गुलाम नबी आजाद G-23 की डिमांड्स लेकर 10 जनपथ गए थे, सोनिया गांधी से क्या बात हुई? पढ़ें इनसाइड स्टोरी h3>
नई दिल्ली: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस का मनोबल रसातल में है। ऊपर से असंतुष्ट नेताओं का समूह G-23 अलग तेवर दिखा रहा है। गांधी परिवार अब दोहरी चुनौती से जूझ रही कांग्रेस को संभालने में जुटा है। राहुल गांधी ने G-23 में शामिल हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा से 45 मिनट बात की थी। फिर शुक्रवार रात गुलाम नबी आजाद भी सोनिया गांधी से मिलने 10 जनपथ पहुंच गए। करीब घंटे भर चली बैठक के बाद आजाद ने रिपोर्टर्स से यही कहा कि वे अपने सुझाव आलाकमान को दे आए हैं। ये सुझाव ‘पार्टी को मजबूत करने’ और ‘एकजुट होकर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति’ से जुड़े थे। एक अहम सुझाव यह भी था कि कांग्रेस समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से हाथ मिलाए। हालांकि, आजाद ने यह जरूर साफ किया कि G-23 नेतृत्व में बदलाव नहीं चाहता। कांग्रेस के नए अध्यक्ष से जुड़े सवाल पर आजाद ने कहा, ‘वैकेंसी कहां हैं?’
आजाद ने हाल ही में कहा था कि ‘उनके जैसे नेता कांग्रेस को मरता हुआ नहीं देख सकते…’ पिछले दिनों G-23 समूह की कई बैठकें हुई हैं। शुक्रवार रात आजाद ने कहा, ‘मिसेज गांधी लगातार संगठन को मजबूत करने के लिए नेताओं से बैठकें करती रहती हैं। कुछ दिन पहले, कांग्रेस कार्यसमिति बैठी थी और सुझाव मांगे गए थे कि कांग्रेस पार्टी को कैसे मजबूत किया जाए और विधानसभा चुनाव में हार के कारण क्या थे। मैंने भी अपने सुझाव दिए।’
सोनिया-आजाद की मुलाकात के मायने क्या हैं?
कपिल सिब्बल जैसे नाराज कांग्रेसियों ने गांधी परिवार से पार्टी का नेतृत्व छोड़ने को कहा है। इस बीच, आजाद का 10 जनपथ जाकर सोनिया गांधी से मिलना यह इशारा है कि शायद G-23 उतना आक्रामक न रहे और नेतृत्व की ओर से बढ़ाया हाथ थाम ले। हालांकि सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय संसदीय बोर्ड गठित करने की मांग पर पेच फंसा है। गांधी परिवार के करीबियों ने इस सुझाव की पुरजोर खिलाफत की है। आजाद ने उन सवालों को सिरे से खारिज कर दिया कि G-23 कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव की मांग कर रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सितंबर में प्रस्तावित संगठन के चुनावों तक इस मसले पर क्या होता है।
सोनिया गांधी ने जब वर्किंग कमिटी में कहा कि आप सभी लोग चाहें तो हम छोड़ देते हैं लेकिन हम सभी नेताओं ने मिलकर कहा कि आप जारी रखिए। हमें कोई समस्या नहीं लेकिन कुछ संगठप को ठीक करने के सुझाव भी हैं।
गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ कांग्रेस नेता
गैर-गांधी बनेगा कांग्रेस अध्यक्ष? संसद में गांधी ही अगुवा
सूत्रों के अनुसार, G-23 के नेता चाहते हैं कि नेतृत्व का बंटवारा हो जाए। एक विकल्प यह रखा गया है कि गांधी परिवार संसद में पार्टी की कमान संभाले और अध्यक्ष किसी वरिष्ठ कांग्रेसी को बना दिया जाए। G-23 के सदस्य, पीजे कुरियन ने पिछले दिनों ‘द हिंदू’ से बातचीत में कहा था कि ‘पार्टी लिए आगे का रास्ता यह हो सकता है कि राहुल गांधी लोकसभा में कमान संभाल लें और परिवार से बाहर के किसी सदस्य को पार्टी अध्यक्ष बना दिया जाए।’ सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी को लोकसभा में कांगेस का नेता और गैर-गांधी को कांग्रेस का अगला अध्यक्ष बनाने की बात पर पार्टी बंटी हुई है।
अब बड़े बदलाव से गुजरेगी कांग्रेस?
