उन्हें देखकर कई और कैदी भी ध्यान करने लगे। इसके बाद 3-4 साल बाद असली चोर पकड़ा गया और पुलिस ने झेन गुरू को छोड़ दिया। पुलिस ने कहा- हमें माफ कर दें। गुरु ने कहा- नहीं,अभी मुझे मत छोड़ो क्योंकि मेरा काम पूरा नहीं हुआ है। यह कहानी सुना कर ओशो ने कहा था- हम सभी जेल में है, कोठरी में हैं। हम सभी सात बाई सात की कोठरी में हैं, चाहे वह जेल के अंदर हो चाहे बाहर हो। जब तक हम समग्रता से अपना काम नहीं करते तब तक कोठरी से बाहर नहीं हो सकते।’
विनोद खन्ना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर डाली घोषणा
कहा यह भी जाता है कि जिस समय विनोद खन्ना आध्यात्म की ओर मुड़ रहे थे उस दौरान उनकी वाइफ गीतांजली के साथ मतभेद भी चल रहा था। विनोद खन्ना ने उस वक्त फैसला लिया कि वह मुंबई का ग्लैमर छोड़कर पुणे में कोरेगांव पार्क (जहां रजनीश का आश्रम स्थित था) में रहेंगे। साल 1982 में विनोद खन्ना ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई, जो उस समय बड़ी बात होती थी। वैसे तो लोगों को अनुमान था कि विनोद खन्ना क्या कहने वाले हैं। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में विनोद खन्ना के अलावा उनकी पत्नी गीतांजली और बेटे अक्षय और राहुल भी मौजूद थे। उन्होंने इस बार ऑफिशल घोषणा कर डाली कि वह गुरु रजनीश का शिष्य बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री को छोड़ रहे हैं। खबर देशभर में फैली और लोग सन्न थे यह सोचकर कि उन्होंने आखिरकार ये फैसला क्यों ले लिया।
परमहंस योगानंद की मशहूर किताब खरीदी
सच ये है कि विनोद खन्ना को बचपन से ही साधु-संत अच्छे लगते थे। करीब 8 साल की उम्र से ही उन्होंने साधुओं के पास जाना शुरू कर दिया था। कभी उन्हें अपना हाथ दिखाते तो कभी उनके साथ उनकी तरह ध्यान में बैठ जाते। विनोद खन्ना कॉलेज पहुंचे, फिल्में मिलीं, सफलता हाथ लगी, लेकिन फिर मन में हलचल मच गई। एक दिन उन्होंने परमहंस योगानंद की मशहूर किताब खरीद ली। कहते हैं कि एक ही रात में वह पूरी किताब पढ़ गए। योगानंद जी की फोटो देख कर उन्हें ऐसा लगा कि वह इस आदमी को जानते हैं। और यहीं से आध्यात्म की खोज में भटकने लगे।
विनोद के मन में जितने सवाल थे उनके जवाब मिल गए
तब वहां विजय आनंद ओशो से संन्यास ले चुके थे और महेश भट्ट भी ओशो को काफी सुना करते थे। ये दोनों ही विनोद के अच्छे दोस्त थे और इनके साथ ही वह पुणे पहुंचे जहां से उन्होंने ओशो के कसेट्स खरीदे। उनके प्रवचनों को सुनकर विनोद के मन में जितने सवाल थे उनके जवाब मिलते गए।
छह-सात महीने में चार लोगों की मौत
विनोद खन्ना ने अपने इंटरव्यू में कहा था, ‘मेरे परिवार में छह-सात महीने में चार लोग एक के बाद एक करके गुजर गए, जिसमें मेरी मां और मेरी एक अजीज बहन थी। मेरी जड़ें हिल गई। मुझे लगने लगा कि बस अब एक दिन मैं भी मर जाऊंगा। दिसंबर 1975 में एकदम मैंने तय किया कि मुझे ओशो के पास जाना है।’ इसके बाद जब वह दर्शन के लिए पहुंचे तो ओशो ने पूछा- क्या तुम संन्यास के लिए तैयार हो? विनोद ने जवाब दिया- मुझे पता नहीं, लेकिन आपके प्रवचन मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। ओशो ने उनसे संन्यास लेने की बात कही और वह तुरंत तैयार हो गए।
आश्रम में टॉयलेट और बर्तन तक साफ किया करते थे
