चीन के तेवर, तालिबान की वापसी या यूक्रेन संकट… इनमें से कौन थी सबसे बड़ी चुनौती? विदेश सचिव श्रृंगला ने बताया h3>
नई दिल्ली: बीते 2 सालों से पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचा हुआ है। जब से कोरोना महामारी का दौर शुरू हुआ और अब जब रूस और यूक्रेन के बीच जंग थमने का नाम नहीं ले रही, दुनिया की कूटनीति बदल दी है। ऐसे में हर देश के लिए अपना विदेश मंत्रालय और उससे जुड़े हुए अधिकारियों की जिम्मेदारियां बढ़ जाती है। भारत के लिए बीते 2 साल काफी चुनौतीपूर्ण रहे हैं। कोरोना महामारी, एलएसी पर चीनी घुसपैठ, अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ये तमाम मुद्दे रहे हैं जिससे भारत को दो-दो हाथ होना पड़ा।
हर्ष श्रृंगला से पूछे गए कई सवाल
भारत के विदेश सचिव रहे हर्ष श्रृंगला का कार्यकाल आज खत्म हो जाएगा। बीते 2 सालों में उन्होंने हर मोर्चे पर भारत का मजबूती से पक्ष रखा है और विदेश नीति को एक नई दिशा देने का काम किया है। आज वो अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं तो हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया से उन्होंने बातचीत की। इस दौरान उन्होंने बहुत सारे मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखी। विदेश मंत्रालय ने जुड़े कई सवाल उनसे किए गए जिनका माकूल जवाब उन्होंने दिया।
कौन सी चुनौती आपके लिए सबसे अहम
टाइम्स ऑफ इंडिया के सहयोगी तुषार सचिन पाराशर ने उनका इंटरव्यू किया। इस दौरान उन्होंने सवाल हर्ष श्रृंगला से सवाल किया कि जब भारत में कुछ उथल-पुथल वाली घटनाएं घट रहीं थीं उस वक्त आप एक विदेश सचिव भी थे। चाहे वो कोरोना महामारी हो, चीनी एलएसी की आक्रामकता, पिछले साल अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी और अब यूक्रेन। इनमें से कौन सी विदेश मंत्रालय के लिए और निश्चित रूप से आपके लिए व्यक्तिगत रूप से सबसे बड़ी चुनौती थी?
कोरोना महामारी को लेकर श्रंगला का बयान
इस सवाल के जवाब में श्रृंगला ने कहा, ‘ अपनी-अपनी जगह सभी चुनौतियां हमारे लिए महत्वपूर्ण थीं। महामारी ने वैश्विक लॉकडाउन के दौरान भी कई बड़ी चुनौतियां थीं। विदेशों में फंसे भारतीय नागरिकों का ख्याल और उनकी सकुशन वापसी कराना, पहली लहर के दौरान हमारे स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के लिए और दूसरी लहर के दौरान चिकित्सा ऑक्सीजन और रेमडिसिविर जैसी दवाओं की कमी को दूर करने के लिए खरीद कार्यों को करना और चुनौतीपूर्ण लॉजिस्टिक चुनौतियों का सामना कर रहे देशों को जरूरी सामानों की मदद करना ये सब अपने आप में चैलेंजिंग था।
कोरोना काल में तकनीकि का इस्तेमाल
श्रृंगला अपने जवाब में आगे कहते हैं कि इन सब चुनौतियों के बीच हमें इन समस्याओं के प्रबंधन के लिए विदेश मंत्रालय के भीतर संरचनाएं और क्षमताएं बनानी थीं। मार्च 2020 में महामारी के शुरुआती दिनों के दौरान COVID सेल बनाया गया था। MEA ने एक मैट्रिक्स संरचना को अपनाया, जैसे कि स्टार्ट-अप, और बढ़ी हुई क्षमता जहां इसकी आवश्यकता थी। तत्काल प्रतिक्रिया के साथ त्वरित निर्णय लेने और निर्देशों के तेजी से प्रसार ने हमें बदलती मांगों पर तेजी से प्रतिक्रिया करने की अनुमति दी। हम पोर्टल सहित तकनीक और संचार पर बहुत अधिक निर्भर थे।
अफगानिस्तान-तालिबान मुद्दा
अफगानिस्तान तालिबान मुद्दे की बात करते हुए उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान वाली स्थिति में हमने भू-राजनीतिक और मानवीय दोनों कठिनाइयों का सामना किया। भू-राजनीतिक स्थिति से निपटा जा रहा था। तत्काल हमने ऑपरेशन देवी शक्ति शुरू करने के लिए फैसला किया। जिसमें भारतीय नागरिकों और अफगान अल्पसंख्यकों को जल्द से जल्द वहां से निकालना शामिल था। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन गंगा भी एक बड़ी चुनौती थी, जिसके लिए यूक्रेन में सक्रिय संघर्ष क्षेत्रों से हमारे नागरिकों को निकालने की आवश्यकता थी।
भारत का चीन के साथ विवाद
चीन के साथ एलएसी विवाद में वो कहते हैं कि चीन के साथ भारत की सीमा पर अभूतपूर्व स्थिति से भी जूझना पड़ा। इसे हल करने के प्रयासों के लिए सरकार की ओर से काफी ध्यान देने की आवश्यकता है। इन सबके बीच श्रृंगला कहते हैं कि वर्तमान में हम सुरक्षा परिषद में एक अस्थायी सदस्य के तौर पर काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने पहले क्वाड लीडर्स समिट में भाग लिया, रोम में G20 शिखर सम्मेलन और ग्लासगो में ऐतिहासिक COP 26 शिखर सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक की और अध्यक्षता भी की। यह इतिहास में पहली बार था कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने ऐसा किया था। इस तरह हम विदेशी मामलों में लगातार
