चांद देखकर ही क्यों मनाई जाती है ईद, ईद उल फितर से जुड़ी ये खास बातें | why eid is celebrated only after seeing the moon know here | Patrika News

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चांद देखकर ही क्यों मनाई जाती है ईद, ईद उल फितर से जुड़ी ये खास बातें | why eid is celebrated only after seeing the moon know here | Patrika News

चांद देखकर ही क्यों मनाई जाती है ईद, ईद उल फितर से जुड़ी ये खास बातें | why eid is celebrated only after seeing the moon know here | Patrika News

इस बार 29 रमजान यानी 2 अप्रैल को चांद नहीं दिखा। ऐसे में इस बार रमजान के तीस रोजें होंगे। साथ ही, ईद उल फितर का त्यौहार 3 अप्रैल 2022 को मनाया जाएगा। इस्लामिक महीना चांद दिखने से शुरु होता है और चांद दिखने पर ही खत्म होता है। शव्वाल (इस्लामिक महीना) माह के पहले दिन ईद मनाई जाती है। इससे पहले रमजान का पाक महीना होता है, इस पूरे महीने इबादत के बाद अल्लाह की तरफ से अपने बंदों को ईद का तोहफा दिया गया। जैसे ही चांद दिखता है, पिछला महीना खत्म होकर नया महीना शुरु हो जाता है। शव्वाल का महीना शुरु होते ही लोग अगली सुबह ईद मनाते हैं। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह उठकर फज्र की नमाज अदा करते हैं। इसके बाद तैयार होते हैं। इस दौरान अल्लाह का आदेश है कि, तुम्हारे पास मौजूद सबसे पसंदीदा कपड़े पहनो। इसके बाद सभी लोग ईद की नमाज अदा करने शहर की ईदगाह (ईद की नमाज अदा करने वाली जगह) जाते हैं। वहां किसी एक शहर के लगभग सभी लोग एक साथ ईद की नमाज अदा करते हैं और इस दिन के लिए अल्लाह का शुक्र (धन्यवाद) करते हैं। साथ ही, यहां अल्लाह से पूरी दुनिया के लिए अमन ओ अमान, सुख, शांति और भाइचारा कायम करने की दुआ की जाती है। नमाज़ पूरी होने के बाद सभी लोग एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद (बधाई) देते हैं।

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खास पकवान खिलाकर बांटी जाती हैं खुशियां

ईद की नमाज पढ़कर सभी लोग अपने अपने घरों को लौटते हैं। फिर अपने पड़ोसियों (घर के नज़दीक रहने वाले), रिश्तेदारों (परिजन) और मिलने जुलने वालों (परिचित) के घर जाकर या उन्हें अपने घर बुलाकर ईद की मुबारकबाद (बधाई) देते हैं। इस दिन कई तरह के खास पकवान बनाए जाते हैं, जो मिलने जुलने वालों को खिलाकर एक दूसरे के साथ खुशियां मनाई जाती हैं। अल्लाह का आदेश है कि, इस दिन सभी मुसलमान खुशियां मनाएं। इसलिए भी कि, उन्होंने अल्लाह को राजी करने के लिए रमजान में की थी। इसलिए भी कि, इस दिन के जरिये वो अपने दिलों से किसी भी तरह के मनमुटाव को भुलाकर एक दूसरे के गले लगें। इसलिए भी कि, इस दिन की बरकत (कारण) से वो अपने सगे संबंधियों और पड़ोसियों के साथ सुख बांटें और अपने रिश्तों को एक नई मज़बूती दें।

चांद देखने के बाद ही ईद क्यों?

इस्लाम के मुताबिक, दिनों की गणना चांद दिखने के आधार पर की जाती है। रोजाना का चांद दिखने पर ही दिन सुनिश्चित किया जाता है। साथ ही, नया चांद दिखने पर अगला महीना तय माना जाता है। ईद उल फितर हिजरी कैलेंडर के 10वें माह के पहले दिन मनाई जाती है।

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ईद के दिन इन बातों का रखें खास ध्यान

वैसे तो ईद उल फितर के दिन फर्ज नमाजों को छोड़कर किसी भी इबादत करने के बारे में मना किया गया है। साथ ही, इस दिन के लिए कई खास नियम भी बताए हैं, जिसका पालन करना बेहद जरूरी है। आइए जानते हैं उन खास नियमों के बारे में…।

-ईद के दिन सुबह सबसे पहले उठकर फज्र की नमाज अदा करनी होती है, इसी से नए दिन की शुरुआत मानी जाती है।

-नमाज के बाद लोगों को नहां-धोकर (गुसल) अपने सबसे पसंदीदा कपड़े पहनकर उनपर खुशबू लगाकर ईद की नमाज के लिए निकलना होता है।

-रमजान शुरु होने के बाद से ईद की नमाज अदा करने से पहले पहले हर मालदार मुसलमान को फितरा गरीबों को देना चाहिए। इसे बेहद जरूरी बताया गया है। फितरा यानी उतनी रकम, जिससे किसी व्यक्ति को भरपेट खाना मिल सके। फितरे की रकम का आंकलन दो चीजों से किया गया है। मध्यम वर्गीय व्यक्ति के लिए 1 किलो 6 सौ 33 ग्राम गेहूं या उसकी कीमत किसी गरीब को दी जाती है मौटे तौर पर इसकी रकम उलमाओं की तरफ से इस साल 50 रुपये रखी गई है। वहीं, किसी अमीर व्यक्ति को 1 किलो 6 सौ 33 ग्राम किशमिश की रकम लगभग 500 रुपए किसी गरीब को फिदिया देना होता है। फितरे का मकसद उन गरीबों तक भी उतनी रकम पहुंचाना है, जिससे वो भी हसी खुशी ईद का त्यौहार मना सकें। इधर, अल्लाह ने मालदार मुसलमान पर फितरा देना लागू किया, ताकि, वो उन गरीबों को ढूंढकर फितरा अदा करे। फितरा अदा किये बिना मालदार व्यक्ति की ईद की नमाज़ नहीं मानी जाती।

-ईद की नमाज ईदगाह में अदा करनी चाहिए। ईदगाह न होने पर मस्जिद में या फिर खुले आसमान तले ही नमाज अदा की जा सकती है।

-ईदगाह आने और जाने के लिए अलग-अलग रास्तों का इस्तेमाल करना होता है। ताकि, आप अलग अलग रास्तों से गुज़रकर मिलने जुलने वाले लोगों को ईद की मुबारकबाद दे सकें।

-छोटे बच्चों को ईदी के तौर उपहार दिये जाते हैं, ताकि, उनके दिल में ईद की कद्र (सम्मान) बढ़े।

-इस दिन गरीबों को दान देना, साथ में भोजन करना और उनके साथ खुशियां बांटना सवाब (पुण्य कार्य) माना जाता है।



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