क्या रिश्वत केस में फंसे MLA की जाएगी विधायकी?: सदन भी कर सकता है निलंबित, जानिए- दोषी साबित हुए तो कितने साल की सजा – Rajasthan News h3>
एसीबी ने भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के बागीदौरा (बांसवाड़ा) से विधायक जयकृष्ण पटेल को रविवार को रंगे हाथों रिश्वत लेते गिरफ्तार किया। उन पर विधानसभा में लगाए सवाल वापस लेने के एवज में 20 लाख की रिश्वत लेने का आरोप है।
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आरोपी विधायक और उनका चचेरा भाई 2 दिन की रिमांड पर है। एसीबी का दावा है कि उनके पास आरोपी विधायक के खिलाफ पुख्ता सबूत है। हाईप्रोफाइल केस में सावधानी और सतर्कता से एक-एक सबूत जुटाए हैं।
NEWS4SOCIALने कानून के जानकारों से इस मामले के कानूनी पहलू समझने की कोशिश की।
क्या BAP एमएलए की विधायकी चली जाएगी ? उन्हें कितने साल की सजा होगी? एसीबी ने किन पुख्ता सबूतों के आधार पर एमएलए को गिरफ्तार किया है?
पढ़िए इस रिपोर्ट में….
सवाल : गिरफ्तारी के बाद एमएलए जयकृष्ण पटेल की विधायकी जा सकती है? कोर्ट का फैसला आने से पहले एमएलए पर कोई कार्रवाई क्या कार्रवाई हो सकती है?
जवाब : राजस्थान हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट ए के जैन का कहना है कि आरोपी एमएलए जयकृष्ण पटेल रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़े गए हैं।
राज्य कर्मचारियों को रिश्वत लेते पकड़े जाने पर तुरंत निलंबित किया जाता है, लेकिन विधायक के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई नहीं हो सकती। हालांकि विधानसभा स्पीकर और विधानसभा इस मामले में कार्रवाई कर नजीर पेश कर सकते हैं।
सवाल : विधानसभा इस मामले में क्या कर सकती है?
जवाब : विधानसभा इस मामले को दुराचरण मानते हुए एक निश्चित समय तक आरोपी एमएलए की सदस्यता निलंबित करने का प्रस्ताव पास कर सकती है। विधानसभा के प्रस्ताव के आधार पर स्पीकर एमएलए के निलंबन का आदेश दे सकते हैं।
स्पीकर चाहे तो कोर्ट में मामले का फैसला आने तक सदस्यता निलंबित रखने का आदेश दे सकते हैं। अन्यथा इस तरह के मामले में किसी विधायक को सजा होने तक उसकी सदस्यता खत्म करने या निलंबित करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।
सवाल : कानून की नजर में एसीबी के सबूत कितने मजबूत हैं? क्या एमएलए को इस केस में सजा मिलेगी ?
जवाब : एडवोकेट बी.एस. चौहान का कहना है कि प्रथम दृष्टया एसीबी के पास पुख्ता सबूत दिखाई देते हैं। एसीबी इस केस का तेजी से अनुसंधान करे।
जांच के दौरान कोई कड़ी नहीं टूटे। केस को फॉलो करते हुए इसे केस ऑफिसर स्कीम के तहत लेकर इसका तुरंत निस्तारण कराए। इसके बाद ही आरोपी को सजा संभव है।
इसमें महत्वपूर्ण बात ये भी है कि एसीबी ने कार्रवाई के दौरान आरोपी के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लेने के सभी नियमों की पालना पूरी तरह से की है या नहीं। अगर नियमानुसार पूरी कार्रवाई की गई है तभी दोषी को सजा होने की संभावना अधिक होती है।
एसीबी ने विधायक जयकृष्ण पटेल को उनके घर से रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया था।
सवाल : क्या आरोपी एमएलए की सदस्यता समाप्त हो सकती है ?
जवाब : जैन ने बताया कि रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार होने के बावजूद एमएलए की विधायकी पर अभी कोई खतरा नहीं है। विधायकी केस दर्ज होने या रिश्वत लेने से नहीं जाती है।
दोषी साबित होने पर सदस्यता समाप्त होती है। अगर आरोपी एमएलए कोर्ट में दोषी साबित होते हैं तो उनकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8 (3) के अनुसार अगर BAP MLA को 2 साल या इससे अधिक की सजा होती है तो इनकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी। ये तब तक प्रभावी रहेगी जब तक अपील न्यायालय इस मामले में रोक न लगा दें या इसे बदल न दें।
रिश्वत मामले में एमएलए के दोषी पाए जाने पर वे सजा पूरी होने के अगले 6 साल तक चुनाव भी नहीं लड़ सकेंगे। यानी अगर एमएलए को तीन साल की सजा होती है तो वे 9 साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाएंगे।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत 2 साल से ज्यादा की सजा होने पर संसद या विधानसभा सदस्य को अयोग्य करार दिए जाने का प्रावधान है।
सवाल : दोषी पाए जाने पर कितने साल की सजा हो सकती है ? अधिकतम सजा दिलाने के लिए एसीबी को कोर्ट में किन बातों का ध्यान रखना होगा?