हर्ष श्रृंगला से पूछे गए कई सवाल
भारत के विदेश सचिव रहे हर्ष श्रृंगला का कार्यकाल आज खत्म हो जाएगा। बीते 2 सालों में उन्होंने हर मोर्चे पर भारत का मजबूती से पक्ष रखा है और विदेश नीति को एक नई दिशा देने का काम किया है। आज वो अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं तो हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया से उन्होंने बातचीत की। इस दौरान उन्होंने बहुत सारे मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखी। विदेश मंत्रालय ने जुड़े कई सवाल उनसे किए गए जिनका माकूल जवाब उन्होंने दिया।
कौन सी चुनौती आपके लिए सबसे अहम
टाइम्स ऑफ इंडिया के सहयोगी तुषार सचिन पाराशर ने उनका इंटरव्यू किया। इस दौरान उन्होंने सवाल हर्ष श्रृंगला से सवाल किया कि जब भारत में कुछ उथल-पुथल वाली घटनाएं घट रहीं थीं उस वक्त आप एक विदेश सचिव भी थे। चाहे वो कोरोना महामारी हो, चीनी एलएसी की आक्रामकता, पिछले साल अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी और अब यूक्रेन। इनमें से कौन सी विदेश मंत्रालय के लिए और निश्चित रूप से आपके लिए व्यक्तिगत रूप से सबसे बड़ी चुनौती थी?
कोरोना महामारी को लेकर श्रंगला का बयान
इस सवाल के जवाब में श्रृंगला ने कहा, ‘ अपनी-अपनी जगह सभी चुनौतियां हमारे लिए महत्वपूर्ण थीं। महामारी ने वैश्विक लॉकडाउन के दौरान भी कई बड़ी चुनौतियां थीं। विदेशों में फंसे भारतीय नागरिकों का ख्याल और उनकी सकुशन वापसी कराना, पहली लहर के दौरान हमारे स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के लिए और दूसरी लहर के दौरान चिकित्सा ऑक्सीजन और रेमडिसिविर जैसी दवाओं की कमी को दूर करने के लिए खरीद कार्यों को करना और चुनौतीपूर्ण लॉजिस्टिक चुनौतियों का सामना कर रहे देशों को जरूरी सामानों की मदद करना ये सब अपने आप में चैलेंजिंग था।
कोरोना काल में तकनीकि का इस्तेमाल
श्रृंगला अपने जवाब में आगे कहते हैं कि इन सब चुनौतियों के बीच हमें इन समस्याओं के प्रबंधन के लिए विदेश मंत्रालय के भीतर संरचनाएं और क्षमताएं बनानी थीं। मार्च 2020 में महामारी के शुरुआती दिनों के दौरान COVID सेल बनाया गया था। MEA ने एक मैट्रिक्स संरचना को अपनाया, जैसे कि स्टार्ट-अप, और बढ़ी हुई क्षमता जहां इसकी आवश्यकता थी। तत्काल प्रतिक्रिया के साथ त्वरित निर्णय लेने और निर्देशों के तेजी से प्रसार ने हमें बदलती मांगों पर तेजी से प्रतिक्रिया करने की अनुमति दी। हम पोर्टल सहित तकनीक और संचार पर बहुत अधिक निर्भर थे।
अफगानिस्तान-तालिबान मुद्दा
अफगानिस्तान तालिबान मुद्दे की बात करते हुए उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान वाली स्थिति में हमने भू-राजनीतिक और मानवीय दोनों कठिनाइयों का सामना किया। भू-राजनीतिक स्थिति से निपटा जा रहा था। तत्काल हमने ऑपरेशन देवी शक्ति शुरू करने के लिए फैसला किया। जिसमें भारतीय नागरिकों और अफगान अल्पसंख्यकों को जल्द से जल्द वहां से निकालना शामिल था। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन गंगा भी एक बड़ी चुनौती थी, जिसके लिए यूक्रेन में सक्रिय संघर्ष क्षेत्रों से हमारे नागरिकों को निकालने की आवश्यकता थी।
भारत का चीन के साथ विवाद
चीन के साथ एलएसी विवाद में वो कहते हैं कि चीन के साथ भारत की सीमा पर अभूतपूर्व स्थिति से भी जूझना पड़ा। इसे हल करने के प्रयासों के लिए सरकार की ओर से काफी ध्यान देने की आवश्यकता है। इन सबके बीच श्रृंगला कहते हैं कि वर्तमान में हम सुरक्षा परिषद में एक अस्थायी सदस्य के तौर पर काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने पहले क्वाड लीडर्स समिट में भाग लिया, रोम में G20 शिखर सम्मेलन और ग्लासगो में ऐतिहासिक COP 26 शिखर सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक की और अध्यक्षता भी की। यह इतिहास में पहली बार था कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने ऐसा किया था। इस तरह हम विदेशी मामलों में लगातार