बताया जाता है कि इस दौरान उन्होंने अपना नाम स्वामी विनोद भारती रख लिया था। उन्होंने आचार्य रजनीश के साथ कई जगहों का दौरा भी किया। विनोद खन्ना ओशो की शरण में जाने के लिए अमेरिका तक चले गए। वहां विनोद माली का काम किया करते थे। इसके अलावा आश्रम में वह टॉयलेट और बर्तन तक साफ किया करते थे।
बॉलिवुड में कमबैक करने के लिए तैयार
वहां 4-5 साल वक्त बिताने के बाद वह वापस भारत लौट आए। हालांकि विनोद खन्ना ओशो आश्रम से जुड़े विवादों के बाद बॉलिवुड में कमबैक करने के लिए तैयार थे। तब फिरोज खान ने उनकी मदद की थी। साल 1987 में वापसी की थी। कैंसर की बीमारी के बाद 27 अप्रैल 2017 को उनका मुंबई में निधन हो गया।
आज ही के दिन 6 अक्टूबर 1946 को जन्म लेनेवाले Vinod Khanna 70 के दशक में फिल्मी दुनिया पर राज कर रहे थे। Vinod Khanna के स्टारडम का किस्सा जोरों पर था कि अचानक 80 के दशक में उनके संन्यासी बनने की खबर ने हलचल मचा दी। किसी को यह पूरी कहानी पब्लिसिटी स्टंट लगने लगी तो किसी को लग रहा था कि उनकी दिमागी हालत सही नहीं। बात भी ऐसी ही थी क्योंकि बॉलीवुड में इससे पहले इतना बड़ा स्टार अपने करियर की इस ऊंचाइयों तक पहुंच कर कभी इस तरह वापस नहीं लौटा था।
महेश भट्ट ने दिखाया था ओशो का रास्ता
विनोद खन्ना के बेटे अक्षय खन्ना ने पापा की पूरी कहानी खुद सुनाई थी। बताया जाता है कि 80 के दशक में विनोद खन्ना की मां का निधन हुआ था, जिसके बाद वह एकदम टूट गए थे। कहते हैं कि आलिया भट्ट के पापा महेश भट्ट ने उन्हें ओशो रजनीश के बारे में बताया था। एक इंटरव्यू में महेश भट्ट ने कहा था, ‘कई लोग नहीं जानते कि मैं ही विनोद खन्ना को ओशो के आश्रम में ले गया था।’
उस वक्त अक्षय खन्ना केवल 5 साल के थे
अक्षय कुमार ने पापा के बारे में कहा था कि विनोद खन्ना ओशो से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने परिवार को तो छोड़ा ही, बल्कि संन्यास तक ले लिया था। यह एक लाइफ चेंजिंग फैसला था। उस वक्त अक्षय केवल 5 साल के थे, जब पापा घर छोड़कर आध्यात्म की दुनिया में जा बसे। 1980 के दशक के शुरुआत में विनोद खन्ना ने ऐलान कर दिया था कि वह फिल्मी दुनिया की चकाचौंध छोड़कर आध्यात्मिक गुरू ओशो रजनीश के बताए रास्ते पर चलेंगे।
कहते हैं इस कहानी से प्रेरित हो गए विनोद खन्ना
लोग इस बात से हैरान थे और जानना चाहते थे कि आखिर उन्होंन ओशो की शरण में जाने का फैसला क्यों लिया। बताया जाता है कि ओशो की एक कहानी सुनकर वह उनसे काफी प्रभावित हुए थो और फिर आध्यात्म की तरफ मुड़ गए। बताई जाती है कि वो कहानी कुछ ऐसी थी जो एक झेन गुरु की थी जिसमें, ‘एक चोर भागता हुआ निकल जाता है। वहां एक झेन गुरु ध्यान लगाकर बैठे हैं और पुलिस आकर उन्हें ही चोर समझकर पकड़ ले जाती है। गुरू को जेल में बंद कर दिया जाता है, लेकिन गुरू यह नहीं बताते कि मैंने चोरी नहीं की। अब जेल में भी गुरु ध्यान में लीन रहते हैं और उन्हें देखकर कई और कैदी भी ध्यान करने लगे। इसके बाद 3-4 साल बाद असली चोर पकड़ा गया और पुलिस ने झेन गुरू को छोड़ दिया। पुलिस ने कहा- हमें माफ कर दें। गुरु ने कहा- नहीं,अभी मुझे मत छोड़ो क्योंकि मेरा काम पूरा नहीं हुआ है। यह कहानी सुना कर ओशो ने कहा था- हम सभी जेल में है, कोठरी में हैं। हम सभी सात बाई सात की कोठरी में हैं, चाहे वह जेल के अंदर हो चाहे बाहर हो। जब तक हम समग्रता से अपना काम नहीं करते तब तक कोठरी से बाहर नहीं हो सकते।’
विनोद खन्ना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर डाली घोषणा
