ग्लाइकेन-आधारित फारेंसिक तकनीक बताएगी मृतक की सटीक आयु: आइआइटी बीएचयू के विज्ञानियों की खोज,मृतक के स्वास्थ्य, मानसिक तनाव आदि जानकारियां भी मिलेंगी – Varanasi News

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ग्लाइकेन-आधारित फारेंसिक तकनीक बताएगी मृतक की सटीक आयु:  आइआइटी बीएचयू के विज्ञानियों की खोज,मृतक के स्वास्थ्य, मानसिक तनाव आदि जानकारियां भी मिलेंगी – Varanasi News

ग्लाइकेन-आधारित फारेंसिक तकनीक बताएगी मृतक की सटीक आयु: आइआइटी बीएचयू के विज्ञानियों की खोज,मृतक के स्वास्थ्य, मानसिक तनाव आदि जानकारियां भी मिलेंगी – Varanasi News

IITBHU के जैव रासायनिक अभियांत्रिकी क विज्ञानियों ने जैविक तरल पदार्थों का उपयोग करके उम्र का सटीक अनुमान लगाने की विधि विकसित की है। ग्लाइकेन-आधारित पद्धति से किसी आपराधिक घटना की जांच करना और भी आसान तथा सटीक परिणाम देने वाला सिद्ध होगा।

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गृहमंत्री ने किया सम्मानित

विज्ञानियों की इस खोज ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय फारेंसिक साइंस विश्वविद्यालय के तत्वावधान में आयोजित फारेंसिक हैकाथान 2025 में शीर्ष पुरस्कार जीता है। इस पद्धति को विकसित करने वाले संस्थान के जैव रसायन विभाग के प्रो. सुमित कुमार सिंह के साथ शोधार्थी शांतनु सिंह एवं बीटेक के छात्र प्रणव चोपड़ा को गृहमंत्री अमित शाह ने विज्ञान भवन नई दिल्ली में दो लाख रुपये नकद एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर पुरस्कृत किया।

केंद्रीय गृह मंत्री माननीय अमित शाह से पुरस्कार प्राप्त करते अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ सुमित कुमार सिंह (दाएं)

आइआइटी बीएचयू के शोध छात्रों ने जीता फारेंसिक हैकाथान

प्रो. सिंह ने बताया कि अभी तक आपराधिक घटनाओं की जांच में मृतक की आयु का पता लगाने के लिए डीएनए आधारित फारेंसिक विश्लेषण, जैसे एपिजेनेटिक मार्कर्स का उपयोग करते है। उम्र अनुमान के लिए उपयोगी सिद्ध हुए हैं, लेकिन ये तकनीकें केवल जनसंख्या स्तर पर ही प्रभावी होती हैं। इस विधिक में प्राय: शुद्ध डीएनए की आवश्यकता होती है। जब घटनास्थल से प्राप्त नमूने क्षतिग्रस्त होते हैं या नमूने अन्य पृष्ठभूमियों वाले व्यक्तियों के होते हैं तब उनसे सटीक परिणाम नहीं मिलते। ऐसी स्थिति में यह पद्धति बिल्कुल शुद्ध परिणाम देगी।

क्या है ग्लाइकेन पद्धति

प्रो. सिंह ने बताया कि ग्लाइकेन, जटिल शर्करा अणु हैं जो प्रोटीन से जुड़ते हैं। ये अणु आयु, स्वास्थ्य एवं जीवनशैली के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं। हमारी टीम ने जैव-तरल से अणु स्तर उनके बदलावों और लक्षणों को पढ़ने के लिए ग्लाइकोमिक प्रोफाइलिंग और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का प्रयोग किया। इससे न केवल व्यक्ति की वास्तविक आयु, बल्कि जैविक आयु का भी अनुमान लगाया जा सकता है।

आईआईटी बीएचयू के लैब में हुआ शोध।

जैविक आयु व्यक्ति के स्वास्थ्य स्थिति, रोग प्रतिरोधक क्षमता या मानसिक तनाव की स्थिति को दर्शाती है, ये परिणाम अपराध की जांच में महत्वपूर्ण सुराग दे सकते हैं। यह तकनीक विभिन्न फारेंसिक परिदृश्यों में बहुपयोगी सिद्ध हो सकती है। इनका उपयोग अज्ञात शवों की पहचान, बहु-अपराधियों के बीच अंतर करने और किशोर अपराधों या मानव तस्करी जैसे मामलों में उम्र सत्यापन में भी किया जा सकेगा। व्यक्ति की जैविक उम्र और स्वास्थ्य स्थिति का विश्लेषण घटना के समय उनके तनाव या बीमारी की स्थिति को भी दर्शा सकता है, जिससे अपराध की समय-सीमा या परिस्थितियों को पुनर्निर्मित करने में सहायता मिल सकती है।

रिसर्च करने वाली टीम (बाएं से दायं) एमटेक छात्र उत्तम कुमार रॉय, पीएचडी स्कॉलर ज्योति वर्मा, अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ सुमित कुमार सिंह, पीएचडी स्कॉलर काजल, बीटेक चतुर्थ वर्ष छात्र प्रणव चोपड़ा

तैयार होगा देश का पहला ग्लाइकोमिक आयु संदर्भ डाटा बेस

प्रो. सिंह ने बताया कि भविष्य में उनकी टीम भारत का पहला ग्लाइकोमिक आयु संदर्भ डेटाबेस तैयार करेगी। यह फारेंसिक एवं बायोमेडिकल अनुप्रयोगों के लिए एक राष्ट्रीय संसाधन का कार्य करेगा। शांतनु सिंह ने कहा कि डीएनए के विपरीत, ग्लाइकेन प्रोफाइल उम्र, क्षेत्रीय परिवेश और पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होते हैं, जिससे ये भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए अत्यंत उपयुक्त साबित होंगे।

प्रणव चोपड़ा ने बताया कि, “हमने पहले ही राष्ट्रीय वित्तपोषण एजेंसियों को प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिए हैं ताकि भारतीय जनसंख्या के विभिन्न आयु वर्गों और समुदायों के लिए एक प्रतिनिधि डेटाबेस तैयार किया जा सके। एक बार यह डेटाबेस बन गया तो यह न केवल उम्र अनुमान के औजारों की सटीकता बढ़ाएगा, बल्कि बुढ़ापे, रोग प्रगति और दीर्घायु जैसे क्षेत्रों में भी शोध को बढ़ावा देगा। यह खाद्य सुरक्षा, बायोमेडिसिन और राष्ट्रीय सुरक्षा में नवाचार के लिए भी देश की वैज्ञानिक अधोसंरचना का हिस्सा बन सकता है।”

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