चुनावी समर में की गयीं धड़ाधड़ घोषणाएं: अब इन्हें पूरा कर जनता को साधना सरकार के लिए बड़ी चुनौती | Big challenge for govt to fulfill announcements of election season | Patrika News h3>
मौजूदा वित्तीय वर्ष में इन नए वादों के लिए बजट में प्रावधान नहीं किया गया है, लेकिन विकास कार्य अभी से शुरू करने होंगे। कारण यह है कि अगले साल नवंबर में विधानसभा चुनाव होना है। उससे पहले सरकार के सामने वादों को पूरा करने की चुनौती है।
हालांकि कुछ राहत यह है कि कोरोना काल के बाद राजस्व की स्थिति संभल रही है। सरकार ने इस साल बजट में 1.95 लाख करोड़ से ज्यादा की आमदनी का अनुमान रखा है। इनमें 72 हजार करोड़ विभिन्न टैक्स के जरिए वसूली होना है।
– 1.95 लाख करोड़ से ज्यादा की आमदनी होने का अनुमान है इस वित्तीय वर्ष में सरकार को।
– 72 हजार करोड़ टैक्स के जरिए वसूली होना है। सबसे भारी इनके लिए पैसे का इंतजाम
1- नगरोदय कार्यक्रम के लिए 5 साल में 21 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च करने का वादा है। पहले साल औसत चार हजार करोड़ रुपए चाहिए।
2- प्रदेश में सड़कों पर दो वर्ष में 2 हजार करोड़ खर्च करने का वादा है। इसके तहत इसी साल 1 हजार करोड़ रुपए की जरूरत रहेगी।
3- 16 नगर निगमों में तीन हजार बसें चलाने का वादा है। इसी के साथ 5 हजार करोड़ से शहरों को कचरा मुक्त बनाने की प्लानिंग है।
4- एक साल में भोपाल और इंदौर में मेट्रो रेल चलाने का वादा है। नवंबर 2023 के चुनाव से पहले सरकार मेट्रो का संचालन चाहती है।
इधर, प्रदेश में कर्ज हुआ बजट से ज्यादा
इस साल का राज्य का मुख्य बजट 2.79 लाख करोड़ रुपए का है, जबकि कर्ज 2.87 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को पार हो चुका है। यह अलार्मिंग स्थिति है। हालांकि ऐसा इसलिए हुआ कि केंद्र सरकार ने ऑफ बजट कर्ज को भी मुख्य बजट में शामिल करने के आदेश दिए हैं। इसके तहत अब भी 35 हजार करोड़ औसत ऑफ बजट कर्ज है, जो इसमें शामिल हो सकता है।
नई परिषदों के सामने भी खड़ा हुआ वित्तीय संकट
इधर, नव गठित नगर पालिका और नगर परिषदों के सामने बड़ी चुनौती खाली खजाने की है। कई निकायों में कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं मिल रहा है। इस मामले में नगर परिषदों की वित्तीय स्थिति ज्यादा खराब है। इसके पीछे वजह पंचायतों को नगर परिषद बनाना है। इनमें न तो वित्तीय संसाधन हैं और न आय का बड़ा जरिया। कर्मचारियों की भी पूरे मानदंड के अनुसार भर्ती कर ली गई है। इससे निकायों का स्थापना खर्च बढ़ गया है।
चुंगी क्षतिपूर्ति घटाई: वर्ष 2018 तक 378 निकाय थे। सरकार इन्हें चुंगी क्षतिपूर्ति के रूप में 324 करोड़ रुपए देती थी। इसमें 21त्न राशि पेंशन अंशदान व बिजली बिल की कटौती कर दी जाती थी। इसके बाद चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि 300 करोड़ रुपए कर दी गई। इसके साथ ही निकायों की संख्या 378 से बढ़कर 413 हो गई। 324 करोड़ रुपए जहां 378 निकायों को दिए जाते थे, वहीं, अब 300 करोड़ रुपए में 413 निकायों को बांटे जाने लगे हैं।
इन निकायों में ज्यादा दिक्कतें: धामनौद, चंदेरी, ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर, तेंदूखेड़ा, सुल्तानपुर, कुरवाई, हरदा, सुठालिया, लटेरी, सेंधवा, सतवास, लोहार्दा, बदनावर, अकोदिया, माकडौन।
सरकार को नए निकाय गठित करने के साथ साथ चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि भी बढ़ानी होगी। नए नगर परिषद में नए सिरे से संरचना तैयार करनी पड़ती है और उसकी आय भी ज्यादा नहीं होती है। इससे कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिलता है।