कहा यह भी जाता है कि जिस समय विनोद खन्ना आध्यात्म की ओर मुड़ रहे थे उस दौरान उनकी वाइफ गीतांजली के साथ मतभेद भी चल रहा था। विनोद खन्ना ने उस वक्त फैसला लिया कि वह मुंबई का ग्लैमर छोड़कर पुणे में कोरेगांव पार्क (जहां रजनीश का आश्रम स्थित था) में रहेंगे। साल 1982 में विनोद खन्ना ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई, जो उस समय बड़ी बात होती थी। वैसे तो लोगों को अनुमान था कि विनोद खन्ना क्या कहने वाले हैं। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में विनोद खन्ना के अलावा उनकी पत्नी गीतांजली और बेटे अक्षय और राहुल भी मौजूद थे। उन्होंने इस बार ऑफिशल घोषणा कर डाली कि वह गुरु रजनीश का शिष्य बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री को छोड़ रहे हैं। खबर देशभर में फैली और लोग सन्न थे यह सोचकर कि उन्होंने आखिरकार ये फैसला क्यों ले लिया।
परमहंस योगानंद की मशहूर किताब खरीदी
सच ये है कि विनोद खन्ना को बचपन से ही साधु-संत अच्छे लगते थे। करीब 8 साल की उम्र से ही उन्होंने साधुओं के पास जाना शुरू कर दिया था। कभी उन्हें अपना हाथ दिखाते तो कभी उनके साथ उनकी तरह ध्यान में बैठ जाते। विनोद खन्ना कॉलेज पहुंचे, फिल्में मिलीं, सफलता हाथ लगी, लेकिन फिर मन में हलचल मच गई। एक दिन उन्होंने परमहंस योगानंद की मशहूर किताब खरीद ली। कहते हैं कि एक ही रात में वह पूरी किताब पढ़ गए। योगानंद जी की फोटो देख कर उन्हें ऐसा लगा कि वह इस आदमी को जानते हैं। और यहीं से आध्यात्म की खोज में भटकने लगे।
विनोद के मन में जितने सवाल थे उनके जवाब मिल गए
तब वहां विजय आनंद ओशो से संन्यास ले चुके थे और महेश भट्ट भी ओशो को काफी सुना करते थे। ये दोनों ही विनोद के अच्छे दोस्त थे और इनके साथ ही वह पुणे पहुंचे जहां से उन्होंने ओशो के कसेट्स खरीदे। उनके प्रवचनों को सुनकर विनोद के मन में जितने सवाल थे उनके जवाब मिलते गए।
छह-सात महीने में चार लोगों की मौत
विनोद खन्ना ने अपने इंटरव्यू में कहा था, ‘मेरे परिवार में छह-सात महीने में चार लोग एक के बाद एक करके गुजर गए, जिसमें मेरी मां और मेरी एक अजीज बहन थी। मेरी जड़ें हिल गई। मुझे लगने लगा कि बस अब एक दिन मैं भी मर जाऊंगा। दिसंबर 1975 में एकदम मैंने तय किया कि मुझे ओशो के पास जाना है।’ इसके बाद जब वह दर्शन के लिए पहुंचे तो ओशो ने पूछा- क्या तुम संन्यास के लिए तैयार हो? विनोद ने जवाब दिया- मुझे पता नहीं, लेकिन आपके प्रवचन मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। ओशो ने उनसे संन्यास लेने की बात कही और वह तुरंत तैयार हो गए।
आश्रम में टॉयलेट और बर्तन तक साफ किया करते थे
बताया जाता है कि इस दौरान उन्होंने अपना नाम स्वामी विनोद भारती रख लिया था। उन्होंने आचार्य रजनीश के साथ कई जगहों का दौरा भी किया। विनोद खन्ना ओशो की शरण में जाने के लिए अमेरिका तक चले गए। वहां विनोद माली का काम किया करते थे। इसके अलावा आश्रम में वह टॉयलेट और बर्तन तक साफ किया करते थे।
बॉलिवुड में कमबैक करने के लिए तैयार
वहां 4-5 साल वक्त बिताने के बाद वह वापस भारत लौट आए। हालांकि विनोद खन्ना ओशो आश्रम से जुड़े विवादों के बाद बॉलिवुड में कमबैक करने के लिए तैयार थे। तब फिरोज खान ने उनकी मदद की थी। साल 1987 में वापसी की थी। कैंसर की बीमारी के बाद 27 अप्रैल 2017 को उनका मुंबई में निधन हो गया।