जवाब : भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13 के तहत रिश्वत लेने के दोषी पाए जाने पर अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है। पहले इस धारा के तहत अधिकतम सजा 7 साल तक थी।
एडवोकेट ए.के. जैन के अनुसार, इस केस में भी एमएलए के दोषी पाए जाने पर उन्हें 10 साल तक की कैद हो सकती है। वहीं एडवोकेट बी.एस. चौहान का कहना है कि कोर्ट में मामला तब साबित होता है जब सारी कड़ियां एक दूसरे से जुड़ी हुई हों।
एसीबी अगर कोर्ट में टेक्निकल बातों को सही रूप से पेश नहीं कर पाई तो केस कमजोर हो जाएगा। कोर्ट में एसीबी को ये भी साबित करना होगा कि एजेंसी ने केस में मैन्यूप्लेशन नहीं किया है।
एसीबी को जांच में यह भी देखना होगा कि केस किसी अदावत की वजह से तो मेन्युप्लेट नहीं कराया गया। इसके साथ ही एसीबी को समय पर चार्जशीट पेश करनी होगी।
एसीबी को अपनी कार्रवाई को सही बताने के लिए कोर्ट में ये साबित करना होगा कि आरोपी एमएलए के प्रश्न लंबित थे। विधायक इन प्रश्नों को वापस ले सकते थे।
ऐसी स्थिति में यह संभावना नहीं है कि हाईकोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप करें। अगर ऐसा नहीं है और लेन-देन के विषय में गलतियां पाई गईं तो एसीबी कोर्ट में फेल हो सकती है।
सवाल : एसीबी के पास क्या पुख्ता सबूत हैं, जिनके आधार पर एमएलए की मुश्किलें बढ़ेगी?
जवाब : एसीबी अधिकारियों के अनुसार 10 से अधिक ऑडियो, वीडियो रिकॉर्डिंग, सीसीटीवी फुटेज हैं। ये सभी फोरेंसिक सबूत पर आधारित है और पुख्ता सबूत हैं। जो कोर्ट में आरोपी एमएलए का दोष साबित करने के लिए पर्याप्त हैं।
इसके साथ ही कार्रवाई के दौरान जब एसीबी टीम ने एमएलए के हाथों को धोया तो उससे फिनोलफथेलिन पाउडर का रंग निकला। टीम ने इसका वीडियो भी बनाया।
इससे ये साफ होता है कि एमएलए पटेल ने खुद रिश्वत के रुपए गिने थे और बाद में बैग अपने परिचित को दे दिया। इसके अलावा 25 अप्रैल को रिश्वत के सत्यापन के दौरान एमएलए पटेल ने एक लाख रुपए लिए।
एसीबी ने बातचीत रिकॉर्ड की। बातचीत के दौरान एमएलए खुद रुपयों की डिमांड करते हैं। एमएलए ने पीड़ित को कहा कि 2.5 करोड़ तो देने ही पड़ेंगे। एसीबी अधिकारियों का मानना है कि इस तरह के सबूत एमएलए को अधिकतम सजा दिलाने के लिए पर्याप्त हैं।
एसीबी ने रिश्वत के 20 लाख रुपए भी सोमवार (5 मई) को आरोपी एमएलए के रिश्तेदार के यहां से बरामद कर लिए।
सीएम व विधानसभा अध्यक्ष को सूचना देने पर उठे सवाल
एडवोकेट ए.के. जैन ने कार्रवाई से पहले सीएम व विधानसभा अध्यक्ष को इसकी जानकारी देने पर सवाल उठाए। उन्होंने एसीबी डीजी रविप्रकाश मेहरड़ा के उस बयान पर आपत्ति जताई जिसमें उन्होंने इसकी सूचना सीएम व विधानसभा अध्यक्ष को देने की बात कही थी।
उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी के बाद तो इसकी सूचना दी जाती है। लेकिन कार्रवाई से पहले ऐसी सूचना देने पर इस पूरे मामले में राजनीति होने की आशंका को लेकर सवाल उठना लाजिमी है। क्योंकि आरोपी एमएलए विपक्षी पार्टी के विधायक हैं।
किसी भी लोक सेवक या सरकारी कर्मचारी को रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार करने के मामले में किसी से अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है। आईएएस या आईपीएस की गिरफ्तारी पर भी किसी को सूचना नहीं दी जाती।
जिसकी शिकायत पर एसीबी ने ट्रैप की कार्रवाई की, वो पिता-पुत्र भी अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ चुके हैं। ऐसे में एसीबी को अपनी जांच में वो कारण भी सामने लाने होंगे, जिससे साबित हो सके कि एक राजनेता दूसरे राजनेता से इस तरह विधानसभा में सवाल पूछने को लेकर रुपए मांग सकता है क्या?
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