– सुरेन्द्र सिंह सोलंकी, अध्यक्ष, मप्र नपा-नगर निगम कर्मचारी संघ
मौजूदा वित्तीय वर्ष में इन नए वादों के लिए बजट में प्रावधान नहीं किया गया है, लेकिन विकास कार्य अभी से शुरू करने होंगे। कारण यह है कि अगले साल नवंबर में विधानसभा चुनाव होना है। उससे पहले सरकार के सामने वादों को पूरा करने की चुनौती है।
हालांकि कुछ राहत यह है कि कोरोना काल के बाद राजस्व की स्थिति संभल रही है। सरकार ने इस साल बजट में 1.95 लाख करोड़ से ज्यादा की आमदनी का अनुमान रखा है। इनमें 72 हजार करोड़ विभिन्न टैक्स के जरिए वसूली होना है।
– 72 हजार करोड़ टैक्स के जरिए वसूली होना है। सबसे भारी इनके लिए पैसे का इंतजाम
1- नगरोदय कार्यक्रम के लिए 5 साल में 21 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च करने का वादा है। पहले साल औसत चार हजार करोड़ रुपए चाहिए।
2- प्रदेश में सड़कों पर दो वर्ष में 2 हजार करोड़ खर्च करने का वादा है। इसके तहत इसी साल 1 हजार करोड़ रुपए की जरूरत रहेगी।
3- 16 नगर निगमों में तीन हजार बसें चलाने का वादा है। इसी के साथ 5 हजार करोड़ से शहरों को कचरा मुक्त बनाने की प्लानिंग है।
4- एक साल में भोपाल और इंदौर में मेट्रो रेल चलाने का वादा है। नवंबर 2023 के चुनाव से पहले सरकार मेट्रो का संचालन चाहती है।
इधर, प्रदेश में कर्ज हुआ बजट से ज्यादा
इस साल का राज्य का मुख्य बजट 2.79 लाख करोड़ रुपए का है, जबकि कर्ज 2.87 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को पार हो चुका है। यह अलार्मिंग स्थिति है। हालांकि ऐसा इसलिए हुआ कि केंद्र सरकार ने ऑफ बजट कर्ज को भी मुख्य बजट में शामिल करने के आदेश दिए हैं। इसके तहत अब भी 35 हजार करोड़ औसत ऑफ बजट कर्ज है, जो इसमें शामिल हो सकता है।
नई परिषदों के सामने भी खड़ा हुआ वित्तीय संकट
इधर, नव गठित नगर पालिका और नगर परिषदों के सामने बड़ी चुनौती खाली खजाने की है। कई निकायों में कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं मिल रहा है। इस मामले में नगर परिषदों की वित्तीय स्थिति ज्यादा खराब है। इसके पीछे वजह पंचायतों को नगर परिषद बनाना है। इनमें न तो वित्तीय संसाधन हैं और न आय का बड़ा जरिया। कर्मचारियों की भी पूरे मानदंड के अनुसार भर्ती कर ली गई है। इससे निकायों का स्थापना खर्च बढ़ गया है।
चुंगी क्षतिपूर्ति घटाई: वर्ष 2018 तक 378 निकाय थे। सरकार इन्हें चुंगी क्षतिपूर्ति के रूप में 324 करोड़ रुपए देती थी। इसमें 21त्न राशि पेंशन अंशदान व बिजली बिल की कटौती कर दी जाती थी। इसके बाद चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि 300 करोड़ रुपए कर दी गई। इसके साथ ही निकायों की संख्या 378 से बढ़कर 413 हो गई। 324 करोड़ रुपए जहां 378 निकायों को दिए जाते थे, वहीं, अब 300 करोड़ रुपए में 413 निकायों को बांटे जाने लगे हैं।
इन निकायों में ज्यादा दिक्कतें: धामनौद, चंदेरी, ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर, तेंदूखेड़ा, सुल्तानपुर, कुरवाई, हरदा, सुठालिया, लटेरी, सेंधवा, सतवास, लोहार्दा, बदनावर, अकोदिया, माकडौन।
सरकार को नए निकाय गठित करने के साथ साथ चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि भी बढ़ानी होगी। नए नगर परिषद में नए सिरे से संरचना तैयार करनी पड़ती है और उसकी आय भी ज्यादा नहीं होती है। इससे कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिलता है।
– सुरेन्द्र सिंह सोलंकी, अध्यक्ष, मप्र नपा-नगर निगम कर्मचारी संघ