चुनावों से पहले एमपी कांग्रेस का कंप्रोमाइज फॉर्मूला है नेता प्रतिपक्ष पद से कमलनाथ की विदाई! h3>
भोपालः मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद से कमलनाथ की विदाई हो गई है। डॉ गोविंद सिंह को उनकी जगह नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के घोर विरोधी डॉ गोविंद सिंह चंबल क्षेत्र के कद्दावर नेता हैं और सातवीं बार विधायक हैं। वे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समर्थक हैं। उनके चुनाव को प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी को खत्म के लिए फॉर्मूले के रूप में देखा जा रहा है।
लंबे समय से उठ रही थी मांग
2020 में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद से ही कमलनाथ के पास ये दोनों पद थे। प्रदेश अध्यक्ष वे 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले से हैं। चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बने और सरकार गिरने के बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद भी उन्हें ही मिला। उनके एक पद छोड़ने की मांग लबे समय से हो रही थी, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का विश्वासपात्र होने के चलते कमलनाथ दोनों पद अपने पास बनाए रखने में सफल रहे थे।
उठने लगे थे विरोध के सुर
पिछले कुछ महीनों में कमलनाथ की कार्यशैली को लेकर कांग्रेस के कुुछ बड़े नेता खुलकर बोल रहे थे। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और सुरेश पचौरी के साथ अजय सिंह राहुल कई बार असंतोष जता चुके थे। उनकी शिकायत थी कि कमलनाथ मनमर्जी से फैसले लेते हैं। पार्टी के बड़े नेताओं से भी वे कम ही मिलते-जुलते हैं। यादव और अजय सिंह राहुल तो पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर भी कमलनाथ की शिकायत कर आए थे।
चुनाव नजदीक आते ही एक्टिव हुआ आलाकमान
राज्य में विधानसभा चुनाव अभी डेढ़ साल दूर हैं, लेकिन दोनों पार्टियां अपनी तैयारियों में अभी से लगी हुई हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को पहली चिंता प्रदेश कांग्रेस में मौजूद गुटबाजी को लेकर हुई। असंतुष्टों को मनाने के लिए पहले एक राजनीतिक मामलों की समिति बनाई गई। इसमें सभी शीर्ष नेताओं को शामिल किया गया। पार्टी ने कहा कि चुनाव से संबंधित सभी फैसले समिति ही लेगी। तभी यह लगने लगा था कि प्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ के एकाधिकार के दिन अब खत्म होने वाले हैं।
इसलिए कहा जा रहा कंप्रोमाइज फॉर्मूला
इससे पहले जब कभी नेता प्रतिपक्ष के पद से कमलनाथ के इस्तीफे की बात आई, पार्टी में उनके खेमे की ओर से बाला बच्चन और सज्जन सिंह वर्मा का नाम विकल्प के रूप में आगे बढ़ाया गया। पार्टी के असंतुष्ट गुट इसके लिए तैयार नहीं थे। मामला इसी पर अटका हुआ था। चुनाव से पहले पार्टी नेतृत्व ने नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए नामों पर मंथन शुरू किया तो डॉ गोविंद सिंह के नाम पर सभी गुट राजी हुए। गोविंद सिंह की वरिष्ठता उनके काम आई। कमलनाथ को भी नहीं चाहते हुए उनके नाम पर हामी भरनी पड़ी।
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2020 में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद से ही कमलनाथ के पास ये दोनों पद थे। प्रदेश अध्यक्ष वे 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले से हैं। चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बने और सरकार गिरने के बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद भी उन्हें ही मिला। उनके एक पद छोड़ने की मांग लबे समय से हो रही थी, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का विश्वासपात्र होने के चलते कमलनाथ दोनों पद अपने पास बनाए रखने में सफल रहे थे।
उठने लगे थे विरोध के सुर
पिछले कुछ महीनों में कमलनाथ की कार्यशैली को लेकर कांग्रेस के कुुछ बड़े नेता खुलकर बोल रहे थे। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और सुरेश पचौरी के साथ अजय सिंह राहुल कई बार असंतोष जता चुके थे। उनकी शिकायत थी कि कमलनाथ मनमर्जी से फैसले लेते हैं। पार्टी के बड़े नेताओं से भी वे कम ही मिलते-जुलते हैं। यादव और अजय सिंह राहुल तो पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर भी कमलनाथ की शिकायत कर आए थे।
चुनाव नजदीक आते ही एक्टिव हुआ आलाकमान
राज्य में विधानसभा चुनाव अभी डेढ़ साल दूर हैं, लेकिन दोनों पार्टियां अपनी तैयारियों में अभी से लगी हुई हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को पहली चिंता प्रदेश कांग्रेस में मौजूद गुटबाजी को लेकर हुई। असंतुष्टों को मनाने के लिए पहले एक राजनीतिक मामलों की समिति बनाई गई। इसमें सभी शीर्ष नेताओं को शामिल किया गया। पार्टी ने कहा कि चुनाव से संबंधित सभी फैसले समिति ही लेगी। तभी यह लगने लगा था कि प्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ के एकाधिकार के दिन अब खत्म होने वाले हैं।
इसलिए कहा जा रहा कंप्रोमाइज फॉर्मूला
इससे पहले जब कभी नेता प्रतिपक्ष के पद से कमलनाथ के इस्तीफे की बात आई, पार्टी में उनके खेमे की ओर से बाला बच्चन और सज्जन सिंह वर्मा का नाम विकल्प के रूप में आगे बढ़ाया गया। पार्टी के असंतुष्ट गुट इसके लिए तैयार नहीं थे। मामला इसी पर अटका हुआ था। चुनाव से पहले पार्टी नेतृत्व ने नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए नामों पर मंथन शुरू किया तो डॉ गोविंद सिंह के नाम पर सभी गुट राजी हुए। गोविंद सिंह की वरिष्ठता उनके काम आई। कमलनाथ को भी नहीं चाहते हुए उनके नाम पर हामी भरनी पड़ी।