कांग्रेस के पांच राज्यों का चुनाव हारने के बाद सोनिया ने बदलाव का दौर शुरू किया। उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के प्रदेश अध्यक्षों से इस्तीफे ले लिए गए। कांग्रेस समर्थक उन नेताओं पर हमलावर हैं जो पार्टी से असंतुष्ट हैं, इनमें G-23 के सदस्य प्रमुख हैं। हालांकि, कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सबने नेतृत्व में बदलाव की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया।
G-23 के सदस्यों ने 16 मार्च को गुलाम नबी आजाद के आवास पर बैठक की थी। इसके बाद एक संयुक्त बयान जारी किया गया। इसमें कहा गया, ‘हम मानते हैं कि कांग्रेस के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका सामूहिक और समावेशी नेतृत्व और सभी स्तरों पर निर्णय लेने के मॉडल को अपनाना है… भाजपा का विरोध करने के लिए और कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है। हम मांग करते हैं कि कांग्रेस पार्टी 2024 में एक विश्वसनीय विकल्प का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एक मंच बनाने के लिए समान विचारधारा वाली ताकतों के साथ बातचीत शुरू करे।’
आजाद ने हाल ही में कहा था कि ‘उनके जैसे नेता कांग्रेस को मरता हुआ नहीं देख सकते…’ पिछले दिनों G-23 समूह की कई बैठकें हुई हैं। शुक्रवार रात आजाद ने कहा, ‘मिसेज गांधी लगातार संगठन को मजबूत करने के लिए नेताओं से बैठकें करती रहती हैं। कुछ दिन पहले, कांग्रेस कार्यसमिति बैठी थी और सुझाव मांगे गए थे कि कांग्रेस पार्टी को कैसे मजबूत किया जाए और विधानसभा चुनाव में हार के कारण क्या थे। मैंने भी अपने सुझाव दिए।’
सोनिया-आजाद की मुलाकात के मायने क्या हैं?
कपिल सिब्बल जैसे नाराज कांग्रेसियों ने गांधी परिवार से पार्टी का नेतृत्व छोड़ने को कहा है। इस बीच, आजाद का 10 जनपथ जाकर सोनिया गांधी से मिलना यह इशारा है कि शायद G-23 उतना आक्रामक न रहे और नेतृत्व की ओर से बढ़ाया हाथ थाम ले। हालांकि सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय संसदीय बोर्ड गठित करने की मांग पर पेच फंसा है। गांधी परिवार के करीबियों ने इस सुझाव की पुरजोर खिलाफत की है। आजाद ने उन सवालों को सिरे से खारिज कर दिया कि G-23 कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव की मांग कर रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सितंबर में प्रस्तावित संगठन के चुनावों तक इस मसले पर क्या होता है।
सोनिया गांधी ने जब वर्किंग कमिटी में कहा कि आप सभी लोग चाहें तो हम छोड़ देते हैं लेकिन हम सभी नेताओं ने मिलकर कहा कि आप जारी रखिए। हमें कोई समस्या नहीं लेकिन कुछ संगठप को ठीक करने के सुझाव भी हैं।
गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ कांग्रेस नेता
गैर-गांधी बनेगा कांग्रेस अध्यक्ष? संसद में गांधी ही अगुवा
सूत्रों के अनुसार, G-23 के नेता चाहते हैं कि नेतृत्व का बंटवारा हो जाए। एक विकल्प यह रखा गया है कि गांधी परिवार संसद में पार्टी की कमान संभाले और अध्यक्ष किसी वरिष्ठ कांग्रेसी को बना दिया जाए। G-23 के सदस्य, पीजे कुरियन ने पिछले दिनों ‘द हिंदू’ से बातचीत में कहा था कि ‘पार्टी लिए आगे का रास्ता यह हो सकता है कि राहुल गांधी लोकसभा में कमान संभाल लें और परिवार से बाहर के किसी सदस्य को पार्टी अध्यक्ष बना दिया जाए।’ सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी को लोकसभा में कांगेस का नेता और गैर-गांधी को कांग्रेस का अगला अध्यक्ष बनाने की बात पर पार्टी बंटी हुई है।
अब बड़े बदलाव से गुजरेगी कांग्रेस?
कांग्रेस के पांच राज्यों का चुनाव हारने के बाद सोनिया ने बदलाव का दौर शुरू किया। उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के प्रदेश अध्यक्षों से इस्तीफे ले लिए गए। कांग्रेस समर्थक उन नेताओं पर हमलावर हैं जो पार्टी से असंतुष्ट हैं, इनमें G-23 के सदस्य प्रमुख हैं। हालांकि, कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सबने नेतृत्व में बदलाव की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया।
G-23 के सदस्यों ने 16 मार्च को गुलाम नबी आजाद के आवास पर बैठक की थी। इसके बाद एक संयुक्त बयान जारी किया गया। इसमें कहा गया, ‘हम मानते हैं कि कांग्रेस के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका सामूहिक और समावेशी नेतृत्व और सभी स्तरों पर निर्णय लेने के मॉडल को अपनाना है… भाजपा का विरोध करने के लिए और कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है। हम मांग करते हैं कि कांग्रेस पार्टी 2024 में एक विश्वसनीय विकल्प का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एक मंच बनाने के लिए समान विचारधारा वाली ताकतों के साथ बातचीत शुरू करे।’